फासिस्टों के आतंक-राज का प्रतिरोध करते चुटकुले


फासिस्टों के आतंक-राज का प्रतिरोध करते चुटकुले

कविता कृष्‍णपल्‍लवी 

रुडोल्फ़ हर्ज़ोग जर्मनी के एक प्रसिद्ध इतिहासकार और फिल्म-निर्माता हैं। वह विख्यात फिल्म-निर्देशक वर्नर हर्जोग के बेटे हैं। उनकी एक डाक्यूमेंट्री 'लाफिंग विद हिटलर' नात्सी दौर में जनता में प्रचलित चुटकुलों पर और इस बात पर केन्द्रित है कि जनता फासिस्टों का मज़ाक उड़ाकर किस प्रकार अपनी नफ़रत और प्रतिरोध की स्पिरिट का इजहार करती थी। यह डाक्यूमेंट्री जर्मन चैनल वन और बी बी सी पर बहुत लोकप्रिय हुई थी।
2011 में रुडोल्फ़ हर्ज़ोग की पुस्तक 'डेड फनी' प्रकाशित हुई, जिसका अंग्रेज़ी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इस पुस्तक में हर्ज़ोग ने उन तमाम मज़ाकों और चुटकुलों को शामिल किया है जो हिटलर के शासन-काल में आम लोग फासिस्टों के बारे में बनाते थे, एक दूसरे के कानों में फुसफुसाते थे और निजी बैठकियों में सुनाते थे। इनमें वे चुटकुले भी शामिल हैं जो कंसंट्रेशन कैम्पों में बंद लोग आपस में सुनाते थे और मौत के साए तले ठहाके लगाते थे।
हर्ज़ोग की मान्यता है कि ये चुटकुले फासिज्म और दूसरे विश्वयुद्ध के इतिहास का 'खोया हुआ अध्याय' हैं। उनका कहना है कि ये चुटकुले बताते हैं कि सभी जर्मन नात्सी प्रचार से सम्मोहित नहीं थे। आम लोग खिल्ली उड़ाकर भी फासिस्टों के आतंक-राज का प्रतिरोध करते थे। ये चुटकुले भयानक चुप्पी और कायरता के बरक्स प्रेरक साहस की और जनता की सर्जनात्मकता और जिजीविषा की कहानी भी बयान करते हैं। रुडोल्फ़ ने ऐसी कई घटनाओं की भी चर्चा की है जब ऐसे ही किसी चुटकुले के कारण कई लोग फाँसी के तख्ते या कंसंट्रेशन कैम्प तक जा पहुँचे थे। ये चुटकुले फासिज्म की भयावहता के साथ ही उसकी ऐतिहासिक हास्यास्पदता का भी दस्तावेज़ पेश करते हैं।

रुडोल्फ़ हर्ज़ोग की इस विषय में दिलचस्पी सबसे पहले चार्ली चैप्लिन की 'द ग्रेट डिक्टेटर' और एर्न्स्ट ल्यूबिश्च की 'टु बी ऑर नॉट टु बी' फ़िल्में देखकर पैदा हुई थी। फिर जब उनकी एक चचेरी दादी अमेरिका चली गयीं तो उनके फ्लैट की सफाई करते हुए रिश्तेदारों को हिटलरकालीन चुटकुलों का एक टाइप किया हुआ संकलन मिला जो हर्ज़ोग को बेहद दिलचस्प और एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ सरीखा लगा। दिलचस्प बात यह थी कि हर्ज़ोग के नाना को छोड़कर उनके दादाओं की पूरी पीढ़ी और उनके परिवार नात्सियों के प्रचंड समर्थक थे। फिर हर्ज़ोग ने दो वर्षों तक मेहनत करके ऐसे किस्सों और उनसे जुड़े प्रसंगों को इकट्ठा किया और अपनी किताब तैयार की। इस पुस्तक के कुछ चुटकुलों और उनसे जुड़ी घटनाओं को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
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जोसेफ म्यूलर उत्तरी जर्मनी के एक छोटे से कैथोलिक चर्च का पादरी था। उसने कहीं कुछ लोगों के बीच एक किस्सा गढ़कर सुनाया कि एक बार उसके पास युद्ध में घायल एक मरणासन्न सैनिक लाया गया। सैनिक ने पादरी से कहा कि उसकी अंतिम इच्छा उन लोगों को देखने की है जिनके लिए वह मर रहा है। फिर हिटलर और गोएबल्स की तस्वीरें लाईं गयीं और उसके दाएँ-बाएँ रख दी गयीं। फिर सैनिक ने कहा,"अब मैं जीसस क्राइस्ट की तरह दो अपराधियों के बीच मर रहा हूँ।" (कहा जाता है कि जीसस को जब सलीब पर लटकाया गया तो उनके आजू-बाजू दो अपराधियों को भी लटकाया गया था)
उक्त पादरी का बेटा एक अंध-भक्त नात्सी था। उसने पिता के चुटकुले की पार्टी में रिपोर्ट की। पादरी को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया और 'पितृभूमि की प्रतिरक्षा-शक्ति को क्षति पहुँचाने के जुर्म' में फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
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हिटलर और गोएरिंग बर्लिन के रेडियो टावर पर खड़े थे। नीचे खड़ी भीड़ को देखते हुए हिटलर ने कहा,"मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ कि बर्लिनवासियों के चेहरे खुशी से खिल उठें।" गोएरिंग ने फ़ौरन उत्तर दिया,"तुम इस टावर से कूद क्यों नहीं जाते ?"
मारियान्ने के नामक स्त्री ने यह चुटकुला अपने कार्यस्थल पर सुनाया। बात अधिकारियों तक पहुँची और उस औरत को फाँसी दे दी गयी, बिना इस बात का ख़याल किये हुए कि उस औरत का पति एक सैनिक था जो नात्सियों की ओर से लड़ते हुए युद्ध में मारा जा चुका था।
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कुछ और :
शीत राहत कोष के एक पोस्टर पर लिखा था :"जाड़े या भूख से अब किसी को भी मरने नहीं दिया जाएगा।" पढ़कर एक मज़दूर अपने साथी से बोला,"तो अब वे हमें यह भी करने की इजाज़त नहीं देंगे।"
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फोन की घंटी बजी और कोई बोला,"हेलो, क्या मैं म्यूलर से बात कर सकता हूँ?"
"कौन म्यूलर? मैं श्मिडट बोल रहा हूँ।"
"सॉरी, मैंने गलत आदमी को डायल कर दिया।"
"कोई बात नहीं। पिछले चुनाव में तो ज्यादा लोगों ने यही किया था।"

