“हम पर्वतवासी - उन्नीस आर्मीनियायी कहानियाँ” पुस्‍तक की पीडीएफ फाइल PDF File of “Armenian short stories - We of the Mountains”

“हम पर्वतवासी - उन्नीस आर्मीनियायी कहानियाँ” पुस्‍तक की पीडीएफ फाइल
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प्राक्कथन

इस संग्रह में उन्नीस आर्मीनियाई लेखकों की कहानियाँ संकलित हैं। सब के सब विभिन्न पीढ़ियों, दृष्टिकोणों व लेखन शैलियों के लोग हैं। कुछेक निश्चित घटनाओं को अपना कथ्य बनाते हैं तो दूसरे जीवन के दार्शनिक मूल्यांकन का प्रयास करते हैं।

यह एक संकलन है, कोई गद्यावली नहीं। आर्मीनियाई साहित्य में आर्मीनियाई कहानियों की शैली का इतिहास कई सौ साल का है और इसके लेखक विश्व संस्कृति के इतिवृत्त में अमर हैं। इसलिए आर्मीनियाई कहानियों की गद्यावली तैयार करने के लिए कई खण्डों वाले संस्करण की आवश्यकता होगी।

बहरहाल, इस संकलन को प्रस्तुत करते समय कई ऐसे लेखकों को उद्धृत किया जा सकता है जो अपने समय में आर्मीनियाई कथा-लेखन के इतिहास में युगान्तरकारी माने जाते थे लेकिन इस संकलन में शामिल नहीं किये गये हैं। उनमें सबसे पहला नाम खाचातुर अबोवियान का है। 1830 से 1840 के दशक में लिखी उनकी कहानियाँ रोमाण्टिक, उपदेशात्मक और इसके साथ ही पूर्व की वास्तविक परम्परा के अनुरूप ही आलंकारिक थीं। निकट भविष्य में ही आर्मीनियाई साहित्य में एक अग्रणी बन जानेवाली साहित्यिक शैली के रूप में कहानियों की विधा को सँवारने का काम उन्होंने किया। 19 वीं सदी के अन्त में तथा 20 वीं सदी के आरम्भ में लेखकों की एक उज्ज्वल नक्षत्रमाला ने कहानियों के इस पल्लवल में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इनमें प्रमुख नाम हैं: रफ़्फ़ी, गाब्रियल सुन्दुकियान, अकोप पैरोनियान, राफ़ेल पात्कानियान, ग्रिगोर जोग्राब, येर्वान्द ओतियान और पेर्च प्रोशियान ..

यह उल्लेखनीय है कि आरम्भ से ही आर्मीनियाई कथा-लेखन में कोई एक प्रवृत्ति नहीं रही। आंशिक रूप से इसका कारण यह है कि इस विधा ने विभिन्न सामाजिक एवं साहित्यिक दृष्टिकोणोंवाले लेखकों को आकृष्ट किया। इसके अलावा, यह लेखक आर्मीनियाई साहित्य में पूर्वी एवं पश्चिमी के नाम से ज्ञात दो भिन्न शाखाओं के थे। रूसी क्षेत्र में रहनेवाले पूर्वी शाखा का प्रतिनिधित्व करते थे। वे विशिष्ट ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण भिन्न धारा का अनुसरण करनेवाले पश्चिमी आर्मीनियाई लेखकों की तुलना में सामाजिक रूप से अधिक जागरूक थे।

नार-दोस ने अपनी आत्मकथा में लिखा है: “मेरी पताका पर अंकित शब्द थे ' यथातथ्य वास्तविक जीवन और मानव का आन्तरिक जगत।” पूर्वी आर्मीनिया के नार-दोस के बहुत से समकालीन इस आदर्शोक्ति से सहमत होते। यह एक साहित्यिक प्रवृत्ति के रूप में यथार्थवाद के बीजवपन का द्योतक है। आर्मोनियाई साहित्य में इसकी जड़ें दृढ़ता से जम गयीं और इसकी अभिव्यक्ति न केवल यथार्थवादी कथावस्तुनों में बल्कि अपने जन- जीवन के बौद्धिक जगत के बारे में लेखकों के तीव्र भाव-बोध में, सामाजिक विरोधाभासों के उनके उद्घाटन में और नैतिक एवं नीतिशास्त्रीय समस्याओं में उनकी अभिरुचि में भी हुई। इस प्रकार, नार-दोस ने शासक वर्ग के नैतिक दिवालियेपन और बौद्धिक अध:पतन की प्रक्रियाओं को प्रस्तुत किया और ऊर्जस्वी, अध्यवसायपूर्ण तथा अपनी ही शक्ति पर आस्था रखनेवाले श्रमजीवी की जीविष्णुता की पुष्टि की।

बीसवीं सदी के आरम्भ में समाज में निरन्तर गहराते विरोधाभासों की परिस्थितियों के अन्तर्गत पात्रों के आन्तरिक जीवन को प्रतिबिम्बित करने वाली मनोवैज्ञानिक कहानियों ने आर्मीनियाई साहित्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। “सामान्य व्यक्ति” की कथावस्तु को लोकप्रियता मिली और लोगों के ध्यान में एक ऐसा जीवन आया जो वस्तुत: नाटकीय था तथा जिसकी नियति अपनी निरीहता के कारण त्रासदीपूर्ण थी। रूस में “चेखव कथानक” के नाम से ज्ञात इस कथावस्तु को आर्मीनियाई साहित्य में सर्वप्रथम स्तेफ़ान ज़ोरियान की रचनाओं में विशेष बल मिला (“दुखी लोग”, “सफ़ेद घर के वासी” आदि)।

20 वीं सदी की आर्मीनियाई कहानियों का इतिहास अधूरा रह जायेगा अगर आर्मीनियाई साहित्य के दो उज्ज्वलतम सितारों - होवान्नेस तुमानियान व अवेतिक इसाकियान का उल्लेख नहीं किया जाये। उनका महान रिक्थ विश्व साहित्य एवं अपनी जातीय कला की सर्वोत्तम परम्पराओं का एक सुन्दर सामंजस्य है। शैली की सरलता, मानवीयता, अपनी जनता के रीति-रिवाजों, जीवन, मनोविज्ञान की गहरी समझ और उनकी जनवादिता ने होवान्नेस तुमानियान एवं अवेतिक इसाकियान को विश्व के असाधारण लेखकों में स्थान दिला दिया है। वालेरी ब्रिउसोव ने तुमानियान की रचनाओं को क्रान्ति पूर्व आर्मीनियाई जीवन का एक विश्वकोश बताया है।

इस संकलन में तुमानियान की एक कहानी “मेरा दोस्त नेसो” शामिल की गयी है। यह कहानी उन्होंने अपने बचपन को याद करते हुए लिखी थी। प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व को पंगु बना देनेवाले सामाजिक अन्याय के विरुद्ध लेखक के प्रबल विरोध को यह कहानी परिलक्षित करती है।

अवेतिक इसाकियान एक दार्शनिक लेखक थे और जीवन व प्रेम से सम्बन्धित कथावस्तुओं को उन्होंने विशेष वरीयता दी। उन्होंने जीवन एवं प्रेम की सार्थकता को इसकी महानतम अभिव्यक्तियों में से एक के रूप में उद्घाटित करने की कोशिश की। “साआदी का अन्तिम वसन्त” शीर्षक कहानी जीवन का एक गौरवशाली गीत है जो अप्रतिहत रूप से सुन्दर एवं अद्भुत है...

