कहानी - डाकचौकी का चौकीदार / अलेक्सान्द्र पूश्किन Story - The Stationmaster / Alexander Pushkin
कहानी - डाकचौकी का चौकीदार / अलेक्सान्द्र पूश्किन ( मूल रूसी भाषा से अनुवाद आ. चारुमति रामदास) मुंशी सरकार का तानाशाह डाकचौकी का - राजकुमार व्याज़ेम्स्की डाकचौकी के चौकीदारों को किसने गालियाँ नहीं दी होंगी , किसका उनसे झगड़ा न हुआ होगा ? किसने क्रोध में आकर उनसे शिकायत पुस्तिका न माँगी होगी , जिसमें वह अपनी व्यर्थ की शिकायत दर्ज कर सकें: बदमिजाज़ी , बदतमीज़ी और बदसुलूकी के बारे में ? कौन उन्हें भूतपूर्व धूर्त मुंशी या फिर मूरोम के डाकू नहीं समझता , जो मानवता के नाम पर बदनुमा दाग़ हैं ? मगर , फिर भी , आइए , उनके स्थान पर स्वयम् को रखकर , उनके बारे में तटस्थता से विचार कर , उनके साथ कुछ इन्साफ़ करें। डाकचौकी का चौकीदार आख़िर क्या बला है ? चौदहवीं श्रेणी का पीड़ित-शोषित जीव , ताड़न-उत्पीड़न से जिसकी रक्षा कभी-कभार यह सरकारी वर्गीकरण कर देता है , मगर हमेशा नहीं (अपने पाठकों के विवेक पर आधारित है मेरा यह कथन)। क्या ज़िम्मेदारी है इस प्राणी की जिसे राजकुमार व्याज़ेम्स्की व्यंग्य से ‘ तानाशाह ’ कहता है ? यह कालेपानी की सज़ा तो नहीं ? न दिन में चैन , न रात में। उबाऊ सफ़र से संचित पूरे क्रोध को ...