देश की आज़ादी के मायने - क्रान्तिकारियों और कवियों-शायरों की नजर में
देश की आज़ादी के मायने - क्रान्तिकारियों और कवियों-शायरों की नजर में
जालिम अंग्रेजों को मार भगाने वाले अनगिनत सेनानियों को क्रांतिकारी सलाम। भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव, आजाद, बटुकेश्वर, बिस्मिल, अशफाक, ने जो सपना देखा था, वो आज भी अधुरा है। 1947 में आजादी तो मिली पर आधी-अधुरी। भगतसिंह ने उस समय ही चेतावनी दी थी कि भारतीय पूँजीपति वर्ग की प्रतिनिधि कांग्रेस के रास्ते मिलने वाली आजादी में बस यही होगा कि गोरे अंग्रेजों की जगह भूरे अंग्रेज आकर हमारी छाती पर काबिज हो जायेंगे। आजादी के इतने साल भी देश में व्याप्त गरीबी, बेरोजगारी, बदतर स्वास्थ्य सुविधायें, ऊपर की एक प्रतिशत अमीरजादों के पास देश की भारी सम्पदा का जमा होना, ये सब गवाही दे रहे हैं कि उस नौजवान की चेतावनी कितनी सही थी। आयें, उस जैसे अनगिनत शहीदों के सपनों को जानें और पूरा करने का संकल्प लें। शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि उनकी फोटो पर माला चढ़ाकर नहीं बल्कि उनके सपनों को पूरा कर ही दी जा सकती है। आज इस मौके पर हम आपके बीच क्रान्तिकारी शहीदों और आजाद भारत के कवियों-शायरों की कुछ रचनायें पेश कर रहे हैं। पहले कुछ उद्धरण हैं और उसके बाद आठ कविताएं। पूरी पोस्ट ध्यान से पढें और बाद में दूसरे लोगों तक पहुँचायें।
शहीद भगतसिंह ने लिखा था
स्वतन्त्रता
प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। श्रमिक वर्ग ही समाज का वास्तविक पोषक है,
जनता की सर्वोपरि सत्ता की स्थापना
श्रमिक वर्ग का अन्तिम लक्ष्य है। इन आदर्शों के लिए और इस विश्वास के लिए हमें जो
भी दण्ड दिया जायेगा, हम
उसका सहर्ष स्वागत करेंगे। क्रान्ति की इस पूजा-वेदी पर हम अपना यौवन नैवेद्य के
रूप में लाये हैं, क्योंकि
ऐसे महान आदर्श के लिए बड़े से बड़ा त्याग भी कम है। हम सन्तुष्ट हैं और क्रान्ति
के आगमन की उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं।
(बमकाण्ड पर सेशन कोर्ट में बयान से)
भगतसिंह
व उनके साथियों द्वारा बनाये गये संगठन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के
घोषणापत्र से बेहद प्रासंगिक अंश
भारत साम्राज्यवाद
के जुवे के नीचे पिस रहा है। इसमें करोड़ों लोग आज अज्ञानता और ग़रीबी के शिकार हो
रहे हैं। भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या जो मज़दूरों और किसानों की है, उनको विदेशी दबाव एवं आर्थिक लूट ने
पस्त कर दिया है। भारत के मेहनतकश वर्ग की हालत आज बहुत गम्भीर है। उसके सामने
दोहरा ख़तरा है – विदेशी पूँजीवाद का एक तरफ़ से और भारतीय पूँजीवाद के धोखे भरे
हमले का दूसरी तरफ़ से। भारतीय पूँजीवाद विदेशी पूँजी के साथ हर रोज़ बहुत से
गँठजोड़ कर रहा है। कुछ राजनीतिक नेताओं का डोमिनियन (प्रभुतासम्पन्न) का दर्जा
स्वीकार करना भी हवा के इसी रुख को स्पष्ट करता है।
भारतीय
पूँजीपति भारतीय लोगों को धोखा देकर विदेशी पूँजीपति से विश्वासघात की क़ीमत के
रूप में सरकार में कुछ हिस्सा प्राप्त करना चाहता है। इसी कारण मेहनतकश की तमाम
आशाएँ अब सिर्फ़ समाजवाद पर टिकी हैं और सिर्फ़ यही पूर्ण स्वराज्य और सब भेदभाव
ख़त्म करने में सहायक साबित हो सकता है। देश का भविष्य नौजवानों के सहारे है। वही
धरती के बेटे हैं। उनकी दुख सहने की तत्परता, उनकी बेख़ौफ़ बहादुरी और लहराती क़ुर्बानी
दर्शाती है कि भारत का भविष्य उनके हाथ में सुरक्षित है। एक अनुभूतिमय घड़ी में देशबन्धु
दास ने कहा था, “नौजवान
भारतमाता की शान एवं आशाएँ हैं। आन्दोलन के पीछे उनकी प्रेरणा है, उनकी क़ुर्बानी है और उनकी जीत है।
