उज़बेक लोक कथा - क्रूर बादशाह
उज़बेक लोक कथा - क्रूर बादशाह
बहुत समय पहले एक देश में क्रूर बादशाह राज करता था। एक बार पता नहीं क्यों उसने एक नया हुक्म जारी किया :
“जिस आदमी के घर में कोई आदमी मरे उस घर का
मालिक उसकी लाश उठाकर छत पर ले जाये और एक छत से दूसरी पर होकर ही क़ब्रिस्तान तक
लेकर जाये। जो कोई इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा, उसे
मौत की सजा दी जायेगी।”
उस देश में एक
बहुत बूढ़ा कत्थक रहता था,
जिसके सारे बाल पक चुके थे। वह बादशाह के पास गया।
“तुम यहाँ किस लिए आये हो?”
कत्थक बोला :
“क्या प्रजा भूख, ग़रीबी और तुम्हारे अत्याचारों से कम परेशान है, जो तुमने एक नया बेतुका हुक्म जारी किया है? मरे हुए को दफ़नाने के लिए उसके रिश्तेदार पांच और कई
बार तो दस-दस दिन तक परेशान होते हैं। तुम्हें इस में क्या आनंद आता है?”
बादशाह आग-बबूला
हो उठा।
“लोग कहते हैं कि बूढ़े बुद्धिमान होते हैं,” वह बोला।
“पर वास्तव में यह झूठ है कोई सिरफिरा बूढ़ा
आकर मुझे सीख दे रहा है। इसे पकड़कर फ़ौरन फांसी दे दो!” उसने जल्लादों को बुलाकर हुक्म दिया।
इसके बाद बादशाह
ने एक नया हुक्म निकाला :
“सब सफ़ेद दाढ़ीवाले बूढ़ों के सिर धड़ से
अलग कर दिये जायें।"
जल्लाद हर घर में
घुसकर सफ़ेद दाढ़ीवाले बूढ़ों को पकड़कर उनके सिर काटने लगे। कुछ बूढ़ों ने भागकर
अपनी जान बचाई, कुछ तहखानों और तलघरों में छिप गये। जिसे
जहाँ जगह मिली, वह वहीं छिप गया, ताकि उसे कोई ढूंढ न पाये।
एक बार बादशाह ने
तीस वर्ष तक की आयु के सैनिकों को कूच के लिए तैयार होने का हुक्म दिया।
“और जिसे इकतीसवां वर्ष लग
चुका है, उसे छोड़ दिया जाये! ऐसे लोग कमजोर होते हैं,”
उसको सूझी।
बादशाह का एक वजीर
था। वह बादशाह को समझाने लगा :
“हुजूर, आपने
क्यों ऐसा हुक्म निकाला?”
पर बादशाह तो सहन
ही नहीं कर पाता था कि कोई उसे रोके-टोके या सीख दे।
“अरे,
बेवकूफ़ तुम क्या समझोगे?” वह वजीर पर टूट पड़ा।
“फिर कभी मुझे सीख देने की हिम्मत मत करना।
अगर तुमने दूसरी बार ऐसा कहा,
तो तुम्हारे मुंह में
पिघला हुआ सीसा भरवा दूँगा।”
एक दिन बादशाह ने
अपनी सेना के साथ कूच किया। बादशाह के सिपाहियों में जाकिर नाम का एक नौजवान था।
उसका पिता अस्सी साल का बूढ़ा था। उन दिनों जब बादशाह के हुक्म से पैंतालीस वर्ष
से ज्यादा उम्र वालों के सिर काटे जा रहे थे,
जाकिर ने अपने पिता को
छिपा दिया था।
बादशाह की फ़ौज के
कूच करने से पहले जाकिर अपने पिता से मिलने आया। बूढ़ा बोला : “मेरे प्यारे बेटे,
तुम जाओगे, तो वापस लौटकर आ सकोगे या नहीं, कोई नहीं जानता। तुम्हारे सिवा मेरा और कौन है जो मुझे
खाना खिलाये और मेरा खयाल रखे। तुम्हारे जाने के बाद मैं किस तरह जिन्दा रह पाऊँगा? तुम बादशाह के पास जाकर कह दो कि वह मुझे मार डाले।
मुझे दफ़नाकर तुम बेफ़िक्र होकर चले जाना। या फिर मुझे अपने साथ ले चलो।” जाकिर अपने पिता को ऐसी हालत में न छोड़ सका। उसने एक
संदूक बनाया और उसमें अपने पिता को बन्द करके साथ ले गया।
बादशाह अपनी फ़ौज
के साथ बहुत दूर के एक देश पर चढ़ाई करने निकला। चलते- चलते वे लोग ऊँचे पहाड़ों
के पास पहुँचे। पहाड़ों की तलहटी में एक बहुत बड़ी नदी बहती थी। उसका पानी बड़े
