विज्ञान, तकनोलॉजी और सामाजिक ढाँचे के रिश्तों पर कुछ बातें
विज्ञान, तकनोलॉजी और सामाजिक ढाँचे के रिश्तों पर कुछ बातें
कविता कृष्णपल्लवी
जाने-अनजाने मार्क्सवादी भी वर्तमान समाज की बुराइयों के लिए, बढ़ते अलगाव, अवसाद, अपराधीकरण, स्वार्थपरता आदि के लिए, या पर्यावरण की तबाही के लिए तकनोलॉजी को(और प्रकारान्तर से विज्ञान को) कोसने लगते हैं।
तकनोलॉजी का
विकास उत्पादक शक्तियों के विकास की नैसर्गिक गति का हिस्सा है। मानव चेतना का
विकास नये-नये आविष्कारों के रूप में सामने आता रहेगा। सवाल यह है कि उस
तकनोलॉजी का इस्तेमाल किस उद्देश्य से किया जाता है! और यह इससे तय होता है कि
सामाजिक-आर्थिक संरचना कैसी है, उत्पादन के साधनों का स्वामित्व किन सामाजिक वर्गों के
हाथों में है, उत्पादन और विनिमय के सम्बन्धों की नियामक-नियंत्रक राज्यसत्ता
पर कौन से सामाजिक वर्ग काबिज हैं! पूँजीवादी समाज में उत्पादन के साधनों
के मालिक सारा उत्पादन मुनाफा कमाने के लक्ष्य से प्रेरित होकर करते हैं,
न कि समाज की
आवश्यकता और दूरगामी हितों को ध्यान में रखकर। उत्पादक वर्ग अपनी श्रमशक्ति
बेचकर जिन्दा रहने की ज़रूरतें बाजार से खरीदते हैं। इसलिए पूँजीवाद इस उपभोक्ता
समुदाय की ज़रूरतों का उत्पादन करता है। उसका मूल लक्ष्य उनकी ज़रूरतें पूरा
करना नहीं बल्कि अपना सामान बेचकर मुनाफे को 'रीयलाइज' करना होता है।
चूँकि अनुत्पादक परजीवियों के पास धन का अम्बार होता है, इसलिए उनकी चाहतों और
विलासिता के सामानों से बाजार पाट दिया जाता है। यहाँ तक कि सामान बेचने के लिए
विज्ञापन और मनोरंजन तंत्र के द्वारा बनावटी माँग पैदा की जाती है, नयी-नयी चीज़ों
की चाहत और होड़ पैदा की जाती है। इस प्रक्रिया में विज्ञापन और मनोरंजन की दुनिया
अपने आप में एक विराट औद्योगिक तंत्र में तब्दील हो जाती है, जिसमें
श्रमशक्ति को निचोड़कर इस्तेमाल की चीज़ों के वास्तविक उत्पादन की जगह बाजार की
ज़रूरतों को पूरा करने वाली चाहतों और सांस्कृतिक माल का उत्पादन किया जाता है।
अनवरत मुनाफा बढ़ाने की अमिट भूख और गलाकाटू होड़ में लगे पूँजीपति को केवल श्रमशक्ति बेचने वाले व्यक्ति की और अपने माल के खरीदार की चिन्ता होती है। यानी बाजार उसकी सारी सोच और सक्रियता की चालक और प्रेरक शक्ति होता है। इसी के लिए वह तकनोलॉजी का इस्तेमाल करता है। बाजार पर कब्जे की होड़ ही पूँजीवादी दुनिया में युद्धों को जन्म देता है और युद्धों और हथियारों की पागल होड़ में आगे बने रहने के लिए तकनोलॉजी और जनता से निचोड़ी गयी पूँजी का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है। हथियारों के अन्तरराष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करके बड़े पूँजीवादी देशों के पूँजीपति बेशुमार मुनाफा कूटते हैं।
यही कारण है कि
पर्यावरण के लिए अहानिकारक तकनोलॉजी और वैकल्पिक ऊर्जा के अक्षय स्रोत मौजूद रहते
हुए भी भविष्य में पृथ्वी को जीवन रहित बना देने का खतरा पैदा कर देने की हद तक
कार्बन उत्सर्जन करने वाले जीवाष्म ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है। सार्वजनिक
परिवहन को दुरुस्त करने के खर्च से सौ गुना अधिक खर्च करके कारों से सड़कों को
पाट दिया जाता है। 'फ्यूजन' तकनीक से नाभिकीय ऊर्जा पैदा करने के बजाय खतरनाक
रेडियोसक्रिय पदार्थों का इस्तेमाल करके 'फिशन' तकनोलॉजी से नाभिकीय ऊर्जा पैदा की जाती है जो
बड़े पैमाने पर रडियोसक्रिय कचरा भी पैदा करता है। जिस तकनोलॉजी से युद्धास्त्र
और जहरीली गैसें पैदा की जाती हैं, उसी से मानवोपयोगी चीजें, रसायन और दवाएँ पैदा की जा
सकती हैं। हर प्रकार के कचरा-शोधन की तकनोलॉजी मौजूद है पर पूँजीपति खर्चा बचाने
के लिए और मुनाफे को बढ़ाते रहने की होड़ में पीछे छूट जाने के डर से उसका इस्तेमाल
