बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी: संकटग्रस्त पूँजीवाद के भीतर लोभ-लालच, सट्टेबाज़ी और अपराध को बढ़ावा देने के नये औजार
बिटकॉइन और क्रिप्टोकरेंसी: संकटग्रस्त पूँजीवाद के भीतर लोभ-लालच, सट्टेबाज़ी और अपराध को बढ़ावा देने के नये औजार
आनन्द सिंह
हाल के वर्षों में भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में खाते-पीते लोगों के बीच बिटकॉइन और अन्य क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके पैसे से पैसा बनाने की एक नयी सनक पैदा हुई है। इस सनक को बढ़ावा देने का काम इण्टरनेट, सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों ने किया है जिनमें लोगों को बिना मेहनत किये रातों-रात अमीर बन जाने के सब्ज़बाग़ दिखाये जाते हैं। इन विज्ञापनों में लोगों को बताया जाता है कि क्रिप्टोकरेंसी में निवेश करके वे बैंक और शेयर बाज़ार में किये गये निवेश के मुक़ाबले कई गुना ज़्यादा पैसा बना सकते हैं। ऐसे में ताज्जुब की बात नहीं है कि हाल के वर्षों में दुनिया के तमाम देशों की ही तरह भारत के खाते-पीते लोगों ने इस देश के मज़दूरों के निर्मम शोषण से जमा की गयी पूँजी को क्रिप्टोकरेंसी में जमकर निवेश किया है। इस प्रक्रिया में कुछ लोगों ने ख़ूब पैसे कमाये भी हैं जिसकी वजह से अन्य लोगों को यह उम्मीद रहती है कि उनके भी वारे-न्यारे हो जाएँगे। लेकिन बहुतेरे इस जुए में बर्बाद भी हुए हैं। साथ ही हमेशा की तरह इस निवेश में धोखाधड़ी और घोटाले भी आने शुरू हो गये हैं। पूँजीवाद की उम्र बढ़ाने के लिए समर्पित तमाम आर्थिक विशेषज्ञ लम्बे समय से क्रिप्टोकरेंसी में अनियंत्रित निवेश और सट्टेबाज़ी के ख़तरों को लेकर सरकार को आगाह करते आये हैं। आरबीआई ने 2018 में क्रिप्टोकरेंसी पर पाबन्दी भी लगायी थी, लेकिन मार्च 2020 में उच्चतम न्यायालय ने इस पाबन्दी को असंवैधानिक करार दिया था जिसके बाद क्रिप्टोकरेंसी में निवेश में ज़बर्दस्त उछाल देखने में आया। एक अनुमान के मुताबिक़ अब तक 10 करोड़ से भी ज़्यादा भारतीयों ने क्रिप्टोकरेंसी में 75 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश किया है। इस वजह से क्रिप्टोकरेंसी का बुलबुला फूलता जा रहा है, लेकिन यह कोई भीषण संकट का रूप ले इससे पहले भारत सरकार क्रिप्टोकरेंसी में होने वाले निवेश को प्रतिबन्धित या विनियमित करने के लिए नया क़ानून बनाने जा रही है।
क्रिप्टोकरेंसी है क्या और यह काम कैसे करती है?
