विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - नक़ाब Anton Chekhov's Story - The Mask


विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - नक़ाब


अमुक सार्वजनिक क्लब में किसी संस्था की सहायतार्थ ड्रेस-बाल या जैसा कि स्थानीय नवयुवतियाँ उसे पुकारती हैं, ‘बाल पारेय’ हो रहा था।
आधी रात थी। नाच में भाग न लेने वाले बुद्धिजीवी लोगजो नक़ाब नहीं पहने थेवाचनालय में बड़ी मेज़ के चारों ओर बैठे हुए थे। संख्या में वे पाँच थेउनकी नाकें और दाढ़ियाँ अख़बारों के पन्नों में दबी हुई थींवे पढ़ रहे थेऊँघ रहे थे और राजधानी के समाचारपत्रों के स्थानीय उदारचेता संवाददाता के शब्दों में “विचारमग्न” थे।
हॉल से ‘क्वैड्रिल’ नाच के संगीत की धुन आ रही थी। बैरे बार-बार दरवाज़े के पास से पैर खटखटाते और तश्तरियाँ खनखनाते हुए भाग-दौड़ कर रहे थे। किन्तु वाचनालय के भीतर गम्भीर शान्ति का साम्राज्य था।
एक घुटी हुई-सी गहरी आवाज़ नेजो किसी सुरंग से आयी मालूम देती थीशान्ति भंग कर दी - “मैं समझता हूँहमें यहाँ ज़्यादा आराम रहेगाचले आओ साथियो! इस तरफ़!”
दरवाज़ा खुला और एक चौड़े कन्धों वालानाटाहट्टा-कट्टा व्यक्ति कोचवान की वर्दी पहने,अपनी टोपी में मोरपंख लगायेनक़ाब लगायेवाचनालय में घुसा। उसके पीछे नक़ाब लगाये दो महिलाएँ थीं और किश्ती लिये बैरा था। किश्ती में चौड़े पेंदे वाली मदिरा की एक बोतललाल शराब की तीन बोतलें और कई गिलास थे।
इस तरफ़यहाँ ज़्यादा ठण्डा रहेगा,” इस आदमी ने कहा, “किश्ती मेज़ पर रख दो...कुमारियो बैठ जाओ! जे वू प्री आ ल्या त्रीमोन्त्रन! और आप सज्जनोज़रा जगह दीजियेआपका यहाँ कोई काम नहीं।”
वह थोड़ा-सा डगमगाया और अपने हाथ से झाड़कर मेज़ पर से कई पत्रिकाएँ गिरा दीं।
रख दो उसे! और आप पढ़ने वाले सज्जनोरास्ते से हट जाइये! यह आप की राजनीति या अख़बार पढ़ने का वक़्त नहीं है...अख़बार रखिये!”
आप थोड़ा शान्त रहें न!” पढ़ाकू ज्ञानियों में से एक अपने चश्मे से नक़ाबपोश की ओर घूरता हुआ बोला, “यह वाचनालय हैशराबख़ाना नहीं...यह शराब पीने की जगह नहीं है।”
कौन कहता हैक्या मेज़ मजबूत नहीं हैया हमारे ऊपर छत आ गिरेगीक्या मज़ाक़ है! लेकिन मेरे पास बातें करने के लिए वक़्त नहीं है। आप अपने अख़बार रख दें...बहुत पढ़ चुके आप लोग और यह पढ़ाई काफ़ी है। वैसे ही आप लोग बहुत क़ाबिल हैं। इसके अलावा ज़्यादा पढ़ने से आप लोगों की आँखें ख़राब हो जायेंगीलेकिन ख़ास बात यह कि मेरी मर्ज़ी नहीं है - बस।”
बैरे ने मेज़ पर किश्ती रख दी और झाड़न बाँह पर डालदरवाज़े पर खड़ा हो गया। महिलाओं ने तुरन्त लाल शराब उँड़ेलनी शुरू कर दी।
ज़रा सोचो तो! ऐसे भी बुद्धिमान लोग होते हैं जो ऐसी शराब से अख़बार ज़्यादा पसन्द करते हैं,” मोरपंख वाले ने अपने लिए शराब उँड़ेलते हुए कहा। “यह मेरा विश्वास हैआदरणीय महानुभावोकि आप लोगों को अख़बार इसलिए अधिक प्रिय है कि आपके पास शराब पीने के लिए पैसा नहीं है। क्या मैं ठीक कहता हूँहा-हा-हा...इन पढ़ाकुओं की ओर देखो...और आपके अख़बारों में लिखा क्या हैऐ चश्मेवाले! हमें भी कुछ ख़बर बताओहा-हा-हा...अच्छा बन्द करो यह सब! रोब गाँठने की या तकल्लुफ़ बरतने की ज़रूरत नहीं है! लो थोड़ी शराब पिओ!”
