एक मामूली दुःख का रोजनामचा / महमूद दरवेश

महमूद दरवेश : एक मामूली दुःख का रोजनामचा

अनुवाद व संक्षिप्त परिचय ब्लॉगर मनोज पटेल


"हर अच्छी कविता प्रतिरोध की एक कार्रवाही है." ऐसा मानने वाले फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश ने अपनी कविताओं जितना ही अच्छा गद्य भी लिखा है. इस आत्मकथात्मक किस्म के गद्य में उनकी नजरबंदी, इजरायली अधिकारियों की पूछताछ और जेल में बिताए उनके दिनों का ब्योरा है. यहाँ भी निर्वासन और अपनी मातृभूमि के लिए उनकी गहरी तड़प कदम-कदम पर दिखती है. उनका गद्य इतना काव्यात्मक है कि इसे उनकी कविताओं से अलगाना बेहद मुश्किल है. यहाँ प्रस्तुत अंश 'जर्नल आफ ऐन आर्डिनरी ग्रीफ' से...
1
-- तूफ़ान के गुजरने तक नीचे झुक जाओ मेरी जान.
-- हमेशा के इस नीचे झुकने से मेरी पीठ धनुष हो गयी है. तुम अपना तीर कब चलाने जा रहे हो ?
[ आप अपना हाथ दूसरे हाथ तक ले जाते हैं, और मुट्ठी भर आटा पाते हैं ]
-- तूफ़ान के गुजरने तक नीचे झुक जाओ मेरी जान.
-- हमेशा के इस नीचे झुकने से मेरी पीठ पुल हो गयी है. तुम पार कब उतरोगे ?
[ आप अपना पैर बढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन लोहा हिलता भी नहीं ]
-- तूफ़ान के गुजरने तक नीचे झुक जाओ मेरी जान.
-- हमेशा के इस नीचे झुकने से मेरी पीठ एक सवालिया निशान हो गयी है. तुम जवाब कब दोगे ?
[ सवाल पूछने वाला एक रिकार्ड बजाता है जिसमें तालियों की गड़गड़ाहट है ]
जब तूफ़ान ने उन्हें छिटका दिया, तो वर्तमान, अतीत पर चिल्ला रहा था : "यह तुम्हारी गलती है." और अतीत अपने अपराध को क़ानून में बदल रहा था. जहां तक भविष्य की बात है, वह एक तटस्थ पर्यवेक्षक मात्र था.
तूफ़ान के गुजर जाने के बाद, ये सभी झुकाव पूरे होकर एक वृत्त में बदल गए जिसकी शुरूआत और अंत अज्ञात हैं.
* *
2
-- हर सिसकी के बाद थोड़ा रुको, और हमें बताओ कि तुम कौन हो.
जब तक वह दुबारा होश में आया, खून सूख चुका था.
-- मैं पश्चिमी किनारे से हूँ.
-- और उन्होंने तुम्हें इतनी यातना क्यों दिया ?
-- तेल अवीव में कोई विस्फोट हुआ था, इसलिए उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया.
-- और तेल अवीव में तुम क्या करते हो ?
-- मैं ईंट-गारा करने वाला एक मजदूर हूँ.
इजरायली शहरों में, पश्चिमी किनारे या गाजा पट्टी के अरबी मजदूरों के कामकाज के हालात अभी तक सामान्य नहीं हो पाए हैं. पिछली पराजय के फ़ौरन बाद ही, अरब जनता को उम्मीद थी कि अरबी मजदूरों को निष्ठा बनाए रखने और कब्जे को नामंजूर करने के वास्ते भूखो मरना पडेगा. जिम्मेदारी के ओहदे पर बैठे किसी भी शख्स ने अधिग्रहीत क्षेत्र में रह रहे लोगों को रोजी-रोटी का कोई साधन मुहैया कराने के बारे में नहीं सोंचा, ताकि वे अपनी निष्ठा बनाए रख सकें और जीतने वालों के साथ किसी किस्म का सहयोग करने से इनकार करते रह सकें.
-- जब बंदूकें खामोश हों, तो क्या मुझे भूख महसूस करने का हक़ नहीं है ?
आप किसी ऐसे शख्स से क्या कहेंगे जो इस ढंग से अपने सवाल रख रहा हो ? राष्ट्र गानों और उत्तेजक भाषणों को पीसकर, उन्हें गूंथकर, रोटी में बदलने का बूता हममें नहीं है.