इस प्रकार, सदी के आरम्भ में आर्मीनियाई कथा-लेखन के इन दो असाधारण प्रतिनिधियों ने आलोचनात्मक रूप से अतीत का परित्याग करते हुए आनेवाले कल का आर्मीनियाई जनता के उज्ज्वल भविष्य का स्वागत किया।

महान अक्तूबर समाजवादी क्रान्ति तथा आर्मीनिया में सोवियत सत्ता की स्थापना से आर्मीनियाई साहित्य में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। अब नये-नये पात्रों के स्वर सुनाई देने लगे और नयी-नयी कथावस्तुएँ सामने आयीं। इस नयी धारा को क्रान्ति से पहले स्थापित हो चुके लेखकों-देरेनिक देमिरचियान, स्तेफ़ान जोरियान, अक्सेल बाकुन्त्स तथा मोवसेस अराज़ी ने गति प्रदान की।

सोवियत आर्मीनियाई साहित्य के एक सर्वमान्य उत्कृष्ट लेखक स्तेफ़ान जोरियान ने अपनी मातृभूमि और अपनी जनता की नियति के बारे में लिखा। समकालीनता की उत्कट समझ से समाहित इतिहास की उनकी गहरी पैठ ने जोरियान को आधुनिक व्यक्ति, नयी जीवन-पद्धत्ति के निर्माता के लाक्षणिक गुणों को चित्रित करने में सहायता दी। जनता की उत्कृष्टता उभारनेवाली क्रान्ति की जीवनदायी शक्ति “पुस्तकालयवाली लड़की” में चित्रित हुई है।

नये नायकों ने मोवसेस अराज़ी की रचनाओं में भी स्थान पाया। अपने समय में युगान्तरकारी कहानी “कायापलट” क्रान्तिकारी परिर्वतन के युग में व्यक्ति की जागरूकता का वर्णन करती है।

इसी काल के एक अन्य महत्वपूर्ण लेखक देरेनिक देमिरचियान की रचना आर्मीनियाई जनता के जीवन व इतिहास में एक वास्तविक इतिवृत्त है। देमिरचियान एक कवि, गद्य लेखक, नाटककार एवं पत्रकार थे। चाहे कोई मनोवैज्ञानिक शब्दचित्र हो या कोई ऐतिहासिक उपन्यास वह सदैव जीवन को सजीवता से चित्रित करने में समर्थ रहे। इस संग्रह में शामिल उनकी रचना “एक पुस्तक की कहानी” जनता की सांस्कृतिक सम्पदाओं की अमरता प्रकट करती है।

अक्सेल बाकुन्त्स एक विशिष्ट सोवियत आर्मीनियाई कहानी-लेखक हैं। उनकी रचनाओं में आर्मीनिया का काव्यात्मक प्रतिबिम्ब, इसका अद्भुत सौन्दर्य, इसकी गरिमा और सरल जनता है। “पाटल कुसुम” आार्मीनियाई साहित्य के रत्नों में एक है। यह कहानी आर्मीनिया के पहाड़ी प्रदेशों, इनके वासियों के रीति-रिवाजों की एक तस्वीर पेश करती है।

क्रान्ति के प्रादुर्भाव से प्रारम्भ होकर, गृहयुद्ध की अग्नि से गुजरकर 1930 के दशक में समाजवाद के शान्तिपूर्ण निर्माण तक पहुँचने में आधुनिक आर्मीनियाई कहानी ने एक कठिन रास्ता तय किया है। 1941 से 1945 तक यह रास्ता फ़ासिज्म के विरुद्ध महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध की लड़ाइयों से गुज़रता है। युद्धोतर पुनर्वासन के वर्षों का स्थान अगले दशकों के शान्तिपूर्ण, रचनात्मक श्रम ने ले लिया है।

महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध के बारे में सोवियत आर्मीनिया के लेखकों की रचनाएँ सच्ची देशभक्ति, मानवीयता एवं अन्तर्राष्ट्रीयतावाद से ओतप्रोत हैं। इस संकलन में शामिल राचिया कोचर की कहानी “प्‍यास” भी इसी श्रेणी की है।

युद्ध समाप्त हुआ। बेहतर भविष्य का निर्माण करनेवाले लोगों के श्रम, उन के जीवन में हो रहे परिवर्तनों को कहानियों में स्थान मिला। अब युद्धकालीन नायक घर लौटकर शान्तिपूर्ण श्रम में लग रहे थे जैसा कि विगेन खेचुमियान की " सेतु" कहानी में आर्मेनाक ने किया। युद्ध से आर्मेनाक ने सीख ली है कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के पास ले जानेवाला मार्ग ही धरती का सर्वाधिक महत्वपूर्ण मार्ग है। युद्धोत्तर आर्मीनियाई कहानियों की विषयवस्तु व्यक्ति के आचारिक एवं नैतिक जीवन से सम्बन्ध रखती है। इस प्रकार पुरानी पीढ़ी के लेखकों की राहें युवा पीढ़ी की राहों से यानी उन लोगों की राहों से आ मिलती हैं जिन्होंने युद्ध में हिस्सा लिया था और जिनकी रचनाएँ युद्धोतरकालीन वर्षों में छपनी शुरू हुई थीं। ऐसे लेखक हैं : गुर्गेन माआरी, सेरो खानजादियान, विगेन खेचुमियाँ, राफ़ेल अरामियान, एबिग अवाक्यान, ग्रान्त मातेवोस्यान, वार्दकेस पेत्रोस्‍यान, कमारी तोनोइयान, पेर्च जेइतुनियान्त्स तथा गेवोर्क अर्शाकियान। यह सूची और भी लम्बी हो सकती है क्योंकि आज आर्मीनिया अपने प्रतिभाशाली गद्यकारों की सम्पदा पर अभूतपूर्व रूप से गर्व कर सकता है।

युद्धोतर वर्षों में जन्मे और लालित- पालित लोगों के युद्ध की तंगियों व पीड़ा से अनजान पीढ़ी के लोगों का व्यक्तित्व तथा सामाजिक आचरण एक महत्वपूर्ण समस्या के रूप में आज के आर्मीनियाई कहानीकारों का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं। शायद आज के साहित्य व कला में यह एक अन्तर्राष्ट्रीय विषयवस्तु है। अन्य सोवियत जनतन्त्रों के लेखकों के साथ आर्मीनियाई लेखक युवा पीढ़ी को बौद्धिक एवं सैद्धान्तिक रूप से चौकस रहने, जीवन के प्रति एक सचेत तथा उत्तरदायित्वपूर्ण रुख अख्तियार करने की सीख देते हैं। युवा पाठक के साथ इस आचारिक संलाप में हास्यास्पद मोड़ आते हैं जैसे खजहाक गियुलनजारियन की कहानी “छठे उपदेश” में ; अन्य स्थलों पर यह व्यंग्य का रूप धारण कर लेता है जैसे वार्दकेस पेत्रोस्‍यान की कहानी “शुभ प्रभात, जैक” में।

स्वभावतः, युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित करने का कार्य आज की आर्मिनियाई कहानियों के सम्मुख उपस्थित बहुत से भिन्न-भिन्न दायित्वों में एक है। कहानी-लेखन की ओर अधिकाधिक नये-नये आर्मीनियाई लेखक आकृष्ट हो रहे हैं। जिस तरह आर्मीनियाई साहित्य प्रतिभा सम्पन्न है, उसी तरह इस साहित्य का निर्माण करनेवाले लोग भी प्रतिभाशाली हैं। जब तक आर्मीनियाई लोगों ने अपने सुन्दर देश का भविष्य अपने हाथों में नहीं ले लिया, इनका दो हज़ार साल पुराना इतिहास कई परीक्षाओं से गुज़रता रहा है।