आज़ादी की राह पर मशालें लेकर चलने वाले ये ही हैं। मुक्ति की राह पर ये
तीर्थयात्री हैं।”
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साम्प्रदायिक
जुनून का मुकाबला करते हुए शहीद होने वाले महान क्रान्तिकारी पत्रकार और शहीद
भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के अनन्य सहयोगी गणेश शंकर विद्यार्थी ने लिखा था
– देश की
स्वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन निस्सन्देह, अत्यन्त बुरा था, जिस दिन स्वाधीनता के क्षेत्र में
खि़लाफ़त, मुल्ला,
मौलवियों और धर्माचार्यों को स्थान
देना आवश्यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्वाधीनता के क्षेत्र में एक कदम
पीछे हटकर रखा था। हमें अपने उसी पाप का फल भोगना पड़ रहा है। देश की स्वाधीनता के
संग्राम ही ने मौलाना अब्दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में
पेश कर उन्हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ कि इस समय
हमारे हाथों ही से बढ़ायी इनकी और इनके जैसे लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने और
देश में मजहबी पागलपन, प्रपंच
और उत्पात का राज्य स्थापित कर रही हैं।
– हमारे
देश में धर्म के नाम पर कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए
लोगों को लड़ाते-भिड़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किये जाने वाले इस भीषण
व्यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए।
– एक तरफ
जहाँ जन आन्दोलन और राष्ट्रीय आन्दोलन हुए, वहीं, उनके साथ-साथ जातिगत और साम्प्रदायिक आन्दोलनों को भी जान-बूझकर शुरू
किया गया क्योंकि ये आन्दोलन न तो अंग्रेज़ों के खि़लाफ़ थे, न किसी वर्ग के, बल्कि ये दूसरी जातियों के खि़लाफ़
थे।
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– अब
देशवासियों के सामने यही प्रार्थना है कि यदि उन्हें हमारे मरने का जरा भी अफसोस
है तो वे जैसे भी हो, हिन्दू-मुस्लिम
एकता स्थापित करें – यही हमारी आखिरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है।
(शहीद
रामप्रसाद बिस्मिल के अन्तिम सन्देश से, जिसे भगतसिंह ने ‘किरती’ पत्र में जनवरी,
1928 में प्रकाशित
कराया था)
– हिन्दुस्तानी
भाइयो! आप चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो। व्यर्थ आपस
में न लड़ो।
(फाँसी
के ठीक पहले फैजाबाद जेल से भेजे गये काकोरी काण्ड के शहीद अशफाक उल्ला के अन्तिम
सन्देश से)
“अगर
स्वराज्य आने पर भी सम्पत्ति का यही प्रभुत्व रहे और पढ़ा-लिखा समाज यों ही
स्वार्थान्ध बना रहे, तो मैं
कहूँगी ऐसे स्वराज्य का न आना ही अच्छा। अंग्रेजी महाजनों की धनलोलुपता और
शिक्षितों का सब हित ही आज हमें पीसे डाल रहा है। जिन बुराइयों को दूर करने के लिए
आज हम प्राणों को हथेली पर लिये हुए हैं, उन्हीं बुराइयों को क्या प्रजा इसलिए सिर
चढ़ायेगी कि वे विदेशी नहीं स्वदेशी हैं? कम से कम मेरे लिए तो स्वराज्य का अर्थ यह नहीं
है कि जॉन की जगह गोविन्द बैठ जाये।”
– प्रेमचन्द
(‘आहुति’ कहानी की नायिका)
हिटलर को हराकर दुनिया को फासीवाद के कहर से बचाने वाले, मजदूर वर्ग के महान नेता और शिक्षक जोसेफ़ स्तालिन ने कहा था
मेरे लिए यह कल्पना करना कठिन है कि एक बेरोज़गार भूखा व्यक्ति किस तरह की “निजी स्वतन्त्रता” का आनन्द उठाता है। वास्तविक स्वतन्त्रता केवल वहीं हो सकती है जहाँ एक व्यक्ति द्वारा दूसरे का शोषण और उत्पीड़न न हो; जहाँ बेरोज़गारी न हो, और जहाँ किसी व्यक्ति को अपना रोज़गार, अपना घर और रोटी छिन जाने के भय में जीना न पड़ता हो। केवल ऐसे ही समाज में निजी और किसी भी अन्य प्रकार की स्वतन्त्रता वास्तव में मौजूद हो सकती है, न कि सिर्फ़ काग़ज़ पर।
किसकी
है जनवरी, किसका अगस्त
है!
