अन्‍तोन मकारेंको लिखित 'एक पुस्तक माता-पिता के लिए' की पीडीएफ फाइल PDF file of 'A Book For Parents' written by Anton Makarenko

दुनिया के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्रियों में से एक अन्तोन मकारेंको लिखित 'एक पुस्तक माता-पिता के लिए' की पीडीएफ फाइल
PDF file of 'A Book For Parents' written by Anton Makarenko, One of the World's Renowned Educationists

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पुस्तक का संक्षिप्त परिचय

यह नितान्त स्वाभाविक है कि सभी माता–पिता अपने बच्चों को सुखी देखना चाहते हैं। लेकिन उनमें से सभी लोग यह नहीं समझते कि सुख, सबसे पहले, वैयक्तिक और सामाजिक के बीच सामंजस्य है, और यह सामंजस्य एक दीर्घकालिक, कुशलतापूर्ण तथा कष्टसाध्य लालन–पालन के ज़रिये ही हासिल हो सकता है। लालन–पालन को मानवीय श्रम की एक विशेष और जटिल क़िस्म मानने के लिये सभी लोग तैयार नहीं होते हैं। कुछ लोग क़िस्मत अथवा सुखद संयोग की उम्मीद लगाये बैठे होते हैं, कुछ यह विश्वास करते हैं कि इस मामले में मुसीबत उठाने का कोई कारण नहीं है, क्योंकि उन्हें पहले से ही ढेरों अन्य काम करने हैं - ‘‘हमारा किसी ने भी लालन–पालन नहीं किया, लेकिन हम बड़े हो गये और सम्भ्रान्त जीवन बिता रहे हैं।’’ मकारेंको उन्हें नम्रता से याद दिलाते हैं - ‘‘प्रिय माता–पिताओ! आप कभी–कभी यह भूल जाते हैं कि आपके परिवार में एक व्यक्ति, एक ऐसा व्यक्ति पल–बढ़ रहा है, जिसका दायित्व आपके ऊपर है।’’

जो माता–पिता इस तथ्य से समझौता करना नहीं चाहते कि विवाह–बन्धन में बँधकर तथा मात्र एक ही बच्चे को जन्म देकर भी वे शिक्षक बन चुके हैं, उन माता–पिताओं का व्यापक रूप से प्रयुक्त बहाना समय की कमी होता है। लेकिन उनकी पसन्द का दायरा काफ़ी संकीर्ण है - या तो वे हर कठिनाई के बावजूद अपने बच्चे का अच्छी तरह से लालन–पालन कर सकते हैं या बहाने की शक्ल में तरह–तरह की ‘‘वस्तुगत’’ कठिनाइयों का हवाला देकर ख़राब ढंग से यह काम पूरा कर सकते हैं।

जो भी हो, यदि यह समझ लिया जाये कि अच्छे लालन–पालन के लिये बहुत अधिक समय का होना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उस थोड़े–से समय का सर्वोत्तम उपयोग करने की योग्यता का होना महत्वपूर्ण है जो आपके पास होता है, तो यह पसन्द इतनी कठिन नहीं होगी। यह मकारेंको की राय है और वे अपनी पुस्तक के सारे पृष्ठों में अपने इस निष्कर्ष की सत्यता को सिद्ध करते हैं।

अनुभवहीन माता–पिता की सबसे बड़ी ग़लती यह होती है कि वे हर प्रकार के नैतिक प्रवचनों पर बहुत भरोसा करते हैं। ऐसा जान पड़ता है कि इस तरह के माता–पिता अपने बच्चे को हर समय एक ज़ंजीर से बाँधे रखते हैं। उनके बच्चे का कोई भी क़दम और कोई भी हरकत सविस्तार अनुदेशों का विषय बन जाती है। अत: यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बच्चे का स्वस्थ शरीर भी इस मौखिक दबाव को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। इसके फलस्वरूप एक दिन वह बच्चा ‘‘ज़ंजीर तोड़ देता है’’ और, जिसका उसके माता–पिता को सबसे ज़्यादा डर था, उसी बुरी सोहबत में जा फँसता है। माता और पिता, दोनों ही भयाक्रान्त हो जाते हैं। वे सहायता के लिये पुकारते हैं, वे माँग करते हैं कि उनके बच्चे को उसी ‘‘शैक्षिक ज़ंजीर’’ से बाँध दिया जाये, जिसके बिना वे अपने बच्चे का लालन–पालन नहीं कर सकते। मकारेंको कहते हैं कि इस प्रकार के लालन–पालन के लिये मुक्त समय की ज़रूरत होती है और साफ़ ज़ाहिर है कि यह समय व्यर्थ बर्बाद किया जाता है।

