रओ शि की कहानी “विनाश” व उनकी संक्षिप्त जीवनी
कहानी - विनाश रओ शि संक्षिप्त जीवनी कहानी के बाद दी गयी है जाड़ों की ठिठुरती ठण्डी रात थी। तीखी हवा बह रही थी। एक दीनहीन स्त्री ने अपने शिशु पर दृष्टि डाली जिसे उसने तीन रात पहले जन्म दिया था। वह चीथड़ों गुदड़ों में लिपटी बैठी थी। उसके पीले चेहरे पर दीपक की फीकी मटमैली रोशनी पड़ रही थी। मरी हुई आवाज में उसने अपने पति को , जो तीस पैंतीस वर्ष का रहा होगा , पुकारा , “ जो मैंने कहा है वही करो। वही सबसे अच्छा तरीका है।” गोद में पड़े बच्चे को उसने फटी फटी सूनी आँखों से निहारा। सिर्फ उसकी नन्हीं सी खोपड़ी पर के सुनहरे रोएँ ही दिख रहे थे। “ इसे अभी ले जाओ ,” स्त्री ने आग्रह किया। “देर होती जा रही है , मौसम ठण्डा है और रास्ता लम्बा है। जल्दी निकल जाना बेहतर है।” परन्तु उसने बच्चे को सीने से नहीं हटाया। वह थोड़ा सा आगे को झुकी और उसे और लिपटा लिया। आदमी निराश होकर आँखें नीचे किए बोला , “ क्या कल जाने से काम नहीं चलेगा। कल , बस कल तक रुको। कल तक हवा भी कम हो जाएगी।” “ आज रात!” एक बार फिर उसने बच्चे को प्यार किया। “ इस पर बात कर लें–– मैं सोचता हूँ–––” “ और कोई चारा नहीं है। हमारे पास चावल ...