नागार्जुन
किसकी
है जनवरी, किसका अगस्त है?
कौन
यहां सुखी है, कौन
यहां मस्त है?
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है
गालियां
भी सुनता है, भारी
थूक-चाटू है
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है
जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है
उसी की जनवरी छब्बीस
उसी का पंद्रह अगस्त है
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है
कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है
सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
मजदूर की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है!
गिन लो जी, गिन ल...
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सुबह-ए-आज़ादी
- ये दाग़ दाग़ उजाला
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ये
दाग़ दाग़ उजाला, ये
शबगज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं
ये वो
सहर तो नहीं जिस की आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तरों की आख़री मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज् का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफ़िना-ए-ग़म-ए-दिल
जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों से
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ए-हुस्न की बे-सब्र ख़्वाब-गाहों से
पुकरती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुख़-ए-सहर की लगन
बहुत क़रीं था हसीनान-ए-नूर का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना, दबी दबी थी थकन
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तरों की आख़री मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज् का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफ़िना-ए-ग़म-ए-दिल
जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों से
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ए-हुस्न की बे-सब्र ख़्वाब-गाहों से
पुकरती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुख़-ए-सहर की लगन
बहुत क़रीं था हसीनान-ए-नूर का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना, दबी दबी थी थकन
सुना
है हो भी चुका है फ़िरक़-ए-ज़ुल्मत-ए-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूर
निशात-ए-वस्ल हलाल-ओ-अज़ाब-ए-हिज्र-ए-हराम
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन
किसी पे चारा-ए-हिज्राँ का कुछ असर ही नहीं
कहाँ से आई निगार-ए-सबा, किधर को गई
अभी चिराग़-ए-सर-ए-रह को कुछ ख़बर ही नहीं
अभी गरानि-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीद-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूर
निशात-ए-वस्ल हलाल-ओ-अज़ाब-ए-हिज्र-ए-हराम
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन
किसी पे चारा-ए-हिज्राँ का कुछ असर ही नहीं
कहाँ से आई निगार-ए-सबा, किधर को गई
अभी चिराग़-ए-सर-ए-रह को कुछ ख़बर ही नहीं
अभी गरानि-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीद-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई
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कौन
आज़ाद हुआ?
अली
सरदार जाफ़री
किसके
माथे से गुलामी की सियाही छुटी ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?
मेरे सीने मे दर्द है महकुमी का
मादरे हिंद के चेहरे पे उदासी है वही
कौन आज़ाद हुआ ?
खंजर
आज़ाद है सीने मे उतरने के लिए
वर्दी आज़ाद है वेगुनाहो पर जुल्मो सितम के लिए
मौत आज़ाद है लाशो पर गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
वर्दी आज़ाद है वेगुनाहो पर जुल्मो सितम के लिए
मौत आज़ाद है लाशो पर गुजरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
काले
बाज़ार मे बदशक्ल चुदैलों की तरह
कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है
हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
कीमते काली दुकानों पर खड़ी रहती है
हर खरीदार की जेबो को कतरने के लिए
कौन आज़ाद हुआ ?
कारखानों
मे लगा रहता है
साँस लेती हुयी लाशो का हुजूम
बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ ?
साँस लेती हुयी लाशो का हुजूम
बीच मे उनके फिरा करती है बेकारी भी
अपने खूंखार दहन खोले हुए
कौन आज़ाद हुआ ?
रोटियाँ
चकलो की कहवाये है
जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने
नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है
बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे
मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह
अजबनी देश के बाजारों मे बिक जाते है
और बदबख्त किसानो की तडपती हुयी रूह
अपने अल्फाज मे मुंह ढांप के सो जाती है
जिनको सरमाये के द्ल्लालो ने
नफाखोरी के झरोखों मे सजा रखा है
बालियाँ धान की गेंहूँ के सुनहरे गोशे
मिस्रो यूनान के मजबूर गुलामो की तरह
अजबनी देश के बाजारों मे बिक जाते है
और बदबख्त किसानो की तडपती हुयी रूह
अपने अल्फाज मे मुंह ढांप के सो जाती है
कौन
आजाद हुआ ?
