शहीद राजगुरू के जन्मदिवस 24 अगस्त पर क्रांतिकारी सलाम
शहीद राजगुरू के जन्मदिवस 24 अगस्त पर क्रांतिकारी सलाम
राजगुरु (जन्मदिवस-24 अगस्त 1908, गाँव-खेड़, पूना महाराष्ट्र) |
शिवराम हरि राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 को पूूना (अब पुणे) के खेड गांव में हुआ था। राजगुरु गोरखपुर से निकलने वाले स्वदेश साप्ताहिक पत्र के सहसम्पादक मुनीश्वर अवस्थी से
मिलने होने के बाद क्रान्तिकारी दल के सदस्य बने। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन
एसोसिएशन के सदस्य और शहीदे आजम भगतसिंह के साथ हँसते-हंसते फाँसी का फंदा चूमने
वाले महान क्रान्तिकारी राजगुरु का जीवन हर उस नौजवान के लिए प्रेरणा स्रोत है जो
इस लूट, अन्याय, जुल्म, शोषण पर टिकी
व्यवस्था से गहरी नफरत करता हो, घुटन महसूस करता हो। जिनकी आँखे हरे-हरे नोट की
चमक में अन्धी न हो गयी हों। जिनके कानों में सिक्के की खनक
नहीं बल्कि विद्रोह का संगीत गूंजता हो। राजगुरु वह नौजवान थे जो जनता के लिए किसी
भी कुर्बानी के मामले में सबसे आगे रहते थे और मात्र 23 साल की उम्र में
स्वतंत्रता की बलिवेदी पर अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। कांग्रेस के विपरीत एचएसआरए
के क्रांतिकारियों का मकसद सिर्फ
अंग्रेजों की गुलामी से ही नहीं बल्कि देशी पूँजीपतियों, शोषकों की गुलामी से
आजादी भी था। यही कारण था कि इन्होने अपने संगठन के नाम में समाजवाद शब्द शामिल
किया।
लाला लाजपतराय की बर्बर हत्या के विरोध में
राजगुरू ने भगतसिंह व सुखदेव के साथ मिलकर हत्या के जिम्मेदार अंग्रेज पुलिस
अधिकारी सांडर्स को 17 दिसम्बर 1928 के दिन मौत के घाट
उतार दिया। इसी अपराध के लिए अंग्रेज सरकार ने तीनों क्रांतिकारियों को 23 मार्च 1931 को
लाहौर सैण्ट्रल जेल में फांसी की सजा दे दी। इंकलाब जिन्दाबाद का नारा बुलन्द
करते हुए तीनों नौजवान क्रांतिकारी शहीद हो गये लेकिन आजादी से पहले भी और बाद में
भी देश के हर इंसाफपसन्द नौजवान के प्रेरणास्रोत बन गये।
राजगुरु की
शहादत के लिए बेताब आशिकी के बार में उनके साथी 'भगवानदास माहौर ने 'यश की
धरोहर नामक पुस्तक में लिखा था- ‘ऐसा लगता है कि फाँसी का तख्ता गिर जाने के बाद
दिल की धड़कन बन्द होने से पूर्व भी, यदि राजगुरु फाँसी की काली टोपी के बाहर
आँख खोलकर एक बार देख सकते, तो उस दीवाने ने यही देखने की कोशिश की होती कि
भगतसिंह मुझसे पहले ही तो नहीं। और उस समय भगतसिंह के होठों पर भी राजगुरु का यह
पागलपन देखकर अपने जीवन की अन्तिम और सबसे मधुर मुस्कान खिल जाती और यदि वे कह
सकते तो कहते
शौके-शहादत तो हम सबको ही रहा है भाई।
पर तू तो सरापा शौके शहादत है, हार गए
तुझसे।।
Jay Hind Happy birthday
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