क्रिप्टोकरेंसी एक प्रकार की डिजिटल मुद्रा (करेंसी) है जिसे क्रिप्टोग्राफ़ी की तकनीक के ज़रिये सुरक्षित बनाया जाता है। हम आगे देखेंगे कि आजकल क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल मुद्रा के रूप में कम और सट्टेबाज़ी व निवेश के रूप में ज़्यादा हो रहा है और इसे सही मायने में मुद्रा नहीं कहा जा सकता है। बिटकॉइन क्रिप्टोकरेंसी का एक उदाहरण है। इण्टरनेट पर बिटकॉईन के अलावा दुनिया में इस समय 6000 से भी अधिक क्रिप्टोकरेंसी उपलब्ध हैं, मसलन इथीरियम, लाइटकॉइन, रिपल और मोनेरो आदि। बिटकॉइन की खोज सातोशी नाकामोतो 2008 में एक रहस्यमयी व्यक्ति (या व्यक्तियों के एक समूह) ने की थी जिसकी पहचान अब तक उजागर नहीं हुई है। बिटकॉइन व अन्य क्रिप्टोकरेंसी की विशेषता यह है कि यह दुनिया के किसी भी देश, बैंक या किसी भी संस्था द्वारा विनियमित नहीं होती। इस प्रकार यह एक विकेन्द्रीकृत मुद्रा है जो किसी केन्द्रीय संस्था या बैंक द्वारा नहीं बल्कि ब्लॉकचेन नामक तकनीक की बदौलत कम्प्यूटर नेटवर्क के ज़रिये संचालित होती है।
आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा का लेनदेन प्राय: बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थाओं के ज़रिये होता है जिसमें बैंक व वित्तीय संस्थाएँ अपने सभी खाताधारकों के बही-खातों का प्रबन्धन करते हैं। चूँकि ये संस्थाएँ सरकार द्वारा विनियमित की जाती हैं इसलिए इनके ज़रिये मुद्रा का लेनदेन करने की इस प्रणाली में लोगों का भरोसा बना रहता है। लेकिन अगर कोई ऐसी तकनीक विकसित हो जो लोगों के बीच होने वाले लेनदेन से सम्बन्धित बही-खातों का स्वत: ही पारदर्शी ढंग से प्रबन्धन करती हो तो इस काम के लिए किसी बैंक या वित्तीय संस्था की ज़रूरत ही नहीं होगी। ब्लॉकचेन ऐसी ही एक तकनीक है जिसके ज़रिये क्रिप्टोकरेंसी का लेनदेन भरोसेमन्द तरीक़े से किया जा सकता है। इस प्रकार बिना किसी सांस्थानिक हस्तक्षेप के ज़रिये लेनदेन किये जा सकते हैं और इसमें समय व धन दोनों की बचत भी होती है। इस तकनीक में बही-खाते किसी केन्द्रीय संस्था के पास नहीं रहते बल्कि इस नये माध्यम से मुद्रा का लेनदेन करने वाले सभी लोगों के पास डिजिटल रूप में उपलब्ध होते हैं। इस क़िस्म का ऑनलाइन लेनदेन करने वाले सभी लोग इण्टरनेट के माध्यम से एक विशेष प्रकार के कम्प्यूटर नेटवर्क (पियर-टू-पियर या डिस्ट्रीब्यूटेड नेटवर्क) से जुड़े होते हैं जिसमें डेटा किसी एक सर्वर पर नहीं बल्कि नेटवर्क के सभी कम्प्यूटरों पर मौजूद होता हैं। इस प्रक्रिया से होने वाले लेनदेन को सुरक्षित बनाने के लिए ‘डिजिटल सिग्नेचर’ और क्रिप्टोग्राफ़ी की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे लेनदेनों के सत्यापन की प्रक्रिया ‘बिटकॉइन माइनिंग’ का अंग है जो जटिल गणितीय समीकरणों को हल करने की कुशलता की माँग करती है। इस कुशलता से लैस विशेषज्ञों को ‘बिटकॉइन माइनर्स’ कहते हैं। बिटकॉइन नेटवर्क में जब भी कोई लेनदेन होता है तो नेटवर्क में उपस्थित सभी ‘माइनर्स’ को अधिसूचना भेजी जाती है। जो ‘माइनर’ लेनदेन का सत्यापन सबसे पहले करता है उसके खाते में एक निश्चित मात्रा में बिटकॉइन चले जाते हैं। इस प्रकार ‘माइनर्स’ न सिर्फ़ बिटकॉइन का सत्यापन करते हैं, बल्कि वे उनका निर्माण भी करते हैं। बिटकॉइन नेटवर्क में होने वाले कई लेनदेनों को मिलाकर एक ब्लॉक बनता है। ये ब्लॉक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, इसी वजह से इस तकनीक को ब्लॉकचेन कहते हैं। हर ब्लॉक पर अपने पिछले ब्लॉक की पहचान दर्ज होती है और इस प्रकार सभी ब्लॉक एक श्रृंखला में जुड़े होते हैं। ब्लॉकचेन की इस तकनीक को हैक करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि हैकर को सिर्फ़ एक ब्लॉक में नहीं बल्कि बिटकॉइन की शुरुआत से लेकर अबतक के सभी ब्लॉकों में छेड़छाड़ करनी होगी जोकि लगभग असम्भव है।
आज क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल किस रूप में हो रहा है?
