कविता - भारतीय पेटू मध्य वर्ग का राष्ट्र-गीत / कविता कृष्णपल्लवी
कविता - भारतीय पेटू मध्य वर्ग का राष्ट्र-गीत कविता कृष्णपल्लवी हम दुःख में खाते हैं, सुख में खाते हैं, राग में खाते हैं, विराग में खाते हैं, मिलन में खाते हैं, विरह में खाते हैं, हर्ष में खाते हैं, विषाद में खाते हैं, गमन में खाते हैं, आगमन में खाते हैं, मित्रता में खाते हैं, शत्रुता में खाते हैं, जागने में खाते हैं, सोने में खाते हैं, छुपकर खाते हैं, दिखाकर खाते हैं, जन्म में खाते हैं, मृत्यु में खाते हैं, हम खूब खाते हैं, उन सबके बदले खाते हैं जो खा ही नहीं पाते, या बहुत कम खाते हैं ! . हम खाते हैं, मुटियाते हैं, पवन-मुक्तासन करते हैं, कब्ज़-दस्त-अपच-बवासीर से संघर्ष करते हैं, आयुर्वेदिक, देसी, यूनानी, तिब्बी, होम्योपैथिक, एलोपैथिक सारी दवाएँ खाते हैं, दफ्तर में डांट खाते हैं, सरकार की लात खाते हैं, संतों का उपदेश खाते हैं ! इन सबके बीच हमें फुर्सत ही नहीं मिलती कि हम न्याय-अन्याय, कविता, दर्शन, प्यार, क्रान्ति, पूँजीवाद-साम्राज्यवाद आदि-आदि के बारे में, जीने की सार्थकता आ...