कानूनी दमन, जुल्म के विरुद्ध कुछ उद्धरण और कविताएं
कानूनी दमन, जुल्म के विरुद्ध कुछ उद्धरण और कविताएं
✍भगत सिंह, अवतार सिंह पाश, बर्तोल्त ब्रेख्त
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भगत सिंह ने कहा था
क़ानून की पवित्रता तभी तक रखी जा सकती है जब तक वह जनता के दिल यानी भावनाओं को प्रकट करता है। जब यह शोषणकारी समूह के हाथों में एक पुर्ज़ा बन जाता है तब अपनी पवित्रता और महत्त्व खो बैठता है। न्याय प्रदान करने के लिए मूल बात यह है कि हर तरह के लाभ या हित का ख़ात्मा होना चाहिए। ज्यों ही क़ानून सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना बन्द कर देता है त्यों ही ज़ुल्म और अन्याय को बढ़ाने का हथियार बन जाता है। ऐसे क़ानूनों को जारी रखना सामूहिक हितों पर विशेष हितों की दम्भपूर्ण ज़बरदस्ती के सिवाय कुछ नहीं है।
हम मानते हैं कि स्वतन्त्रता प्रत्येक मनुष्य का अमिट अधिकार है। हर मनुष्य को अपने श्रम का फल पाने जैसा सभी प्रकार का अधिकार है और प्रत्येक राष्ट्र अपने मूलभूत प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण स्वामी है। अगर कोई सरकार जनता को उसके इन मूलभूत अधिकारों से वंचित रखती है तो जनता का केवल यह अधिकार ही नहीं बल्कि आवश्यक कर्त्तव्य भी बन जाता है कि ऐसी सरकार को समाप्त कर दे। नीचे भगत सिंह की जेल नोटबुक से कुछ उद्धरण दिए गए हैं _________________________ एक व्यक्ति के भरण-पोषण के लिए, किसी देश के सार्वजनिक टैक्सों में से, दस लाख स्ट्रर्लिंग सालाना देने की बात करना अमानवीय है, जबकि हज़ारों लोग जो इसमें योगदान करने के लिए मजबूर किये जाते हैं, अभाव से त्रस्त और बदहाली से जूझ रहे हैं। सरकार जेलों और राजमहलों के बीच, या कंगाली और शान-शौक़त के बीच किसी समझौते के रूप में नहीं होती; यह इसलिए नहीं गठित की जाती कि ज़रूरतमन्द से उसकी दमड़ी भी लूट ली जाये और ख़स्ताहालों की दुर्दशा और बढ़ा दी जाये। _________________________ “…वह (बेरोज़गार बूढ़ा मज़दूर) उम्र से, प्रकृति से, और परिस्थितियों से जूझ रहा था; समाज, क़ानून और व्यवस्था का सारा बोझ उसके ऊपर भारी पड़ता हुआ, उसे अपना आत्मसम्मान और आज़ादी खो देने पर मजबूर कर रहा था…। उसने फार्मों के दरवाज़े खटखटाये और वह सिर्फ़ मनुष्य में ही अच्छाई पा सका – क़ानून और व्यवस्था में नहीं, बल्कि सिर्फ़ मनुष्य में ही।” _________________________ एक अत्याचारी शासक के लिए ज़रूरी है कि वह ज़ाहिरा तौर पर धर्म में असाधारण आस्था दिखाये। जनता एक ऐसे शासक के दुर्व्यवहार के प्रति कम सचेत होती है, जिसे वह ईश्वर से डरने वाला और पवित्र मानती है। दूसरे, वह आसानी से उसके विरोध में भी नहीं जाती, क्योंकि उसे विश्वास रहता है कि देवता भी शासक के साथ हैं।[49] _________________________ सैनिक और चिन्तन: “यदि मेरे सैनिक सोचना शुरू कर दें, तब तो उनमें से कोई भी सेना में नहीं रहेगा।” (फ़्रेडरिक महान)
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अवतार सिंह पाश की कविता अपनी असुरक्षा से यदि देश की सुरक्षा यही होती है कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाये आँख की पुतली में ‘हाँ’ के सिवाय कोई भी शब्द अश्लील हो और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़ जिसमें उमस नहीं होती आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है और आसमान की विशालता को अर्थ देता है हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा हम तो देश को समझे थे क़ुर्बानी-सी वफ़ा लेकिन ’गर देश आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है ’गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है तो हमें उससे ख़तरा है ’गर देश का अमन ऐसा होता है कि कर्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह टूटता रहे अस्तित्व हमारा और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे कीमतों की बेशर्म हँसी कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो तो हमें अमन से ख़तरा है ’गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा अक़्ल, हुक़्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।
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बर्तोल्त ब्रेख्त की कुछ कविताएं _________________________ ऊपर बैठने वालों का कहना है: ऊपर बैठने वालों का कहना है: यह महानता का रास्ता है जो नीचे धंसे हैं, उनका कहना हैः यह रास्ता कब्र का है। _________________________ नेता जब शान्ति की बात करते हैं नेता जब शान्ति की बात करते हैं आम आदमी जानता है कि युद्ध सन्निकट है नेता जब युद्ध का कोसते हैं मोर्चे पर जाने का आदेश हो चुका होता है _________________________ जब कूच हो रहा होता है जब कूच हो रहा होता है बहुतेरे लोग नहीं जानते कि दुश्मन उनकी ही खोपड़ी पर कूच कर रहा है वह आवाज जो उन्हें हुक्म देती है उन्हीं के दुश्मन की आवाज होती है और वह आदमी जो दुश्मन के बारे में बकता है खुद दुश्मन होता है। _________________________ वे जो शिखर पर बैठे हैं, कहते हैं: वे जो शिखर पर बैठे हैं, कहते हैं: शान्ति और युद्ध के सार तत्व अलग-अलग हैं लेकिन उनकी शान्ति और उनका युद्ध हवा और तूफान की तरह हैं युद्ध उपजता है उनकी शान्ति से जैसे मां की कोख से पुत्र मां की डरावनी शक्ल की याद दिलाता हुआ उनका युद्ध खत्म कर डालता है जो कुछ उनकी शान्ति ने रख छोड़ा था।
Very nice thought Jago mulnivasi please namo Buddha Jai Bhim
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