क्रिप्टोकरेंसी की शुरुआत 2007-8 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद हुई थी और इसे भविष्य की विश्वव्यापी मुद्रा के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है। अराजकतावादी और ‘लिबर्टेरियन’ विचारों से प्रभावित कई लोग इसका समर्थन इसलिए करते हैं क्योंकि यह किसी सरकार या वित्तीय संस्था के नियंत्रण में नहीं है। लेकिन एक दशक से भी ज़्यादा का समय बीतने के बावजूद आज बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी का मुद्रा के रूप में बेहद सीमित इस्तेमाल ही हो रहा है और ज़्यादातर इसका इस्तेमाल सट्टेबाज़ी या निवेश के एक माध्यम के रूप में हो रहा है। पूँजीवाद के दायरे में क्रिप्टोकरेंसी जैसी चीज़ कभी भी अन्य मुद्राओं की जगह ले पायेगी यह मुमकिन नहीं लगता। ऐसा इसलिए क्योंकि केवल ऐसी ही चीज़ मुद्रा के रूप में काम कर सकती है जो एक ऐसे सार्वभौमिक समतुल्य का काम कर सके जिसके सापेक्ष अन्य मालों के मूल्य (सामाजिक रूप से आवश्यक श्रमकाल) को मापा जा सके और जो साथ ही साथ विनिमय के माध्यम का भी काम कर सके यानी जिसके ज़रिये चीज़ों को ख़रीदा-बेचा जा सके। ग़ौरतलब है कि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी के मूल्य का किसी देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य से कोई रिश्ता नहीं होता है, बल्कि इसका मूल्य इसपर हो रही अटकलबाज़ी के आधार पर बहुत ही तेज़ी से कम या ज़्यादा होता रहता है। इसके मूल्य की यह अस्थिरता अपनेआप में इसे मुद्रा के रूप में स्वीकार होने की राह में बहुत बड़ी बाधा है। इसके अलावा क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल करके बाज़ार में आम तौर पर चीज़ों को ख़रीदा या बेचा नहीं जा सकता है। इण्टरनेट पर कुछ कम्पनियों ने कुछ उत्पादों व सेवाओं को बिटकॉइन से ख़रीदा जा सकता है, लेकिन ये बेहद सीमित है।
पारम्परिक रूप से धातुएँ, ख़ासकर सोना और चाँदी, ऐसे सार्वभौमिक समतुल्य और विनिमय के माध्यम का काम करती थीं। यह बात सच है कि आधुनिक दौर में काग़ज़ के नोट और प्लास्टिक व कुछ इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों ने भी मुद्रा का स्थान ग्रहण किया है जिनका स्वयं का मूल्य किसी सुनिश्चित मात्रा में धातु के मूल्य के बराबर हो ऐसा आवश्यक नहीं है। लेकिन ग़ौरतलब बात यह है कि ऐसा इसलिए मुमकिन हो पाता है कि देशों की सरकारें इसकी गारण्टी देती हैं और सरकारों की यह क्षमता उनकी अर्थव्यवस्था की स्थिति से निर्धारित होती है। लेकिन बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी सरकारों के नियंत्रण से मुक्त हैं, इसलिए लोगों के बीच मुद्रा के रूप में इनपर भरोसा क़ायम होना बहुत मुश्किल है। इसके अतिरिक्त इसकी एक सीमा यह भी है कि इण्टरनेट का इस्तेमाल न करने वाले दुनिया के अरबों लोगों के लिए इसका कोई मायने नहीं है।
