जैक लण्डन के उपन्यास 'आयरन हील' की पीडीएफ PDF file of Jack London's Novel 'The Iron Heel'
जैक लण्डन, उसका समय और उसका कृतित्व
(सत्यम और कात्यायनी द्वारा लिखित विस्तृत लेख के कुछ हिस्से)
वेगवान उद्दीप्त उल्का-सा वह जीवन!
'धूल की जगह राख होना चाहूँगा मैं!
मैं चाहूँगा कि एक दैदीप्यमान ज्वाला बन जाये भड़ककर मेरी चिनगारी
बजाय इसके कि सड़े काठ में उसका दम घुट जाये।
एक ऊँघते हुए स्थायी ग्रह के बजाय
मैं होना चाहूँगा एक शानदार उल्का
मेरा प्रत्येक अणु उद्दीप्त हो भव्यता के साथ।
मनुष्य का सही काम है जीना, न कि सिर्फ जीवित रहना।
अपने दिन मैं बर्बाद नहीं करूँगा उन्हें लम्बा बनाने की कोशिश में।
मैं अपने समय का इस्तेमाल करूँगा।'
जैक लण्डन की की ये ओजपूर्ण पंक्तियां उसके
जीवन और जीवन-दृष्टि का घोषणा-पत्र हैं।
विश्व-साहित्य में यथार्थवादी परम्परा पर कोई भी चर्चा जैक लण्डन के
विशेषकर दो उपन्यासों - मार्टिन ईडन और आयरन हील के उल्लेख के बिना अधूरी मानी
जायेगी। उसकी कुछ कहानियाँ भी ऐसी हैं, जिन्हें बीसवीं शताब्दी की उत्कृष्टतम
कहानियों में शामिल किया जा सकता है।
यह एक दिलचस्प ऐतिहासिक तथ्य है कि जैक लण्डन अपने समय के दो महान
क्रान्तिकारियों का पसन्दीदा लेखक था। लेनिन की मृत्यु से दो दिन पहले उनकी पत्नी
क्रुप्सकाया ने उन्हें जैक लण्डन की कहानी लव ऑफ लाइफ पढ़कर सुनाई थी और उन्हें वह
बहुत अधिक पसन्द आई थी। भगतसिंह फाँसी की कोठरी में राजनीतिक अध्ययन के साथ-साथ
जिन साहित्यकारों की कृतियाँ बहुत चाव के साथ पढ़ रहे थे, उनमें चार्ल्स
डिकेंस, अप्टन सिंक्लेयर और मक्सिम गोर्की के साथ जैक लण्डन भी प्रमुख थे।
जैक लण्डन के उपन्यास 'आयरन हील' से वे बहुत अधिक प्रभावित हुए थे। अपनी जेल नोटबुक में (जो भगतसिंह
की शहादत के छह दशक से भी अधिक समय बाद अंग्रेजी और हिन्दी में प्रकाशित हो सकी
है) उन्होंने इस उपन्यास के कई उद्धरण दर्ज किये हैं। लियोन त्रात्स्की और हावर्ड
फास्ट सहित कई मार्क्सवादी लेखकों-आलोचकों ने क्रान्तिकारी यथार्थवाद के अग्रतम
पुरोधाओं में जैक लण्डन की गणना की है। जंगल उपन्यास के लेखक अप्टन सिंक्लेयर अपने
इस समकालीन लेखक के व्यक्तित्व, विचारों और कृतित्व से बहुत अधिक
प्रभावित थे। अप्टन सिंक्लयेर के सक्रिय समाजवादी बनने में जैक लण्डन के प्रभाव की
भी एक अहम भूमिका थी। जैक लण्डन 1896-97 में ही अमेरिकी सोशलिस्ट पार्टी के वाम
पक्ष से जुड़ चुके थे।
अमेरिका में साहित्य के अधिकांश गम्भीर पाठक आज भी जैक लण्डन की गणना
सर्वश्रेष्ठ अमेरिकी लेखकों में करते हैं और कुछ तो उन्हें इस कतार में पहले स्थान
पर रखते हैं। मार्क ट्वेन के बाद जैक लण्डन ही ऐसा अमेरिकी लेखक था, जो
अपने बीहड़, साहसिक, रोमानी जीवन, क्रान्तिकारी विचारों और नई लकीर
खींचनेवाली यथार्थवादी रचनाओं के चलते अपने जीवनकाल में ही जनसामान्य के बीच उतना
अधिक लोकप्रिय हो पाया। फर्क यह था कि अपनी रचनात्मक सक्रियता के शुरुआती चन्द
