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Showing posts from 2025

कविता - उसने जन्म दिया / पाब्लो नेरूदा Poem - It is Born / Pablo Neruda

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  कविता - उसने जन्म दिया पाब्लो नेरूदा (अंग्रेजी से अनुवाद : राम कृष्ण पाण्डेय) मैं यहाँ बिल्कुल किनारे आकर खड़ा हूँ जहाँ और कुछ कहने के लिए है ही नहीं सबको जलवायु और समुद्र ने सोख लिया है और चाँद तैरता हुआ चला जा रहा है नेपथ्य में किरणों की माला नहीं चाँदी-सी उजली है सिर्फ़ चाँदी-सी यह रात और इसी बीच अँधेरा चूर-चूर हो जाएगा मात्र एक लहर की चोट से डैने खुल जाएँगे एक आग पैदा होगी और सब कुछ भोर की तरह फिर से नीला हो जाएगा Poem - It is Born Pablo Neruda Here I came to the very edge where nothing at all needs saying, everything is absorbed through weather and the sea, and the moon swam back, its rays all silvered, and time and again the darkness would be broken by the crash of a wave, and every day on the balcony of the sea, wings open, fire is born, and everything is blue again like morning. From Neruda's beautifully illustrated "On the Blue Shores of Silence", this poem is short, powerful and elegant.

अमरकांत की कहानी जिंदगी और जोंक

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अमरकांत की कहानी जिंदगी और जोंक मुहल्‍ले में जिस दिन उसका आगमन हुआ, सबेरे तरकारी लाने के लिए बाजार जाते समय मैंने उसको देखा था। शिवनाथ बाबू के घर के सामने, सड़क की दूसरी ओर स्‍थित खँडहर में, नीम के पेड़ के नीचे, एक दुबला-पतला काला आदमी, गन्‍दी लुंगी में लिपटा चित्त पड़ा था, जैसे रात में आसमान से टपककर बेहोश हो गया हो अथवा दक्षिण भारत का भूला-भटका साधु निश्‍चिन्‍त स्‍थान पाकर चुपचाप नाक से हवा खींच-खींचकर प्राणायाम कर रहा हो। फिर मैंने शायद एक-दो बार और भी उसको कठपुतले की भाँति डोल-डोलकर सड़क को पार करते या मुहल्‍ले के एक-दो मकानों के सामने चक्‍कर लगाते या बैठकर हाँफते हुए देखा। इसके अलावा मैं उसके बारे में उस समय तक कुछ नहीं जानता था। रात के लगभग दस बजे खाने के बाद बाहर आकर लेटा था। चैत का महीना, हवा तेज चल रही थी। चारों ओर घुप अँधियारा। प्रारम्‍भिक झपकियाँ ले ही रहा था कि ‘मारो-मारो' का हल्‍ला सुनकर चौंक पड़ा। यह शोरगुल बढ़ता गया। मैं तत्‍काल उठ बैठा। शायद आवाज शिवनाथ बाबू के मकान की ओर से आ रही थी। जल्‍दी से पाँव चप्‍पल में डाल उधर को चल पड़ा। मेरा अनुमान ठीक था। शिवनाथ बाबू के म...

एक अँधेरे समय में न्गूगी का जाना

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एक अँधेरे समय में न्गूगी का जाना कात्यायनी अफ्रीका के महान जनपक्षधर लेखक न्गूगी वा थ्योंगो नहीं रहे। विगत 28 मई को 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। केन्या में पैदा हुए न्गूगी वा थ्योंगो की रचनात्मक सक्रियता का सुदीर्घ कालखण्ड छः दशकों से भी अधिक लम्बा था। अपने उपन्यासों, नाटकों , कहानियों , निबन्धों और व्याख्यानों के जरिए न्गूगी ने केन्या में उपनिवेशवाद , नवउपनिवेशवाद तथा खण्डित आज़ादी वाली विकलांग देशी बुर्जुआ जनवादी सत्ता के एक भ्रष्ट निरंकुश बुर्जुआ सत्ता में रूपांतरण और नवउदारवादी दौर की विनाशकारी परिणतियों की एक त्रासद महाकाव्यात्मक गाथा रची जो कमोबेश समूचे अफ्रीकी महाद्वीप की और विशेषकर पूर्वी अफ्रीकी देशों की त्रासदी बयान करती थी। न्गूगी सच्चे अर्थों में चिनुआ अचेबे जैसे महान अफ्रीकी लेखकों की परम्परा को आगे विस्तार देने वाले लेखक थे। न्गूगी के लेखन की वैचारिकी पर पैट्रिस लुमुम्बा , अमिल्कर कबराल , नेग्रीट्यूड आन्दोलन के प्रवर्तक एमी सेज़ायर और लियोपोल्ड सेंघोर तथा फ्रांज फैनन का काफ़ी हद तक प्रभाव दिखता है। उन्हें आम तौर पर एक मार्क्सवादी ही माना जाता है लेकिन कुल मि...

