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Showing posts from June, 2018

ख़लील जिब्रान की लघुकथाएं Khalil Gibran's short stories

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ख़लील जिब्रान की लघुकथाएं आजादी वह मुझसे बोले- 'कि‍सी गुलाम को सोते देखो तो जगाओ मत, हो सकता कि‍ वह आजादी का सपना देख रहा हो।' 'अगर कि‍सी गुलाम को सोते देखो तो उसे जगाओ और आजादी के बारे में बताओ।' मैंने कहा। ऊँचाई अगर आप बादल पर बैठ सके तो एक देश से दूसरे देश को अलग करने वाली सीमा रेखा आपको कहीं दिखाई नहीं देगी और न ही एक खेत से दूसरे खेत को अलग करनेवाला पत्थर ही नजर आएगा। च्च...च....च... आप बादल पर बैठना ही नहीं जानते। मेजबान  'कभी हमारे घर को भी पवित्र करो।' करूणा से भीगे स्वर में भेड़िये ने भोली-भाली भेड़ से कहा 'मैं जरूर आती बशर्ते तुम्हारे घर का मतलब तुम्हारा पेट न होता।' भेड़ ने नम्रतापूर्वक जवाब दिया। दूसरी भाषा मुझे पैदा हुए अभी तीन ही दिन हुए थे और मैं रेशमी झूले में पड़ा अपने आसपास के संसार को बड़ी अचरज भरी निगाहों से देख रहा था। तभी मेरी माँ ने आया से पूछा, “कैसा है मेरा बच्चा?” आया ने उत्तर दिया, “वह ख़ूब मज़े में है। मैं उसे अब तक तीन बार दूध पिला चुकी हूँ। मैंने इतना ख़ुशदिल बच्चा आज तक नहीं...

संघियों की संस्कृति - उम्र दराज शिक्षिका का किया अपमान तो शिक्षक को पोती कालिख

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संघियों की संस्कृति - उम्र दराज शिक्षिका का किया अपमान तो शिक्षक को पोती कालिख अंबानी अडानी के टुकड़ों पर पलने वाले संघी संस्कृति रक्षा की नौटंकी सबसे ज्यादा करते हैं क्योंकि इसी के माध्यम से समाज में दबे कुचले वर्गों को ना सिर्फ आपस में लड़वा सकते हैं बल्कि उनका दिमाग भी कुंद कर सकते हैं पर इनकी असली संस्कृति तब सामने आती है जब यह आम जनता के साथ संपर्क में आते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले सुषमा स्वराज को संघियों ने लगातार गालियां दी। उसके बाद खुद सुषमा स्वराज ने अपनी व्यथा Facebook और Twitter पर सुनाई। ( खबर का लिंक -  https://www.youthkiawaaz.com/2018/06/online-trolling-of-sushma-swaraj-raises-some-very-serious-questions/ ) सोचने वाली बात यह है कि जो अपनी ही पार्टी की  एक उम्र दराज महिला को इस तरह ट्रोल कर सकते हैं, वह आम जनता के साथ क्या करेंगे और इसका जवाब भी जल्दी ही देशभर में संघियों ने दे भी दिया। दशकों तक संघ में रहने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र रावत ने कल अपने ही जनता दरबार में एक उम्रदराज शिक्षिका  का जिस तरह अपमान किया उससे ...