ग्रान्त मारतीरोसियान

 

 

 

इस संग्रह के लेखक

अक्सेल बाकुन्त्स (1899-1937)

किसान के बेटे इस क्लासिकी आर्मीनियाई लेखक का जन्म गोरिस में हुआ था। पहली कहानियाँ तीसरे दशक में लिखी गयीं। किसान जीवन के बारे में लेख व शब्द चित्र थे: “एक प्रान्तीय पत्रलेखन कला का संग्रह”, “हमारे गाँवों में”, “गाँव की चिट्टियाँ” तथा चार कहानी-संग्रह: “अन्धेरा दर्रा”, “काले खेतों का बीजरोपक”, “वर्षा” और “भ्रातृत्व वृक्ष”।

तीसरे दशक के अन्त में अक्सेल बाकुन्त्स ने दो बड़ी कृतियाँ लिखनी शुरू कीं : महाकाव्य “करमरकर” और ऐतिहासिक उपन्यास “खाचातुर अबोवियान” (लेकिन दोनों ही कृतियाँ पूरी नहीं हो सकीं)। उन्होंने एक व्यंग्यात्मक कथा पूरी की, “कियोरेस”(1935)। यह कृति आज भी सर्वश्रेष्ठ आर्मीनियाई व्यंग्यकथाओं में एक है।

“पाटल कुसुम” लेखक की नपी-तुली कथाशैली, उनकी काव्यात्मकता, मानवीय सम्बन्धों में उनकी रुचि तथा उनके तीक्ष्ण भाव बोध के लाक्षणिक गुणों से परिपूर्ण है।

देरेनिक देमिर्चियान (1877 - 1956)

“जनता और जनता की खुशी एकमात्र सही पैमाना है, एकमात्र सही साहित्यिक मार्ग है...” कवि, गद्यकार, नाटककार व व्यंग्यकार देरेनिक देमिर्चियान इन्हीं शब्दों में लेखकीय दायित्व का निर्धारण करते हैं।

एक गरीब दुकानदार के बेटे देरेनिक ने स्विटज़रलैण्ड में शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त किया और 1910 से 1922 तक तिफ़लिस के स्कूलों में वह आर्मीनियाई भाषा एवं साहित्य का अध्यापन करते रहे।

देमिर्चियान की पहली पुस्तक कविताएँ 1899 में प्रकाशित हुई थी। काकेशिया में सोवियत सत्ता की स्थापना से पहले ही उनकी कविताएँ, कहानियाँ एवं नाटक प्रकाशित हो चुके थे। लेकिन परिपक्वता उन्हें सोवियत काल में ही प्राप्त हुई। 1920 से 1940 के बीच में लिखी उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ हैं: “बहादुर नज़र” (कॉमेडी), “गैरमामूल”, “मेर्के व सातों” (कहानियाँ) ; “रशीद” व “निग्यार” (लघु उपन्यास); और “वार्दानान्क” (ऐतिहासिक उपन्यास)। अपने जीवन के अन्तिम वर्षों में देरेनिक देमिर्चियान ने नये समाज का निर्माण करनेवाले लोगों की जीती-जागती तस्वीर पेश करते हुए कई कहानियाँ लिखीं।

“एक पुस्तक की कहानी” उनकी दार्शनिक कहानियों में एक है। यह उनके काव्यात्मक चिन्तन को प्रतिबिम्बित करती

अवेतिक इसाकियान (1875-1957)

कवि इसाकियान अप्रतिम हैं; आज यूरोप में उनकी जैसी शुभ्र एवं बेलाग प्रतिभा कोई दूसरी नहीं... 1916 में रूसी कवि अलेक्सान्दर ब्लोक ने उनके बारे में लिखा था।

इसाकियान का जन्म अलेक्सान्द्रोप्‍ल में हुआ था। उनकी कविताओं का पहला संग्रह “गीत और जख्म” 1868 में प्रकाशित हुआ था। इसके प्रकाशन के बाद ही युवा कवि को मान्यता प्राप्त हो गयी थी। इसके बाद उनकी कविताओं के अन्य कई संग्रह प्रकाशित हुए।

जारशाही के विरुद्ध कार्यकलाप के कारण अवेतिक इसाकियान को 1908 में गिरफ्तार करके तिफ़लिस के मेतेखी क़िले में क़ैद कर दिया गया था। क़ैद से छोड़ने के बाद उन्हें मातृभूमि से भागने को मजबूर कर दिया गया। वह 1936 में अपनी मातृभूमि लौटे।

लेखक के रूप में अवेतिक इसाकियान आर्मीनिया लौटने के बाद ही फले-फूले। उन्होंने कई कविताएँ व रोचक कहानियाँ लिखीं। उनमें सर्वश्रेष्ठ हैं: “धैर्य-लहरी”, “हमारी पताका”, “बैरम अली”, “गुएर्निका का प्रिय देवदार” तथा अन्य।

लेखक ने पत्रकारिता पर अपना बहुत-सा समय व शक्ति लगायी। जनता को सम्बोधित उनके भाषण तथा लेख देशभक्ति एवं जनगण के बीच मैत्री की भावना से ओतप्रोत हैं।

राफ़ेल अरामियान (1921-1978)

उनका जन्म एचमियादिजन में हुआ था। वह एक कार्यालय कर्मचारी के बेटे थे। लड़ाई के दौरान उन्होंने येरेवान विश्वविद्यालय से स्नातक की परीक्षा पास की (1942) और उसी वर्ष वह मोर्चे को रवाना हो गये।

उनकी कहानियों का पहला संग्रह, मेरे नगर के स्वर, 1946 में प्रका- शित हुआ। इसके बाद उनकी अनेक पुस्तकें छपीं।

राफ़ेल अरामियान प्राय: बौद्धिक कथावस्तु चुनते हैं। उनकी दिलचस्पी मानवीय संवेगों एवं विचारों में, नीतिशास्त्र एवं नैतिकता की समस्याओं में है। मटकी ले पनिया भरन को गयी कहानी महान आर्मीनियाई संगीतकार व लोकगीतों के संग्रहकर्त्ता कोमितास को समर्पित है।

होवान्नेस तुमानियान (1869-1923)

एक विशिष्ट आर्मीनियाई कवि व लेखक हैं। “तुमानियान की कविता स्वयं आर्मनिया है, एक महान कलाकार द्वारा पुनरुज्जीवित एवं स्थायीकृत।” रूसी कवि वालेरी ब्रियुसोव ने तुमानियान के बारे में लिखा है।

गाँव के डीकन के बेटे तुमानियान का जन्म लोरी में हुआ था। तिफ़लिस सेमिनरी में उन्होंने अध्ययन किया लेकिन साधनों के प्रभाव के कारण अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सके। सेमिनरी अध्ययन के दौरान ही तुमानियान कवि के रूप में उभरे। उनकी कविताओं का पहला संग्रह 1860 के दशक में प्रकाशित हुआ था।

