क्या प्रधानमंत्री मोदी मध्य प्रदेश की एक सभा में रवीश का लिखा एक भाषण पढ़ सकते हैं


क्या प्रधानमंत्री मोदी मध्य प्रदेश की एक सभा में मेरा लिखा एक भाषण पढ़ सकते हैं

रवीश कुमार
रवीश कुमार के ब्‍लॉग कस्‍बा से साभार 

भाइयों और बहनों,
आज मैंने भाषण का तरीका बदल दिया है। मैंने अलग अलग फार्मेट में भाषण दिए हैं लेकिन आज मैं वो करने जा रहा हूं जो कांग्रेस के नेता पिछले सत्तर साल में नहीं कर सके। मैंने रटा-रटाया भाषण छोड़ कर कुछ नया करने का फैसला किया है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि यह भाषण रवीश कुमार ने लिखा है, लेकिन दोस्तों, भाषण कोई भी लिखे, अगर वह राष्ट्रहित में है। पर मैंने भी कह दिया कि मैं पढूंगा वही जो सरकारी दस्तावेज़ पर आधारित होता है। रवीश कुमार मान गए और उन्होंने मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग की वेबसाइट से 2015-16 की रिपोर्ट निकाली। 2016-17 और 2017-18 की रिपोर्ट ही नहीं है, वेबसाइट पर।
मैं तो कहता हूं कि रिपोर्ट होगी मगर सबको खोजना नहीं आता है। ये जो स्पीच राइटर हैं आप तो जानते हैं न इनको। अरे, दो दो साल की रपट वेबसाइट पर नहीं है तो क्या हुआ। जो है उसी को पढ़ेंगे। हमें पूरा भरोसा है हम किसी भी साल नौजवानों को पीछे रखने में पीछे नहीं हटे हैं। मैंने भी कहा कि मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार के 15 साल काम ही काम के साल रहे हैं, पत्रकार भाई तुम 2015-16 की रिपोर्ट से ही भाषण बनाओ। मैं पढ़ दूंगा। डेटा नया ऑयल है। तो जो सरकारी डेटा है उससे हमें तेल निकालना आता है।
मित्रों,
मेरे मध्य प्रदेश में 437 शासकीय महाविद्यालय हैं। गर्वनमेंट कालेज। 437 कालेज भाइयों, बहनों। ये कालेज आपके पैसे से चलते हैं। जबकि 800 से अधिक कालेज ऐसे हैं जिसके लिए आप टैक्स नहीं देते मगर मोटी फीस देकर चला रहे हैं। प्राइवेट से लेकर पब्लिक सेक्टर सब आप ही चला रहे हैं। 1300 से ज़्यादा कालेज हैं। कालेज की कोई कमीं हमने मध्य प्रदेश की जनता को नहीं होने दी है। 2015-16 की रिपोर्ट है। लॉ कालेज के लिए 28 प्रिसिंपल के पद स्वीकृत थे। 28 के 28 खाली थे भाइयों बहनों। प्रिंसिपल की कोई ज़रूरत ही नहीं है। बेवजह नियम बनाते रहते हैं। हम मिनिमम गर्वनमेंट मैक्सिमम गर्वनेंस की बात करते हैं। ये कालेज बिना प्रिंसिपल के अपने आप चलते रहे हैं।
हमने कालेज ही नहीं, क्लास रूम को भी ख़ाली रखा है। नौजवान क्लास में आए, बात-विचार करें, आपस में चर्चा करें, कैंपस में तोप देखें, तिरंगा देखें, अब टीचर होंगे तो ये सब कहां कर पाएंगे। राष्ट्रवाद का निर्माण कहां हो पाएगा। इसलिए 2015-16 की सालाना रिपोर्ट कहती है, और ये मैं नहीं कह रहा हूं। उच्च शिक्षा विभाग की रिपोर्ट कहती है, 704 प्राध्यापक होने चाहिए थे, हमने 474 रखे ही नहीं। 7412 असिस्टेंट प्रोफेसर होने चाहिएं, शिवराज जी ने कहा कि 3025 असिस्टेंट प्रोफेसर रखने की कोई ज़रूरत नहीं है। हमारा युवा खुद ही प्रोफेसर है। वो तो बड़े बड़े को पढ़ा देता है जी, उसे कौन पढ़ाएगा। हर युवा मास्टर है, उसका मास्टर कोई नहीं। यह हमारा नारा है। नारा मैं ख़ुद लिख रहा हूं, रवीश कुमार नहीं। पत्रकार लोग डेटा-वेटा करते रहते हैं, चुनाव उससे नहीं होता लेकिन हमने कहा कि चलो भाई आज शिक्षा को मुद्दा बना ही देते हैं।
