प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी - सवा सेर गेहूँ
प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानी - सवा सेर गेहूँ किसी गाॅंव में शंकर नाम का एक किसान रहता था। सीधा-सादा गरीब आदमी था, अपने काम से काम, न किसी के लेने में न देने में। छक्का -पंजा न जानता था, छल-प्रपंच की उसे छूत भी न लगी थी, ठगे जाने की चिंता न थी, ठग-विद्या न जानता था। भोजन मिला खा लिया, न मिला चबेने पर काट दी, चबेना भी न मिला तो पानी पी लिया और राम का नाम लेकर सो रहा। विशेषकर जब साधु-महात्मा पदार्पण करते थे तो उसे अनिवार्यतः सांसारिकता की शरण लेनी पड़ती थी। खुद भूखा सो सकता था पर साधु को कैसे भूखा सुलाता? भगवान के भक्त ठहरे। एक दिन संध्या समय एक महात्मा ने आकर उसके द्वार पर डेरा जमाया। तेजस्वी मूर्ति थी, पीतांबर गले में, जटा सिर पर, पीतल का कमंडल हाथ में, खड़ाउॅं पैर में, ऐनक ऑंखों पर। संपूर्ण वेश उन महात्माओं का सा था, जो रईसों के प्रासादों में तपस्या, हवागाड़ियों पर देवस्थानों की परिक्रमा और योगसिद्धि प्राप्त करने के लिए रूचिकर भोजन करते हैं। घर में जौ का आटा था, वह उन्हें कैसे खिलाता! प्राचीनकाल में जौ का चाहे जो कुछ महत्व रहा हो, पर वर्तमान युग में जौ का भोजन सिद्ध पुरूषों के लिए दुष्पाच्...