राजधानी के शापित जन और उनकी कविता / कविता कृष्‍णपल्‍लवी

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राजधानी के शापित जन और उनकी कविता कविता कृष्‍णपल्‍लवी बेहद थोड़े सामानों , ढेरों आशंकाओं और लगभग नाउम्‍मीदियों जितनी उम्‍मीदों के साथ , पूरब से आने वाली रेलगाडि़यों में लदे-फदे आते हैं दुनिया और उसकी ज़रूरत की सारी चीज़ें बनाने वाले लोग राजधानी के स्‍वर्ग में , अपनी उजड़ी हुई दुनिया पीछे छोड़कर। अपनी थोड़ी-सी ज़रूरतों के बारे में ही सोचते हैं वे और थोड़ी-सी ज़रूरत की चीज़ों के साथ थोड़ी-सी जगह कहीं पाते हैं कचरे के ढेरों , दौड़ते सुअरों , गँधाते नालों , गड्ढों , दलदलों और रेल पटरियों के आसपास आबाद इंसानी बस्तियों में कहीं जहाँ नेताओं और संतों के कुछ होर्डिंग्‍स रंगों की उपस्थिति दर्ज़ कराते हैं और एन.जी.ओ के कुछ बोर्ड बताते हैं कि दयालु धनवानों के पास उनके लिए भी हैं कुछ सिक्‍के , कुछ जूठन , कुछ पैबन्‍द और कुछ सांत्‍वनाएँ। दुनिया और उसकी ज़रूरत की सारी चीज़ें बनाने वाले लोगों को पता नहीं होता कि मंडी हाउस और इण्डिया इण्‍टरनेशनल सेण्‍टर और कॉफी हाउस में कुछ लोग कभी-कभार उनकी भी बातें करते हैं , उनपर भी नाटक खेलते हैं , कवित...

एदुआर्दो गालेआनो की कविता — दुनिया भर में डर Eduardo Galeano's Poem - Global Fear

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एदुआर्दो गालेआनो की कविता — दुनिया भर में डर जो लोग काम पर लगे हैं वे भयभीत हैं कि उनकी नौकरी छूट जायेगी जो काम पर नहीं लगे वे भयभीत हैं कि उनको कभी काम नहीं मिलेगा जिन्हें चिंता नहीं है भूख की वे भयभीत हैं खाने को लेकर लोकतंत्र भयभीत है याद दिलाये जाने से और भाषा भयभीत है बोले जाने को लेकर आम नागरिक डरते हैं सेना से , सेना डरती है हथियारों की कमी से हथियार डरते हैं कि युद्धों की कमी है यह भय का समय है स्त्रियाँ डरती हैं हिंसक पुरुषों से और पुरुष डरते हैं निर्भय स्त्रियों से चोरों का डर , पुलिस का डर डर बिना ताले के दरवाज़ों का , घड़ियों के बिना समय का बिना टेलीविज़न बच्चों का , डर नींद की गोली के बिना रात का और दिन जगने वाली गोली के बिना भीड़ का भय , एकांत का भय भय कि क्या था पहले और क्या हो सकता है मरने का भय , जीने का भय. Eduardo Galeano's Poem -  Global Fear Those who work are afraid they’ll lose their jobs. those who don’t are afraid they’ll never find one. Whoever doesn’t fear hunger is afraid of eating. ...

मोदी ने सुनी उद्योगपतियों के मन की बात - मुनाफे के रास्‍ते से सारी बाधाएं हटाने का दिया आश्‍वासन

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मोदी ने सुनी उद्योगपतियों के मन की बात - मुनाफे के रास्‍ते से सारी बाधाएं हटाने का दिया आश्‍वासन  देश का प्रधानमंत्री 26 जून को मुंबई में उद्योगपतियों के एक छोटे से समूह के सामने पेश होता है और सरकार के काम का लेखा-जोखा पेश करता है। ईमानदारी से बताता है कि उद्योगपतियों के लिए उसने क्‍या क्‍या किया। इसके बाद बारी आती है उद्योगपतियों के मन की बात की। उनको भरपूर मौका दिया जाता है अपनी बात कहने का। कभी ग्रुप में तो कभी अकेले-अकेले मिलकर।  बैठक पर पढ़े एक कमेंट साथी मुकेश असीम का।  इस बैठक से सम्‍बन्धित अंग्रेजी अख़बारों के लिंक भी देखने लायक हैं।  लिंक नीचे दिये हैं।  2019 चुनाव तैयारी की सबसे अहम बैठक आज  (26 जून, मुम्‍बई)  हुई जब नरेंद्र मोदी व पीयूष गोयल ने 30 बड़े पूँजीपतियों के साथ पूरे 3 घंटे बिताए, पहले 45 मिनट सामूहिक, फिर कुछ के साथ अकेले-अकेले। आम लोगों की तरह 'मन की बात' सुनाने के बजाय मोदी ने शुरू में ही कहा कि हम यहाँ सुनने आए हैं, आप लोग अपनी बात खुल कर बोलें नहीं तो हमें आपकी जरूरत कैसे पता चलेगी। वित्त मंत्री के साथ ही साथ चुनाव...

