कविता - तानाशाह का न्याय / कविता कृष्णपल्लवी
तानाशाह का न्याय
कविता कृष्णपल्लवी
तानाशाह को कहीं से न्याय के
 जहाँगीरी घण्टे के बारे में पता चला
और उसने तय किया कि अबसे वह जहाँगीर की तरह न्याय किया करेगा।
फिर उसने मुख्य न्यायाधीश को 
आवारा पशुओं,शराबियों, चकलाघरों
और ट्रैफ़िक के नियम तोड़ने से सम्बंधित मामले 
निपटाने की ज़िम्मेदारी सौंप दी और खुद ही 
लोगों को न्याय देने लगा।
उसने अपने महल के दरवाज़े पर 
दुनिया का सबसे बड़ा घण्टा टंगवा दिया
और लोगों को न्याय की इस नयी व्यवस्था के बारे में
 बता दिया गया।
तानाशाह ने घण्टे की रस्सी अपने 
शयन कक्ष में बिस्तर के सिरहाने 
एक खूँटी से बँधवा दी।
जब उसे जी चाहता था 
वह खुद ही घण्टा बजाता था 
और न्याय करने के लिए रात-बिरात
सुबह-शाम-दोपहर, कभी भी 
बालकनी में निकल आता था।
तानाशाह खुद ही मुंसिफ़ की कुरसी पर बैठ जाता था 
और मुद्दा, मुद्दई और मुद्दालेह तय करता था
और ताबड़तोड़, एक के बाद एक 
मामले निपटाते हुए न्याय करता चला जाता था।
तानाशाह ने इतना न्याय किया, इतना 
न्याय किया कि सड़कें वीरान हो गयीं,
बस्तियाँ लहूलुहान हो गयीं,
जंगल-पहाड़ वीरान हो गये
और नदियाँ सूख गयीं।

 
 
 
बहुत ही उत्तम कविता है जो आज के हालात पर सटीक बैठ रही है। लेकिन दोष कुल्हाड़ी का नही है। बल्कि उसे ताकत देने वाली लकड़ी के हत्थे की। जिस कुल्हाड़ी के साथ मिलकर वह अपने ही जैसी कमोर लकड़ियों पर ज़ुल्म करती है।
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