वर्षों के दौरान ही जैक लण्डन की प्रसिद्धि देशव्यापी हो चुकी थी। 1908 में
आयरन हील और 1909 में मार्टिन ईडन के प्रकाशन के बाद उसकी ख्याति पूरे यूरोप और रूस तक
पहुँच चुकी थी। उसकी हर कृति प्रकाशित होने के चन्द वर्षों के भीतर अधिकांश
यूरोपीय भाषाओं में अनूदित हो जाती थी। रूस में अक्टूबर क्रान्ति के पहले ही जैक
लण्डन लोकप्रिय हो चुका था। क्रान्ति के बाद 1919 में
मयाकोव्स्की ने उसके उपन्यास 'मार्टिन ईडन' पर आधारित नॉट
बॉर्न फॉर मनी नाम से बननेवाली फिल्म की न सिर्फ पटकथा लिखी, बल्कि
उसमें अभिनय भी किया। 1928-29 में 24 खण्डों में जैक
लण्डन की सम्पूर्ण रचनाएँ सोवियत संघ में प्रकाशित हुईं। जैक लण्डन की लगभग ऐसी ही
लोकप्रियता सभी पूर्वी यूरोपीय देशों में थी जहाँ उसकी रचनाओं के अतिरिक्त उनपर
बनी फिल्मों को भी लोगों ने काफी पसन्द किया। पोलैण्ड में 1909 से
लेकर 1990 तक जैक लण्डन की लोकप्रियता का आलम यह था कि हर वर्ष 'बेस्टसेलर'
किताबों
की सूची में उसकी कुछ किताबें शामिल होती थीं और स्कूली छात्रों तक की सबसे अधिक
संख्या जिस विदेशी लेखक से परिचित होती थी, वह जैक लण्डन ही
था। इस स्थिति में 1990 के बाद परिवर्तन आया जब अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय पूँजी के निर्बाध
वर्चस्व ने पोलैण्ड सहित समूचे पूर्वी यूरोप को विश्व मण्डी का एक अविभाज्य अंग
बना दिया। लेकिन इन बदली स्थितियों में इन देशों में सिर्फ जैक लण्डन की ही
लोकप्रियता नहीं घटी है। सभी महान लेखकों के साथ यह हुआ है कि उनके कृतित्व को
कचरा साहित्य ने ढाँप लिया है।
पश्चिम में सर्वहारा साहित्य के एक प्रवर्तक के रूप में जैक लण्डन ने
अपने जीवनकाल में ही विश्वव्यापी ख्याति अर्जित कर ली थी। उन्नीसवीं शताब्दी के
अन्त और बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में अमेरिकी पूँजीवाद के साम्राज्यवाद की
अवस्था में संक्रमण की अभिलाक्षणिकताएँ स्पष्ट हो चुकी थीं। इसके साथ ही साहित्य
में सामाजिक-राजनीतिक आलोचना की सघनता- तीक्ष्णता बहुत अधिक बढ़ गई थी। मार्क ट्वेन
ने अपनी साहित्यिक रचनात्मकता का पटाक्षेप साम्राज्यवाद-विरोधी पैम्फलेटों के लेखन
के साथ किया। 'मकरेकर्स' नाम से प्रसिद्ध लेखकों का ग्रुप सामाजिक अन्तर्विरोधों को उजागर
करने में ज़ोला की शैली के साथ डिकेन्स की वस्तुपरकता और मार्क ट्वेन की तीक्ष्ण
तिक्तता का संश्लेषण कर रहा था। विरासत के इसी सूत्र को थामकर जैक लण्डन, अप्टन
सिंक्लेयर और थियोडोर ड्रेज़र ने घोषित तौर पर सर्वहारा की पक्षधरता के साथ लेखन
की शुरुआत की। जैक लण्डन और अप्टन सिंक्लेयर ने सचेतन तौर पर समाजवाद की विचारधारा
को स्वीकार किया और राजनीति के क्षेत्र में भी सक्रिय हुए। उन्होंने पूँजीवादी
समाज के सभी बुनियादी अन्तर्विरोधों, बुर्जुआ जनवाद की वास्तविकता और
बुर्जुआ वर्ग की समस्त आत्मिक रिक्तता को अपनी रचनाओं में उजागर करने के साथ ही