लाइब्रेरी की कोई ज़रूरत नहीं है। आप तो स्मार्ट फोन से सब पढ़ लेते हो। 264 महाविद्यालयों औऱ यूनिवर्सिटी में वाई फाई की सुविधा दे दी गई है। आपको मिल रही है कि नहीं, मिल रही है। हाथ उठा कर बोलिए, आपके कालेज में वाई फाई है या नहीं। 391 लाइब्रेरियन के पद मंज़ूर हैं लेकिन 253 पद ख़ाली रख छोड़े थे हमने। एक कालेज में प्रिंसिपल से लेकर प्राध्यक के बहुत पद होते हैं। इस तरह से दोस्तों 9377 पद पर लोग होने चाहिए थे, 4374 पद ख़ाली थे दोस्तों, 4374। क्या क्या नहीं ख़ाली था। प्रिंसिपल, प्राध्यपक, असिस्टेंट प्रोफेसर, क्रीड़ा अधिकारी, रजिस्ट्रार हमने सब ख़ाली रख छोड़े हैं। ऐसा नहीं है कि हमने भर्ती न करने की कसम खा ली हो।
हम विज्ञापन निकालते रहते हैं। 2015-16 में 2371 पदों की बहाली निकाली थी। अब ये पता नहीं कि बहाली हुई या नहीं, काश 2016-17 की रपट भी वेबसाइट पर मिल जाती। मध्य प्रदेश का पौने छह लाख युवा कालेजों में बिना प्राध्यापक, सहायक प्राध्यापक के ही पढ़ा रहा है। हमारे युवाओं ने दुनिया को दिखा दिया है। हमारा युवा देश मांगता है, कालेज और कालेज में टीचर नहीं मांगता है। वो देश के लिए ख़ुद चार घंटा अधिक पढ़ लेगा। और ट्यूशन के लिए मास्टर कहां कम हैं। तभी तो हम स्कूटी और मोपेड देने वाले हैं ताकि बच्चे कालेज कम जाएं, सीधे ट्यूशन जाएं।
परमानेंट टीचर का झंझट ही छोड़ दिया। इस साल तो शिवराज सिंह चौहान ने अतिथि विद्वानों का मानदेय न्यूनतम 30,000 कर दिया है वर्ना कई साल तक तो वे न्यूनतम मज़दूरी से भी कम पर पढ़ा रहे थे। इसे त्याग कहते हैं। 15 साल हमने यूं ही राज नहीं किए हैं। तभी तो चुनाव के कारण हमने जुलाई में न्यूनतम 30,000 कर दिया। दिवाली आई तो हमने कहा कि एक महीने की सैलरी दे दो ताकि लगे कि सैलरी मिल सकती है। पांच महीने में एक महीने की सैलरी दे दो, नौजवान काम करने के लिए तैयार है। हम तो वो भी नहीं देते मगर राज्य मानवाधिकार आयोग ने नोटिस दे दिया कि इन्हें सैलरी दी जाए। तभी कहता हूं कि विकास के काम में ये मानवाधिकार आयोग वाले बहुत रोड़ा अटकाते हैं। कोई नहीं, हमने भी चार महीने की सैलरी नहीं दी। एक ही महीने की दी। दीवाली का ख़र्चा ही क्या है। पटाखे तो बैन हो गए हैं। दीया तो मिट्टी से बन जाता है।
अब देखिए, चार महीने की सैलरी नहीं दी है तब भी अतिथि विद्वान कालेज जा रहे हैं। पढ़ा रहे हैं। विरोधी कहते हैं कि तिरंगा और तोप का कोई लाभ नहीं। ये सब कैसे हो रहा है, मित्रों, मैं मानता हूं कि राष्ट्रवाद के कारण हो रहा है। राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित नौजवान बिना सैलरी के पढ़ा रहे हैं और बिना टीचर के पढ़ रहे हैं। ये लिबरल और अबर्न नक्सल कुछ भी कहते रहें, आज देश को शिक्षा की ज़रूरत ही नहीं है। हमने उसकी ज़रूरत ही ख़त्म कर दी है। हम नए विचारों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं।
हम अतिथि विद्वानों को छुट्टी भी नहीं देते हैं। छुट्टी लेते हैं तो सैलरी काट लेते हैं। मित्रों, मैंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है। ये अतिथि विद्वान ही असली मोदी हैं। बिना छुटटी के पढ़ा रहे हैं। साल में 1 लाख 20,00 लेकर पढ़ाने वाले दुनिया में ऐसे शिक्षक कहीं नहीं मिलेंगे। शहरों में दिक्कत होती है, मैं मानता हूं। इसलिए ज़्यादातर अतिथि विद्वानों को हमने गांवों में लगा रखा है। 2002 में एक कक्षा के 75 रुपये मिलते थे और एक दिन में चार कक्षा के पैसे मिलते थे। आंदोलन हो गया। हमने कहा बढ़ा दो। चार कक्षा की जगह तीन कक्षा के पैसे दे दिए। उनका कुछ बढ़ गया लेकिन हमारा बहुत नहीं घटा। मध्य प्रदेश के कालेजों में एम ए पास, नेट पास, पीएचडी किए नौजवानों ने कई साल देशहित में 13 हज़ार, 14 हज़ार महीने की कमाई पर पढ़ाया है। भाइयो, बहनो, ये देश मोदी नहीं चला रहा है। ये देश इन नौजवानों से चला रहा है। जो अपना भविष्य ख़तरे में डालकर राज्य का भविष्य संवार रहे हैं।