शोर और गरज के साथ बह रहा था। बादशाह ने अपनी फ़ौज को नदी के किनारे पड़ाव डालने
का हुक्म दिया।
शाम को बादशाह ने
एक आश्चर्यजनक प्रकाश देखा। नदी के तल में रात के अंधेरे में जगमगाते तारों की तरह, दो बड़े हीरे चमक रहे थे।
बादशाह ने एक
सिपाही को ग़ोता मारकर नदी के तल में से हीरे निकाल लाने का हुक्म दिया।
सिपाही ने गहरे
पानी में गोता लगाया पर वह वापस न लौटा। बादशाह ने दूसरे सिपाहियों को बुलाया। उन
सब ने एक-एक करके गोता लगाया,
पर उनमें से कोई भी पानी
के ऊपर वापस नहीं दिखाई दिया।
एक सिपाही ने
बादशाह का विरोध करने का साहस किया।
“हुजूर,” वह बोला,
“इतने गहरे पानी में नदी
के तल तक पहुँच पाना असंभव है। हम लोग बेकार ही क्यों अपनी जान खोयें?”
“अरे, बेवक़ूफ़,” बादशाह
चिल्लाया, “अगर नदी गहरी होती, तो क्या उसके तल में पड़े हीरे दिखाई पड़ते? जबान खोलने के लिए तुम्हारा सिर काट डाला जायेगा।
जल्लादो, यहाँ आओ!”
सिपाही का सिर काट
डाला गया।
बादशाह ने दूसरे
सिपाहियों को भी नदी में गोता लगाने के लिए मजबूर किया।
जब ज़ाकिर की नदी
में गोता लगाने की बारी आनेवाली थी,
तो वह भागकर अपने खेमे
में पहुँचा और सन्दूक़ खोलकर रोते हुए कहने लगा :
“अलविदा, अब्बाजान
मुझे माफ़ करना, मुझे बुरा मत समझना!”
“क्या हुआ, बेटा?” घबराये हुए पिता ने पुछा।
जाकिर ने अपने
पिता को बादशाह के हुक्म के बारे में बताया और यह भी बताया कि अब तक कितने लोग
मारे जा चुके हैं। थोड़ी देर सोचने के बाद बूढ़ा बोला :
“क्या, नदी के किनारे कोई पेड़ है?”
“जी है।” बेटे ने
जवाब दिया।
“तब हीरे नदी में
नहीं, पेड़ पर हैं। पानी में सिर्फ़ उनकी परछाई
नज़र आ रही है! बेटा, तुम वह जगह अच्छी तरह देख लेना और जब
तुम्हारी बारी आये, तो भागकर पेड़ के शिखर पर चढ़ जाना। हीरे
चिड़िया के घोंसले में रखे हैं। उन्हें अपनी कमर में बांधकर तुम वहीं से नदी में
छलांग लगाना और फिर किनारे पर आना।”
जाकिर पिता से
विदा होकर बादशाह के पास आया। बादशाह ने उसे नदी में गोता लगाकर हीरे लाने का
हुक्म दिया।
जाकिर पेड़ की
तरफ़ भागा और उसके ऊपर चढ़ गया।
“तुम पेड़ पर
क्यों चढ़े?” बादशाह चीखा।
“हुजूर, मैं ज्यादा गहरा गोता लगाने के लिए पेड़ के शिखर से
कूदूँगा। हीरे अगर ज़मीन के नीचे भी छिपे हुए हों, तो
भी मैं उन्हें निकालकर ले आऊँगा।”
पेड़ पर चढ़कर
जाकिर ने देखा : चिड़िया के घोंसले में दो हीरे चांदनी में झिलमिल रहे हैं। उसने
फ़ौरन उन्हें उठाकर अपनी कमर में बांध लिया और वहाँ से पानी में छलांग लगाकर ग़ायब
हो गया। जब जाकिर अपने पिता के पास था,
तो बादशाह ने एलान किया था
:
“जो कोई बिना हीरे
लिये पानी से बाहर आयेगा,
उसकी खाल उधेड़ दूँगा।”
थोड़ी देर में
जाकिर पानी में से निकला और उसने दोनों हीरे बादशाह को दे दिये।
“शाबाश!” बादशाह
ने उसकी तारीफ़ की और पीठ थपथपायी।
सुबह बादशाह की
फ़ौज नदी के किनारे-किनारे आगे बढ़ी। एक जगह उन लोगों को बहुत सारी चींटियाँ दिखाई
पड़ीं।
“यहाँ चींटियाँ
क्यों चल रही हैं? ये क्या कर रही हैं?” बादशाह ने पूछा।
पर कोई भी जवाब न
दे पाया। बादशाह बोला :
“मैं रोजाना दो आदमियों से यह सवाल पूछूंगा!
