एक मजदूर महिला का अदालत में बयान व फांसी के तख्‍ते पर जा रहे मजदूर का अपनी पत्‍नी व बच्‍चों को पत्र

एक मजदूर महिला का अदालत में बयान व फांसी के तख्‍ते पर जा रहे मजदूर का अपनी पत्‍नी व बच्‍चों को पत्र

ये हैं मई दिवस के शहीद कॉमरेड अल्‍बर्ट पार्सन्‍स की जीवनसाथी लूसी पार्सन्‍स। दुनियाभर के मजदूरों को आठ घण्‍टे काम, आठ घण्‍टे आराम, आठ घण्‍टे मनाेरंजन के अधिकार के लिए संघर्ष करने को प्रेरित करने वाले मई दिवस के शहीदों का पूँजीपतियों ने जो दमन किया वो दिखाता है कि जब मजदूर एकजुट होता है तो वो किसी भी तरह के झूठ, फरेब का सहारा लेकर मजदूरों को मरवाते हैं, दबाते हैं। मई दिवस के शहीदों को मारने के पांच साल बाद उसी अदालत ने उन्‍हें बरी किया और कहा कि उनके खिलाफ सबूत अपर्याप्‍त थे। लूसी पार्सन्‍स का अदालत में दिया बयान नीचे दिया जा रहा है जो बताता है कि किस तरह मजदूर नायकों के परिवार भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे थे। अल्‍बर्ट पार्सन्‍स ने लूसी और अपने बच्चों को जो पत्र लिखे, वो भी उसके बाद दिया जा रहा है जो दिखाता है कि मजदूर नायक किन आदर्शों के लिए अपना जीवन कुर्बान कर रहे थे। 

अदालत में लूसी पार्सन्स का बयान

‘‘जज आल्टगेल्ड, क्या आप इस बात से इन्कार करेंगे कि आपके जेलख़ाने ग़रीबों के बच्चों से भरे हुए हैं, अमीरों के बच्चों से नहीं? क्या आप इन्कार करेंगे कि आदमी इसलिए चोरी करता है क्योंकि उसका पेट ख़ाली होता है? क्या आपमें यह कहने का साहस है कि वे भूली-भटकी बहनें, जिनकी आप बात करते हैं, एक रात में दस से बीस व्यक्तियों के साथ सोने में प्रसन्नता महसूस करती हैं, अपनी अँतड़ियों को दगवाकर बहुत ख़ुश होती हैं?’’