मजदूर वर्ग की चेतना और संघर्षों के नये उभार को भी देखा तथा बुर्जुआ वर्ग और
सर्वहारा वर्ग के बीच के राजनीतिक संघर्ष की अपरिहार्यता पर बल देते हुए इसी में
मानवता का भविष्य खोजने की कोशिश की। इतिहास का सिंहावलोकन करते हुए आज यह बेहिचक
कहा जा सकता है कि मक्सिम गोर्की और जैक लण्डन वे पहले लेखक थे जिनकी रचनाओं में उन्नीसवीं शताब्दी के क्रान्तिकारी बुर्जुआ यथार्थवाद से
समाजवादी यथार्थवाद में संक्रमण को लक्षित किया जा सकता है।
हावर्ड फास्ट ने अपनी चर्चित आलोचनात्मक कृति साहित्य और यथार्थ में
लिखा है : "जिस समय जैक लण्डन 'आयरन हील' लिख रहे थे,
लगभग
उसी समय गोर्की ने 'माँ' लिखा। दोनों ही लेखकों ने स्वयं को सचेत रूप से अपने देश के अगुआ
दस्ते सर्वहारा वर्ग से जोड़ा-गोर्की ने रूस की सामाजिक जनवादी पार्टी से (जो बाद
में कम्युनिस्ट पार्टी बनी) तथा जैक लण्डन ने अमेरिका की समाजवादी पार्टी के वाम
पक्ष से (जो बाद में कम्युनिस्ट पार्टी बनी)। दोनों ही लेखक 1905 की
क्रान्ति में रूसी सर्वहारा वर्ग की अस्थायी हार से गम्भीर रूप से प्रभावित हुए। 'आयरन
हील' में जैक लण्डन ने उस उभरते फासिज्म का अविश्वसनीय चित्र खींचा जो
अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा वर्ग को कुचलकर मानव-सभ्यता के विकास को सैकड़ों वर्ष
पीछे धकेल देगा। लेकिन गोर्की क्योंकि संघर्ष के बीच में थे, इसलिए
वे भविष्य को अधिक आशान्वित रूप में देखते हैं।” हावर्ड फास्ट ने
जैक लण्डन की महत्ता के साथ ही यहाँ उसके उन अन्तर्विरोधों की ओर भी इंगित किया है
जो जीवन के आखिरी छह वर्षों के दौरान उसे निराशा के गर्त में धकेलने के साथ ही
समाजवादी विचार से भी दूर ले गये। जैक लण्डन के इन अन्तर्विरोधों के स्रोत उसके
जीवन में, उसके विचारों में और तत्कालीन अमेरिकी समाज में मौजूद थे। बहरहाल,
इन
अन्तर्विरोधों और विचलन के बावजूद यह तथ्य अपनी जगह पर कायम है कि जैक लण्डन
अमेरिकी साहित्य में यथार्थवादी परम्परा का एक मील का पत्थर और पश्चिम में
सर्वहारा साहित्य के प्रवर्तकों में से एक था।
पहले विश्वयुद्ध में अमेरिका की भागीदारी का समर्थन करने के बाद वह
अपने पुराने कामरेडों से और अधिक दूर हो गया। लेकिन इन सबके बावजूद, जैक
लण्डन की समाजवाद में आस्था और उत्पीड़ितों की पक्षधरता आखिरी साँस तक बनी रही।
समाजवाद की विजय के प्रति गहरी शंका के बावजूद, कम-से-कम एक
यूटोपिया के रूप में वह उसे लगातार अपनाये रहा। उसका तर्कशील मस्तिष्क पूँजीवादी
विश्व की भौतिक-आत्मिक शक्तिमत्ता और पूँजी के विश्वव्यापी वर्चस्व की व्याख्या के
लिए नीत्शे के नस्ली श्रेष्ठता के विचारों और सामाजिक डार्विनवाद के
प्रतिक्रियावादी सिद्धान्तों को अपनाने तक चला जाता था, लेकिन समाजवाद
के लिए संघर्ष का वह कभी भी विरोधी नहीं बना। उल्लेखनीय है कि निष्क्रिय होने के
बाद भी वह समाजवादी पार्टी का सदस्य बना रहा और 1916 में, अपनी