इससे नितान्त भिन्न वह मामला है, जहाँ बच्चों का लालन–पालन शिक्षा–विज्ञान के अनुरूप होता है, जहाँ लोग अपनी हर शैक्षिक क्रिया में उस विज्ञान के ज्ञान का उपयोग करते हैं, जिसके रहस्यों को ‘एक पुस्तक माता–पिता के लिए’ के लेखक ने पाठकों के सम्मुख उद्घाटित किया है।

विज्ञान के अनुरूप बच्चों के लालन–पालन का पहला अर्थ है परिवार में दैनिक जीवन का विवेक–सम्मत संगठन। परिवार एक जीवित सामाजिक संघटन होता है और इस संघटन की हर खराबी, अनिवार्यत: लालन–पालन पर प्रभाव डालती है। झगड़े और मिथ्यापवाद, माता या पिता के प्रति निरादर, घरेलू जीवन में अव्यवस्था, सुव्यवस्थित प्रणाली का अभाव और लापरवाही बच्चों के चरित्र पर गहरी और तीक्ष्ण छाप डालती हैं। निपट नादान लोग ही यह विश्वास करते हैं कि अव्यवस्था और झगड़ों से भरे पारिवारिक वातावरण में एक स्वस्थ व्यक्ति की रचना हो सकती है, कि ऐसे वातावरण में एक अच्छा व्यक्ति पल–बढ़ सकता है। ऐसा कोई भी शिक्षा–वैज्ञानिक इलाज नहीं है, जो पारिवारिक जीवन की ग़लतियों की, आंशिक रूप में भी, प्रतिपूर्ति कर सकता हो।

क्या पारिवारिक जीवन को सही दिशा में संगठित करने, उसे माता या पिता द्वारा किये जाने वाले सारे शैक्षिक प्रयत्नों के लिये एक भरोसेमन्द आधार का रूप देने के वास्ते बहुत कुछ करना पड़ता है ? ‘एक पुस्तक माता–पिता के लिए’ का लेखक इस प्रश्न का उत्तर वेत्किन परिवार की एक कहानी को विस्तार के साथ सुनाकर देता है। परिवार के सदस्यों की संख्या इतनी बड़ी है कि पिता को वह संख्या–तेरह–बताने में संकोच तक होता है। लेकिन परिवार के सदस्य मैत्रीपूर्ण वातावरण में रहते हैं, पिता और माता के बीच सम्बन्ध सम्मानपूर्ण है, जिससे एक ऐसा वातावरण बन जाता है जिसमें परिवार का हर सदस्य प्रसन्नता के साथ काम करता है और रहता है। एक ऐसा प्रभाव बन जाता है कि वेत्किन परिवार में हर अच्छी चीज़ खुद–ब–खुद पैदा हो जाती है। छोटे–से–छोटे बच्चे भी घरेलू कामों में उत्साह के साथ भाग लेते हैं। परिवार का हर सदस्य एक–दूसरे की मदद करता है। परिवार का एक सदस्य अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों के बारे में सोचने से पहले हमेशा सम्पूर्ण परिवार की आवश्यक ज़रूरतों के बारे में सोचता है।

माता–पिता का प्राधिकार सुसंगठित पारिवारिक जीवन के सुदृढ़ आधार पर टिका होता है। कई लोग यह विश्वास करते हैं कि लालन–पालन के एक साधन के रूप में प्राधिकार को, ख़ास तौर से बच्चों के लिये, कृत्रिम रूप से बनाया जा सकता है। मकारेंको इस दृष्टिकोण के विरुद्ध विश्वसनीय तर्क पेश करते हैं। वास्तविक जीवन के विशद उदाहरणों के आधार पर वे यह दर्शाते हैं कि बच्चे प्राधिकार की समस्या को समझते हैं और कभी–कभी वयस्कों से ज़्यादा अच्छी तरह से समझते हैं। प्राधिकार के प्रश्न में किसी भी मिथ्याकरण को, किसी भी कृत्रिमता को बच्चे तुरन्त उद्घाटित कर देते हैं और हमेशा सही ढंग से करते हैं। इसीलिये यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वयस्कों की ऐसी ‘‘चालों’’ की अनुक्रिया के रूप में बच्चे, नियमत: गुपचुप या खुली अवज्ञा, बहानेबाजी, झूठ तथा खुलेआम उपहास का उपयोग करते हैं। और परिणामों का समाहार करते हुए मकारेंको कहते हैं : ‘‘अपने बच्चों के साथ किसी भी तरह के सम्बन्धों के बावजूद, प्राधिकार स्वयं माता–पिता में ही अन्तर्निहित होना चाहिये, लेकिन यह किसी भी हालत में कोई विशिष्ट प्रतिभा नहीं होता है। इसकी जड़ें हमेशा एक ही स्थान पर पायी जाती हैं : माता–पिता के व्यवहार में, और इसमें व्यवहार के सभी पक्ष शामिल हैं–दूसरे शब्दों में माता–पिता दोनों का सम्पूर्ण जीवन, उनका काम, विचार, आदतें, भावनाएँ और प्रयत्न।’’ (पृष्ठ 189–190)