मोरपंख वाले ने हाथ बढ़ाते चश्मेवाले सज्जन के हाथ से अख़बार छीन लिया। चश्मेवाला भौचक्का हो दूसरे ज्ञानियों की ओर देखता हुआ ग़ुस्से से लाल-पीला पड़ने लगादूसरे ज्ञानी भी उसकी ओर देखने लगे।
जनाब! आप अपने आप को भूल गये हैं!” वह चिल्लाया। “आप वाचनालय को शराबियों के अड्डे में बदले डाल रहे हैंहंगामा कर रहे हैंलोगों के हाथ से अख़बार छीन रहे हैं! पर मैं यह बरदाश्त नहीं कर सकता! आप जानते नहींजनाबकि आप बात किससे कर रहे हैं! मैं बैंक का मैनेजर जेस्त्याकोव हूँ!”
मुझे खाक परवाह नहीं है कि तुम जेस्त्याकोव हो! और तुम्हारे अख़बार की मैं कितनी इज़्ज़त करता हूँवह इसी से साबित हो जायेगा।”
यह कहते हुए उसने अख़बार उठा लिया और फाड़कर उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।
ग़ुस्से से पागल हुआ जेस्त्याकोव बोला - “सज्जनो! इसके मानी क्या हैंयह तो बहुत अजीब बात हैयह... यह तो... बस भौचक्का कर देने वाली बात है...” 
अब ग़ुस्सा हो रहे हैं!” वह व्यक्ति हँसते हुए बोला, “हायमैं कितना डर गया हूँ! देखोडर के मारे मेरी टाँगें कैसी थर्रा रही हैं...अच्छासज्जनो! अब मेरी बात सुनोमज़ाक़ अलग रहामैं आपसे क़तई बात करना नहीं चाहता... मैं इन कुमारियों के साथ एकान्त चाहता हूँमैं मौज करना चाहता हूँइसलिए मेहरबानी करके गड़बड़ न मचाओ और यहाँ से चुपचाप चले जाओ...वह रहा दरवाज़ा। श्री बेलेबूखिन! निकल जाओ यहाँ सेजाओ जहन्नुम में! तुम इस तरह अपना थूथन क्यों उठा रहे होजब मैं कहता हूँ: जाओतो फ़ौरन चले जाओ...जल्दीवरना उठाकर फेंक दूँगा!”
अनाथों की अदालत के ख़ज़ानची बेलेबूखिन ने क्रोध से लाल पड़ते हुए और कन्धे मटकाते हुए कहा - “क्या कहा तुमनेमेरी समझ में नहीं आता...कोई उद्दण्ड व्यक्ति कमरे में घुस आये और... एकाएक भगवान जाने क्या-क्या बकने लगे!”
क्या!-क्याउद्दण्ड?” क्रोध से मेज़ पर घूँसा मारते हुएजिससे किश्ती में रखे गिलास उछल पड़ेमोरपंख वाला आदमी चिल्लाया, “तुम किससे बात कर रहे होक्या तुम समझते हो कि मैं नक़ाब पहने हूँतो तुम मुझे जो चाहो कह लोगेतुम तो बड़े खरदिमाग़ हो! मैं कहता हूँनिकल जाओ बाहर! और बैंक मैनेजर भी यहाँ से रफ़ूचक्कर हो जाये! तुम सब बाहर निकल जाओ! मैं नहीं चाहता कि एक भी बदमाश इस कमरे में रहे! जाओ जहन्नुम में!”
वह हम देख लेंगे,” जेस्त्याकोव बोलाजिसके चश्मे का शीशा तक धुँधला हो गया था। “मैं तुम्हें अभी दिखाता हूँ। अरे कोई हैअरेतुम ज़रा किसी मैनेजर-वैनेजर को तो बुलाओ!”
एक मिनट बादछोटे क़द का लाल बालोंवाला मैनेजर कोट के कॉलर में अपने पद का सूचक नीला फीता लगायेनाच की मेहनत से हाँफता हुआ कमरे में आया।
कृपा कर इस कमरे को छोड़ दो!” उसने शुरू किया, “यह पीने की जगह नहीं है! मेहरबानी करके जलपान-कक्ष में जायें।”
और तुम कहाँ से आ टपके?” नक़ाबवाला बोला, “मैंने तो तुम्हें बुलाया नहीं था।”
कृपया गुस्ताख़ी न करें और बाहर चले जायें।”
देखियेजनाब! मैं तुमको एक मिनट का मौक़ा देता हूँ...चूँकि तुम यहाँ के प्रबन्धक हो और एक प्रमुख अधिकारी होइन कलाकारों को बाहर ले जाओ। मेरे साथ की ये कुमारियाँ आसपास किसी अजनबी का रहना पसन्द नहीं करतीं... वे शर्माती हैं और मैं अपने पैसे की पूरी क़ीमत चाहता हूँऔर उन्हें बिल्कुल वैसा ही देखता हूँजैसा कि उन्हें प्रकृति ने बनाया था।”
निश्चय ही यह सूअर यह नहीं समझ रहा कि वह अपने सूअरख़ाने में नहीं है,” जेस्त्याकोव चिल्लाया, “येवस्त्रत स्पिरिदोनिच को बुलाओ!” 