मृत्यु के ठीक पहले जब उसने पार्टी से इस्तीफा दिया तो कारण यह बताया कि अब पार्टी
की ‘लड़ाकू स्पिरिट' के बारे में उसके मन में सन्देह पैदा
हो चुका है। जैक लण्डन के जटिल मानस के जीवनपर्यन्त असमाधानित वैचारिक
अन्तर्विरोधों को समझने की दृष्टि से यह तथ्य बहुत गौरतलब है। यह अटकल लगाने के
पर्याप्त आधार हैं कि जैक लण्डन यदि 1917 की अक्टूबर क्रान्ति और उसके बाद की
दुनिया को देख पाता, यदि वह आखिरी मजदूर आन्दोलन के नये उभार और 1919 में
अमेरिकी कम्युनिस्ट पार्टी के गठन का साक्षी बन पाता, और यदि तीसरे
चौथे दशक में फासीवादी उभार तथा महामन्दी के संकट के काल में वह जीवित रहा होता तो
दुनिया शायद एक बार फिर उसके विचारों और कृतित्व में मार्क्स द्वारा नीत्शे और
स्पेंसर की पराजय होते देख पाती। बहरहाल, अटकल तो फिर भी अटकल है।
बचपन से कठिन जीवन, बीहड़ घुमक्कड़ी की तकलीफों और धुआँधार लेखन की दिनचर्या ने जैक लण्डन के खूबसूरत और मजबूत शरीर को पैंतीस की उम्र तक खोखला कर डाला था। 1914 में मेक्सिको यात्रा के दौरान उसे प्लूरसी और गम्भीर पेचिश ने धर पकड़ा। 1915 में तुर्की-यात्रा के दौरान गठिया ने प्रचण्ड हमला किया। पाँच माह तक हवाई में स्वास्थ्य लाभ भी किया, पर कोई खास फायदा नहीं हुआ। 1916 में घर लौटने के बाद गठिया के साथ ही 'यूरेमिया' (मूत्ररुधिरता) का भी प्रकोप हुआ और उसके बाद 'रेनल कॉलिक' (गुर्दे से जुड़ा उदरशूल) का हमला हुआ। अनिद्रा स्थायी समस्या बन चुकी थी। नवम्बर में 'इण्टस्टिंशियल नेफ्राइटिस' (गुर्दे की बीमारी) ने निर्णायक प्रहार किया। महज चालीस वर्षों का जीवन, लेकिन बेहद तूफानी, सर्जनाशील और प्रयोगों से भरा हुआ जीवन जीने के बाद, जैक लण्डन ने 22 नवम्बर, 1916 की शाम को आखिरी साँस ली। वह उत्तप्त-उद्दीप्त उल्कापिण्ड-सा जीवन बुझ गया और क्षितिज पर शेष रह गई प्रकाश की एक रेखा!
आयरन हील 1908 में प्रकाशित हुई। 1947 में
फिलिप ने इसे बीसवीं शताब्दी की शायद सबसे आश्चर्यजनक रूप से भविष्यद्रष्टा कृति
करार दिया। अब जबकि बीसवीं सदी का अन्त हो रहा है, हम पीछे मुड़कर
देखते हैं तो फिलिप का दावा अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं लगता; क्योंकि
हर बीते दशक के साथ यह किताब और अधिक मौजूं और जीवन्त लगती जाती है।
जब जैक लण्डन ने इसे 1906 में लिखा था तो 1905 की रूसी क्रांति को रूस के ज़ार की फौज, आतंकवादी गैंग और गुप्त पुलिस रौंद रही थी। शायद ही किसी को उम्मीद होगी कि इस पराजय से 1917 की विजयी रूसी क्रांति का जन्म होगा। वक्त बीतने के साथ हम उस मुकाम पर खड़े हैं जहां से कह सकते हैं कि वे हमारी शताब्दी की नियामक घटनाएं थीं। हम तो वैश्विक क्रांतियों और प्रतिक्रांतियों के दौर में जी रहे हैं जब भयानक दूरगामी संघर्ष जारी है, मानवजाति के भविष्य का निर्णय करने के लिए। यही वह महायुद्ध है जिसकी कल्पना 'आयरन हील' में की गई है। उपन्यास का विषय है — दरिद्रीकृत जनसमूह, जो दुनिया के अधिकांश काम निपटाता है, और विशेषाधिकार संपन्न अल्पमत, जो मुनाफों से गुलछर्रे उड़ाता है - के बीच अनिर्णीत तीन सौ वर्षों से जारी युद्ध।
