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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली जन्मकुण्डली और उसका असली एजेण्डा

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  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की असली जन्मकुण्डली  और उसका असली एजेण्डा सत्यम  लेख मूल रूप में ‘तज़किरा’ पत्रिका के अंक-3 (जून ’25) में प्रकाशित हुआ था। लेख के पीडीएफ़ का लिंक पिछले ग्यारह वर्षों के दौरान मोदी-शाह शासन के दौरान अनेक विचलित करने वाली घटनाओं ने हर इंसाफ़पसन्द इन्सान को परेशान किया है। समाज में साम्प्रदायिक नफ़रत और हिंसा इतनी व्यापक और इतने गहरे तक फैल गयी है कि पूरा सामाजिक ताना-बाना तार-तार हो गया है। ऐसे हमलों के ख़िलाफ़ बहुत से लोगों में आक्रोश भी है , लेकिन यह आक्रोश फ़ासीवाद के विरोध में असरदार और सुसंगत प्रतिरोध में तब्दील नहीं हो पा रहा है। इसके पीछे एक वजह आम आबादी में आर.एस.एस.-भाजपा की पूरी राजनीति और फ़ासीवाद तथा उसकी कार्यप्रणाली की समझ का अभाव भी है। इस समय दुनिया के सबसे बड़े फ़ासिस्ट संगठन आर.एस.एस. का एक संक्षिप्त इतिहास आर.एस.एस. की ताक़त पिछले चार दशकों के दौरान बहुत तेज़ी से बढ़ी और यह राजनीति व समाज के हाशियों से छलाँग लगाकर सत्ता के गलियारों तक पहुँच गया , लेकिन इसकी शुरुआत आज से सौ साल पहले ही हो गयी थी। भारत में फ़ासीवाद का इतिहास...

कविता - ज़िन्दगी, ज़िन्दगी / अर्सेनी तारकोव्स्की Poem - Life, Life / Arseny Tarkovsky

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कविता - ज़िन्दगी, ज़िन्दगी अर्सेनी तारकोव्स्की (1907 - 1989) (हिंदी अनुवाद : असद ज़ैदी। किटी हंटर-ब्लेअर और वर्जीनिया राउंडिंग के अंग्रेज़ी अनुवादों पर आधारित। रूसी मूल की मदद से रश्मि दोरैस्वामी द्वारा संपादित।) Please scroll down for  English version 1. अपशकुनों को मैं नहीं मानता, न मुझे है अमंगल की आशंका। बदनामी हो या ज़हर, कोई शै मुझे डरा नहीं सकती। मौत नाम की कोई चीज़ है ही नहीं। हर कोई अमर है। हर चीज़ अमर है। मौत सत्रह की उम्र में हो या सत्तर की इसमें घबराना क्या। जो कुछ है यहीं है आज और अभी, रौशनी यहीं पर है; न मृत्यु कहीं है न अंधकार। हम सब मौजूद हैं समुद्रतट पर; जब अमरत्व का झुंड मछलियों की तरह तैरता  इधर से गुज़रेगा मैं ही फेंकूँगा जाल । 2. तुम हो अगर मकीन किसी मकान के — तो वह गिरेगा नहीं। मैं किसी भी शताब्दी को पुकारकर पास बुला लूँगा। फिर उसमें दाख़िल होकर एक घर बना लूँगा। अकारण नहीं कि तुम्हारे बच्चे और बीवियाँ मेरे साथ एक ही मेज़ पर बैठे हैं, और वहीं बैठे हैं तुम्हारे पुरखे और पौत्र प्रपौत्र भी : भविष्य यहीं इसी वक़्त निर्मित हो रहा है, अगर मैं अपना हाथ ज़रा भी ऊप...