येवस्त्रत स्पिरिदोनिच!” सारे लब में यही आवाज़ गूँज उठी, “येवस्त्रत स्पिरिदोनिच कहाँ है?”
और शीघ्र ही वह आ पहुँचापुलिस की वर्दी में वह एक बूढ़ा आदमी था।
भारी गले सेअपनी डरावनी आँखें तरेरते हुए और ऐंठी हुई अपनी मूँछें हिलाते हुए वह बोला - “मेहरबानी करके कमरा छोड़ दें!”
सचमुच तुमने तो मुझे डरा दिया,” मज़ा लेकर वह व्यक्ति हँसते हुए बोला, “भगवान की क़सम,बिल्कुल डरा दिया! कैसी मज़ाक़ि‍या सूरत है! ख़ुदा की क़समबिल्ली की-सी मूँछें! बाहर निकल पड़ रहीं आँखें! ओफ़! हा-हा-हा...”
ग़ुस्से से काँपताअपना सारा दम लगाकर येवस्त्रत स्पिरिदोनिच चीख़़ा - “बहस बन्द करो! निकल जाओवरना मैं तुम्हें बाहर फिंकवा दूँगा!”
वाचनालय में हंगामा मचा हुआ था। लाल टमाटर बना येवस्त्रत स्पिरिदोनिच चिल्ला रहा था। सभी बुद्धिजीवी चिल्ला रहे थे। पर उन सबकी आवाज़ें नक़ाबपोश की गले से निकली दबी-घुटी,गम्भीर आवाज़ में डूब गयीं। इस होहल्ले में नाच बन्द हो गया और मेहमान लोग हॉल से निकलकर वाचनालय में आ गये।
क्लब में जितने पुलिसवाले थेअसर डालने के लिए उन सबको बुलाकर येवस्त्रत स्पिरिदोनिच रिपोर्ट लिखने बैठा।
लिख डालो,” नक़ाबवाले व्यक्ति ने क़लम के नीचे उँगली घुसेड़ते हुए कहा, “अब मुझ बेचारे का क्या होगाहायमुझ ग़रीब का क्या होगाआप लोग क्यों अनाथ ग़रीब को बरबाद करने पर तुले हुए हैंहा-हा-हा... अच्छा तो क्या रिपोर्ट तैयार हो गयीक्या सब लोगों ने इस पर दस्तख़त कर दियेअब देखो! एक...दो...तीन!” 
वह उठ खड़ा हुआअपनी पूरी ऊँचाई तक तन गया और अपनी नक़ाब उतार फेंकी। अपना शराबी चेहरा दिखाने और उससे पड़े असर का मज़ा लूटने के बाद वह आरामकुर्सी में धँस गया और ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा। सचमुच ही देखने लायक़ असर हुआ था। सभी बुद्धिजीवी हैरान नज़रों से एक-दूसरे की तरफ़ देखने लगे और डर से पीले पड़ गयेकुछ तो अपने सिर खुजलाते भी देखे गये। अनजाने में कोई भारी ग़लती कर डालने वाले व्यक्ति की तरह येवस्त्रत स्पिरिदोनिच ने खखारकर अपना गला साफ़ किया।
सबने पहचान लिया था कि झगड़ालू व्यक्ति पुश्तैनी इज़्ज़तदार नागरिक स्थानीय करोड़पति प्यातिगोरोव है जो हुल्लड़बाज़ी व उदारता के लिए मशहूर हैऔर जिसके शिक्षा-प्रेम के बारे में स्थानीय समाचारपत्र लिखते थकते नहीं थे।
क्या अब आप लोग यहाँ से जायेंगे या नहीं?” थोड़ा रुककर प्यातिगोरोव ने पूछा।
पंजों के बल चलते हुएबिना एक भी शब्द कहेबुद्धिजीवी लोग कमरे के बाहर निकल आये और उनके पीछे प्यातिगोरोव ने दरवाज़ा बन्द कर ताला लगा लिया।
तुम जानते थे कि वह प्यातिगोरोव है,” येवस्त्रत स्पिरिदोनिच ने कुछ देर बाद वाचनालय में शराब ले जाने वाले बैरे के कन्धे झँझोड़ते हुए भारी आवाज़ में कहा, “तुमने कुछ कहा क्यों नहीं?”