जैक लण्डन की कुछ भविष्यवाणियां तो तत्काल प्रमाणित हो गईं। जुलाई 1908 में, इस
किताब के प्रकाशन के 5 महीने बाद ही, संयुक्त
राज्य अमरीका में एक राष्ट्रीय गुप्त पुलिस, जिसे उस वक्त 'ब्यूरो
ऑफ इन्वेस्टिगेशन' कहते थे, स्थापित कर दी गयी। 12 वर्षों
से कम समय बाद ही मेहनतकशों के राजनीतिक संगठनों के हिंसक दमन की इस पूर्व दृष्टि
को चरितार्थ कर दिया गया। 2 जनवरी, 1920 की
एक अकेली रात को अमरीका के न्याय विभाग के अटार्नी जनरल पामर के डेपुटी एडगर हूवर
नेतृत्व में एक साथ 70 शहरों में मज़दूरों पर आक्रमण किया
गया। उन्हें घरों से खींचकर पीटा गया, छापा-खाने
बर्बाद कर दिए गए और दस हजार सक्रिय कार्यकर्ता जेल में ठूंस दिए गए। चार साल बाद
ही हूवर को संस्था का सर्वेसर्वा बना दिया गया। अब नाम रखा गया-फैडरल ब्यूरो ऑफ
इन्वेस्टिगेशन (एफ़.बी.आई. जो आज भी काम करता है )।
इस बीच फासिज्म को (वह पूंजीवादी राजनीतिक सत्ता जिसकी इस किताब में
कल्पना की गई है) बेनिटो मुसोलिनी ने स्थापित कर दिया। यूरोप की जीत शुरू करते हुए 1922 में
मुसोलिनी ने रोम तक मार्च किया और इटली की सरकार को ध्वस्त कर सत्ता
सम्हाल ली। 1929 में यह किताब इटली में प्रकाशित हुई।
अनुवादक ने सम्हाल कर लिखी गई भूमिका में लिखा कि 'धनतंत्र और जनता
के बीच संघर्ष कौन जाने कब फूट पड़ेगा।' कुछ ही दिनों
में इस किताब के सस्ते संस्करण तथा जैक लण्डन की अन्य क्रांतिकारी कृतियों पर
प्रतिबंध लगा दिया गया, यह कह कर कि ये फासिज्म की सत्ता को
उखाड़ फेंकने के षड्यंत्र का हिस्सा हैं। किताब के डीलक्स संस्करण जारी रहे
क्योंकि सरकार तब तक उसे खतरनाक नहीं मानती थी जब तक वह सुसंस्कृत वर्गों के ही
हाथ में सीमित थी। ( यह खबर 10 अक्टूबर, 1929 को
न्यूयार्क टाइम्स में छपी थी।) तीन साल बाद, मिलान में, जहां
से यह किताब प्रकाशित हुई थी, मुसोलिनी ने घोषणा की, 'मैं
आज निर्मल अन्तरात्मा के साथ आप से कह रहा हूं-बीसवीं शताब्दी फासिज्म की शताब्दी
होगी ......।'
जैक लण्डन ने धनिकतंत्र की लोहे की एड़ी को इस तरह चित्रित किया है
जैसे उसके मॉडल रहे हों बीसवीं सदी के फासिस्ट राज्य — इटली, स्पेन, जर्मनी, पुर्तगाल, बुल्गारिया, रूमानिया, हंगरी।
जहां थे — गुप्त ज़ालिम पुलिस, अनियंत्रित सैन्यवाद, और
राज्य संचालित आतंक। लण्डन ने फासिज़्म का सारभूत तत्व यह बताया है — यह
वह रूप है जिसे पूंजीवादी राज्य तब अपनाता है जब धनिक अभिजन यह महसूस करने लगता है
कि मज़दूर क्रांति से उनकी आर्थिक-राजनीतिक सत्ता को खतरा है।
आज ऐसे लोग हैं जो सोचते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध में फासिज्म और
नात्सीज़्म को दफन कर दिया गया था। ऐसे ही लोगों को फ्रेंच कवि एमे. सेज़ैर 'डिसकोर्स
ऑन कोलोनियलिज्म' में नात्सीवाद का 'साझेदार' कहता है क्योंकि