सफल पारिवारिक लालन–पालन की एक सबसे अधिक महत्वपूर्ण शर्त है बच्चों की आवश्यकताओं का सही नियमन करने की माता–पिता की क्षमता। बच्चे की हर सनक को उसकी ज़रूरत नहीं समझा जाना चाहिये। बच्चों को ऐसी भौतिक सुख–सुविधाएँ पेश करना अननुज्ञेय है, जिन्हें माता–पिता कष्ट–साध्य श्रम से प्राप्त करते हैं।

यदि परिवार बड़ा होता है तो अत्यानुग्रह करना इसलिये असम्भव हो जाता है कि ऐसा करना माँ–बाप के बूते से बाहर होता है। यहाँ समस्या आसान ढंग से हल हो जाती है : बच्चा कितना ही तक़ाज़ा और ज़िद क्यों न करे, उसे सिर्फ़ अत्यावश्यक वस्तुएँ ही मिलेंगी। लेकिन इकलौते बच्चेवाले परिवार की बात भिन्न है। यहाँ अत्यधिक आवश्यकताओं और फलत: अहंवाद के विकास को केवल वात्सल्य की बुद्धिमत्ता ही रोक सकती है।

इकलौते बच्चेवाले परिवार में अत्यधिक आवश्यकताओं की अवश्यम्भाविता इस तथ्य के कारण और भी ज़्यादा विकट हो जाती है कि ऐसे परिवार में अच्छे कार्यों में जुटने के लिये, अच्छे लालन–पालन को बुरे से भिन्न बनानेवाले व्यवहार की आदतों के उपार्जनार्थ पर्याप्त आधार न तो होता है और न हो सकता है। अधिक या कम उम्र के भाइयों अथवा बहनों के अभाव मेें बच्चे के पास दुलारने के लिये, मदद करने के लिये, अच्छे उदाहरण का अनुसरण करने के लिये कोई नहीं होता है। इकलौते बच्चेवाले माता–पिता को आसान जीवन के लालच के खिलाफ आगाह करते हुए मकारेंको लिखते हैं :

‘‘बड़े परिवारों के बच्चों की भारी सफलता की पुष्टि के लिये लाखों–जी हाँ, लाखों–उदाहरण दिये जा सकते हैं। इसके विपरीत इकलौते बच्चे की सफलता के मामले बहुत ही दुर्लभ होते हैं। जहाँ तक मेरे व्यक्तिगत अनुभव का सम्बन्ध रहा है, सबसे ज़्यादा बेलगाम अहंवाद, जो माता–पिता की ख़ुशी को ही चौपट नहीं करता, बल्कि स्वयं बच्चों की सफलता को भी नष्ट कर देता है, लगभग हमेशा इकलौते बेटों और बेटियों में ही होता है।’’

श्रम स्वस्थ लालन–पालन का अमूल्य साधन है। यदि एक बच्चे के पास काम का कोई दायित्व नहीं हैं, यदि बच्चा घरेलू कामों में माँ–बाप की सहायता नहीं करता, स्कूली पाठों के अलावा कोई और उपयोगी काम नहीं खोजता है, तो वह आलसी होता जायेगा और आलसीपन चरित्र का ऐसा दुर्गुण है जिसे लोग, उचित ही, सारी बुराइयों का जनक कहते हैं।

कुछ माता–पिता कहते हैं कि विज्ञान और तकनीकी क्रान्ति के युग में जहाँ घरेलू काम अधिकाधिक यंत्रीकृत होते जा रहे हैंं वहाँ बच्चे के लिये समुचित काम खोज निकालना आसान नहीं है। ऐसे बहानों को गम्भीरता से लेना ही नहीं चाहिये। उन्हें, उसी आलसीपन की एक अभिव्यक्ति मानना चाहिये–पर इसवाले मामले में बच्चों के नहीं, माता–पिता के आलसीपन की। यदि माँ और बाप यह समझते हैं कि गम्भीरता से काम करने की आदत के बिना उनके बच्चे का भविष्य अन्धकारमय होगा, तो वे कोई न कोई तरीक़ा खोज निकालेंगे। हर किशोर बच्चा घर की सफाई कर सकता है, धुलाई की मशीन चला सकता है, वृद्ध या बीमार की देखरेख कर सकता है। बच्चे का इस अवसर से वंचित रखने का अर्थ है उसे भारी नुक़सान पहुँचाना।

