कविता में ईमानदारी के ख़तरे / कात्यायनी

 कविता में ईमानदारी के ख़तरे

कात्यायनी 

शुभेच्छुओं ने सलाह दी कि 
हवा की दिशा में उड़ो। 
कविता में इस उड़ान की इंदराजी होगी
और कोई जोखिम भी नहीं रहेगा, 
उल्टे प्रशंसा और प्रसिद्धि मिलेगी। 
ताउम्र मैंने इकट्ठा किये कुछ कंचे, कुछ सीपियाँ,
कुछ फूलों की पंखुड़ियाँ, 
तितलियों के पंख, मार्च महीने की उड़ती हुई पत्तियाँ, कविता के बहुत सारे सुन्दर बिम्ब, 
कुछ पुराने प्रेमपत्र, बीते दिनों की कुछ यादें, 
और ऐसी ही बहुत सारी चीज़ें
और उन्हें उस पुराने बक्से में रख दिया
जो एक यायावर मेरे पास छोड़ गया था
जो फिर कभी नहीं लौटा। 
किसी सफ़र के दौरान या तो
उसकी हत्या की जा चुकी थी
या शायद उसे किसी कालकोठरी में
बंद कर दिया गया था। 
उस बक्से में सँजो रखी थी मैंने
याद रखने लायक़  चीज़ें, 
अँधेरे में जीने वालों के कुछ अनदेखे दुख, दुनिया की बहुत सारी उपेक्षित चीज़ें, 
ज़रूरी औजार, अप्रिय स्मृतियाँ और
इंसाफ़ की पुकारों और अच्छे-बुरे सपनों 
की आवाज़ें और तस्वीरें, 
कुछ मानचित्र
और डायरियाँ और इतिहास की कुछ
प्रतिबंधित किताबें। 
अगली ही रात छापा पड़ा और पुलिस ने
सबसे पहले मेरा वह बक्सा ज़ब्त किया। 
सबसे ख़तरनाक बात यह मानी गयी कि
बेहद ख़तरनाक चीज़ों के साथ
मैंने सँजो रखी थीं अपने बक्से में
कुछ निहायत सुन्दर और अहानिकर 
लगने वाली चीज़ें जैसे कि
फूलों की पंखुड़ियाँ, तितलियों के पंख, 
पत्तियाँ, पुराने प्रेमपत्र और बहुतेरी संदिग्ध
सुन्दर चीज़ें। 
जो चीज़ें बहुतेरे कवियों-कलाकारों को 
मुल्क़ चला रहे ताकतवर लोगों की
नज़रों में विश्वसनीय और भरोसे के क़ाबिल
बनाती थीं
उन्होंने ही मुझे बेहद ख़तरनाक बना दिया
और उन चीज़ों के साथ उनका होना
किसी भयंकर राष्ट्र विरोधी साज़िश का सबूत
माना गया जो मैंने पहले से इकट्ठा कर रखी थीं। 
और एक और अहम बात यह भी थी कि
यह बात पता की जा चुकी थी
कि उस बक्से का असली मालिक कौन है। 
अगली रात मुझे खोजकर उठा लिया गया
मज़दूरों की एक बस्ती से। 
मेरे बक्से से बरामद हुई थी
वाल्टर बेंजामिन की एक नोटबुक भी
जिसका मुझे भी पता नहीं था। 
जिस दीवार के सामने खड़ा करके
मुझे गोली मारी गयी
वह हूबहू वैसी ही थी
जिसके सामने लोर्का को गोली मारी गयी थी। 
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