ऐसे लोग फासिज्म को ग़ैर यूरोपीय सन्दर्भों में माफ करते हैं, उसके
प्रति आंख मूंद लेते हैं, उसे न्यायसंगत ठहराने लगते हैं। तभी तो
चिली की पिनोशे सरकार, ईरान के शाह, चिआंग
काइ शेक, हैती के राष्ट्रपति यूवालिए, पाकिस्तान के
जनरल ज़िया, वियतनाम के जरनल थिड और की, फिलीपीन्स के
मारकोस, निकारागुआ के सोमोज़ा, इजिप्ट के शाह फैज़ल, क्यूबा
के बतिस्ता, मोरक्को के शाह, सऊदी अरब के शाही परिवार, परागुए
के स्त्रोसनर और आज की कुछ सरकारों जैसे अर्जेंटीना, ब्राजील, जाएरे, इन्डोनेशिया, दक्षिण
कोरिया और दक्षिण अफ्रीका को, जहां की सत्तासीन पार्टी के नेता
स्पष्ट कहते हैं कि उनके 'क्रिश्चियन नेशनलिज्म' का
वही मतलब है जो इटली में फासिज्म और जर्मनी में नात्सीज़्म को स्वतंत्र विश्व (द
फ्री वर्ल्ड) का अंग करार दिया जाता है।
स्वयं अमरीका में, जहां 'आयरन हील' घटित
होती है, लण्डन की भविष्यवाणियां एकदम प्रासंगिक लगती हैं। 1961 में
जोसेफ़ हेलर ने (विख्यात) कैच-22 में दिखाया कि पराजित दिखने वाली
फासिस्ट सत्ताएं वास्तव में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमरीका में उदित
सैन्य-औद्योगिक तंत्र में कैसे विजयी दिखती हैं। उनकी 'पुलिस के झुंड' हर
कहीं नियंत्रण करते दिखते हैं। मुसोलिनी की बहुत सी बातें अमरीकी नेताओं में
समाहित लगती हैं। 1960 और 70 के दशक की
घटनाएं ' आयरन हील' को वापस घर लाती लगती हैं।
लण्डन ने पूर्वापेक्षा की है कि अपेक्षतया सुविधा सम्पन्न मज़दूर
वर्ग आकर्षक उपनगर बसाएगा और जहां दरिद्रता के चरम अंधकार में ढकेल दिए गए
बेरोज़गार और निकृष्ट मज़दूर रहते हैं वे शहर के केन्द्रीय इलाके घेट्टो (मलिन
बस्तियां) बन जाएंगे। अशिक्षा और अज्ञान फैलाने के लिए वहां जानबूझकर शिक्षा न
पहुंचने देने का षड्यंत्र किया जाएगा। भोजन, स्वास्थ्य
सेवाएं और आवास इतना मंहगा कर दिया जाएगा कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की पहुंच के
बाहर हो जाय। सरकार विरोधी हर संगठन में गुप्त, ज़ालिम पुलिस की
घुसपैठ कर दी जाएगी, एक स्थायी टुकड़खोर सेना स्थापित होगी, सरकार
स्वयं बम विस्फोट आदि के षड्यंत्र करेगी, विरोधी नेताओं, शिक्षकों, लेखकों
को घेरने के चक्कर में पुस्तकों पर प्रतिबंध लगेगा, छापेखाने नष्ट
किए जाएंगे और उनका चरित्र हनन किया जाएगा। उनमें से कुछ को जेल भेजा जाएगा; कुछ
ऐसे विरोधियों की, जो जनक्रांति के अगुआ लगेंगे, उनकी हत्या की
जाएगी और शहरों में भाड़े की फौज और गुरिल्ला सैनिकों के बीच संघर्ष होगा। 1960 के
दशक के अंत तक (इस किताब के प्रकाशन के कुछ ही दिनों बाद) संगठित एफ.बी.आई. वैसी
ही दिखने लगी थी जैसी गुप्त पुलिस की उपन्यास में कल्पना की गई है। उसके एजेन्ट
नागरिक अधिकार के कार्यकर्ताओं, युद्ध विरोधियों और सरकार विरोधी
नेताओं पर आक्रमण और उनकी हत्या की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में शामिल होने