अधिग्रहीत मातृभूमि का रोटी के किसी टुकड़े में बदल जाना सबसे खतरनाक है. यह भी भयानक है कि फ़ौजी कब्जे में रह रही आबादी को वर्तमान परिस्थितियों और राजनैतिक और सैन्य चुप्पी के चलते जबरन भूखों रहना पड़े.
-- जंग के दौरान जब भीषण लड़ाइयां छिड़ी हों, हम जीवन की गुणवत्ता के बारे में कुछ ख़ास ध्यान नहीं देते. युद्ध की घोषणा कर दीजिए या कोई लड़ाई शुरू कर दीजिए तो हम हर तरह का बलिदान करने के लिए तैयार हैं. लेकिन जब बंदूकें खामोश हों, तो हमें भूख महसूस करने का हक़ है.
और हम यह क्यूं भूल जाते हैं, या भूलने का बहाना करते हैं कि खुद इजरायल का निर्माण भी अरब के लोगों के ही हाथों हुआ था ?
कितना विरोधाभासी ! कितना शर्मनाक !
* *
4
-- तुम कहाँ के हो, भाई ?
-- गाजा का.
-- तुमने क्या किया था ?
-- मैनें विजेताओं की कार पर ग्रेनेड फेंका था, लेकिन उनकी बजाए खुद को ही उड़ा बैठा.
-- और...
-- उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया और मुझ पर खुदकशी की कोशिश का इल्जाम लगाया.
-- तुमने जाहिर है, कबूल कर लिया होगा.
-- ठीक-ठीक ऐसा नहीं है. मैनें उन्हें बताया कि खुदकशी की कोशिश कामयाब नहीं हुई थी. इसलिए उन्होंने दया करते हुए मुझे इस आरोप से मुक्त कर दिया, और उम्रकैद की सजा सुना दी.
-- मगर तुम मारने की नियत रखते थे, न कि खुदकशी की ?
-- लगता है तुम गाजा को नहीं जानते. वहां फर्क एक खयाली चीज है.
-- मैं समझा नहीं.
-- लगता है तुम गाजा को नहीं जानते. तुम कहाँ के हो ?
-- हईफ़ा का.
-- और तुमने क्या किया था ?
-- मैनें विजेताओं की कार पर एक कविता फेंकी थी, और इसने उन्हें उड़ा दिया था.
-- और...
-- उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया और मुझ पर सामूहिक हत्याओं का इल्जाम लगाया.
-- तुमने जाहिर है, कबूल कर लिया होगा.
-- ठीक-ठीक ऐसा नहीं है. मैनें बताया कि क़त्ल की कोशिश कामयाब हो गयी थी. इसलिए उन्होंने मेरी गुजारिश के जवाब में कृपा की और मुझे दो महीने की कैद की सजा दी.
-- मैं समझा नहीं.
लगता है तुम हईफ़ा को नहीं जानते. वहां फर्क एक खयाली चीज है.
जेल का चौकीदार आया, उसे जेल में डाल दिया, और मुझे रिहा कर दिया.
* *
5
जाओ. और फिर से वापस आओ, जबकि मैं बेखुदी से खुद तक वापस आऊँ.
जब तक ख्वाब मेरा बदन छोड़ न दे, दूर ही रहना.
मैनें तुम्हें धुंआ उड़ाना सिखाया. और तुमने मुझे धुंए की सोहबत सिखा दी.
जाओ. और फिर से वापस आओ !
-- और, तुमने उससे और क्या-क्या कहा ?
-- मैनें प्रेम की कोई बात नहीं की. मेरे शब्द अस्पष्ट थे, और जब तक वह सो नहीं गयी, मैं उन्हें नहीं समझ पाया था. वह बहुत गाया करती थी और ख़्वाबों में छोड़कर, मैं उसके गीतों को समझ नहीं पाता था. और वह खूबसूरत है ! खूबसूरत ! जिस पल मैनें उसे देखा, मेरे दिमाग से बादल छंट गए थे. मैं उसे झपटकर अपने घर ले आया और कहा था, "इसे प्रेम समझो."
वह हँसी. सबसे अँधेरे समय में भी वह हँसी.