जिसका जवाब मुझे अच्छा लगेगा उसे इनाम दूँगा और जिसका जवाब मुझे पसंद नहीं आयेगा, उसका सिर कटवा दूँगा।” बादशाह का हुक्म सुनकर जाकिर फिर
अपने पिता के पास आया और उन्हें यह बात बतायी।
बूढ़ा बोला :
“तुम बादशाह के
पास जाओ और कहो कि तुम उसके सवाल का जवाब देना चाहते हो। कहो, 'नदी के पेंदे में घी का खाली बर्तन पड़ा है, इसलिए यहाँ चींटियाँ इकट्ठी हो रही हैं।' और अगर बादशाह बर्तन निकालकर लाने को कहे तो कहना, “अभी लेकर आता हूँ।” इसके बाद पेड़ पर चढ़कर निशाना लगाकर बादशाह पर तीर
चलाना। निशाना ऐसा लगाना कि तीर सीधा उसके मुंह में लगे और वह फ़ौरन मर जाये। इस
एक आदमी के कारण कितने आदमी बेकार ही मारे गये!”
जाकिर बादशाह के
पास पहुँचकर बोला :
“मैं आपके सवाल का जवाब दूँगा। हुजूर, नदी के पेंदे में घी का एक खाली बर्तन पड़ा है, इसलिए चींटियां यहां मंडरा रही है।”
बादशाह आग-बबूला
हो उठा।
“घी का खाली बर्तन पानी में पड़ा है, फिर चींटियाँ यहाँ क्यों चक्कर लगा रही हैं? जवाब हमें पसंद नहीं! बादशाह ने कहा और जल्लादों को
बुलाकर जाकिर का सिर काटने का हुक्म दिया।
जाकिर ने मिन्नत
की :
“हुजूर, अगर
आप इजाजत दें तो मैं पानी में से घी का खाली बर्तन लाकर आपको दिखाऊँ?”
“ठीक है, लाकर
हमें दिखाओ।”
जाकिर फ़ौरन भागकर
पेड़ पर चढ़ गया और एक मजबूत डाल पर बैठकर,
उसने बादशाह के मुँह का
निशाना लगाकर तीर छोड़ा। तीर सीधा बादशाह के मुँह में लगा और आरपार हो गया।
बादशाह ढेर हो
गया।
जब जाकिर पेड़ पर
से उतरा तो सारे सिपाहियों ने भागकर उसे अपने गले लगा लिया और खुशी से बोले :
“तुमने बहुत ही अच्छा किया!”
जाकिर बोला :
“यह मैंने नहीं मेरे अब्बाजान ने किया है।
बड़े अफ़सोस की बात है कि इस क्रूर बादशाह के कारण इतने लोग मारे गये।”
सारे सिपाही
बुद्धिमान बूढ़े के पास पहुंचे और उन्हें क्रूर बादशाह से छुटकारा दिलवाने के लिए
धन्यवाद दिया और बड़ी इज्जत के साथ अपना बादशाह बना लिया।
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