कुछ बेतरतीब उद्धरण, कविताएं


कुछ बेतरतीब उद्धरण, कविताएं 

सरकार लोगों को विश्वास दिलाती है कि उनपर दूसरे राष्ट्र द्वारा हमले का खतरा मंडरा रहा है, या उनके बीच मौजूद दुश्मनों से उन्हें खतरा है, और इस खतरे से बचने का एकमात्र रास्ता यह है कि लोग गुलामों की तरह अपनी सरकार का आज्ञापालन करें।
 लेव तोल्स्तोय
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जिन लोगों को हम प्यार करते हैं उनके प्यार को महसूस करना वह आग है जो हमारी ज़िन्दगी को ख़ुराक देती है।
 पाब्लो नेरूदा
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अगर तुम सिर्फ़ तभी ऊँचे क़द के लगते हो क्योंकि कोई अपने घुटनों के बल खड़ा है, तो तुम्हारी समस्या गंभीर है।
 टोनी मॉरिसन
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जब तक मैं जीवित हूं, जीवन का शासक रहूंगा, गुलाम नहीं, एक शक्तिशाली विजेता की तरह उससे मुलाक़ात करूंगा, और मुझसे बाहरी कोई भी चीज़ कभी मुझ पर काबू नहीं कर पायेगी - वाल्‍ट व्हिटमैन
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''आदमी सचेतन रूप से अपने लिए जीता है परन्‍तु अवचेतन मन से वह मानवजाति के ऐतिहासिक, सर्वव्‍यापी लक्ष्‍य सिद्धी का साधन बनता है ..''
लेव तोल्‍सतोय ( 'युद्ध और शान्ति' से)
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राजभक्ति का एक वास्तविक खतरा यह होता है कि यह झुण्ड-सोच. अंध-राष्ट्रवाद (शॉविनिज्म), देशाहंकार (ज़िन्गोइज्म) की खास किस्मों से जुड़ जाती है और सामाजिक तौर पर इतने तरीकों से विध्वंसक हो जाती है, जितना कि कोई भी गुण भ्रष्ट होने के बाद नहीं हो पाता। राष्ट्रवाद और देशभक्ति के अन्दर पथभ्रष्ट अतिरेक का शिकार हो जाने की प्रवृत्ति विशेष तौर पर मौजूद रहती है !
 जॉन क्लीनिग
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जि़न्‍दगी की बुद्धिमत्‍ता हमेशा ही इन्‍सानों की बुद्धिमत्‍ता से अधिक गहन-गम्‍भीर और सर्वग्राही होती है – गोर्की
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साहित्य का उद्देश्य है खुद अपने को जानने में मानव की मदद करना, उसके आत्मविश्वास को दृढ़ बनाना और सत्य का पता लगाने की उसकी कोशिशों का समर्थन करना, लोगों में जो अच्छाई है उसका उद्घाटन करना और बुराइयों को जड़ से उखाड़ फेंकना, लोगों के हृदयों में शर्म, गुस्सा और साहस की चिंगारी जगाना, ऊंचे उद्देश्यों के लिए शक्ति बटोरने में उनकी मदद करना और सौंदर्य की पवित्र भावना से उनके जीवन को शुभ्र बनाना । - मक्सिम गोर्की
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शहर छोड़कर और जि़न्‍दगी के धारे, शोरगुल और संघर्ष से मुंह मोड़कर खेतीबाड़ी में शरण ढूंढ़ना जि़न्‍दगी नहीं अहंकार है, काहिली है, एक प्रकार का वैराग्‍य है, जो निष्‍ठाहीन है। मनुष्‍य को चार हाथ ज़मीन नहीं, एक खेत ही नहीं बल्कि सारी पृथ्‍वी की ज़रूरत है, सम्‍पूर्ण प्रकृति की ज़रूरत है, जहां वह पूरी आज़ादी के साथ अपनी स्‍वतंत्र आत्‍मा के गुणों और उसकी क्षमता को पूर्ण रूप से अभिव्‍यक्‍त कर सके।
 चेखव
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अगर लोगों के लिए न्याय नहीं, तो सरकार के लिए भी शान्ति नहीं !
 एमिलिआनो ज़पाटा
(8 अगस्त, 1879-10 अप्रैल, 1919), मेक्सिकन क्रान्तिकारी