मित्रों, मेरा स्पीच रवीश कुमार ने लिखा है। उन्होंने अतिथि विद्वानों के नेता देवराज से बात कर ली है। देवराज ने इन्हें बता दिया है कि यूजीसी के हिसाब से 30 छात्र पर एक सहायक प्रोफेसर होना चाहिए। तो इस हिसाब से 12000 सहायक प्रोफेसर होने चाहिएं। सरकारी कालेजों में सहायक प्रोफेसर के लिए 7000 से अधिक पद मंज़ूर हैं लेकिन 5000 से अधिक शिक्षक अतिथि विद्वान हैं। हमन न तो किसी को परमानेंट रखा न इन अतिथि विद्वानों को कभी पूरी सैलरी दी। परमानेंट करता तो डेढ़ लाख महीने की सैलरी देनी पड़ती मगर यही नौजवान 15 साल से मात्र एक लाख की सैलरी में पूरा साल पढ़ा रहे थे। मध्य प्रदेश की जनता यू हीं मामा नहीं कहती हैं। भांजों का काम ही क्या है। मामा मामा करना है। मां भी खुश, मामा भी खुश।
यही नहीं जो जनभागीदारी से कालेज चलते हैं, वो भी चालाक हो गए हैं। एक ही शहर का एक कालेज एक शिक्षक को 18000 सैलरी देता था तो दूसरा कालेज उसी विषय को 10,000 में पढ़वा रहा था। भाजपा की सरकार ने उच्च शिक्षा पर उच्चतम पैसे बचाए हैं। आज तक किसी ने इसकी शिकायत की, किसी ने नहीं की। आंदोलन वगैरह होते रहते हैं मगर ये नौजवान जानते हैं कि इनका मामा अगर कोई है तो वो कौन है। भांजा कभी मामा से बग़ावत करता है क्या। भारतीय परंपरा है। भारतीय परंपरा है। हम संस्कार को शिक्षा के पहले रखते हैं। पहले राष्ट्रवाद, फिर संस्कार और दोनों से सरकार।
अभी हम इन अतिथि विद्वानों को भी निकालने वाले हैं। अप्रैल में 3200 की वेकैंसी निकाली थी, 2600 का रिज़ल्ट निकला है। अभी ज्वाइनिंग नहीं हुई है। इनके कालेज जाते ही, पुराने अतिथि विद्वान निकाल दिए जाएंगे। नए नौजवान आएंगे और जमकर पढ़ाएंगे। इस तरह से अगर हम पंद्रह पंद्रह साल में परमानेंट शिक्षक की भर्ती करें तो शिक्षा का बजट कितना कम हो सकता है। मित्रों, मैं रवीश कुमार की बात से सहमत नहीं हूं कि नौजवानों की पोलिटिकल क्वालिटी थर्ड क्लास है।
आज मध्य प्रदेश के नौजवानों ने बिना टीचर के पढ़ कर दुनिया को दिखा दिया है। मध्य प्रदेश के पढ़े लिखे नौजवानों ने दस दस साल एक लाख रुपये में पूरे साल पढ़ा कर जो दिखाया है, वह बताता है कि इनकी पोलिटिकल समझ थर्ड क्लास नहीं है। इनके मां बाप ने शिकायत नहीं की। इन्होंने शिकायत नहीं की। अब आप ही पूछो कि रवीश कुमार को क्या प्राब्लम है। उन्हें क्यों शिकायत है?
मैं बधाई देता हूं कि हमने मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा का विकास किया है। मैं तो कहता हूं कि आ जाए कोई हमसे इस मामले में बहस कर ले। मेरे मध्य प्रदेश के नौजवान किसी से बहस नहीं करते। वैसे चुनावों में बातें तो बहुत होती हैं मगर शिक्षा पर कोई भी मुझसे बात कर ले। पूछो जो पूछना है, मैं जवाब दूंगा। अरे पूछोगे तब न जब हम तुमको पूछने के लायक बनाएंगे। भारत माता की जय। भारत माता की जय।
नोट- दोस्तों, चुनाव दर चुनाव मैंने देखा है कि शिक्षा जैसे ज़रूर विषय पर बात नहीं होती। नेता बात नहीं करते, जनता बात नहीं करती है। तो सोचा कि लिखने की शैली में बदलाव करता हूं। प्रधानमंत्री के करीब हो जाता हूं। उनका भाषण लिख देता हूं। एक कोशिश करता हूं कि चुनाव में शिक्षा की बात हो। नौजवान मध्य प्रदेश के कालेज, क्लास रूम की तस्वीर खींच कर प्रधानमंत्री और राहुल गांधी को टैग करें। ट्विट करें। कालेज जाने वाले नौजवान बात नहीं करेंग तो कौन करेगा। क्या वो चाहेंगे कि यह बात साबित हो जाए कि नौजवानों की राजनीतिक समझ थर्ड क्लास है। नहीं न। तो कल से मध्य प्रदेश के नौजवान अपने अपने कालेज का हाल तस्वीर के साथ ट्वीट करें। टैग करें। मुझे बताएं।


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