आर्मीनियाई साहित्य में होवान्नेस तुमानियान की भूमिका की तुलना रूसी संस्कृति के इतिहास में अलेक्सान्दर पुश्किन को भूमिका से की जा सकती है। तुमानियान की कृतियों में गद्य, पद्य, काव्य गाथाएं, परीकथाएं, रूपक तथा गाथा-गीत शामिल हैं। स्पष्ट कथावस्तु, नाटकीय परिस्थितियों एवं सुन्दर शैली के लिए लेखक का गद्य उल्लेखनीय है।

स्तेफ़ान जोरियान (1860-1967)

सोवियत आर्मीनियाई साहित्य के संस्थापकों में से एक। किसान के बेटे जोरियान का जन्म काराक्लिस में हुआ था। उनकी पहली कहानी “क्षुधित”, 1909 में छपी थी। उनकी कहानियों का पहला संग्रह 1919 में प्रकाशित हुआ था। इसका शीर्षक उनकी कृति के लिए लाक्षणिक है: दुखी लोग।

जोरियान एक लेखक के रूप में आर्मीनियाई इतिहास के उस काल में चमके जो सोवियत सत्ता की स्थापना के साथ शुरू हुआ। उनके लघु उपन्यास क्रान्तिकारी समिति का अध्यक्ष (1923) और पुस्तकालयवाली लड़की (1925), क्रान्ति एवं गृहयुद्ध से सम्बन्धित आर्मीनियाई गद्य कृतियों में उल्लेखनीय हैं। सफ़ेद नगर (1929) का विषय समाजवादी पुनर्निर्माण से सम्बन्धित है। चौथे दशक के आखिर में जोरियान ने एक आदमी का जीवन नामक आत्मकथात्मक उपन्यास पूरा किया। इसमें एक आदमी की नियति किस तरह लोगों की नियति का अभिन्न अंग होती है, इसका चित्रण है। इसके बाद “किंग पैप” (1943) और “आर्मीनियाई दुर्ग” (1960), दो ऐतिहासिक उपन्यास तथा “अमीरियन परिवार” नामक उपन्यास प्रकाशित हुए। साथ ही, बड़ों व बच्चों के लिए बहुत सारी कहानियाँ भी छपीं। स्तेफ़ान जोरियान नामी-गरामी अनुवादक भी थे। उन्होंने लेव तोल्स्तोय, इवान तुर्गनेव, मार्क ट्वेन तथा अन्य कई लेखकों की कृतियों का आर्मीनियाई भाषा में अनुवाद किया।

सुरेन ऐवाजियन (1915-1981)

व्यवसाय से अध्यापक। 1934 से 1936 तक उन्होंने गाँव के, फिर बाकू के स्कूल में अध्यापन किया। पहली कहानी 1937 में छपी थी। फिर कोम्मुनिस्त समाचारपत्र के सम्पादकीय विभाग में आ गये। पत्रिका के सांस्कृतिक विभाग के वही कर्ता-धर्ता थे। युद्धारम्भ होने के बाद युवा लेखक मोर्चे पर जा पहुँचा लेकिन युद्ध सम्बन्धी कहानियाँ व वृत्तान्तचित्र लिखता रहा। कहानियों का पहला संग्रह, “अधूरा कालीन” 1947 में प्रकाशित हुआ। सुरेन ऐवाजियन कई कहानी संग्रहों व उपन्यासों के लेखक हैं।

“अन्धेरे-उजाले” कहानी में गृह युद्ध के समय की एक घटना का वर्णन है।

मोवसेस अराज़ी (1878-1964)

किसान के बेटे। 1899 में उन्होंने सेण्ट पीटर्सबुर्ग तकनीकी संस्थान में प्रवेश लिया लेकिन क्रान्तिकारी संघर्ष में सक्रिय सहभागिता के कारण वहाँ से निकाल दिये जाने पर मातृभूमि आर्मीनिया में लौट आये। यहाँ उन्होंने खुद को क्रान्तिकारी व साहित्यिक कार्य के प्रति अर्पित कर दिया। 1906 में मूर्च (हथौड़ा) पत्रिका में प्रकाशित उनकी पहली कहानी पादरियों की भूमि के विरुद्ध डोन कार्पेट का आन्दोलन”, बुर्जुआ राष्ट्रवाद का पर्दाफ़ाश थी। बाद में दूसरी कहानियाँ भी छपीं। इस काल की मोवसेस अराजी की कहानियाँ अधिकांशतया रूपकात्मक हैं अथवा प्रतीकात्मक गुलकारी से ओतप्रोत हैं। वे गीतात्मक हैं किन्तु इसके साथ ही, उनमें निश्चित सामाजिक सारतत्व भी है।

लेखक के रूप में मोवसेस अराजी सोवियत काल में परिपक्व हुए। क्रान्ति के बाद उनकी लिखी कहानियाँ पुरानी जीवन-प्रणाली की समाप्ति तथा एक नयी क़िस्म के के नायक के सृजन का चित्रांकन करती हैं।

चौथे दशक की लेखक की महत्वपूर्ण कृतियों में दो लघु उपन्यास “चाँदनी में” और “झरने की दीप्ति में” तथा “जलते क्षितिज” उपन्यास हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मोवसेस अराजी ने कहानियों का एक संग्रह “अविजित” शीर्षक से प्रकाशित कराया। यह संग्रह स्वदेशी मोर्चे के नायकों को अर्पित था। “इस्राइल-ओरी” नामक ऐतिहासिक उपन्यास लेखक की अन्तिम महत्वपूर्ण कृति था।

“कायापलट” (1925) मोवसेस अराजी की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में एक है और मक्सीम गोर्की ने इसकी बड़ी प्रशंसा की थी।

राचिया कोचर (1910- 1965)

उनका जन्म पश्चिमी आर्मीनिया में हुआ था और बालपन में ही उन्होंने तुर्क राष्ट्रवादियों द्वारा आर्मीनियाइयों का क़त्लेआम देखा था। तुर्कों से बचने के प्रयास में भागते हुए राचिया कोचर का परिवार एचमियादि्जन के परिसर में जा बसा।

राचिया कोचर की शिक्षा-दीक्षा सोवियत आर्मीनिया में हुई। चौथे दशक में उन्होंने आर्मीनियाई लेखक संघ के साहित्यिक विश्वविद्यालय में प्रवेश पाया।

राचिया कोचर ने अपनी पहली महत्वपूर्ण कृति “वान वेर्दियान” 1934 में प्रकाशित करायी। इसके बाद “ओग्सेन वास्‍पुर की यात्रा” (1937) प्रकाशित हुई। दोनों पुस्तकें बुद्धिजीवियों के बारे में हैं और दोनों उल्लेखनीय रूप से गीतात्मक हैं लेकिन इसके साथ ही उनमें लेखक की नागरिक चेतना भी प्रतिबिम्बित है।

युद्ध व युद्धोत्तर वर्ष लेखक के सर्वाधिक सृजनात्मक काल हैं। युद्ध संवाददाता के रूप में राचिया कोचर नाज़ियों के विरुद्ध सोवियत जनगण के वीरतापूर्ण संघर्ष के एक चश्मदीद गवाह थे। इस काल के उनके निबन्ध एवं कहानियाँ तीन संग्रहों में संकलित हैं : “पूर्ववेला में” (1942), “नायक पैदा होते हैं” (1942) और “पुण्य प्रतिज्ञा” (1945)।

युद्ध के वर्षों में देखी जानी उनकी समस्त अनुभूतियाँ दो खण्डोंवाले उनके उपन्यास में प्रतिबिम्बित हैं। उपन्यास का नाम है, “एक बड़े मकान के बच्चे” (1953-1957) यह सर्वाधिक दिलचस्प आर्मीनियाई उपन्यासों में एक है।