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तोड़ो बंधन तोड़ो
इप्टा
तोड़ो
बंधन तोड़ो
तोड़ो
बंधन तोड़ो
ये अन्याय के बंधन
तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो…
हम क्या जानें भारत भी में भी आया है स्वराज
ओ भइया आया है स्वराज
आज भी हम भूखे-नंगे हैं आज भी हम मोहताज
ओ भइया आज भी हम मोहताज
रोटी मांगे तो खायें हम लाठी-गोली आज
थैलीशाहों की ठोकर में सारे देश की लाज
ऐ मज़दूर और किसानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
ऐ छात्रो और जवानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
झूठी आशा छोड़ो…
तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो!
सौ-सौ वादे करके हमसे लिए जिन्होंने वोट
ओ भइया लिए जिन्होंने वोट
गरीबी हटाओ कहके हमको देते हैं ये चोट
ओ भइया देते हैं ये चोट
नौकरी मांगे नारे मिलते कैसा झूठा राज
शोषण के जूतों से पीसकर रोता भारत आज
ऐ मज़दूर और किसानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
ऐ छात्रो और जवानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
झूठी आशा छोड़ो…
तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो!
ये अन्याय के बंधन
तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो…
हम क्या जानें भारत भी में भी आया है स्वराज
ओ भइया आया है स्वराज
आज भी हम भूखे-नंगे हैं आज भी हम मोहताज
ओ भइया आज भी हम मोहताज
रोटी मांगे तो खायें हम लाठी-गोली आज
थैलीशाहों की ठोकर में सारे देश की लाज
ऐ मज़दूर और किसानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
ऐ छात्रो और जवानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
झूठी आशा छोड़ो…
तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो!
सौ-सौ वादे करके हमसे लिए जिन्होंने वोट
ओ भइया लिए जिन्होंने वोट
गरीबी हटाओ कहके हमको देते हैं ये चोट
ओ भइया देते हैं ये चोट
नौकरी मांगे नारे मिलते कैसा झूठा राज
शोषण के जूतों से पीसकर रोता भारत आज
ऐ मज़दूर और किसानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
ऐ छात्रो और जवानो, ऐ दुखियारे इन्सानों
झूठी आशा छोड़ो…
तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो बंधन तोड़ो!
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अभी वही है निज़ामे कोहना
खलीलुर्रहमान
आज़मी
अभी
वही है निज़ामे कोहना अभी तो जुल्मो सितम वही है
अभी मैं किस तरह मुस्कराऊं अभी रंजो अलम वही है
अभी मैं किस तरह मुस्कराऊं अभी रंजो अलम वही है
नये
ग़ुलामो अभी तो हाथों में है वही कास-ए-गदाई
अभी तो ग़ैरों का आसरा है अभी तो रस्मो करम वही है
अभी तो ग़ैरों का आसरा है अभी तो रस्मो करम वही है
अभी
कहां खुल सका है पर्दा अभी कहां तुम हुए हो उरियां
अभी तो रहबर बने हुए हो अभी तुम्हारा भरम वही है
अभी तो रहबर बने हुए हो अभी तुम्हारा भरम वही है
अभी तो
जम्हूरियत के साये में आमरीयत पनप रही है
हवस के हाथों में अब भी कानून का पुराना कलम वही है
हवस के हाथों में अब भी कानून का पुराना कलम वही है
मैं
कैसे मानूं कि इन खुदाओं की बंदगी का तिलिस्म टूटा
अभी वही पीरे-मैकदा है अभी तो शेखो-हरम वही है
अभी वही पीरे-मैकदा है अभी तो शेखो-हरम वही है
अभी
वही है उदास राहें वही हैं तरसी हुई निगाहें
सहर के पैगम्बरों से कह दो यहां अभी शामे-ग़म वही है।
सहर के पैगम्बरों से कह दो यहां अभी शामे-ग़म वही है।
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राष्ट्रगीत
में भला कौन वह
रघुवीर
सहाय
राष्ट्रगीत
में भला कौन वह
भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मख़मल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।
भारत-भाग्य विधाता है
फटा सुथन्ना पहने जिसका
गुन हरचरना गाता है।
मख़मल टमटम बल्लम तुरही
पगड़ी छत्र चंवर के साथ
तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर
जय-जय कौन कराता है।
पूरब-पच्छिम से आते हैं
नंगे-बूचे नरकंकाल
सिंहासन पर बैठा, उनके
तमगे कौन लगाता है।
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है।
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नफ़स-नफ़स
क़दम-क़दम
शलभ श्रीराम सिंह
नफ़स-नफ़स
क़दम-क़दम
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - 2
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - 2
