क्या एक इंजेक्शन से बुखार/खांसी ठीक होता है?

क्या एक इंजेक्शन से बुखार/खांसी ठीक होता है?

डॉ. नवमीत

डॉ साहब बुखार हुआ है। खांसी भी है। टीका (इंजेक्शन) लगा दो।

इंजेक्शन की जरूरत नहीं है। न ही ऐसा कोई इंजेक्शन है जो एक डोज में बुखार खांसी को ठीक कर दे।
लेकिन पिछली बार मैं तो फलाने डॉक्टर के पास गया था। उसने एक टीका लगाया था और मेरा बुखार बिलकुल ठीक हो गया। बिना टीका लगाए मुझे आराम होता ही नहीं।
- इस तरह की बातचीत मेरे 10 साल के मेडिकल करियर के दौरान हजारों बार हुई है। मुझे आजतक ऐसी कोई दवा नहीं मिली है जो एक इंजेक्शन में बुखार ठीक कर दे।
लेकिन मरीज और कुछ "डॉक्टर" तो बिलकुल दावा करते हैं कि वे एक ही "टीके" से बुखार ठीक कर देते हैं या उनका बुखार ठीक हो गया था। तो यह कैसे होता है?

ज्यादातर बुखार के साथ खांसी जुकाम के केस वायरल इन्फेक्शन के होते हैं जो एक हफ्ते में खुद ब खुद ठीक हो जाता है। मरीज डॉक्टर के पास बुखार शुरू होने के 4-5 दिन बाद ही जाता है, तमाम घरेलू उपाय आजमाने के। वहां डॉक्टर "टीका" लगा देता है तो अगले दिन से यानि लक्षण शुरू होने के 6-7 दिन के बाद इन्फेक्शन वैसे ही खत्म हो चुका होता है। मरीज को लगता है कि डॉक्टर ने जबरदस्त "टीका" लगाया है।
एक और भी कारक इसमें रोल निभाता है। इसे मेडिकल की भाषा मे प्लेसिबो इफ़ेक्ट कहते हैं। कभी कभी मरीज को असल में बुखार होता ही नहीं, बल्कि उसे थकान की वजह से या साइकोलॉजिकली लगता है कि उसे बुखार है। ऐसे में "टीका" लगते ही उसके दिमाग को लगता है कि अब "टीका" लग गया है और वह स्वस्थ महसूस करने लगता है। झाड़ा लगाने वाले सयाने व बाबा लोग यही करते हैं।
एक और बात। ये जो एक टीका या दो टीके लगाने वाले "डॉक्टर" होते हैं इनकी एक फिक्स्ड कॉकटेल होती है। जेंटामाईसिन (एक एंटीबायोटिक), डेक्सामेथासोन (एक स्टेरॉयड) और पेरीनॉर्म (उल्टी रोकने की एक दवा)। इन दवाओं के इंजेक्शन बहुदा लगाए जाते हैं। ये वायरल इन्फेक्शन में कुछ काम नहीं करते। बस लगा दिए जाते हैं। अगर बैक्टीरियल इन्फेक्शन भी है तो भी जेंटामाईसीन की एक डोज वैसे भी काफी नहीं है और दूसरा सभी बैक्टीरिया पर यह असरदार ही नहीं है। ऐसे ही स्टेरॉयड की डोज वायरल या बैक्टीरियल बुखार पर किसी काम की नहीं होती बल्कि नुकसान ही करती है। आजकल जेंटामाईसिन की जगह ज्यादा हाई एन्ड एंटीबायोटिक्स जैसे Ceftriaxone या cefotaxim के शॉट दिए जाने लगे हैं। इन्हीं फिजूल के शॉट्स की वजह से एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस यानि बैक्टीरिया पर दवा का असर खत्म होने की प्रक्रिया में बहुत अधिक तेजी आ रही है जिसका खामियाजा गंभीर रूप से बीमार मरीजों को झेलना पड़ता है।
इन सबके बावजूद इस तरह की प्रैक्टिस धड़ल्ले से चल रही है। बिन बात इंजेक्शन का शॉट न लें। कोई डॉक्टर ऐसा दावा करता है तो वह झूठ बोल रहा है या फिर उसे इसका ज्ञान ही नहीं है। कुछ बीमारियों या स्थितियों के लिए किसी दवा का एक शॉट जरूर लगता है लेकिन एंटीबायोटिक्स या स्टेरॉयड उनमें शामिल नहीं हैं। वायरल बुखार के केस तो बिलकुल भी नहीं।

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