विगेन खेचुमियाँ (1916-1975)

उनका जन्म येरेवान में हुआ था। वह एक कार्यालय कर्मचारी के बेटे थे। 1941 में येरेवान विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से स्नातक होने के बाद वह प्राचीन पाण्डुलिपियों के सबसे बड़े आर्मीनियाई संग्रहालय “मातेनादरन” में काम करने चले गये। वह अपने छात्र जीवन से ही लिखने लगे थे लेकिन लड़ाई शुरू हो जाने के कारण उनकी सारी योजनाओं पर पानी फिर गया।

विगेन खेचुमियाँ के ऐतिहासिक लघु उपन्यासों का पहला संग्रह 1645 में प्रकाशित हुआ था। इनकी कथावस्तु मध्ययुगीन है और उसका आधार प्राचीन आर्मीनियाई पाण्डुलिपियाँ, आख्यान एवं कथाएं हैं। उनमें सर्वाधिक उल्लेखनीय “मेडोना” और “सुबह का फूल” है।

विगेन खेचुमियाँ कहानीकार के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं लेकिन इसके साथ ही साथ उनके उपन्यासों की भी सब ने प्रशंसा की है।

लेखक के लघु उपन्यास विविधतापूर्ण, समृद्ध और गीतात्मक हैं, वे ऐतिहासिक तथ्यों से परिपूर्ण हैं।

मकरतिच सरकिसियान (ज. 1924)

उनका जन्म खालकलाकी में हुआ था। माध्यमिक स्कूल से पास होने के बाद ही उन्हें मोर्चे पर जाना पड़ा। 1945 में सेना से कार्यमुक्त होने के बाद उन्होंने एक शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान में प्रवेश लिया।

अल्पवयस में ही मकरतिच सरकिसियान ने कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं। गद्य में उन्होंने बाद में हाथ आजमाया। उनके लिखे कई उपन्यास, काव्य संग्रह और कहानी संग्रह हैं। मकरतिच सरकिसियान की बहुत-सी रचनाओं का रूसी में अनुवाद हुआ है।

मकरतिच आर्मेन (1905-1972)

उनका जन्म लेनिनकान में हुआ था। वह एक शिल्पी के बेटे थे। 1632 में उन्होंने सिनेचित्रकला के राजकीय संस्थान के संवाद लेखन वि- भाग से स्नातक की परीक्षा पास की।

मकरतिच आर्मेन ने अपना पहला काव्य-संग्रह “शिर्कानल” 1925 में प्रकाशित कराया था। उनकी पहली कहानी, “अवसन्त आत्माओं के पथ पर” 1926 में छपी थी। अब तक लेखक की तीसाधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन में उल्लेखनीय हैं, एक अजरबैजानी नारी की मुक्ति- गाथा से सम्बन्धित “जुबैदा” (1932), प्राचीन गियुमरी (अब लेनिनाकान) के शिल्पियों की जीवन-प्रणाली से सम्बन्धित कथा पर आधारित “येखनार सोता” और युद्ध के वर्षों में यूराल में सोवियत लोगों के वीरतापूर्ण श्रम की कहानी कहनेवाली पुस्तक “यासवा”।

मकरतिच आर्मेन एक अनुवादक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने साहित्य, भाषा एवं लोक कला के बारे में निबन्ध भी लिखे हैं।

खजहाक गियुलनजारियन (ज. 1928)

उनका जन्म येरेवान में हुआ था। 1941 में इन्होंने येरेवान विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग से स्नातक किया। जब खजहाक गियुलनजारियन अभी 14 वर्ष के ही थे, उनकी कविता एक समाचार पत्र में छपी थी।

17 की आयु में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई थी। बड़ों व बच्चों के लिए खजहाक गियुलनजारियन अनेक पुस्तकें लिख चुके हैं।

“छठा उपदेश” कहानी लेखक की शैली का एक लाक्षणिक उदाहरण है।

सेरो खानजादियान (ज. 1915)

किसान के बेटे। लड़कपन में गड़ेरिये का काम किया। 1934 में स्नातक हो, उन्होंने मोरी नगर में प्राथमिक विद्यालय शिक्षक का प्रशिक्षण प्राप्त किया। 1941 में युद्धारम्भ से पहले तक पहाड़ी गाँवों में शिक्षक का काम करते रहे। फिर उन्हें मोर्चे पर बुला लिया गया। सेरो खानजादियान कई बार घायल हुए और कई बार पदकों से विभूषित किये गये।

सेरो खानजादियान की पहली पुस्तक “हमारी रेजिमेंट के लोग” (1946), लेनिनग्राद के साहसी रक्षकों की वीरगाथा है। इसे छपते ही लोकप्रियता प्राप्त हुई। उसके बाद से लेखक कई उपन्यास, कहानी-संग्रह तथा किशोरों व बच्चों के लिए पुस्तकें प्रकाशित करा चुके हैं। “सफ़ेद मेमना” की कथावस्तु चारित्रिक एवं नैतिक मूल्यों से सम्बन्धित है।

गेगम सेवान (ज. 1626)

“मेरा सपना साकार हो गया! मैं रट लगाये था कि अपनी मातृभूमि लौटने से पहले नहीं मरना चाहता, आर्मीनियाई प्रदेश और आर्मीनियाई राजधानी को अपनी आँखों से देखने से पहले नहीं मरना चाहता... और अब मेरा सपना सच हो गया है, गेगम सेवान ने लिखा था।

गेगम सेवान का जन्म इस्तानबुल में हुआ था। गेगम सेवान अब सोवियत आर्मीनिया के नागरिक हैं। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। गेगम सेवान के गद्य में कल्पना व वास्तविकता का समन्वय है। उन्हें लोगों से, इस धरती से जहाँ हम रहते हैं और सौन्दर्य से प्यार है।

वार्दकेस पेत्रोस्‍यान (ज. 1932)

उनका जन्म अश्ताराक के गाँव में हुआ था। 1954 में उन्होंने येरेवान विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग से स्नातक किया। फिर उन्होंने पत्रकार के रूप में समाचारपत्रों में काम शुरू किया।

वार्दकेस पेत्रोस्यान की पहली पुस्तक “एक आदमी की गाथा”, 1957 में छपी और इसके दो साल बाद ही एक कहानी संग्रह, “अन्तिम निशा”, प्रकाशित हुआ। तब से वह कई कहानी-संग्रह व लघु उपन्यास लिख व प्रकाशित करा चुके हैं।

वार्दकेस पेत्रोस्यान की समस्त कृतियाँ अच्छे चरित्र अध्ययन, यथार्थवादी स्थितियों और शैली की ताज़गी के लिए उल्लेखनीय हैं।

ग्रान्त मातेवोस्यान (ज. 1935)

सोवियत आर्मीनिया के एक विशिष्ट लेखक हैं। उनका जन्म अग्निद्ज़ोर गाँव में हुआ था। 1956 में उन्होंने येरेवान शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान के भाषाविज्ञान विभाग से स्नातक की परीक्षा पास की। पहले उन्होंने प्रूफ रीडर के रूप में और फिर संवाददाता के रूप में “ग्राकान तेर्त” (साहित्यक गजट) तथा “सोवेताकान ग्राकानुतियुन” (सोवियत साहित्य) पत्रिका में काम किया।