लगे थे। यह संगत ही लगता है कि फेडरल और राज्य पुलिस द्वारा मार्क क्लार्क और
फ्रेड हैम्पटन की सोते में निर्मम हत्या उसी शिकागो में की गई जहां धनिक तंत्र के
टुकड़खोरों की गुप्त सेना द्वारा निम्नतम पायदान के जन के
महाविद्रोह की क्रूर हत्या की जैक लण्डन ने कल्पना की थी।
अस्तित्व के संकट के समय पूंजीवाद कितना हिंस्र और भयानक हो सकता है
इसे अपने समकालीन बुद्धिजीवियों में जैक लण्डन ने सबसे ज़्यादा समझा था। इन्हीं
भविष्यवाणियों की वजह से यह किताब समाजवादी प्रेस में भी निन्दित की गई थी। लेकिन लण्डन
की सबसे उल्लेखनीय अन्तर्दृष्टि यह नहीं थी। उसकी सबसे अंतर्दृष्टि- संपन्न
भविष्योक्ति थी - पूंजीवादी वर्ग की रणनीति के बारे में। वह रणनीति जो उसे आने वाले
दशकों के दौरान उसकी सत्ता को बहाल रखेगी। उसकी भविष्योक्ति है कि शासक वर्ग अपने
महामुनाफे का इस्तेमाल मज़दूर वर्ग के एक हिस्से को खरीद लेने, उसे
समन्वित करने में खर्च करके उसे ' श्रमिक वर्ग के
अभिजात' में रूपान्तरित कर देगा। वह पूरे मज़दूर वर्ग को नियंत्रित करने का
काम करेगा। यह अवधारणा मार्क्सवाद और अमरीकी मज़दूर आंदोलन के इतिहास के लिए एक दम
नई नहीं थी। फिर भी 1937 में त्रात्स्की को कहना पड़ा था 'आयरन
हील जब प्रकाशित हुआ तब तक एक भी मार्क्सवादी क्रांतिकारी ने ... वित्तपूंजी और
श्रमिक अभिजाततंत्र (लेबर ऐरिस्टोक्रेसी) के बीच खतरनाक संश्रय के परिप्रेक्ष्य की
ऐसी भरपूर कल्पना नहीं की थी।'
आखिर लण्डन ऐसी स्तब्धकारी दृष्टि तक पहुंचा कैसे ? मेरे
ख्याल से उत्तर स्वयं उसके जीवन के भिन्न सामाजिक वर्गों के
परस्पर अन्तर्विरोधी अनुभवों में मिलेगा। उसका बचपन दुर्दान्त वंचना में मेहनत
करते बीता। उसकी पहली वर्ग पहचान स्लम और फैक्ट्री में बनी। फैक्ट्री की कमरतोड़
मेहनत से भागकर 15 की उम्र में वह सानफ्रांसिस्को की
खाड़ी में सीपियों का एक सबसे साहसी लुटेरा बन गया। इस दौरान एक से एक दंगे थे, पंगे
थे, दारू के दौर थे, पर साथ ही थी स्वयं-शिक्षा। उसने
कल्पना कर ली कि मानो सीधे नीत्शे की कल्पना वाला सर्वजेता सुपरमैन वही है। उसे
समाजवाद की ओर मोड़ा न्यूयार्क की क़ैद के अनुभव ने, जहां उसकी
सुपरमैन की कल्पना को राज्य की 'लोहे की एड़ी' (आयरन हील) ने
रौंद डाला। 'मैं समाजवादी कैसे बना' (1903) में उसने स्पष्ट
किया कि कोई भी आर्थिक तर्क, समाजवाद की अनिवार्यता के बारे में कोई
भी सुन्दर प्रस्तुति, मुझे इतनी अच्छी तरह तुष्ट नहीं करती
जितनी मुझे मेरे चारों ओर उठी समाज के गड्ढे की दीवारों ने सिखाया, जिसमें
मैं नीचे धंसता ही जा रहा था— नीचे और नीचे |
जाहिर है उपन्यास में उसकी भूमिका को चरितार्थ करने वाला शक्तिशाली
समाजवादी नेता अर्नेस्ट एवरहार्ड उसी नायक का प्रक्षेपण है जो जैक लण्डन खुद बनना
चाहता था। एवरहार्ड शारीरिक रूप से जैक लण्डन का ही प्रतिरूप है। वह, वे
ही प्रभावी भाषण देता है, जो लण्डन ने स्वयं दिए थे। लेकिन जो
