उज़बेक लोक कथा - क्रूर बादशाह
उज़बेक लोक कथा - क्रूर बादशाह हिन्दी अनुवाद - सुधीर कुमार माथुर ( रादुगा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित “जहाँ चाह, वहॉं राह - उज़बेक लोक-कथाएं ” पुस्तक से ) बहुत समय पहले एक देश में क्रूर बादशाह राज करता था। एक बार पता नहीं क्यों उसने एक नया हुक्म जारी किया : “ जिस आदमी के घर में कोई आदमी मरे उस घर का मालिक उसकी लाश उठाकर छत पर ले जाये और एक छत से दूसरी पर होकर ही क़ब्रिस्तान तक लेकर जाये। जो कोई इस आज्ञा का पालन नहीं करेगा , उसे मौत की सजा दी जायेगी।” उस देश में एक बहुत बूढ़ा कत्थक रहता था , जिसके सारे बाल पक चुके थे। वह बादशाह के पास गया। “ तुम यहाँ किस लिए आये हो ?” कत्थक बोला : “ क्या प्रजा भूख , ग़रीबी और तुम्हारे अत्याचारों से कम परेशान है , जो तुमने एक नया बेतुका हुक्म जारी किया है ? मरे हुए को दफ़नाने के लिए उसके रिश्तेदार पांच और कई बार तो दस-दस दिन तक परेशान होते हैं। तुम्हें इस में क्या आनंद आता है ?” बादशाह आग-बबूला हो उठा। “ लोग कहते हैं कि बूढ़े बुद्धिमान होते हैं ,” वह बोला। “ पर वास्तव में यह झूठ है कोई सिरफिरा बूढ़ा आकर मुझे सीख दे रहा है। इ...