पूरे हॉल में विरोध का शोर गूँजने लगा : ‘‘शर्मनाक’’ और ‘‘घृणास्पद’’ की आवाज़ें उठने लगी। एक पादरी उठा और आवेश से काँपते हुए अपने छाते को जोर-शोर से हिलाकर उसने जज से हस्तक्षेप करने को कहा। दूसरों ने भी शोर किया। परन्तु जज आल्टगेल्ड ने, जैसा कि अगले दिन अख़बारों ने भी लिखा, प्रशंसनीय ढंग से आचरण किया। उसने अपने हाथ के इशारे से शोर-शराबे को शान्त किया। उसने व्यवस्था बनाये रखने का आदेश दिया और उसे लागू किया। उसने कहा, ‘‘मंच पर एक महिला खड़ी है। क्या हम इतने उद्दण्ड होकर नम्रता की धज्जियाँ उड़ायेंगे?’’ फिर श्रीमती पार्सन्स की ओर मुड़ते हुए उसने कहा, ‘‘कृपया आप अपनी बात जारी रखें, श्रीमती पार्सन्स, और उसके बाद अगर आप चाहेंगी तो मैं आपके सवाल का जवाब दूँगा।’’ तो यह थी बहुचर्चित लूसी पार्सन्स! हॉल में फुसफुसाहट हुई और श्रीमती पार्सन्स ने, जो इस दौरान पूरे समय दृढ़तापूर्वक खड़ी रही थी, बोलना शुरू किया : ‘‘आप सब लोग जो सुधार की बातें करते हैं, सुधार का उपदेश देते हैं और सुधार की गाड़ी पर चढ़कर स्वर्ग तक पहुँचना चाहते हैं, आप लोगों की सोच क्या है? जज आल्टगेल्ड क़ैदियों के लिए धारीदार पोशाक की जगह भूरे सूट की वकालत करते हैं। वह रचनात्मक कार्य, अच्छी किताबों और हवादार, साफ़-सुथरी कोठरियों की वकालत करते हैं। बेशक उनका यह कहना सही है कि कठोर दण्ड की सज़ा पाये क़ैदियों को पहली बार अपराध के लिए सज़ा भुगतने वाले क़ैदियों से अलग रखा जाना चाहिए। वह एक जज हैं और इसलिए जब वह न्याय के पक्ष में ढेर सारी बातें करते हैं मुझे आश्चर्य नहीं होता क्योंकि अगर कोई चीज़ मौजूद ही नहीं है तो भी उसकी चर्चा तो अवश्य होनी चाहिए। नहीं, मैं जज आल्टगेल्ड की आलोचना नहीं कर रही हूँ। मैं उनसे सहमत हूँ जब वे यन्त्रणा की भयावहता के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। मैंने एक बार नहीं, अनेकों बार तक़लीफें और यातनाएँ बरदाश्त की हैं। मेरे शरीर पर उसके ढेरों निशान हैं। लेकिन मैं तुम्हारे सुधारों के झाँसे में नहीं आती। यह समाज तुम्हारा है, जज आल्टगेल्ड। तुम लोगों ने इसे बनाया है और यही वह समाज है जो अपराधियों को पैदा करता है। एक स्त्री अपना शरीर बेचने लगती है क्योंकि यह भूखे मरने की तुलना में थोड़ा बेहतर है। एक इन्सान इसलिए चोर बन जाता है क्योंकि तुम्हारी व्यवस्था उसे क़ानून तोड़ने वाला घोषित करती है। वह तुम्हारे नीतिशास्त्र को देखता है जो कि जंगली जानवरों के आचार-व्यवहार का शास्त्र है और तुम उसे जेलख़ाने में ठूँस देते हो क्योंकि वह तुम्हारे आचार-व्यवहार का पालन नहीं करता है। और अगर मज़दूर एकजुट होकर रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, एक बेहतर ज़िन्दगी के लिए लड़ाई लड़ते हैं, तो तुम उन्हें भी जेल भेज देते हो और अपनी आत्मा को सन्तुष्ट करने के लिए हर-हमेशा सुधार की बात करते हो, सुधार की बातें। नहीं, जज आल्टगेल्ड, जब तक तुम इस व्यवस्था की, इस नीतिशास्त्र की हिफ़ाजत और रखवाली करते रहोगे, तब तक तुम्हारी जेलों की कोठरियाँ हमेशा ऐसे स्त्री-पुरुषों से भरी रहेंगी जो मौत की बजाय जीवन चुनेंगे – वह अपराधी जीवन जो तुम उन पर थोपते हो।’’

पत्नी के नाम अल्बर्ट पार्सन्स का ख़त

कुक काउण्टी बास्तीय जेल, कोठरी नं. 29
शिकागो, 20 अगस्त, 1886

मेरी प्रिय पत्नी :

आज सुबह हमारे बारे में हुए फैसले से पूरी दुनिया के अत्याचारियों में ख़ुशी छा गयी है, और शिकागो से लेकर सेण्ट पीटर्सबर्ग तक के पूँजीपति आज दावतों में शराब की नदियाँ बहायेंगे। लेकिन, हमारी मौत दीवार पर लिखी ऐसी इबारत बन जायेगी जो नफ़रत, बैर, ढोंग-पाखण्ड, अदालत के हाथों होने वाली हत्या, अत्याचार और इन्सान के हाथों इन्सान की ग़ुलामी के अन्त की भविष्यवाणी करेगी। दुनियाभर के दबे-कुचले लोग अपनी क़ानूनी बेड़ियों में कसमसा रहे हैं। विराट मज़दूर वर्ग जाग रहा है। गहरी नींद से जागी हुई जनता अपनी ज़ंजीरों को इस तरह तोड़ फेंकेगी जैसे तूफ़ान में नरकुल टूट जाते हैं।

हम सब परिस्थितियों के वश में होते हैं। हम वैसे ही हैं जो परिस्थितियों ने हमें बनाया। यह सच दिन-ब-दिन साफ़ होता जा रहा है।