कृश्न चन्दर की प्रसिद्ध कहानी ‘उल्टा दरख़्त’ की पीडीएफ फाइल

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कृश्न चन्दर की प्रसिद्ध कहानी ‘उल्टा दरख़्त’ की पीडीएफ फाइल   पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक  डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 8828320322 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें प्रिण्ट कॉपी पाने के लिए यहां क्लि‍क करें  उल्टा दरख़्त कृश्न चन्दर की प्रसिद्ध कहानी है। यूं तो इसे बाल साहित्य में गिना जाता है पर यह हर किसी के लिए  पठनीय पुस्तक है। एक छोटा बच्चा समाज, सत्ता और इंसानी स्वभाव के बारे में क्या सोचता है उसकी यह कहानी है। इसे खुद पढ़ें और अपने आसपास के लोगों खासकर बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित करें। अगर आपको पीडीएफ से पढ़ने में समस्या आए तो प्रिंट कॉपी के लिए जनचेतना से संपर्क करें - 9721481546

महान वैज्ञानिक कॉपरनिकस

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24 मई - महान वैज्ञानिक कॉपरनिकस को याद करने का दिन! अशोक पाण्डे ( https://www.facebook.com/ashokpande29 ) ब्लैक डैथ ऐसी महामारी थी जिसने यूरोप की आधी आबादी का सफाया कर दिया था। 14 वीं शताब्दी के इस त्रासद दौर के बाद अगले तीन सौ बरस तक यूरोप ने अपना पुनर्निर्माण किया। ग्रीक और रोमन सभ्यताओं के ज्ञान को दोबारा से खोजा गया। कला और विज्ञान के प्रति लोगों में नई दिलचस्पी जागी और पढ़े-लिखे लोगों ने इस सिद्धान्त का प्रचार-प्रसार किया कि आदमी के विचारों की क्षमता असीम है और एक जीवन में वह जितना चाहे उतना ज्ञान बटोर कर सभ्यता को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। तीन सौ बरस का यह सुनहरा अन्तराल रेनेसां यानी पुनर्जागरण कहलाया। रेनेसां के मॉडल के तौर पर अक्सर पोलैंड के निकोलस कॉपरनिकस का नाम लिया जाता है। गणितज्ञ और खगोलशास्त्री कॉपरनिकस चर्च के कानूनों के ज्ञाता, चिकित्सक , अनुवादक , चित्रकार , गवर्नर , कूटनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री भी थे। उनके पास वकालत में डॉक्टरेट की डिग्री थी और वह पोलिश , जर्मन , लैटिन , ग्रीक और इटैलियन भाषाओं के विद्वान थे। 19 फरवरी 1473 को तांबे का व्यापार करने ...

वैज्ञानिक चेतना और क्रान्तिकारी चेतना

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वैज्ञानिक चेतना और क्रान्तिकारी चेतना कात्यायनी वैज्ञानिक चेतना जबतक केवल प्रकृति विज्ञान के क्षेत्र में सक्रिय रहती है , वह मानव जीवन को लगातार उन्नत करने वाली चीज़ों का आविष्कार करती रहती है। भाप इंजन , रेलवे , आटोमोबाइल , हवाई जहाज , दूरसंचार , कंप्‍यूटर आदि से लेकर जीवन रक्षक दवाओं , दर्द निवारक दवाओं , एण्टीबॉयोटिक्स और अंग प्रत्या‍रोपण तक --- ऐसी अनगिनत चीज़ें और प्रविधियॉं हैं , जिनके बिना आज मानव जीवन की कल्प्ना भी नहीं की जा सकती। वैज्ञानिक चेतना तर्कणा और कारण-कार्य-सम्बन्धों की समझ है जो पर्यवेक्षण , प्रयोग और सत्यापन की प्रक्रिया से पैदा होती है। यह वैज्ञानिक चेतना यदि समाज के कुछ उन्नत तत्वों द्वारा आत्मसात कर ली जाती है और वे उसे व्यावहारिक अहसास और समझ के रूप में जनसमुदाय के मानस में पैठाने में सफल हो जाते हैं तो वह (जन समुदाय) उसे सामाजिक जीवन के दायरे में भी लागू करता है और प्रगति में बाधक , अपने लिए अहितकारी सामाजिक-राजनीतिक ढॉंचे को योजनाबद्ध ढंग से नष्ट करके एक अधिक तर्कसंगत , न्यायसंगत सामाजिक-राजनीतिक ढॉंचे के निर्माण की सरगर्मियों में जुट जाता है। लेकिन यह ...