जहाँ आवाम के ख़िलाफ़ साज़िशें हो शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
जहाँ पे लब्ज़े-अमन एक ख़ौफ़नाक राज़ हो
जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज़ हो
वहाँ न चुप रहेंगे हम
कहेंगे हाँ कहेंगे हम
हमारा हक़ हमारा हक़ हमें जनाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
इन्क़लाब इन्क़लाब - 2
यक़ीन आँख मूँद कर किया था जिनको जानकर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर
उन्ही की सरहदों में क़ैद हैं हमारी बोलियाँ
वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियाँ
जो इनका भेद खोल दे
हर एक बात बोल दे
हमारे हाथ में वही खुली क़िताब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - 2
वतन के नाम पर ख़ुशी से जो हुए हैं बेवतन
उन्ही की आह बेअसर उन्ही की लाश बेकफ़न
लहू पसीना बेचकर जो पेट तक न भर सके
करें तो क्या करें भला जो जी सके न मर सके
स्याह ज़िन्दगी के नाम
जिनकी हर सुबह और शाम
उनके आसमान को सुर्ख़ आफ़ताब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - 2
तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल सोच और सोचकर सवाल कर
किधर गए वो वायदे सुखों के ख़्वाब क्या हुए
तुझे था जिनका इन्तज़ार वो जवाब क्या हुए
तू इनकी झूठी बात पर
ना और ऐतबार कर
के तुझको साँस-साँस का सही हिसाब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
जवाब-दर-सवाल है के इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद,
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब - 2
नफ़स-नफ़स, क़दम-क़दम
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से, हमें जवाब चाहिए
जवाब दर-सवाल है कि इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब
जहाँ आवाम के ख़िलाफ साज़िशें हों शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से
वहाँ न चुप रहेंगे हम, कहेंगे हाँ कहेंगे हम
हमारा हक़ हमारा हक़ हमें जनाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद
ज़िन्दाबाद इन्क़लाब
भगतसिंह,
इस बार न लेना काया भारतवासी की
शंकर
शैलेन्द्र
भगतसिंह,
इस बार न लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
यदि
जनता की बात करोगे, तुम
गद्दार कहाओगे
बम्ब-सम्ब की छोड़ो, भाषण दिया तो पकडे जाओगे
निकला है क़ानून नया, चुटकी बजाते बांध जाओगे
न्याय अदालत की मत पूछो, सीधे मुक्ति पाओगे
बम्ब-सम्ब की छोड़ो, भाषण दिया तो पकडे जाओगे
निकला है क़ानून नया, चुटकी बजाते बांध जाओगे
न्याय अदालत की मत पूछो, सीधे मुक्ति पाओगे
कांग्रेस
का हुक्म, जरूरत क्या
वारंट तलाशी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
मत
समझो पूजे जाओगे, क्योंकि
लड़े थे दुश्मन से
रुत ऐसी है, अब दिल्ली की आँख लड़ी है लन्दन से
कामनवेल्थ कुटुंब देश को, खींच रहा है मंतर से
प्रेम विभोर हुए नेतागण, रस बरसा है अम्बर से
रुत ऐसी है, अब दिल्ली की आँख लड़ी है लन्दन से
कामनवेल्थ कुटुंब देश को, खींच रहा है मंतर से
प्रेम विभोर हुए नेतागण, रस बरसा है अम्बर से
योगी
हुए वियोगी, दुनिया
बदल गयी बनवासी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
गढ़वाली,
जिसने अंगरेजी शासन में विद्रोह किया
वीर क्रान्ति के दूत, जिन्होंने नहीं जान का मोह किया
अब भी जेलों में सड़ते हैं, न्यू माडल आज़ादी है
बैठ गए हैं काले, पर गोरे जुल्मों की गादी है
वीर क्रान्ति के दूत, जिन्होंने नहीं जान का मोह किया
अब भी जेलों में सड़ते हैं, न्यू माडल आज़ादी है
बैठ गए हैं काले, पर गोरे जुल्मों की गादी है
वही
रीत है, वही नीत है,
गोरे सत्यानाशी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
सत्य-अहिंसा
का शासन है, रामराज्य
फिर आया है
भेड़-भेड़िये एक घाट हैं, सब ईश्वर की माया है
दुश्मन ही जज अपना, टीपू जैसों का क्या करना है
शान्ति-सुरक्षा की खातिर, हर हिम्मतवर से डरना है
भेड़-भेड़िये एक घाट हैं, सब ईश्वर की माया है
दुश्मन ही जज अपना, टीपू जैसों का क्या करना है
शान्ति-सुरक्षा की खातिर, हर हिम्मतवर से डरना है
पहनेगी
हथकड़ी, भवानी रानी
लक्ष्मी झांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी, सज़ा मिलेगी फांसी की!
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