एवरहार्ड को लण्डन का एकमात्र प्रतिरूप देखते हैं वे इस उपन्यास को समझने में
चूकते हैं। कैद में पियक्कड़ी के कुंठाग्रस्त दौरों में, दस
पैसे घन्टे में फैक्ट्रियों में मशक्कत करते समाज के गड्ढे में धंसे, पूंजीवादी
समाज के निकृष्टतम लोग भी लेखक का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरी ओर 1906 में, जब
जैक लण्डन अमरीका के सबसे ज्यादा कमाने वाले लेखकों में एक हो गया था, तो
वह अंदर से समझ सकता था कि 'लेबर अरिस्टोक्रेसी' होने
की क्या अर्थवत्ता है। उपन्यास की सबसे उद्घाटक विडम्बना और आगे तब जाती है जब लण्डन
क्रांतिकारियों की एक भूमिगत शरणस्थली को एक सबसे धनी और बुरे पूंजीपति के रैंच
में रचता है। वास्तव में वह रैंच स्वयं लण्डन का था। लण्डन की विचित्र भविष्य
दृष्टि का उत्स थी उसकी अपने ही स्व में यथार्थ का अन्वेषण और प्रक्षेपण - पूंजीवादी
समाज के जीवन में अतिरेकों से जन्मे अन्तर्विरोधों से निर्मित और विखंडित स्व।
बहरहाल इस उपन्यास में लण्डन अपने आप स्वयं ऊपर उठ जाता है। हालांकि
हीरो एवरहार्ड है पर हमारी दिलचस्पी धीरे-धीरे वर्णनकर्ता उसकी पत्नी एदिल, जो
एक कुशल और होशियार क्रांतिकारी नेता के रूप में विकसित होती जाती है, पर
केंद्रित हो जाती है। उपन्यास वास्तव में लण्डन के समाजवादी मित्रों को चेतावनी
थी कि उनका मतपत्रों पर ही पूरी तरह निर्भर रहने की रणनीति, एक
धोखे भरा भ्रम मात्र है। एवरहार्ड का पूंजीपतियों के सामने दहाड़ने का अतिरेक भी
उतना ही खतरनाक साबित होता है। जैसे ही लोहे की एड़ी अपनी
सत्ता सुगठित कर लेती है क्रांतिकारियों को एक जटिल भूमिगत तंत्र विकसित करना
पड़ता है जिसे कार्यान्वित करती है एविस (जिसका अर्थ होता है चिड़िया)।
लण्डन के श्वेत श्रेष्ठता के विचार उतने ही अनुपस्थित हैं जितने
पुरुष श्रेष्ठता के | जापानी सर्वहारा को क्रांतिकारी
समाजवादी के रूप में देखा गया है। मैक्सिको के कामरेड इतने शक्तिशाली हैं जितने कि
आयरन हील सोच भी नहीं सकता था, शिकागो की उथल-पुथल की ओर भागी जा रही
ट्रेन की मिश्रित (मुलाटो) परिचारिका एक गुप्त क्रांतिकारी एजेन्ट है, फिर
भी अपने समकालीन समाजवादी कामरेडों की तरह लण्डन भी अभी यह समझ पाने से दूर था कि
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विश्व के अश्वेत लोग क्रांतिकारी शक्तियों का
नेतृत्व करने वाले हैं।
'आयरन हील' भयानक स्पष्टता के साथ उस संघर्ष की बर्बरता प्रस्तुत करती है जिसमें हम लिप्त हैं। जब हम शिकागो के संघर्ष का प्रखर चित्रण पढ़ते हैं तो हम उसे उपन्यास के सपाट प्राक्कथन और बेजान फुटनोट की अपेक्षा ज्यादा गहराई से समझ पाते हैं। लण्डन हमें बताते हैं कि पूंजीवादी समाज के उस दौर में जब पूंजीवाद आन्तरिक अन्तर्विरोधों से ग्रस्त है, उतनी भयानक लड़ाई लड़नी पड़ेगी जितनी कि उपन्यास के क्रांतिकारियों को लड़नी पड़ी थी, ताकि हमारे चेहरों को रौंदने की उद्धत घोषणा पूरी न हो सके।
Comments
Post a Comment