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ज़माने से तुम देखते रहे हो छोटे, ओछे सपने,
अब मैं धो दूँगा तुम्हारी आँखों पर चढ़ी गोंद की परत,
तुम्हें खुद को आदी बनाना ही होगा रोशनी की चकाचौंध का
और अपनी ज़िंदगी के हर लम्हे का।
 वाल्ट व्हिटमन
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मैं नहीं, न ही कोई और, तय कर सकता है यह रास्ता तुम्हारे लिए।
तुम्हें खुद ही इसे तय करना होगा।
यह बहुत दूर नहीं है। यह पहुँच के भीतर है।
शायद तभी से तुम तय कर रहे हो ये दूरियाँ जब तुमने जन्म लिया था, पर पता नहीं था तुम्हें।
शायद यह हर जगह है --  जल पर और थल पर।
 वाल्ट व्हिटमन
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निराश होने के लिए समय नहीं है, चुप रहने की ज़रूरत नहीं है, भय की कोई गुंजाइश नहीं है। हम बोलते हैं, हम लिखते हैं, हम भाषा को बरतते हैं। इसतरह सभ्यताओं के जख्म भरते हैं !
 टोनी मॉरिसन
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म्यूज़ियम घूमना अच्छी बात है
लेकिन म्यूज़ियम में रखी हुई चीज़ बन जाना खौफ़नाक है !
 नाज़िम हिकमत
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बीजों में, धरती में, सागर में भरोसा करना,
मगर सबसे अधिक लोगों में भरोसा करना।
बादलों को, मशीनों को, और किताबों को प्यार करना,
मगर सबसे ज्यादा लोगों को प्यार करना।
ग़मज़दा होना
एक सूखी हुई टहनी के लिए,
एक मरते हुए तारे के लिए,
और एक चोट खाए जानवर के लिए,
लेकिन सबसे गहरे अहसास रखना लोगों के लिए।
खुशी महसूस करना धरती की हर रहमत में --
अँधेरे और रोशनी में,
चारों मौसमों में,
लेकिन सबसे बढ़कर लोगों में।
 नाज़िम हिकमत
('मेरे बेटे के नाम आख़िरी चिट्ठी')
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अगर सांप्रदायिकता अच्छी हो सकती है तो पराधीनता भी अच्छी हो सकती है। मक्कारी भी अच्छी हो सकती है, झूठ भी अच्छा हो सकता है, क्योंकि पराधीनता में जिम्मेदारी से बचत होती है, मक्कारी से अपना उल्लू सीधा किया जाता है और झूठ से दुनिया को ठगा जाता है। हम तो सांप्रदायिकता को समाज का कोढ़ मानते हैं, जो हर एक संस्था में दलबंदी कराती है और अपना छोटा-सा दायरा बना सभी को उससे बाहर निकाल देती है।
- प्रेमचंद (हंस, जनवरी'1934)
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यह कविता निकारागुआ के कवि एडविन कास्त्रो की है जिसे सोमोजा परिवार की कुख्यात, बर्बर तानाशाही के दौरान 18 मई, 1960 को जेल में क़त्ल कर दिया गया था। लम्बे संघर्षों और अकूत कुर्बानियों के बाद 1979 में सोमोजा तानाशाही को निकारागुआ की जनता ने धूल में मिला दिया। सोमोजा शासनकाल के दौरान ही पाब्लो नेरूदा को निकारागुआ के निर्वासित, बंदी और शहीद कवियों की रचनाओं का एक संकलन मिला जिसपर उन्होंने एक छोटी सी टिप्पणी लिखी जिसका शीर्षक था :'खून के थक्के, नफ़रत की लपटें !' यह कविता नेरूदा ने अपनी टिप्पणी में उद्धृत की है। आज के भारत में भी ज़िंदा दिलों वाले युवाओं के लिए इस कविता को पढ़ना एक प्रेरणादायी अनुभव होगा !
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कल सब कुछ बदला होगा बर्खुरदार !
हमारे दुःख और तक़लीफ़ें खो जायेंगी अच्छाई की खातिर।
और नए, मज़बूत लोगों के भरोसेमंद हाथ
सख्ती से, उनके पीछे भेड़ देंगे दरवाज़े
हाँ, कल सब कुछ बदला होगा बर्खुरदार !
सिसकियाँ, वेदना और गोलियाँ बहुत हो गए अब
अपने बच्चों को पकड़ा अपनी उंगलियाँ
हर शहर की हर गली में तफ़रीह करोगे तुम
काश मैं भी चल सकता तुम्हारे साथ !
तुम्हारी तरुणाई को कोई नहीं फेंक सकेगा
दुखों के घटिया घटाटोप में,
जैसे फेंक दी उन्होंने मेरी।
तुम निर्वासन में नहीं मरोगे
अपने प्यारे देश से दूर
जैसे तुम्हारे दादा या मेरे पिता ...
हाँ, कल सब कुछ बदल जाएगा बर्खुरदार !
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तुम अपने शब्दों से मुझे गोली मार सकते हो,
अपनी आँखों से मेरे टुकड़े कर सकते हो तुम,
अपनी नफ़रत से तुम मेरी हत्या कर सकते हो,
लेकिन फिर भी, हवा की तरह, फिर से उठूँगी मैं ऊपर की ओर !
 माया एंजलो
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प्यार
हमारे लिए
नहीं है लतामंडपों का स्वर्ग--
हमारे मामले में
प्यार बताता है हमें,
भनभनाहट की आवाज़ करते हुए,
कि दिल के
रुके हुए मोटर ने
शुरू कर दिया है काम करना
फिर से।
 व्लादिमीर मयाकोव्स्की


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