Posts

Showing posts from June, 2025

भारत के महान साहित्‍यकारों में से एक शरत् चन्‍द्र चट्टोपाध्‍याय के तीन कालजयी उपन्‍यासों गृहदाह, शेषप्रश्न‍ व चरित्रहीन‍ की पीडीएफ फाइल

Image
भारत के महान साहित् ‍ यकारों में से एक शरत् चन् ‍ द्र चट्टोपाध् ‍ याय के तीन कालजयी उपन् ‍ यासों गृहदाह , शेषप्रश्न ‍ व चरित्रहीन ‍ की पीडीएफ फाइल पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक  गृहदाह शेषप्रश्न ‍   चरित्रहीन ‍ डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 8828320322 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें संक्षिप् ‍ त परिचय शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय ( 15 सितंबर , 1876 - 16 जनवरी , 1938) बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे। अठारह साल की उम्र में उन्होंने "बासा" (घर) नाम से एक उपन्यास लिख डाला , पर यह रचना प्रकाशित नहीं हुई। रवींद्रनाथ ठाकुर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। शरतचन्द्र ललित कला के छात्र थे लेकिन आर्थिक तंगी के चलते वह इस विषय की पढ़ाई नहीं कर सके। रोजगार की तलाश में शरतचन्द्र बर्मा गए और लोक निर्माण विभाग में क्लर्क के रूप में काम किया। कुछ समय बर्मा रहकर कलकत्ता लौटने के बाद उन्होंने गंभीरता के साथ लेखन शुरू कर दिया। बर्मा से लौटने के बाद उन्होंने अपना प्रसिद्ध उपन्यास श्रीकांत लिखना शुरू किया। बर्मा में उनका संपर्क बंगचंद्र नामक एक व्यक्ति से हुआ जो था तो बड़...

लाओ श लिखित उपन्‍यास ‘रिक्‍शावाला’ की पीडीएफ फाइल PDF File of Lao She's Novel - Rickshaw Boy

Image
लाओ श लिखित उपन्‍यास ‘ रिक्‍शावाला’  की पीडीएफ फाइल पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक  हिन्दी PDF in English डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 8828320322 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें हिन्दी संस्करण की प्रिण्ट कॉपी पाने के लिए यहां क्लि‍क करें  पुस्‍तक का संक्षिप्‍त परिचय रिक्शावाला चीन के बहुसर्जक आधुनिक लेखक लाओ श (1899–1966) का अत्यन्त हृदयस्पर्शी और सफल उपन्यास है। वह चरित्रों के जीते–जागते चित्रण और भाषा के संयत तथा जीवन्त प्रयोग के लिये सम्भवत: सर्वप्रसिद्ध हैं। यह उपन्यास अपने मुख्य पात्र रिक्शावाले की तरह के आम लोगों की दुखद हालत के बारे में लेखक की सीधी जानकारी पर आधारित है। 1936 में लिखा गया ‘रिक्शावाला’ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है जो गाँव से शहर आये एक मेहनती रिक्शावाले की बर्बादी की दास्तान है।  बचपन और किशोरावास्था में लाओ श के सभी पड़ोसी भी गरीब थे। वह उन्हें समझते थे और उनके बारे में सब कुछ जानते थे। ये पड़ोसी अलग–अलग धन्धों में लगे हुए थे। कुछ रिक्शा चलाते थे, अन्य कुछ कुली, रद्दी बटोरने वाले, कलाकार, ख़िदमतगार या फेरीवाले थे।... स्वयं लाओ श ने रिक्शा कभी नहीं ...

कविता - उसने जन्म दिया / पाब्लो नेरूदा Poem - It is Born / Pablo Neruda

Image
  कविता - उसने जन्म दिया पाब्लो नेरूदा (अंग्रेजी से अनुवाद : राम कृष्ण पाण्डेय) मैं यहाँ बिल्कुल किनारे आकर खड़ा हूँ जहाँ और कुछ कहने के लिए है ही नहीं सबको जलवायु और समुद्र ने सोख लिया है और चाँद तैरता हुआ चला जा रहा है नेपथ्य में किरणों की माला नहीं चाँदी-सी उजली है सिर्फ़ चाँदी-सी यह रात और इसी बीच अँधेरा चूर-चूर हो जाएगा मात्र एक लहर की चोट से डैने खुल जाएँगे एक आग पैदा होगी और सब कुछ भोर की तरह फिर से नीला हो जाएगा Poem - It is Born Pablo Neruda Here I came to the very edge where nothing at all needs saying, everything is absorbed through weather and the sea, and the moon swam back, its rays all silvered, and time and again the darkness would be broken by the crash of a wave, and every day on the balcony of the sea, wings open, fire is born, and everything is blue again like morning. From Neruda's beautifully illustrated "On the Blue Shores of Silence", this poem is short, powerful and elegant.

अमरकांत की कहानी जिंदगी और जोंक

Image
अमरकांत की कहानी जिंदगी और जोंक मुहल्‍ले में जिस दिन उसका आगमन हुआ, सबेरे तरकारी लाने के लिए बाजार जाते समय मैंने उसको देखा था। शिवनाथ बाबू के घर के सामने, सड़क की दूसरी ओर स्‍थित खँडहर में, नीम के पेड़ के नीचे, एक दुबला-पतला काला आदमी, गन्‍दी लुंगी में लिपटा चित्त पड़ा था, जैसे रात में आसमान से टपककर बेहोश हो गया हो अथवा दक्षिण भारत का भूला-भटका साधु निश्‍चिन्‍त स्‍थान पाकर चुपचाप नाक से हवा खींच-खींचकर प्राणायाम कर रहा हो। फिर मैंने शायद एक-दो बार और भी उसको कठपुतले की भाँति डोल-डोलकर सड़क को पार करते या मुहल्‍ले के एक-दो मकानों के सामने चक्‍कर लगाते या बैठकर हाँफते हुए देखा। इसके अलावा मैं उसके बारे में उस समय तक कुछ नहीं जानता था। रात के लगभग दस बजे खाने के बाद बाहर आकर लेटा था। चैत का महीना, हवा तेज चल रही थी। चारों ओर घुप अँधियारा। प्रारम्‍भिक झपकियाँ ले ही रहा था कि ‘मारो-मारो' का हल्‍ला सुनकर चौंक पड़ा। यह शोरगुल बढ़ता गया। मैं तत्‍काल उठ बैठा। शायद आवाज शिवनाथ बाबू के मकान की ओर से आ रही थी। जल्‍दी से पाँव चप्‍पल में डाल उधर को चल पड़ा। मेरा अनुमान ठीक था। शिवनाथ बाबू के म...