युद्धोन्माद की लहर को वोट में बदलने की बेशर्म और बदहवास संघी कोशिशें
युद्धोन्माद की लहर को वोट में बदलने की बेशर्म और बदहवास संघी कोशिशें
कविता कृष्णपल्लवी
अब यह बात दिन के उजाले की तरह साफ़ हो चुकी है कि सारा धंधा युद्धोन्माद की आँच भड़काकर चुनावी गोट लाल करने की थी। वो तो येदुयुरप्पा की मूर्खता थी कि उसने यह बयान भी दे दिया कि एयर स्ट्राइक के बाद पैदा हुई लहर में हम कर्नाटक की सभी लोकसभा सीटें जीत लेंगे। एक और भाजपा नेता ने भी यह बयान दे दिया कि जो राष्ट्रीय भावना पैदा हुई है, उसे हमें वोटों में तब्दील करना होगा।
यह अनायास नहीं था कि पुलवामा के बाद ही मोदी ने धुंआधार रैलियाँ करके युद्धोन्माद भड़काने और उसे भुनाने की पूरी कोशिश की। और अब भाजपा वाले जीप में अभिनन्दन की तस्वीर बाँधकर बेशर्मी से मोदी को सारा श्रेय देने और वोट लूटने की कोशिश कर रहे हैं। जीप में तस्वीर कुछ वैसे ही और उसी जगह बाँधी गयी है जैसे कश्मीर में सेना के एक अधिकारी ने एक युवक को बाँधकर घुमाया था। आखिर ये बेशर्म और मूर्ख श्रेय किस बात का ले रहे है ? पुलवामा के बाद भारत ने खोये 62 जवान, एक जहाज़ और एक हेलीकाप्टर और पाकिस्तान से सिर्फ़ एक जहाज़। अब मीडिया और सरकार द्वारा भारतीय हवाई हमले में 300 से लेकर 600 तक आतंकियों के मारे जाने की जो खबर फैलाई गयी थी, वह सिरे से झूठ निकली जिसकी पूरी दुनिया में खिल्ली उड़ाई जा रही है। लेकिन देश में गोदी मीडिया ने और सोशल मीडिया पर बैठे भाजपा के भाड़े के टट्टुओं ने ऐसा माहौल बनाया है जैसे मोदी ने सामरिक और कूटनीतिक तौर पर कोई बहुत बड़ा तीर मार लिया हो। यह होता है फासिस्टों का प्रचार-तंत्र। सेना के कई रिटायर्ड अधिकारियों ने और कई शहीदों के परिवार वालों ने भी जब यह बात कही कि युद्ध कोई समाधान नहीं है और राजनीतिक लाभ के लिए युद्ध का माहौल नहीं बनाया जाना चाहिए, तो गोदी मीडिया ने इस बात को ही दबा दिया और भाजपाई साइबर गुंडे तुरत ऐसा बयान देने वालों की ट्रोलिंग करने लगे। उधर पटना में एन.डी.ए. की रैली में कोई बाधा न आये, इसके लिए कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए जवान पिंटू कुमार सिंह की खोज-खबर परिवार तक पहुँचने से काफ़ी समय तक रोक रखा गया। यही नहीं, पिंटू कुमार के अंतिम संस्कार में कोई मंत्री या नेता नहीं पहुँचा। बडगाम के हेलीकाप्टर क्रेश में एयरफोर्स अधिकारी सिद्धार्थ वशिष्ठ सहित जो 6 लोग मारे गए, उनकी शहादत की भी न कोई विशेष चर्चा हुई, न ही उनके अंतिम संस्कार में कोई नेता पहुँचा, जबकि अभिनन्दन की रिहाई को एक मीडिया ईवेंट बना दिया गया क्योंकि उसे चुनावी फायदे के लिए भुनाया जा सकता था।
इस बीच कोशिश जारी है कि राफेल के प्रेत को सुला दिया जाये और नोटबंदी, जी.एस.टी., 15 लाख वाले जुमले और बैंकों के खरबों रुपये लेकर चहेते पूँजीपतियों के देश से बाहर भाग जाने जैसे सभी कंकालों को वापस आलमारी में बंद कर दिया जाए। युद्धोन्माद के शोर के दौरान ही देश के 5 हवाई अड्डे अदानी को दे दिए गए, कोर्ट के फैसले की आड़ लेकर 10 लाख से भी अधिक आदिवासियों को दर-बदर कर देने की साज़िश की खबर दबा दी गयी और रसोई गैस की कीमत 43 रुपये फिर से बढ़ा दी गयी। बेरोजगारी और मँहगाई के रिकार्डतोड़ आँकड़ों को छिपाने के लिए सरकार ने जो घपला किया था और जिसतरह आँकड़ों के साथ फ्रॉड करके विकास-दर को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा था, वो सारी बातें देश की आम आबादी तो दूर, पढ़े-लिखे लोगों तक भी नहीं पहुँच पायीं।
फिर भी राहत की बात यह है कि आम लोगों पर युद्धोन्माद का नशा उतना असर नहीं कर रहा है, जितनी भाजपाइयों को अपेक्षा थी। इसीलिये, तमाम गाल बजाने के बावजूद संघियों की जुबान लटपटा रही है और कनपटियों पर पसीना बह रहा है।
यह सही है कि फासिस्टों ने सत्ता में बने रहने के लिए अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है और वे किसी हद तक जा सकते हैं। पर यथार्थ का दूसरा पहलू यह है कि आम लोगों में भी सतह के नीचे, असंतोष भयंकर रूप से खदबदा रहा है। सबकुछ इस बात पर निर्भर करता है कि नयी, उदीयमान क्रांतिकारी शक्तियाँ असंतुष्ट-त्रस्त आम आबादी को क्रांतिकारी परिवर्तन की आकांक्षा और समझ से लैस कर पाने में, और इस प्रक्रिया में अपना सामाजिक आधार मज़बूत कर पाने में, किस हद तक सफल हो पाती हैं।
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