सुनिश्चित दिनचर्या की उपयोगिता तथा उसके परिपालन से सम्बन्धित मकारेंको के विचार भी गम्भीरता से ध्यान देने लायक हैं। समय पर सोना और समय पर उठना, व्यक्तिगत सफ़ाई के नियमों का पालन करना, कभी भी जल्दबाज़ी न करना और कभी भी देरी न करना–यह सब बातें हर दिन बच्चे में कूट–कूटकर भर दी जानी चाहिये। यदि माता–पिता स्वयं भी व्यवस्थित जीवन बिताते हों, तो ऐसे प्रयासों में सफलता शीघ्रता तथा सरलता से प्राप्त हो जाती है।

परिवार में सेक्स की शिक्षा की समस्या को सबसे ज़्यादा कठिन समझा जाता है। ‘एक पुस्तक माता–पिता के लिए’ के लेखक भी इस समस्या पर समुचित गम्भीरता से विचार करते हैं। मुख्य रूप से वे यह कहते हैं कि सेक्स सम्बन्धी शिक्षा सेक्स के बोध, सेक्स के मामलों पर विचार–विमर्श से किसी भी हालत में प्रतिस्थापित नहीं होनी चाहिये। सेक्स की शिक्षा को किसी भी शर्त पर लालन–पालन की अविभक्त प्रणाली के अन्य पक्षों से विलग नहीं किया जाना चाहिये।

मकारेंको अपने सामान्य ढंग से इस समस्या का नैतिक–दार्शनिक और सामाजिक–मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं। उनका गहन चिन्तन इस समस्या के सारे पक्षों व सम्बन्धों की जाँच करता है। हर चीज़ को देखते हुए और, इसी कारण से, हर चीज़ का समुचित मूल्यांकन करते हुए, जो बहुधा अनपेक्षित होता है, वे अपने विवेचन को कलात्मक रूप में पेश करते हैं : ‘‘परिवार’’, वे कहते हैं, ‘‘वह सबसे अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जहाँ मनुष्य सामाजिक जीवन में अपने पहले चरण रखता है! यदि वे चरण सही ढंग से व्यवस्थित होते हैं, तो सेक्स की शिक्षा भी सही ढंग से चलेगी। जिस परिवार में माता–पिता सक्रिय होते हैं और उनका प्राधिकार उनके जीवन और कार्य से सहज रूप में निकलता है, जहाँ बच्चों के जीवन, समाज के साथ उनके पहले सम्पर्क, उनके अध्ययन, खेल, मनोदशाएँ, उल्लास और निराशाओं पर माता–पिता का हमेशा ध्यान रहता है, जहाँ अनुशासन है, अच्छा प्रबन्ध और नियंत्रण है, ऐसे परिवार में बच्चों की सेक्स की सहजवृत्ति भी हमेशा सही ढंग से विरचित होती है।’’

अत: उसी परिवार में अच्छा लालन–पालन सुनिश्चित हो सकता है जिसमें बच्चा अपने जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही वास्तविक नैतिकता की स्वच्छ व स्वस्थ वायु में साँस लेता है। एक नैतिक परिवार को अन्य प्रकार के परिवारों से अलग पहचानने में सहायक कई चिह्न होते हैं। लेकिन सबसे ज़्यादा सही, अमोघ सूचक है माँ के प्रति रवैया। मकारेंको इस प्रचलित विश्वास का खण्डन करते हैं कि बच्चों की ख़ुशी के लिये, उनके अच्छे लालन–पालन के लिये माँ को तपस्वियों–सा जीवन बिताना चाहिये–सिर्फ़ अन्य के बारे में सोचना चाहिये और अपनी कोई परवाह नहीं करनी चाहिये। उन्होंने यह दर्शाया कि एक स्वस्थ परिवार में माँ द्वारा अपने आपको कुर्बान करने के लिये कोई जगह नहीं हो सकती है, कि बच्चों की ख़ुशी, सबसे पहले माँ की ख़ुशी है, उसके व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन की पूर्णता है।

पुस्तक के प्रारम्भ में ही मकारेंको लिखते हैं : ‘‘जीवन के समृद्ध अनेकानेक पथों पर, उसके पुष्पों, आँधियों व तूफ़ानों के बीच बच्चे को बुद्धिमानी व पूर्ण विश्वास के साथ आगे ले जाना एक ऐसा काम है, जिसे हर आदमी, यदि वह इसे सचमुच चाहता हो तो कर सकता है।’’ इस पुस्तक को पढ़ने और इस पर विचार करने के बाद आप एक पिता या माँ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण आकांक्षा को पुष्ट ही नहीं करेंगे, बल्कि यह भी जान जायेंगे कि उसे वास्तविकता में कैसे परिणत किया जाये।

व. कुमारिन

पुस्तक परिचय इसी पुस्तक की भूमिका से लिया गया है।



 

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