ऐसा कोई सबूत नहीं था कि जिन आठ लोगों को मौत की सज़ा सुनायी गयी है उनमें से किसी को भी हेमार्केट की घटना की जानकारी थी, या उसने इसकी सलाह दी या इसे भड़काया। लेकिन इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है। सुविधाभोगी वर्ग को एक शिकार चाहिए था, और करोड़पतियों की पाग़ल भीड़ की ख़ून की प्यासी चीख़-पुकार को शान्त करने के लिए हमारी बलि चढ़ायी जा रही है क्योंकि हमारी जान से कम किसी चीज़ से वे सन्तुष्ट नहीं होंगे। आज एकाधिकारी पूँजीपतियों की जीत हुई है! ज़ंजीर में जकड़ा मज़दूर फाँसी के फन्दे पर चढ़ रहा है क्योंकि उसने आज़ादी और हक़ के लिए आवाज़ उठाने की हिम्मत की है।

मेरी प्रिय पत्नी, मुझे तुम्हारे लिए और हमारे छोटे-छोटे बच्चों के लिए अफ़सोस है।

मैं तुम्हें जनता को सौंपता हूँ, क्योंकि तुम आम लोगों में से ही एक हो। तुमसे मेरा एक अनुरोध है – मेरे न रहने पर तुम जल्दबाज़ी में कोई काम नहीं करना, पर समाजवाद के महान आदर्शों को मैं जहाँ छोड़ जाने को बाध्य हो रहा हूँ, तुम उन्हें और ऊँचा उठाना।

मेरे बच्चों को बताना कि उनके पिता ने एक ऐसे समाज में, जहाँ दस में से नौ बच्चों को ग़ुलामी और ग़रीबी में जीवन बिताना पड़ता है, सन्तोष के साथ जीवन बिताने के बजाय उनके लिए आज़ादी और ख़ुशी लाने का प्रयास करते हुए मरना बेहतर समझा। उन्हें आशीष देना; बेचारे छौने, मैं उनसे बेहद प्यार करता हूँ। आह, मेरी प्यारी, मैं चाहे रहूँ या न रहूँ, हम एक हैं। तुम्हारे लिए, जनता और मानवता के लिए मेरा प्यार हमेशा बना रहेगा। अपनी इस कालकोठरी से मैं बार-बार आवाज़ लगाता हूँ : आज़ादी! इन्साफ़! बराबरी!

– अल्बर्ट पार्सन्स

अल्बर्ट पार्सन्स का जेल की कालकोठरी से अपने बच्चों के नाम पत्र

कालकोठरी नम्बर-7, कुक काउण्टी जेल
शिकागो, 9 नवम्बर, 1887

मेरे प्यारे बच्चों,

अल्बर्ट आर. पार्सन्स (जूनियर) और बेटी लुलु एडा पार्सन्स,

मैं ये शब्द लिख रहा हूँ और मेरे आँसू तुम्हारा नाम मिटा रहे हैं। हम फिर कभी नहीं मिलेंगे। मेरे प्यारे बच्चों, तुम्हारा पिता तुम्हें बहुत प्यार करता है। अपने प्रियजनों के प्रति अपने प्यार को हम उनके लिए जीकर प्रदर्शित करते हैं और जब आवश्यकता होती है तो उनके लिए मरकर भी। मेरे जीवन और मेरी अस्वाभाविक और क्रूर मृत्यु के बारे में तुम दूसरे लोगों से जान लोगे। तुम्हारे पिता ने स्वाधीनता और प्रसन्नता की वेदी पर अपनी बलि दी है। तुम्हारे लिए मैं एक ईमानदारी और कर्तव्यपालन की विरासत छोड़े जा रहा हूँ। इसे बनाये रखना, और इसी रास्ते पर आगे बढ़ना। अपने प्रति सच्चे बनना, तभी तुम किसी दूसरे के प्रति भी कभी दोषी नहीं हो पाओगे। मेहनती, गम्भीर और हँसमुख बनना। और तुम्हारी माँ! वह बहुत महान है। उसे प्यार करना, उसका आदर करना और उसकी बात मानना।

मेरे बच्चों! मेरे प्यारों! मैं आग्रह करता हूँ कि इस विदाई सन्देश को मेरी हरेक बरसी पर पढ़ना, और मुझमें एक ऐसे इन्सान को याद करना जो सिर्फ तुम लोगों के लिए ही नहीं बल्कि भविष्य की आने वाली पीढ़ियों के लिए क़ुरबान हुआ।

ख़ुश रहो, मेरे प्यारों! विदा!

तुम्हारा पिता

अल्बर्ट आर. पार्सन्स

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