मुद्रा के रूप में भले ही बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी भले ही स्थापित न हो पायी हो, लेकिन इसके बावजूद दुनिया भर में उनपर निवेश लगातार बढ़ता जा रहा है। उनके मूल्य को लेकर लगायी जा रही अटकलों की वजह से दुनियाभर में क्रिप्टोकरेंसी पर आधारित सट्टेबाज़ी का विशाल विश्वव्यापी बाज़ार निर्मित हुआ है। क्रिप्टोकरेंसी पर ट्रेडिंग करने में मदद करने वाले ढेरों प्लेटफ़ॉर्म विकसित हुए हैं जिन्हें क्रिप्टो-एक्सचेंज कहा जाता है। वास्तविक अर्थव्यवस्था में मुनाफ़े की गिरती दर के संकट की वजह से हुए पूँजी को लाभप्रद निवेश के अवसर कम होते जा रहे हैं जिसका नतीजा यह हो रहा है कि पूँजी अधिक मुनाफ़े की चाहत में सट्टाबाज़ार की ओर रुख़ कर रही है क्योंकि वहाँ मुनाफ़ा कमाने के अवसर दिखते हैं। तमाम निवेशकों को क्रिप्टोकरेंसी के निवेश में शेयर बाज़ार की सट्टेबाज़ी से भी ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की सम्भावना दिखती है। यह बात दीगर है कि इसमें जोखिम भी ज़्यादा होता है क्योंकि भविष्य में क्रिप्टोकरेंसी के मूल्य बढ़ने की अटकल पर आधारित सट्टेबाज़ी से एक बुलबुला फूलता जाता है जिसे देर-सबेर फूटना ही होता है, जिसके बाद कई निवेशक बर्बाद हो जाते हैं। पिछले एक दशक के दौरान कई बार यह बुलबुला फूटता रहा है, लेकिन नये निवेश और नये सिरे से अटकलबाज़ी की वजह से बुलबुला फिर से फूलने लगता है।
इसके अतिरिक्त आज के दौर में क्रिप्टोकरेंसी का एक अन्य उपयोग इण्टरनेट की मदद से ग़ैर-क़ानूनी रूप से ड्रग्स और हथियारों की ख़रीदफ़रोख़्त में किया जा रहा है। ऐसा तथाकथित डार्क वेब के ज़रिये किया जाता है जो इण्टरनेट की एक भीतरी परत होती है जिसतक आम इण्टरनेट उपयोगकर्ताओं की पहुँच नहीं होती है और जिसके लिए एक विशेष सॉफ़्टवेयर की ज़रूरत होती है। डार्क वेब में बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल ड्रग्स और हथियार को गुमनाम रूप में ख़रीदने में भी किया जा रहा है।
ब्लॉकचेन की अचूक तकनीक की वजह से बिटकॉइन व अन्य क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग की प्रक्रिया में कोई धाँधली होना बहुत मुश्किल है, लेकिन क्रिप्टो-एक्सचेंज के ज़रिये बिटकॉइन में होने वाले निवेश और सट्टेबाज़ी की प्रकिया में धोखाधड़ी और घोटालों के कई मामले सामने आते रहे हैं। मिसाल के लिए हाल ही में कर्नाटक में बिटकॉइन घोटाला सामने आया जिसमें एक व्यक्ति ने अवैध रूप से हज़ारों बिटकॉइन हाथिया लिए थे।
इस प्रकार हम पाते हैं कि आज के पूँजीवादी दौर में ब्लॉकचेन जैसी अचूक तकनीक के आधार पर बनी क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग सट्टेबाज़ी के ज़रिये बेहिसाब मुनाफ़े के लिए और ड्रग्स व अवैध हथियारों की ख़रीद-फ़रोख़्त करने के लिए और धोखाधड़ी करने के लिए किया जा रहा है। पूँजीवाद की चौहद्दी के भीतर क्रिप्टोकरेंसी का यही हश्र हो सकता है क्योंकि भरोसे में कमी की वजह से वह मुद्रा के रूप में स्थापित नहीं हो सकेगी। लेकिन समाजवाद की उन्नत मंजिलों में ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का इस्तेमाल आर्थिक लेनदेन को आसान व भरोसेमन्द बनाने के लिए बेशक किया जा सकेगा।
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