ग्रान्त मातेवोस्यान ने 1956 में लिखना शुरू किया। उनके लघु उपन्यासों व कहानियों को पाठकों की प्रशंसा प्राप्त हुई। उनकी कहानियों के पात्र पहाड़ों में रहनेवाले लोग हैं: गड़ेरिये, अंगूर उत्पादक, घास काटनेवाले तथा लुहार। उनके बारे में लिखी समीक्षाओं में से एक उद्धरण प्रस्तुत है : “आदमी की लौकिक वस्तुओं को परीकथा में रूपान्तरित कर देने के लिए आदमी के दैनिक कार्यकलाप में कविता को देख पाने के लिए सच्ची साहित्यिक प्रतिभा से सम्पन्न होना चाहिए और यही चीज मातेवोस्‍यान की रचनाओं को आर्मीनियाई गाँव का आख्यान कहना सम्भव बनाती है।”

एबिग अवाक्यान (ज. 1916)

उनका जन्म तेहरान में हुआ था।

एबिग अवाक्यान 1946 में सोवियत आर्मीनिया आये। उसी वर्ष वे सोवियत लेखक संघ के सदस्य बन गये।

उनकी पहली पुस्तक आर्मीनिया में ही छपी।

कहानी लेखक के रूप में एबिग अवाक्यान ज्यादा प्रसिद्ध हैं। कहानियों में उनकी वर्णन प्रतिभा एवं मानव प्रकृति की जानकारी सर्वाधिक अभिव्यक्त है।

नोरेयर अदालियन (ज. 1936)

उनका जन्म सिम्फ़ेरोपोल में हुआ था। 1958 में वह येरेवान विश्वविद्यालय के भाषाविज्ञान विभाग से स्नातक हुए।

उनकी पहली कहानी आर्मीनियाई पत्रिका “पायोनियर” में छपी थी। इसके बाद पहला कहानी संग्रह “मुड़के न देखो” (1963) और बाल पुस्तक “समोसे” प्रकाशित हुई। फिर उनका एक लघु उपन्यास तथा अनेक कहानियाँ छपीं जिन्हें पाठकों की मान्यता मिली।

 

INTRODUCTION

The stories in this collection were written by nineteen Armenian authors. They are men of different generations, outlook and literary style. Some write about a definite event, others seek a philosophical assessment of life.

This is a collection and not an anthology. An anthology of Armenian short stories, which genre has a history of several hundred years in Armenian letters and whose writers have gone down in the annals of world culture, would call for a many-volume edition.

However, while presenting this collection, one cannot but mention several authors-not represented here who were in their day landmarks in the history of Armenian short story writing. First among them is Khachatur Abovian. His short stories, written in the 1830s and 40s, were romantic, didactic and, at times, flowery in the true tradition of the East. They served to shape the short story into a literary genre which was soon to become one of the leading genres in Armenian letters. A bright galaxy of writers of the late 19th and early 20th centuries played an important role in bringing about this blossoming of the short story. These were: Raffi, Gabriel Sundukian, Akop Paronian, Rafael Patkanian, Grigor Zograb, Yervand Otian and Perch Proshian.

It must be noted that from the very start there was no one trend in Armenian short story writing. This was due, in part, to the fact that this genre attracted writers of various social and literary outlook. Besides, these authors belonged to two disparate branches of Armenian letters, known as the Eastern and Western branches. The representatives of the Eastern branch, who lived on Russian territory, were more socially conscious than the Western Armenian writers, who followed a different course, due to specific historic conditions.

This is what Nar-Dos wrote in his autobiography: "The words on my banner were 'Real life as it is and man's inner world.'" Many of Nar-Dos's contemporaries among the Eastern Armenian writers would have shared this motto with him. This signified the establishment of realism as a literary trend. It became firmly rooted in Armenian literature and was evident not only in the development of realistic themes, but in the writers' keen observation of the spiritual life of their people, in their expose of social contradictions and in their interest in moral and ethical problems. Thus, Nar-Dos presented the process of spiritual degradation and moral bankruptcy of the ruling classes and affirmed the viability of the working man, energetic, persevering and believing in his own strength.

At the turn of the century the psychological story, which reflected the characters' inner life under conditions of ever-deepening contradictions in society, came to play an important role in Armenian literature. The "little man" theme gained popularity, bringing to public notice a life that was truly dramatic and a fate that was tragic in its hopelessness. This theme, which in Russia came to be known as a "Chekhov story", received special emphasis in the work of Stefan Zorian ("Sad People", "The Inhabitants of the White House", etc.).

The history of the Armenian short story in the 20th century would be incomplete without mention of Hovannes Toumanian and Avetik Isaakian, two of the brightest stars in Armenian letters. Their great heritage is a synthesis of the best traditions of world literature and their own national art. A simplicity of style, humaneness, a deep understanding of the psychology, life, ways and customs of their people and their democratism have placed Hovannes Toumanian and Avetik Isaakian among the ranks of the world's outstanding writers. Valery Briusov called Toumanian's work an encyclopedia of pre-revolutionary life

in Armenia.

"My Friend Neso", a story by Toumanian included in this collection, was written as a remembrance of his childhood. It is characteristic of the writer's fervent protest against social injustice, which cripples a gifted personality.

Avetik Isaakian was a philosophical writer, with a marked preference for such themes as life and love. He sought to uncover the meaning of life and of love as one of its greatest manifestations. "Saadi's Last Spring" is a magnificent song to life, which is eternally beautiful and wondrous.

So, at the turn of the century, these two outstanding representatives of Armenian short story writing critically renounced the past and welcomed the morrow, the bright future of the Armenian people.

The Great October Socialist Revolution and the establishment of Soviet power in Armenia mark the beginning of a new era in Armenian literature. Now the voices of new heroes were to be heard, and new themes came to the fore. This new development was carried on by Derenik Demirchian, Stefan Zorian, Aksel Bakunts, and Movses Arazi, writers who had become established before the Revolution.

Stefan Zorian, a classic of Soviet Armenian literature, wrote about the fate of his native land and its people. A deep sense of history, combined with a keen understanding of contemporaneity, helped Zorian to portray the characteristic traits of modern man, the builder of a new way of life. The life-giving power of the Revolution, which brings forth the best in people, is portrayed in "The Girl from the Library".

The new heroes of the revolutionary epoch took their place in the work of Movses Arazi. "Comrade Mukuch", a landmark in its day, describes the awakening of the individual during the era of revolutionary change.

The work of Derenik Demirchian, another major writer of this period, is truly a chronicle of the history and life of the Armenian people. Demirchian was a poet, prose writer, playwright and journalist. He was always able to present life vividly, be it in a psychological sketch or an historic novel. "The Flowering of a Book", included in this volume, proclaims the immortality of a people's cultural treasures.

Aksel Bakunts is a prominent Soviet Armenian short story writer. His is the poetic image of Armenia, its breathtaking beauty, its proud and modest people. "The Alpine Violet", one of the gems of Armenian literature, presents a picture of the mountain regions of Armenia, the ways and customs of its people.

 

The modern Armenian short story has traversed difficult road that began at the inception of the Revolution, continued through the fires of the Civil War, to the peaceful building of socialism in the 1930s. From 1941 to 1945 this road lay through the battles of the Great Patriotic War against fascism. The years of post-war rehabilitation have been succeeded by the peaceful, creative labour of the past two decades.

The works of Soviet Armenia's writers on the Great Patriotic War are imbued with true patriotism, humaneness and internationalism. Such is "Thirst" by Rachia Kochar, included in this collection.