उन्होंने मुझे मना जो किया था।”
मना किया था! ठहरोबदमाश! मैं तुम्हें जब एक महीने के लिए जेल में ठूँस दूँगातब तुम्हें पता चलेगा कि ‘मना किया था’ के क्या मानी होते हैं। निकल जाओ!” फिर बुद्धिजीवी लोगों की ओर मुड़ते हुए बोला - “और आप लोग भी ख़ूब हैं! हुड़दंग मचा दियाजैसेदस मिनट के लिए आप वाचनालय छोड़ न सकते हों! ख़ैरसारी गड़बड़ और मुसीबत आपकी ही लायी हुई है और आप लोग ही अब निपटिये इससे। अरे साहबभगवान के सामने कहता हूँमुझे ये तरीक़े पसन्द नहीं हैंक़तई पसन्द नहीं हैं।”
मायूसपरेशानपछताते हुए बुद्धिजीवी लोग एक-दूसरे से फुसफुसाते हुए क्लब में इधर-उधर घूम रहे थेउन लोगों की तरह जिन्हें आने वाली मुसीबत का पता लग गया हो...उनकी बीवियों और बेटियों पर यह सुनकर ख़ामोशी छा गयी कि प्यातिगोरोव बुरा मान गये हैंनाराज़ हैंऔर वे अपने घर चल दीं। नांच बन्द हो गया।
रात दो बजे प्यातिगोरोव वाचनालय के बाहर निकला। वह नशे में झूम रहा था। हॉल में आकर वह बैण्ड की बग़ल में बैठ गया और बाजों की धुन पर ऊँघने लगा। ऊँघते-ऊँघते उसका सिर सन्तप्त मुद्रा में लटक गया और वह खर्राटे लेने लगा।
बन्द करो बाजे!” बैण्डवालों को इशारा करते हुए मैनेजर बोला, “श्-श्-श्-श् येगोर नीलिच सो गये हैं...”
क्या मैं आपको घर तक पहुँचा आऊँयेगोर नीलिच?” करोड़पति के कान तक झुकते हुए बेलेबूखिन ने पूछा।
प्यातिगोरोव ने होंठ बिचकायेमानो गाल पर बैठी कोई मक्खी उड़ा रहा हो।
क्या मैं आपको घर तक पहुँचा आऊँ?” बेलेबूखिन ने फिर कहा, “या आपकी गाड़ी लाने को कह दूँ?”
क्यातुम...तुम क्या चाहते हो?”
आपको घर पहुँचाना... सोने जाने का समय हो गया है न...”
घर! मैं घर जाना चाहता हूँ... मुझे घर ले चलो!”
ख़ुशी से दमकता हुआ बेलेबूखिन प्यातिगोरोव को सहारा देकर उठाने लगा। बाक़ी बुद्धिजीवी लोग भी भागते हुए आ पहुँचे और ख़ुशी से मुस्कुराते हुए उन सबने मिलकर खानदानी इज़्ज़तदार नागरिक को उठाया और बड़ी सतर्कता के साथ उसे गाड़ी तक पहुँचाया।
कोई कलाकारकोई अत्यन्त प्रतिभाशाली व्यक्ति ही हम सबका ऐसा मज़ाक़ उड़ा सकता,”करोड़पति को गाड़ी में बैठाते हुए प्रसन्नचित्त जेस्त्याकोव बड़बड़ाया। “मैं तो सचमुच आश्चर्यचकित हूँयेगोर नीलिच! मैं हँसी नहीं रोक पा रहाअब भी नहीं...हा-हा-हा...और हम-सब इतने उत्तेजित हो गये और गड़बड़ करने लगे! हा-हा-हा...आप विश्वास करेंमैं नाटक में भी इतना कभी नहीं हँसा! हास्य की इतनी गहराई! ज़ि‍न्दगी-भर यह अविस्मरणीय साँझ मुझे याद रहेगी!”
प्यातिगोरोव को विदा करने के बाद बुद्धिजीवी लोग प्रसन्न व आश्वस्त हो गये।
जेस्त्याकोव ने ख़ुशी से डींग मारी: “उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया! तो अब सब ठीक हैवह नाराज़ नहीं हैं।”
लम्बी साँस लेकर येवस्त्रत स्पिरिदोनिच बोला - “भगवान करे न हो! वह बदमाश हैख़राब आदमी हैपर वह हमारा हितकारी है। हमें होशियारी बरतनी चाहिए!”
(1884)


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