मानवीय जीवन की सार्थकता के बाबत कुछ उद्धरण व कविताएं

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मानवीय जीवन की सार्थकता के बाबत कुछ उद्धरण व कविताएं आदमी की सबसे प्यारी चीज़ होती है उसकी ज़िन्दगी। उसे जीने के लिए बस एक ही ज़िन्दगी मिलती है ,  और उसे अपनी ज़िन्दगी को इस तरह जीना चाहिए ताकि उसे कभी इस पछतावे की आग में न जलना पड़े कि उसने अपने साल यूँ ही बर्बाद कर दिये ,  ताकि उसे एक क्षुद्र और तुच्छ अतीत को लेकर शर्मिन्दा न होना पड़े ;  उसे इस तरह जीना चाहिए ताकि जब वह मृत्युशैया पर हो ,  तो वह कह सके – मैंने अपनी सारी ज़िन्दगी ,  अपनी सारी ताक़त दुनिया के सबसे महान लक्ष्य के लिए ,  इन्सानियत की मुक्ति के लक्ष्य के लिए लगायी है। और इन्सान को अपनी ज़िन्दगी के एक-एक पल का इस्तेमाल करना चाहिए ,  क्योंकि कौन जाने कब अचानक कोई बीमारी या दुर्घटना उसके जीवन की डोर को बीच में ही काट दे। निकोलाई आस्त्रोवस्की हर आदमी एक न एक दिन ज़रूर मरता है , लेकिन हर आदमी की मौत की अहमियत अलग–अलग होती है।जनता के लिए प्राण निछावर करना थाई पर्वत से भी ज़्यादा भारी अहमियत रखता है , जबकि फासिस्टों के लिए तथा शोषकों व उत्पीड़कों के लिए जान देना पंख से भी ज़्...

जीवित कविता की शर्तें / कात्‍यायनी

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जीवित कविता की शर्तें / कात्‍यायनी ------------------------- आलोचक नहीं, समय तय करता है कविता की अंतर्वस्तु और उपयोगिता। कविता लिखी जा सकती है छोटे-छोटे रंगीन पंखों, हवा में उड़ते रुई के फाहों जैसे लगभग भारहीन ख़यालों, या पत्ते की नोक पर टिकी गिरने को उद्यत ओस की एक बूँद पर। और खदानों से निकले खनिजों, सागर में आते जहाज़ के दूर से दीखते मस्तूल, फसल कट चुके खेतों के उचाटपन, दर-बदर होते लोगों और कहीं न दीखने वाली उम्मीद के बारे में और लड़ाई के बाद युद्ध के मैदान की तस्वीर के बारे में भी कविता लिखी जा सकती है। नहीं दीखने वाली दुनिया और नहीं देखे गए सपनों से लेकर बेहद मामूली, ठोस और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बरती जाने वाली चीज़ों और अपरिचित लोगों को भी कविता में लाया जा सकता है। पर कविता में वह जादू तो होना ही चाहिए जो ज़िंदगी में नहीं है और ज़िंदगी जिस जादू से चमत्कृत और तरोताज़ा होना चाहती है। कविता में वह सपना तो होना ही चाहिए जिसे लोग भूल चुके हैं, वह उम्मीद, जिसे लोग लगभग छोड़ चुके हैं और वह संकल्प जो अरसे से ढीला, लस्त-पस्त पड़ा हुआ है। कविता में ज़िंदगी की चीज़...