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व्यंग्य कथा - भेड़ें और भेड़िये / हरिशंकर परसाई Satire - Sheep and Wolves / Harishankar Parsai

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 व्यंग्य कथा -  भेड़ें और भेड़िये हरिशंकर परसाई Please scroll down for  English version एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं , जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए। और , एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो। पशु-समाज में इस ` क्रांतिकारी’ परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गयी कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग अब आया और वह आया। जिस वन-प्रदेश में हमारी कहानी ने चरण धरे हैं , उसमें भेड़ें बहुत थीं –निहायत नेक , ईमानदार , दयालु , निर्दोष पशु जो घास तक को फूँक-फूँक कर खाता है। भेड़ों ने सोचा कि अब हमारा भय दूर हो जाएगा। हम अपने प्रतिनिधियों से क़ानून बनवाएँगे कि कोई जीवधारी किसी को न सताए , न मारे। सब जिएँ और जीने दें। शान्ति , स्नेह , बन्धुत्त्व और सहयोग पर समाज आधारित हो। इधर , भेड़ियों ने सोचा कि हमारा अब संकटकाल आया। भेड़ों की संख्या इतनी अधिक है कि पंचायत में उनका बहुमत होगा और अगर उन्होंने क़ानून बना दिया कि कोई पशु किसी को न मारे , तो हम खायेंगे क्या ? क्या हमें घास चरना सीखना पडेगा ? ज्य...

जर्मन कहानी - लेपोरैला / स्टीफन ज्विग German Story - Leporella / Stefan Zweig

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जर्मन कहानी -  लेपोरैला स्टीफन ज्विग  ( अंग्रेजी से अनुवादः अनुराधा महेंद्र) क्रेसेंज अन्‍ना फिंकेनहूबर की उम्र उनतालीस बरस थी। उसका जन्‍म नाजायज़ संतान के रूप में एक पहाड़ी गांव में हुआ था। यह जगह इंसब्रुक से ज़्‍यादा दूर नहीं थी। उसके नौकरानी के परिचय-पत्र में ख़ास विशेषता के ख़ाने में एक लक़ीर खींच दी गई थी जिसका मतलब था कोई ‘ख़ास विशेषता नहीं ' पर इस क़िस्‍म के कागज़ात भरने वाले अफसरों को यदि उसके लक्षणें को दर्ज़ करना ही पड़ता तो इस ख़ाने में वे यक़ीनन लिखते , “ थके-मांदे , हठीले , मरियल पहाड़ी टट्‌टू की माफ़िक।” वाकई नीचे का थुलथुल होंठ , लंबी अंडाकार भूरी मुखाकृति , बिना बरौनियों की बुझी-बुझी आंखें , और सबसे बढ़कर तेल से माथे पर चिपकाए रूखे बालों की वजह से उसे देख खच्‍चर की ही छवि जे़हन में उभरती थी। खच्‍चर की भांति उसकी चाल भी अड़ियल और अनमनी थी। कुदरत का एक ऐसा दुखी प्राणी जिसे बारह मास सर्दी हो या गर्मी लकड़ी की भारी-भरकम गट्‌ठर लादे उसी ऊबड़-खाबड़ , पथरीले या दलदली रास्‍ते से ऊपर-नीचे आना-जाना पड़ता है। दिनभर की कड़ी मेहनत से छुट्‌टी पाकर क्रेसेंज भी अपनी कठोर उ...