मजदूर वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्‍स के कुछ उद्धरण Some quotations by great teacher of proletariat Karl Marx

मजदूर वर्ग के महान शिक्षक कार्ल मार्क्‍स के कुछ उद्धरण 

1. दुनिया के मजदूरो एक हो, तुम्हारे पास खोने के लिए अपनी जंजीरों के सिवाय कुछ नहीं है.
2. क्रांतियां इतिहास का इंजन होती हैं
3. पिछले सभी समाजों का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है.
4. धार्मिक व्यथा एक साथ वास्तविक व्यथा की अभिव्यक्ति तथा वास्तविक व्यथा का प्रतिवाद दोनों ही है। धर्म उत्पीड़ित प्राणी की आह (उच्छ्वास) है, निर्दय संसार का मर्म है तथा साथ ही निरुत्साह परिस्थितियों का उत्साह भी है। यह जनता की अफ़ीम है।
5. पूंजी मृत श्रम है जो पिशाच की तरह है , जो केवल श्रम चूसकर ही जिन्दा रहता है और जितना अधिक जीता है उतना श्रम चूसता है.
6. साम्यवाद के सिद्धांत को एक वाक्य में अभिव्यक्त किया जा सकता है: निजी संपत्ति को समाप्त करो.
7. सामाजिक प्रगति को महिलाओं की सामाजिक स्थिति से मापा जा सकता है.
8. जीने और लिखने के लिए लेखक को पैसा कमाना चाहिए, लेकिन किसी भी सूरत में उसे पैसा कमाने के लिए जीना और लिखना नहीं चाहिए 
9. समाज व्यक्तियों से मिलकर नहीं बनता है बल्कि उनके अंतर्संबंधों का योग होता है, इन्हीं संबंधों के भीतर ये व्यक्ति खड़े होते हैं.
10. जितना अधिक श्रम का विभाजन और मशीनरी का उपयोग बढ़ता है , उतना ही श्रमिकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढती है , और उतनी ही उनका वेतन कम होता जाता है।
11. जबकि कंजूस मात्र एक पागल पूंजीपति है, पूंजीपति एक तर्कसंगत कंजूस है।
12. हर युग के शासक विचार शासक वर्ग के विचार होते हैं, यानी जो वर्ग समाज की शासक भौतिक शक्ति है, वही समाज की शासक बौद्धिक शक्ति भी होता है। जिस वर्ग के पास भौतिक उत्पादन के साधन होते हैं, वही मानसिक उत्पादन के साधनों पर भी नियन्त्रण रखता है, जिसके नतीजे के तौर पर, आम तौर पर कहें तो वे लोग जिनके पास मानसिक उत्पादन के साधन नहीं होते हैं, वे शासक वर्ग के अधीन हो जाते हैं। 
13. कारण हमेशा से अस्तित्व में रहे हैं , लेकिन हमेशा उचित रूप में नहीं। 
14. अमीर गरीब के लिए कुछ भी कर सकते हैं लेकिन उनके ऊपर से हट नहीं सकते। 
15. बहुत सारी उपयोगी चीजों के उत्पादन का परिणाम बहुत सारे बेकार लोग होते हैं। 
16. पूंजीवादी समाज में पूँजी स्वतंत्र और व्यक्तिगत है , जबकि जीवित व्यक्ति आश्रित है और उसकी कोई वैयक्तिकता नहीं है। 


Some quotations by great teacher of proletariat Karl Marx  

1. Workers of the world unite; you have nothing to lose but your chains.
2. Revolutions are the locomotives of history.
3. The history of all previous societies has been the history of class struggles.
4. Religious suffering is, at one and the same time, the expression of real suffering and a protest against real suffering. Religion is the sigh of the oppressed creature, the heart of a heartless world, and the soul of soulless conditions. It is the opium of the people.
5. Capital is dead labor, which, vampire-like, lives only by sucking living labor, and lives the more, the more labor it sucks.
6. The theory of Communism may be summed up in one sentence: Abolish all private property.
7. Social progress can be measured by the social position of the female sex.
8. The writer must earn money in order to be able to live and to write, but he must by no means live and write for the purpose of making money 
9. Society does not consist of individuals but expresses the sum of interrelations, the relations within which these individuals stand.
10. The more the division of labor and the application of machinery extend, the more does competition extend among the workers, the more do their wages shrink together.
11. While the miser is merely a capitalist gone mad, the capitalist is a rational miser.
12. The ideas of the ruling class are in every epoch the ruling ideas, i.e. the class which is the ruling material force of society, is at the same time its ruling intellectual force. The class which has the means of material production at its disposal, has control at the same time over the means of mental production, so that thereby, generally speaking, the ideas of those who lack the means of mental production are subject to it. 
13. Reason has always existed, but not always in a reasonable form.
14. The rich will do anything for the poor but get off their backs.
15. The production of too many useful things results in too many useless people.
16. In bourgeois society capital is independent and has individuality, while the living person is dependent and has no individuality.

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