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एमील ज़ोला के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास अंकुर (जर्मिनल) की पीडीएफ फाइल PDF File of the Emile Zola's World-famous Novel Germinal

एमील ज़ोला के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास अंकुर (जर्मिनल) की पीडीएफ फाइल खदान मजदूरों के जीवन और संघर्ष का एक जीवंत चित्रण PDF File of t he Emile Zola's World-famous Novel Germinal A vivid depiction of the life and struggle of coal-mine workers पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक  हिन्दी PDF in English डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 8828320322 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें इस उपन्यास की हिंदी पीडीएफ जो हम आपको पहुंचा रहे हैं वह अनुवाद रमेश चंद्र जोशी का है और अंकुर शीर्षक से प्रकाशित हुआ है‌। राजकमल प्रकाशन ने विश्व क्लासिक श्रृंखला के अंतर्गत इसी उपन्यास को ' उम्मीद है , आएगा वह दिन ' नाम से प्रकाशित किया है। (अनुवाद - द्रोणवीर कोहली ) अगर आप पीडीएफ की बजाय प्रिंट कॉपी से पढ़ना चाहते हैं तो राजकमल से खरीद सकते हैं। उपन्यास का एक विस्तृत परिचय हमने इस पोस्ट में नीचे शेयर किया है जो राजकमल द्वारा ही प्रकाशित उपन्यास की संपादकीय प्रस्तावना से लिया गया है। यह संपादकीय प्रस्तावना सत्यम और कात्यायनी द्वारा लिखी गई है। उम्मीद है , आएगा वह दिन ' जर्मिनल ' ( उम्मीद है , आएगा वह ...

इवान तुर्गेनेव के उपन्यास पूर्ववेला की पीडीएफ फाइल PDF File of Ivan Turgenev's Novel - On the Eve

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इवान तुर्गेनेव के उपन्यास पूर्ववेला की पीडीएफ फाइल PDF file of Ivan Turgenev's Novel - On the Eve पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक  हिन्दी PDF in English डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 8828320322 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें उपन्यास के बारे में - ‘पूर्ववेला’ (On the Eve) इवान तुर्गनेव का उपन्यास है, जिसकी पृष्ठभूमि 1853 की गर्मियों की है — ठीक क्रीमिया युद्ध से पहले की, जब रूसी समाज असमंजस, ठहराव और परिवर्तन की चाह से भरा हुआ था। कहानी की नायिका येलेना स्ताखोवा एक संवेदनशील और आदर्शवादी युवती है, जो अपने बुर्जआ परिवार की ऊपरी चमक-दमक और नैतिक जड़ता से ऊब चुकी है। अपने आत्ममग्न कलाकार प्रेमी शुबिन और निष्क्रिय परिवार से असंतुष्ट होकर जीवन में किसी गहरे उद्देश्य की तलाश कर रही है। उसी दौरान उसकी मुलाकात इनसारोव से होती है — एक बुल्गारियाई क्रांतिकारी, जो अपने देश को ऑटोमन शासन से मुक्त कराने के लिए समर्पित है। येलेना उसके साहस, निष्ठा और आदर्शवादी दृष्टिकोण से प्रभावित होकर उससे प्रेम करने लगती है। उनका यह प्रेम केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि उस समय के रूस में उठ रही नई चेतना का प्रतीक बन...

व्यंग्य कथा - भेड़ें और भेड़िये / हरिशंकर परसाई Satire - Sheep and Wolves / Harishankar Parsai

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 व्यंग्य कथा -  भेड़ें और भेड़िये हरिशंकर परसाई Please scroll down for  English version एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं , जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए। और , एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो। पशु-समाज में इस ` क्रांतिकारी’ परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गयी कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग अब आया और वह आया। जिस वन-प्रदेश में हमारी कहानी ने चरण धरे हैं , उसमें भेड़ें बहुत थीं –निहायत नेक , ईमानदार , दयालु , निर्दोष पशु जो घास तक को फूँक-फूँक कर खाता है। भेड़ों ने सोचा कि अब हमारा भय दूर हो जाएगा। हम अपने प्रतिनिधियों से क़ानून बनवाएँगे कि कोई जीवधारी किसी को न सताए , न मारे। सब जिएँ और जीने दें। शान्ति , स्नेह , बन्धुत्त्व और सहयोग पर समाज आधारित हो। इधर , भेड़ियों ने सोचा कि हमारा अब संकटकाल आया। भेड़ों की संख्या इतनी अधिक है कि पंचायत में उनका बहुमत होगा और अगर उन्होंने क़ानून बना दिया कि कोई पशु किसी को न मारे , तो हम खायेंगे क्या ? क्या हमें घास चरना सीखना पडेगा ? ज्य...