नहीं करते। जिस जेनेटिक तकनोलॉजी से एग्रीबिजनेस कम्पनियाँ खास जेनेटिक फसलें,
फल-सब्जियाँ
तैयार कर मानव स्वास्थ्य को गम्भीर नुकसान पहुँचा रही हैं और जैव विविधता को
समाप्त करती जा रही हैं, उसी तकनोलॉजी से प्रकृति को बिना नुकसान पहुँचाये पौष्टिक
आहार सामग्री तैयार करने की अनन्त सम्भावनाएँ हैं। मानव समाज की बढ़ती ज़रूरतों
के लिए हम प्रकृति से जो भी लेते हैं, उसे पुनर्चक्रण और पुनर्शोधन के जरिए वापस लौटा
देने की क्षमता तकनोलॉजी हमें देती है, लेकिन पूँजीवादी सामाजिक-आर्थिक सम्बन्धों की
चौहद्दी में उसका इस्तेमाल नहीं हो पाता। कम्प्यूटर-आधारित स्वचालन की नयी
तकनीकों का यदि समाजोपयोगी दृष्टि से इस्तेमाल किया जाये तो समाज अपनी ज़रूरत की
चीज़ों का उत्पादन बहुत कम समय में कर लेगा और शेष समय पूरा समाज आत्मिक सृजन --
सांस्कृतिक क्रियाकलापों आदि में खर्च करेगा। लेकिन हो यह रहा है कि मशीनों की
उत्पादन क्षमता की अकूत बढ़ोत्तरी के बावजूद पूरी दुनिया में मज़दूरों के काम के
घण्टे विविध प्रत्यक्ष-परोक्ष तरीकों से बढ़ते ही जा रहे हैं और उनकी हड्डियाँ
तक निचोड़ ली जा रही हैं।
संचार और
मनोरंजन की नयी तकनोलॉजी व्यापक जनता तक स्वस्थ संस्कृति की खुराक पहुँचाने की
और पूरे समाज में मानवीय रिश्तों के ताने-बाने को मजबूत बनाने की, यहाँ तक कि एक
भूमण्डलीय समाज की बुनियाद रखने की, सम्भावनाओं से युक्त है। लेकिन इसका इस्तेमाल
घर-घर तक रुग्ण हिंस्न व्यक्तिवाद, अलगाव, अवसाद और लोभ-लाभ की संस्कृति को पहुँचाने के
लिए, लोगों को एक
आभासी दुनिया में जीने का आदी बनाने के लिए तथा जनता को धर्म और अंधविश्वास की
भारी खुराकें देकर भाग्यवादी बनाने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त इस
तकनोलॉजी का इस्तेमाल पूँजीवादी राज्यसत्ताएँ जासूसी के लिए और अपने नागरिकों
की निगरानी के लिए करती हैं। सबसे बढ़कर, नयी संचार तकनीकों का इस्तेमाल पूँजी के
वैश्विक प्रवाह की गति को ज्यादा से ज्यादा तेज बनाने के लिए किया जाता है।
अत: दोष
तकनोलॉजी का नहीं, बल्कि सामाजिक-राजनीतिक ढाँचे का है। जबतक उत्पादन,
राजकाज और समाज
के ढाँचे पर उत्पादन करने वाले वर्गों का नियंत्रण नहीं होगा, तबतक उत्पादन
सामाजिक उपयोगिता के बजाय मुनाफे के लिए होता रहेगा और तकनोलॉजी का दुरुपयोग होता
रहेगा।
हम इतिहास को
पीछे की ओर नहीं मोड़ सकते। पूँजीवाद की विभीषिकाओं से मुक्ति के लिए हम अतीत को
शरण्य नहीं बना सकते। हम फिर से तकली, चरखा, करघा, खुरपी, कुदाल, कठही हल, बार्टर सिस्टम, घुड़सवार
हरकारों आदि की दुनिया में वापस नहीं लौट सकते (वैसे वह दुनिया कोई आदर्श भी नहीं
थी, लाख बुरा होते
हुए भी पूँजीवाद उससे बेहतर है) हमें यहाँ से आगे ही जाना होगा।
यदि पूँजीवादी
उत्पादन और विनिमय सम्बन्ध न हों तो उत्पादक शक्तियों का विकास कई गुना तेज
गति से होगा। समाज की समष्टिगत मानसिक क्षमता और मेधा पूरी क्षमता से सक्रिय हो
जायेगी और वैज्ञानिक-तकनोलॉजिकल खोजों-आविष्कारों की रफ्तार को पंख लग जायेंगे।
केवल मुनाफे के लिए उत्पादन पर आधारित सामाजिक सम्बन्ध तो उत्पादक शक्तियों के
पैरों की डण्डा-बेड़ी बने हुए हैं। वस्तुत: तकनोलॉजी के विकास की गति तो
सापेक्षिक रूप से रुकी हुई है। शोषणमुक्त समाज ही इस गति को नयी त्वरा प्रदान कर
सकता है और वैज्ञानिक सोच वाले हर व्यक्ति को इसी की कामना करनी चाहिए और इसी के
लिए लगातार कोशिशें करनी चाहिए। सच्चे अर्थों में मानवीय संवेदना वहीं होती है,
जहाँ वैज्ञानिक
जीवन-दृष्टि और इतिहास-दृष्टि होती है तथा अपनी सोच के हिसाब से सामाजिक-राजनीतिक
जीवन में सक्रिय हस्तक्षेप का संकल्प और जीवट होता है।

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