निदा नवाज़ की दो कविताएं
निदा नवाज़ की दो कविताएं
यथार्थ की धरा पर
(एक मज़दूरन को देख कर)
उसका चेहरा नहीं था कोमल फूल
बल्कि था आग की बठी में
तप रहा लाल लोहा
जिस पर था लिखा
एक अनाम दहकता विद्रोह.
उस के चेहरे पर रिस आयी
पसीने की बूंदें
नहीं थी किसी फूल की पत्ती पर
चमकती हुई ओस
बल्कि थीं श्रम की आंच से
उभल आयी सीसे की लहरें
उसकी आँखें नहीं थीं स्वप्निल
बल्कि थीं
एक तख्ती की तरह सपार्ट
जिन पर जीवन की इबारतें
अनिश्चितता की भाषा में नहीं
स्पष्ट तौर पर लिखी हुई थीं.
उसके बाल नहीं थे मुलाइम
बल्कि थे उलझे हुए
उसके ही जीवन की तरह
जिन से नही बुना जा सकता था
कोई काल्पनिक स्वप्न
लेकिन उन में मौजूद थे
सभी खुश-रंग धागे
यथार्थ बुनने के लिए.
उसके मैले कुचेले ब्लाउज़ में से
न ही झाँकतीं थीं
संगमरमर की दो मेहराबें
और न ही दो पक्के हुए अनार
बल्कि थीं वे अमृत धाराएं
जिनको पी कर बनते हैं क्रांतिवीर.
उसके हाथ नहीं थे दूधिया
बल्कि थे मेकानिकी
सीमेंट और रोड़ी को मिलाने वाले
जीवन को एक आधार बख्शने वाले.
और उसके पाँव में
नहीं थी कोई पायल
बल्कि थे ज़ंग लगे लोहे के
दो गोल टुकड़े
जैसे कोई अफ़्रीकी ग़ुलाम
जंजीरें तोड़ कर भाग आया था
मगर वह भाग नहीं रही थी
बल्कि वह यथार्थ की धरा पर
जीवन-साम्राज्य के समक्ष खड़ी थी
उसकी लोहित-आँखों में
अपनी ज्वालामुखी-आँखें डाल कर.
तुम ज़रुर गाना मेरी लाड़ली
(हर उस बेटी के नाम जिसके मयूज़िक-बेंड ”प्रागाश” पर कश्मीर घाटी में एक फ़त्वा द्वारा पाबंदी लगा दी गई)
तुम डरना नहीं मेरी लाडली
बल्कि सीखना
डर को एक सुरेली लय में
ढालने की कला
तुम ज़रुर गाना
और मुस्कुराना भी
अपनी ख़ुशी के लिए
अपने सपनों के लिए
और उन लोगों के लिए भी
जिनके रेतीले विचारों को
तुम्हारे गीतों के तीव्र बहाव से
डर लगता है
वे तुम्हें धकेलना चाहते हैं
प्राचीन घुफाओं में वापस
इनकी नज़रों में तुम्हारे अर्थ
कडुवे क्सीले धुएं
एक मेटर्स के गिलाफ़
और बच्चे जनने की एक मशीन
के सिवा कुछ भी नहीं
वे कुतरना चाहते हैं तुम्हारे पंख
छीन लेना चाहते हैं तुम से
तुम्हारी मुस्कुराहटें
तुम्हारे सपने
तुम ज़रुर मुस्कुराना मेरी लाडली
और मुस्कुराते मुस्कुराते
गाना भी कोई गीत
प्यार का, मानवता का, ब्रम्हाण्ड का
और गाते गाते
तुम डालना तारों पर कमंदें
मुठी में भर लेना
सारे कहकशां
छूना सारे आसमां
कि तुम मेरी लाडली
वह तितली हो
जिस ने तेज़ हवाओं में भी
उड़ना अब सीख लिया है.
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