The war ended. The changes that were taking place in the life of the people who were building a better tomorrow were reflected in the short story. Now the heroes of the war-time stories were returning home to peaceful labour, as does Armenak in Vigen Khechumian's story "The Bridge". War had taught Armenak that the road which leads one person to another is the most important road on earth.

The post-war Armenian short story deals with the ethical and moral life of the individual. Thus do the paths of the writers of the older generation meet with the younger generation, with those who had fought in the war and with those who had begun publishing their works in the post-war years. These are: Gurgen Maari, Sero Khanzadian, Vigen Khechumian, Rafael Aramian, Abig Avakian, Grant Matevosian, Vardkes Petrosian, Kamari Tonoian, Perch Zeituniants and Gevork Arshakian. The list could be extended, for now, as never before, Armenia can boast of a wealth of talented prose writers.

The personalities and social behaviour of young people born and raised in the post-war years, a generation that has not known the privations and suffering of war, is an important problem that is today engaging the attention of a large number of Armenian short story writers. This is perhaps an international theme in literature and the arts today. Armenian writers, as writers of the other Soviet Republics, teach the youth to be spiritually and ideologically alert, to have an attentive and responsible attitude towards life and to develop the features of a future builder of a communist society. This ethical conversation with the youthful reader will at times take a humorous turn, as in Khazhak Giulnazarian's story "The Sixth Commandment"; at others, it will be a satire, as in Vardkes Petrosian's "Good Morning, Jack".

Naturally, the task of educating the younger generation is but one of the many different tasks facing the Armenian short story today.

Ever new Armenian writers are turning to "minor prose". Armenian literature is rich in talent, as are the people who have created this literature. The Armenian people have passed through many trials in their two-thousand-odd year history until they finally took their fate and the future of their beautiful country into their own hands.

Grant Martirosian

 

BIOGRAPHICAL NOTES

AKSEL BAKUNTS (1899-1937), Armenian classic, was born in Goris, the son of a peasant. His first stories were written in the 20s. These were essays and sketches on peasant life: A Provincial Letter-Writer, Our Villages, Letters from the Village, and four collections of short stories: The Dark Gorge, The Sower of Black Fields, Rain and A Nut Tree of Fraternity.

Towards the end of the 20s Bakunts began two major works, an epic Karmrakar and an historic novel Khachatur Abovian, both of which were never completed. He did complete a satiric novel entitled Kiores (1935) which remains one of the best Armenian satires.

The Alpine Violet is typical of the author's measured manner of story-telling, his lyricism, interest in human relations and keen sense of observation.

DERENIK DEMIRCHIAN (1877-1956). "The people and their happiness are the only correct yardstick, the only correct literary road." Thus did Derenik Demirchian, poet, prose writer, dramatist and satirist, determine a writer's calling.

The son of a poor shopkeeper, he received his training as a teacher in Switzerland, and taught Armenian and Armenian literature in the schools of Tiflis from 1910 to 1922.

Demirchian's first book, Poems, was published in 1899. Prior to the establishment of Soviet power in the Caucasus he published poetry, stories and plays. However, he reached his full maturity as a writer in Soviet times. The best of his works, written between 1920 and 1940, are: Brave Nazar, a comedy, The Extra One, Merke and Sato, short stories; Rashid and Nigyar, short novels; and Vardanank, an historical novel. During the last years of his life Demirchian wrote a number of short stories in which he created vivid images of people building a new life.

The Flowering of a Book is one of his philosophical stories which also reflects his poetic thinking.

 

AVETIK ISAAKIAN (1875-1957). "The poet Isaakian is magnificent; perhaps there is no other talent as bright and sincere in all of Europe today". Thus did the Russian poet Alexander Blok write in 1916.

Isaakian was born in Alexandrople. His first volume of poetry, Songs and Wounds, was published in 1898 and brought the young poet immediate recognition. Several other volumes of poetry followed.

Isaakian was arrested in 1908 for his activity directed against the tsarist regime and was imprisoned in Metekhi Fortress in Tiflis. After being released he was forced to emigrate, returning to his native land in 1936.

Isaakian flourished as an author after his return to Armenia, writing poetry and a number of interesting short stories, the best of which include A Pipe of Patience, We Have a Banner, Bair am Ali, 7 he Cherished Oak of Guernica and others.

The writer devoted much time and energy to journalism. His public appearances and articles were imbued with a sense of patriotism and friendship among peoples.

RAFAEL ARAMIAN was born in Echmiadzin in 1921, the son of an office worker. During the war he graduated from the University of Yerevan (1942) and left for the front the same year. He is one of a number of Armenian writers who began publishing their works soon after the war.

His first collection of short stories, 7he Voices of My City, appeared in 1946. This was followed by other collections and a novel The Rubinian Brothers.

Aramian often chooses the intellectual story. He is interested in human emotions and thoughts, in problems of ethics and morality. She Hook a Pitcher and Went for Water is dedicated to Komitas, the great Armenian musician and collector of folk songs.

HOVANNES TOUMANIAN (1869-1923), an outstanding Armenian poet and writer. "The poetry of Toumanian is Armenia itself, resurrected and immortalised in poems by a great master." Thus did the Russian poet Valery Briusov write of Toumanian.

Toumanian was born in Lori, the son of a village deacon. He studied at Tiflis Seminary, but a lack of means prevented him from completing his education. During his years at the seminary Toumanian blossomed as a poet, with his first volumes of poetry appearing in the 90s.

 

Hovannes Toumanian's role in Armenian literature can be compared to that played by Alexander Pushkin in the history of Russian culture. Toumanian's works include poetry, prose, epic tales, fairy-tales, fables and ballads. The writer's prose is notable for its clear-cut story lines, dramatic situations and fine style.

STEFAN ZORIAN (1890-1967), one of the founders of Soviet Armenian literature. Zorian was born in Karaklis, the son of a peasant. His first story, The Hungry Ones, was published in 1909. His first collection of short stories appeared in 1919. The title is characteristic of his work: Sad People.

Żorian flourished as a writer during the new period in Armenian history which began with the establishment of Soviet power. His short novels The Chairman of the Revolutionary Committee (1923) and The Girl from the Library (1925) are notable among Armenian prose works on the Revolution and the Civil War. White City (1929) deals with the period of socialist reconstruction. In the late 30s Zorian completed A Mans Life, an autobiographical novel in which one man's fate was portrayed as an integral part of the fate of the people. There followed King Pap (1943) and Armenian Fortress (1960), two historical novels, the novel The Amirian Fatnily and a great many short stories for adults and children. Stefan Zorian was also known as an excellent translator. He translated into Armenian the works of Lev Tolstoi, Turgenev, Mark Twain and many others.

SUREN AIVAZÍAN (b. 1915), a teacher by profession, taught in a village school from 1934 to 1936 and then in a school in Baku. His first short stories appeared in 1937. He then joined the staff of Kommunist, where he was in charge of the paper's cultural section. At the outbreak of the war the young writer went off to the front, but he continued writing short stories and sketches on war themes. The Unfinished Carpet, his first collection of short stories, appeared in 1947. Aivazian is the author of several collections of short stories and two novels, The Mountaineers and An Armenian s Fate.

On the Mountain describes an event which relates to the period of the Civil War. It shows the author to be a man of compassion and simplicity.