मैं उसे उधार लिए हुए एक नाम से बुलाया करता था क्योंकि यह अधिक खूबसूरत है. जब मैं उसे चूमता था तो एक चुम्बन से दूसरे चुम्बन के बीच इतनी कामना से भरा हुआ होता था, कि ऐसा महसूस होता था यदि मैनें उसे चूमना बंद कर दिया तो उसे खो बैठूंगा.
रेत और पानी के बीच में, उसने कहा था, "मैं तुमसे प्रेम करती हूँ."
और कामना और यातना के बीच में, मैनें कहा, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ."
और जब एक अफसर ने उससे पूछा कि वह यहाँ क्या कर रही थी, उसने जवाब दिया, "तुम कौन हो ?" और उसने कहा, "और तुम कौन हो ?"
वह बोली, "मैं उसकी प्रेमिका हूँ, हरामजादे, और मैं इस कैदखाने के फाटक तक उसे विदा करने उसके साथ आयी हूँ. तुम उससे क्या चाहते हो ?'
वह बोला, "तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं एक अफसर हूँ."
"अगले साल मैं भी एक अफसर हो जाऊंगी," उसने कहा.
उसने फ़ौज में दाखिले के अपने कागजात निकाले. तब अफसर मुस्कराया, और मुझे कैदखाने की तरफ खींच ले गया.
अगले साल [1967] जंग भड़क उठी, और मुझे फिर से जेल में डाल दिया गया. मुझे उसकी याद आयी : "वह इस समय क्या कर रही होगी ?" वह नाबलुस में हो सकती है, या किसी और शहर में, बाक़ी विजेताओं की तरह हल्की रायफल लिए हुए, और शायद इस क्षण कुछ लोगों को अपने हाथ ऊपर उठाने या जमीन पर झुकने का हुक्म दे रही हो. या शायद वह, अपनी ही उम्र की और अपने ही जैसी खूबसूरत, किसी अरबी लड़की से पूछताछ और यंत्रणा की प्रभारी हो.
उसने खुदाहाफिज नहीं कहा था.
और तुमने नहीं कहा : "जाओ, और वापस आना."
तुमने उसे धुंआ उड़ाना सिखाया, और उसने तुम्हें धुंए की सोहबत सिखा दी.
* *
9
नए साल के दिन आप क्या करते हैं ?
आप किसी दोस्त को भेजने के लिए एक खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड की तलाश में सड़क पर जाते हैं, और आपके हाथ क्या लगता है ? गुलाब की एक भी तस्वीर नहीं, समुन्दर के किनारे, पक्षी, या किसी स्त्री का कोई रेखाचित्र नहीं. टैंक, तोप, लड़ाकू विमान, रोती हुई दीवार, अधिगृहीत कस्बों, और स्वेज नहर की खातिर जगह बनाने के लिए ये सभी गायब हो गए हैं. और जब आप जैतून की एक टहनी को मौक़ा देने के लिए सोचते हैं, तो आप इसे फ्रांस में बने एक लड़ाकू जेट के डैनों पर बना पाते हैं.
जब आप एक खूबसूरत लड़की को देखते हैं, तो उसे पूरी तरह हथियारबंद पाते हैं. और जब आपकी निगाह किसी शहर पर पड़ती है, आप पृष्ठभूमि में किसी फौजी के बूट पाते हैं. आपका दिल डूब जाता है. कुछ नहीं बचा, सिवाय इसके कि इन रंग-बिरंगे छुट्टियों के कार्डों, जिन्हें ऐतिहासिक पुनर्जन्म की खुशी में यहूदियों को दुनिया भर में भेजा जाना है, की तरफ बढ़े हजारों हाथों को जगह देने के लिए, भीड़ भारी सड़क के एक कोने में सिमट जाया जाए. मगर आप अपने दोस्तों को कुछ नहीं भेजते सिवाय अपने दिल की खामोशी के, जो अपने गंतव्य तक नहीं पहुंचती.
सड़क पर यह मेले जैसा माहौल आपको आश्चर्य में डाल देता है. रोशनी आप पर उसी तरह उतरती है जैसे तब, जब आप एक अंधेरी कोठरी से बाहर आए थे, और जैसे यह पूरी तरह हथियारों से लैस बच्चों / फाख्तों के झुण्ड पर उतरती है. खिलौने हथियार हैं. और खुशी भी एक हथियार है.
और आप ? आपके बचपन या जवानी में और कुछ नहीं है सिवाय लकड़ी के एक घोड़े के.

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