कविता - मध्यवर्गीय भलेमानस नागरिक से कुछ बातें / कविता कृष्‍णपल्‍लवी

मध्यवर्गीय भलेमानस नागरिक से कुछ बातें

कविता कृष्‍णपल्‍लवी

.

आप अच्छे व्यक्ति हैं!
ठीक है, पर इतना काफ़ी नहीं है।
आप में सही और ग़लत में फ़र्क करने की
तमीज़ होनी चाहिए और इतनी
मनुष्यता भी होनी चाहिए कि
जो भी ग़लत और अन्यायपूर्ण हो
उससे नफ़रत करते रह सकें ताउम्र,
दिल की गहराइयों से।

आपमें सही और ग़लत में फ़र्क करने की
तमीज़ है, अच्छी बात है!
आप नफ़रत करते हैं ग़लत चीज़ों से
और नाइंसाफ़ी से, बहुत अच्छी बात है!
लेकिन आपको इसे खुलकर
कहना भी चाहिए!

आप सही और ग़लत के बारे में खुलकर
बातें करते हैं और इंसाफ़ की
बातें करते हैं, अच्छा है!
लेकिन आपमें सही बात के लिए
और इंसाफ़ के लिए लड़ने का
और इस मक़सद के लिए लोगों को
जगाने और संगठित करने का
साहस और धीरज भी होना चाहिए।

आपमें यह भी है तो और अच्छी बात है!
लेकिन आपको यह भी पता होना चाहिए
कि नाइंसाफ़ी और लूट और
ज़ुल्म का कारण कुछ लोग नहीं
बल्कि एक पूरी सामाजिक व्यवस्था है।

अगर आप यह भी समझते हैं तो बड़ी बात है!
लेकिन आपको फिर इस व्यवस्था के बारे में
जानना होगा, इससे लाभान्वित होने वाले
वर्गों और इसे चलाने वाले लोगों और
राज्यसत्ता की पूरी मशीनरी के बारे में
जानना होगा जिसे ध्वस्त किये बिना
इस सामाजिक व्यवस्था को किसी भी तरह से
बदला नहीं जा सकता!
आपको दोस्त और दुश्मन की सही पहचान
करनी होगी और वर्ग-युद्ध की सही
रणनीति बनानी होगी।

इसतरह, सिर्फ़ इसीतरह, आप
बन सकते हैं ऐतिहासिक बदलाव के
मानव उपादान!
इसतरह आप जी सकते हैं एक सार्थक,
गर्वीला, सृजनात्मक जीवन!

बहुत मुमकिन है कि अपनी सरगर्मियों का नतीज़ा
देखने के लिए आप जीवित न रहें
पर सच्चाई और न्याय के लिए
ताउम्र, अनथक जीने और लड़ने के
आत्मगौरव के साथ जब आप
अन्तिम साँस लेंगे तो आपके
उत्तराधिकारी आपको अपनी साँसों में
बसा लेंगे और आगे मंज़िल की ओर
अपना सफ़र जारी रखेंगे।


अगर आपको ये बातें यूटोपियाई लगती हैं
,
आदर्शों का अतिरेक लगती हैं,
तो मुझे आपसे कुछ नहीं कहना!
जाइए, उधर! समझौतों और दुत्कार से
भरी ज़िन्दगी के बजबजाते रसातल में
कीड़ों सा बिलबिलाइए
भेड़ियाधसान और कुत्ता-दौड़ में
चाक-चौबंद होकर शामिल हो जाइए,
भुनभुन-भिनभिन करते, रोते-झींकते,
हत्यारों की जी-हजूरी करते,
कब्ज़-बवासीर-गैस का इलाज करवाते,
रामदेव की गोली-चूरन चाटते-फाँकते,
वैष्णो देवी यात्रा करते, आसाराम,
कृपालु महाराज आदि के भजन-प्रवचन
सुनते या ओशो, श्री श्री, कृष्णमूर्ति और
दीपक चोपड़ा वगैरह-वगैरह से सुखी-संतुष्ट जीवन के
नुस्खे सीखते, पंचगव्य खाते, आरती गाते,
बीमा कराते, बचत का हिसाब-किताब करते,
किश्तों पर फ्लैट और गाड़ी खरीदते
अपनी ही व्यस्तताओं और झंझटों में
जीते चले जाने की आदत डाल लीजिए।

अगर सफलता के कुछ ऊँचे पायदान पर
पहुँच ही गये किसी तरह से, तो पहाड़ में
या समंदर किनारे अपने सुन्दर-शान्तिपूर्ण
कॉटेज में बैठकर हत्यारे फासिस्ट गिरोहों के उन्मादी नारों और
उनके शिकार होते लोगों की चीत्कारों से दूर
सितार पर राग जैजैवंती और बिलावल सुनियेगा
और लाशों की चिराँयध गंध से छुटकारा पाने के लिए
भीगी हुई चाँदनी रात में अध्ययन-कक्ष या शयन-कक्ष की
खिड़की खोलकर लॉन में खिले पारिजात, मोगरे
और रजनीगंधा की सुबास पूरे नथुने खोलकर
फेंफड़ों में अंदर तक भर लीजिएगा।

 

 

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