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Showing posts from April, 2019

एक मजदूर महिला का अदालत में बयान व फांसी के तख्‍ते पर जा रहे मजदूर का अपनी पत्‍नी व बच्‍चों को पत्र

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एक मजदूर महिला का अदालत में बयान व फांसी के तख्‍ते पर जा रहे मजदूर का अपनी पत्‍नी व बच्‍चों को पत्र ये हैं मई दिवस के शहीद कॉमरेड अल्‍बर्ट पार्सन्‍स की जीवनसाथी लूसी पार्सन्‍स। दुनियाभर के मजदूरों को आठ घण्‍टे काम, आठ घण्‍टे आराम, आठ घण्‍टे मनाेरंजन के अधिकार के लिए संघर्ष करने को प्रेरित करने वाले मई दिवस के शहीदों का पूँजीपतियों ने जो दमन किया वो दिखाता है कि जब मजदूर एकजुट होता है तो वो किसी भी तरह के झूठ, फरेब का सहारा लेकर मजदूरों को मरवाते हैं, दबाते हैं। मई दिवस के शहीदों को मारने के पांच साल बाद उसी अदालत ने उन्‍हें बरी किया और कहा कि उनके खिलाफ सबूत अपर्याप्‍त थे। लूसी पार्सन्‍स का अदालत में दिया बयान नीचे दिया जा रहा है जो बताता है कि किस तरह मजदूर नायकों के परिवार भी उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ रहे थे। अल्‍बर्ट पार्सन्‍स ने लूसी और अपने बच्चों को जो पत्र लिखे, वो भी उसके बाद दिया जा रहा है जो दिखाता है कि मजदूर नायक किन आदर्शों के लिए अपना जीवन कुर्बान कर रहे थे।  अदालत में लूसी पार्सन्स का बयान ‘‘जज आल्टगेल्ड, क्या आप इस बात से इन्कार करेंगे कि आपक...

कविता - मैं एक ऐसे प्रधानमंत्री को जानता हूँ / हरमीस बोहेमियन

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मैं एक ऐसे प्रधानमंत्री को जानता हूँ    हरमीस बोहेमियन _________________________________ मानव-सभ्यता के सबसे क्रूरतम हत्यारे की हँसी अय्याश आततायी की सौम्यता   और धूर्ततम चोर के आँसू   एक उचित और निश्चित मात्रा में मिलाने से   तैयार होती है उसकी शक्ल The Dictator By BenHeine वह खाने में दंगा पसंद करता है   और पीने में विरोधियों का लहू   यूँ तो वह भय का खेल खेलता है   पर हत्या और गद्दारी उसके मुख्य शौक हैं उसकी उपस्थिति से मुझे लाखों मनुष्यों   के जलने की चीख और दुर्गंध आती है उसकी भाषा इतनी गिर चुकी है कि शब्दों को घिन्न आती है उसकी ज़ुबान तक जाने में मैंने उसे एक दिन संसद की छत पर टहलते देखा था   उसकी देह पर कपड़े तो थे   पर वो नंगा दिख रहा था   उसकी देह हजार हत्याओं के खून से सनी हुई थी उसने एक दिन मुझे बताया था कि   देश उसके सपने में भेड़ की शक्ल में आता है   जिसे वह सवेरा होने के पहले ही   भूनकर खा जाता है काफी मुमकिन है ...

फासीवाद / साम्‍प्रदायिकता विरोधी दस प्रसिद्ध कविताएं

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फासीवाद / साम्‍प्रदायिकता विरोधी दस प्रसिद्ध कविताएं (1) राजा ने आदेश दिया -- देवी प्रसाद मिश्र राजा ने आदेश दिया : बोलना बन्द क्योंकि लोग बोलते हैं तो राजा के विरुद्ध बोलते हैं राजा ने आदेश दिया : लिखना बन्द क्योंकि लोग लिखते हैं तो राजा के विरुद्ध लिखते हैं राजा ने आदेश दिया : चलना बन्द क्योंकि लोग चलते हैं तो राजा के विरुद्ध चलते हैं राजा ने आदेश दिया : हँसना बन्द क्योंकि लोग हँसते हैं तो राजा के विरुद्ध हँसते हैं राजा ने आदेश दिया : होना बन्द क्योंकि लोग होते हैं तो राजा के विरुद्ध होते हैं इस तरह राजा के आदेशों ने लोगों को उनकी छोटी-छोटी क्रियाओं का महत्त्व बताया (2) अन्धी वतन परस्ती हमको किस रस्ते ले जायेगी -- गौहर रज़ा (04-03-2016) धर्म में लिपटी वतन परस्ती क्या-क्या स्वांग रचायेगी मसली कलियाँ, झुलसा गुलशन, ज़र्द खि़ज़ाँ दिखलायेगी यूरोप जिस वहशत से अब भी सहमा-सहमा रहता है खतरा है यह वहशत मेरे मुल्क में आग लगायेगी जर्मन गैसकदों से अबतक खून की बदबू आती है अन्धी वतन परस्ती हम को उस रस्ते ले जायेगी अन्धे कुएँ में झूठ की नाव तेज़ चली ...