MOVSES ARAZI (1878-1964) was the son of a peasant. He

entered St. Petersburg Technological Institute in 1899, but was expelled for his active participation in the revolutionary struggle and went back to his native Armenia, where he devoted himself to revolutionary and literary work.

His first story, Don Karapet's Campaign Against the Land of Clerics, which appeared in the magazine March (The Hammer) in 1906, was an expose of bourgeois nationalism. Other short stories followed. Arazi's stories of this period are mostly allegorical or symbolical vignettes. They are lyrical, but at the same time have a definite social

content.

Arazi matured as a writer in Soviet times. His stories written after the Revolution portray the dying-out of the old way of life and the formation of a new type of hero.

The author's major works of the 30s are his short novels In the Moonlight and In the Glitter of the Waterfall, and his novel The Flaming Horizon. During the Second World War Arazi published a collection of stories entitled The Unconquered (1943), dedicated to the heroes of the home front. Israel-Ori, an historical novel, was the writer's last major work.

Comrade Mukuch (1925) is one of Arazi's best short stories and was highly praised by Maxim Gorky.

RACHIA KOCHAR (1910-1965) was born in Western Armenia and at an early age witnessed the massacre of the Armenians by the Young Turks. In fleeing from the Turks, Kochar's family moved to the environs of Echmiadzin.

Kochar received his education in Soviet Armenia. In the 30s he attended the literary university of the Armenian Writers' Union.

Kochar published his first major work Vaan Verdian in 1934. This was followed by The Journey of Ogsen V as pur (1937). Both books are about intellectuals and both are markedly lyrical while also reflecting his civic consciousness.

The war and post-war years were the author's most prolific period. As a war correspondent Kochar was an eye-witness of the Soviet people's heroic struggle against the nazis. His essays and short stories of this period comprised three collections: On the Eve (1942), Heroes Are Born (1942) and The Sacred Vow (1945).

All that he had seen and experienced during the war years is reflected in a two-volume novel entitled Children of a Big House (1953-1957), one of the most interesting contemporary Armenian novels.

VIGEN KHECHUMIAN was born in Yerevan in 1916, the son of an office worker. Upon graduating from the Department of History of Yerevan University in 1941 he went to work at Matenadaran, Armenia's greatest depository of ancient manuscripts. He began writing while still a student, but the outbreak of war disrupted his plans.

Khechumian's first collection of historical novellas was published in 1945. The stories are set in the Middle Ages and are based on ancient Armenian manuscripts, legends and tales. Most notable among them are The Madonna and Dawn's Flower.

Khechumian is known as a short story writer, though his one novel, A Book of Being (1967), has met with general acclaim

MKRTICH SARKISIAN was born in Akhalkalaki in 1924. He left for the front lines immediately after graduating from secondary school. After being demobilised in 1945 he entered a pedagogical institute.

Sarkisian began writing poetry at an early age and then tried his hand at prose. He is the author of two novels, Life Under Fire (1963) and Sentenced by Fate (1967), three books of poetry and four collections of short stories. Many of Sarkisian's works have been translated into Russian.

Mkrtich Sarkisian was for many years editor-in-chief of Grakan tert (Literary Gazette). At present he is the editor-in-chief of Aiastan, the Armenian State Publishing House. MKRTICH ARMEN was born in Leninakan in 1905, the son of an artisan. He graduated from the State Institute of Cinematography in 1932 (Department of Script-Writing).

Armen published Shirkanal, his first book of poetry, in 1925. His first short story, On the Street of Melancholy Souls, appeared in 1926. To date the writer has published over thirty books, the most notable of which are Zubeida, the story of an Azerbaijanian woman's emancipation, Yekhnar Spring, the story of the life and ways of the artisans of old Giumri (now Leninakan), and Yasva, a book about the heroic toil of the Soviet people in the Urals during the war years.

Armen is also known as a translator and is the author of articles on the theory of literature, language and folk art.

KHAZHAK GIULNAZARIAN was born in Yerevan in 1918. He graduated from the Department of Philology of Yerevan University in 1941. Giulnazarian had his first poem published in a newspaper at the age of 14. His first book appeared when the author was 17. Giulnazarian has written over twenty books for adults and children. A major war novel, The Horizon Ended Somewheres, appeared in 1966. The Sixth Commandment is a short story typical of the author's style. SERO KHANZADIAN (b. 1915), the son of a peasant, was a shepherd as a boy. He received his training as an elementary school teacher, graduating in 1934, and worked as a teacher in mountain villages until the outbreak of war in 1941, when he left for active service. Khanzadian was wounded in action several times and received several decorations.

Khanzadian's first book, The People of Our Regiment (1949), is about the courageous defenders of Leningrad. It won immediate acclaim. Since then the author has published several novels and collections of short stories, books for children and teenagers. 'The White Lamb deals with moral and ethical values.

GEGAM SEVAN (b. 1926). "My dream has come true! I kept saying that I didn't want to die before I returned to my dative land, before I saw the Armenian nation and the Armenian capital with my own eyes ... and now my dream has come true," Sevan wrote.

Sevan was born in Istanbul and lived abroad for many years. He studied law in Istanbul, then moved to Lybia, where he taught literature. Gegam Sevan was a member of the Communist Party of Lybia.

Sevan is now citizen of Soviet Armenia. He is the author of ten books, five of which have been published in the Soviet Union. Sevan's prose is both romantic and realistic. He admires man, the earth we live on and beauty.

VARDKES PETROSIAN was born in 1932 in the village of Ashtarak. He graduated from the Department of Journalism of Yerevan University in 1954 and has been on the staffs of district and republican youth and children’s newspapers. He is at present editor-in-chief of Garun (Spring) magazine.

Petrosian's first book, Ballad of a Man, appeared in 1957 and was followed two years later by The Last Night, a collection of short stories. He has since written and published several other collections of short stories and I'm Grown Up, Mamma, a short novel.

All of Petrosian's work is notable for good character studies, real situations and a freshness of style.

GRANT MATEVOSIAN is one of the outstanding writers of Soviet Armenia. He was born in the village of Agnidzor in 1935. In 1959 he graduated from the Department of Philology of Yerevan Pedagogical Institute. He worked as a proof-reader and then as a staff editor of Grakan terl (Literary Gazette) and Sovetakan grakanutiun (Soviet Literature).

Matevosian began writing in 1959. He is the author of three short novels and many short stories, all of which have won the acclaim of the reading public. The characters of his stories are the people of the mountains: shepherds, wine-growers, mowers and blacksmiths. To quote one of the reviews: "One must possess a true gift to transform the mundane into a fairy-tale, to see in man's everyday affairs the poetry which makes it possible to call Matevosian's stories a saga of the Armenian village."'

ABIG AVAKIAN was born in Teheran in 1919 and educated at the American college there. Following his graduation he served in the Iranian Air Force.

Avakian came to Soviet Armenia in 1946. He became a member of the Soviet Writers' Union that same year.

His early stories were published in Armenian and Persian magazines, but his first book appeared in Yerevan.

Since 1949 Avakian has published four collections of short stories, two short novels and a novel, Nazeli Delarian. He is best known as the writer of short stories in which his gift for description and his knowledge of human nature are best

NORAIR ADALIAN was born in Simferopol in 1936. He graduated from the Department of Philology of Yerevan University in 1958.

His first story appeared in the Armenian magazine Pioneer. This was followed by Don't Look Back (1963), his first collection of short stories, and Meat-Pies, a book for children. In 1965 Adalian published A Hot Summer and in 1967 The Snows of Aragats, a collection of short stories.

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