जियो को फायदा पहुँचाने के लिए बीएसएनएल को मोदी सरकार में किस तरह से बर्बाद किया गया, जानें।

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बीएसएनएल को मोदी सरकार में किस तरह से बर्बाद किया गया गिरीश मालवीय  यह बात सभी को पता है कि किस तरह से 4g स्पेक्ट्रम BSNL को न देकर बाकी सब कंपनियों को दिया गया। मोदी सरकार की मंशा जियो को प्रमोट करने की थी और उसी को आगे बढाने के लिए बीएसएनएल को धीमा जहर दिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रिलायंस को सिर्फ डेटा सर्विस के लिए लाइसेंस दिया गया था, लेकिन बाद में 40 हजार करोड़ रुपये की फीस की बजाय 1,600 करोड़ रुपये में ही वॉयस सर्विस का लाइसेंस दे दिया गया, लेकिन जियो के पास इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था और यही से मोदी सरकार ने बीएसएनएल के इंफ्रास्ट्रक्चर को धीरे धीरे जिओ को देना शुरू किया। 2014 में आते ही मोदी सरकार द्वारा एक टॉवर पॉलिसी की घोषणा की गयी और दबाव डालकर रिलायंस जिओ इंफोकॉम लिमिटेड से भारत संचार निगम लिमिटेड के साथ मास्‍टर शेयरिंग समझौता करवा दिया। इस समझौते के तहत रिलायंस जिओ बीएसएनएल के देशभर में मौजूद 62,000 टॉवर्स का उपयोग कर सकती थी। इनमें से 50,000 में ऑप्टिकल फाइबर कनेक्टिविटी उपलब्ध थी। यह जियो के लिए संजीवनी मिलने जैसा था क्योंकि वह चाहे कितना भी प...

महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन की जयंती (9 अप्रैल) के अवसर पर उनके कुछ उद्धरण

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महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन की जयंती (9 अप्रैल) के अवसर पर उनके कुछ उद्धरण आज महाविद्राेही राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिवस है। भारतीय इतिहास में ऐसे प्रचण्ड तूफानी व्यक्तित्व बहुत कम हैं। बहुत छाेटी उम्र में घर परिवार से निकल पड़ना, फिर महन्त बने, महन्त से आर्यसमाजी, फिर बौद्ध और अन्त में कम्युनिस्ट, दुनिया काे देखा किताबाें में नहीं बल्कि संघर्ष भरी यात्रा में। लाेगाें से संवाद किया। 36 भाषायें सीख डाली। किसानाें की लड़ाई लड़ते हुए कई बार जेल गये। जाति-मजहब और पुरानी रूढियाें काे विचाराें की ताप से जलाकर भस्म कर दिये। लिखते-पढ़तेे-लड़ते-लाेगाें की मानसिक गुलामी पर चाेट करते हुए वाे अन्तिम सांस लिये। आज इस मौके पर पेश हैं राहुल सांकृत्यायन की किताबाें से कुछ उद्धरण, हमें अपनी मानसिक दासता की बेड़ी की एक-एक कड़ी को बेदर्दी के साथ तोड़कर फ़ेंकने के लिए तैयार रहना चाहिये। बाहरी क्रान्ति से कहीं ज्यादा ज़रूरत मानसिक क्रान्ति की है। हमें आगे-पीछे-दाहिने-बांये दोनों हाथों से नंगी तलवारें नचाते हुए अपनी सभी रुढ़ियों को काटकर आगे बढ़ना होगा। असल बात तो यह है कि ...

सौ साल पहले की कविता - चौकीदार Poem written hundred years ago - The Watchman

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चौकीदार आज से लगभग सौ साल पहले अमेरिकन कवयित्री मिरियम वेडर [Miriam Vedder (1894-1983)] ने एक कविता लिखी थी, चौकीदार। पिछले दिनों टेलीग्राफ़ (कोलकाता) ने इसे पहले पन्ने पर प्रकाशित किया था। देशबंधु अख़बार ने इसका हिंदी अनुवाद छापा। तंग-संकरी गलियों से गुजरते धीमे और सधे कदमों से चौकीदार ने लहरायी थी अपनी लालटेन और कहा था - सब कुछ ठीक है बंद जाली के पीछे बैठी थी एक औरत जिसके पास अब बचा कुछ भी न था बेचने के लिए चौकीदार ठिठका था उसके दरवाजे पर  और चीखा था ऊंची आवाज में - सब कुछ ठीक है घुप्प अंधेरे में ठिठुर रहा था एक बूढ़ा जिसके पास नहीं था खाने को एक भी दाना चौकीदार की चीख पर वह होंठों ही होंठों में बुदबुदाया - सब कुछ ठीक है सुनसान सड़क नापते हुए गुजर रहा था चौकीदार मौन में डूबे एक घर के सामने से  जहां एक बच्चे की मौत हुई थी खिड़की के कांच के पीछे झिलमिला रही थी एक पिघलती मोमबत्ती और चौकीदार ने चीख कर कहा था - सब कुछ ठीक है चौकीदार ने बितायी अपनी रात इसी तरह धीमे और सधे कदमों से चलते हुए तंग-संकरी गलियों को सुनाते हुए ...