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एक रसोइया बिना सूअर की चर्बी डाले आलू फ्राई कर रहा था और ओवन के ऊपर स्वास्तिक चिह्न वाला नात्सी झंडा हिला रहा था। पूछने पर बोला," कोई बात नहीं, इस झंडे को देखकर बहुत सारे चर्बीले सूअर खुद ही बाहर आ जाते हैं।"
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हिटलर एक पागलखाने का दौरा कर रहा था। सभी मरीज़ 'हेल हिटलर' का नारा लगाते हुए उसे सलामी दे रहे थे, सिर्फ़ एक आदमी ऐसा नहीं कर रहा था। हिटलर ने जब उससे कारण पूछा तो वह बोला," मैं पागल नहीं हूँ, मैं अर्दली हूँ।"
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"नियमित सेना की एक यूनिट और एस.ए. की यूनिट में क्या फ़र्क होता है ?"
"सेना में वे कहते हैं,'रेडी। गेट। सेट। फायर।' और एस.ए. में कहते हैं,'गेट रेडी एंड सेट फायर।"
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अपने एक धर्मोपदेश में पादरी वॉन ग्लेन ने युवाओं के लिए हिटलर के शिक्षा कार्यक्रम की आलोचना की।
एक व्यक्ति ने आपत्ति प्रकट की,"एक निस्संतान व्यक्ति शिक्षा के बारे में बात कैसे कर सकता है ?"
"महोदय, मैं अपने चर्च में अपने फ्यूहरर की कोई आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता।" पादरी ने फ़ौरन कहा।
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एक नात्सी उच्चाधिकारी ने स्विटज़रलैंड का दौरा करते हुए एक सरकारी इमारत के बारे में पूछा। स्विस मेज़बान ने कहा,"वह हमारी नौसेना के मंत्रालय का मुख्यालय है।"
"स्विटज़रलैंड के पास तो बस दो या तीन युद्धक जलपोत हैं। फिर आपलोगों को नौसेना के मंत्रालय की ज़रूरत ही क्या है ?"
"क्यों नहीं। जर्मनी के पास भी तो न्याय मंत्रालय है।" स्विस ने फ़ौरन उत्तर दिया।
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दो यहूदी, लेवी और हर्श, सूडान के वीराने में मिले और उछलकर एक दूसरे के गले लग गए।
एक ने पूछा,"और क्या चल रहा है ? तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?"
"अलेक्जेंड्रिया में मेरी हाथीदाँत की नक्काशी की दूकान है। और सस्ता माल बेंचने के लिए मैं खुद हाथियों का शिकार करता हूँ। और तुम ?"
"मेरे साथ भी ऐसा ही कुछ है। पोर्ट सईद में मेरा घडियालों के चमड़े का व्यापार है और मैं घड़ियालों का शिकार करने यहाँ आया हूँ।"
"और साइमन का क्या हुआ ? वह कहाँ है ?"
"अरे वह तो असली खतरों का खिलाड़ी निकला। वह बर्लिन में ही रुका रहा।"
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जुलाई,1939 में तीन स्विस अपनी आगामी छुट्टियों के बारे में बात कर रहे थे। तीनों का मानना था कि वह समय जर्मनी देखने के लिए ठीक रहेगा। एक ने म्यूनिख जाने की और दूसरे ने बर्लिन देखने की इच्छा जताई। तीसरे ने कहा कि वह वारसा जाएगा। "लेकिन वारसा तो जर्मनी में नहीं है।"-- पहले दोनों ने आपत्ति की। "मेरी छुट्टियाँ अक्टूबर में हैं।"-- तीसरे ने कहा।
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बर्गरब्रौकेल्लर में हिटलर की ह्त्या की जो कोशिश हुई उसमें 10 लोग मारे गए, 50 घायल हुए और 6 करोड़ उल्लू बन गए।
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स्कूल की दीवार पर हिटलर और गोएरिंग की दो तस्वीरें टँगी थीं और उनके बीच की जगह खाली थी।
"इस बीच की जगह को कैसे भरें ?" -- शिक्षक ने पूछा।
एक छात्र तुरत बोल पडा," वहाँ जीसस की तस्वीर टाँग दी जाए। बाइबिल बताता है कि उन्हें दो मुजरिमों के बीच सलीब पर चढ़ाया गया था।"
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हिटलर और उसका ड्राइवर कार से देहाती इलाके से गुज़र रहे थे। कार से टकराकर एक मुर्गी मर गयी। हिटलर से ड्राइवर से कहा,"कोई बात नहीं, मैं किसान से कहूंगा कि मैं फ्यूहरर हूँ और वह समझ जाएगा।" उसने ऐसा ही किया पर पिछवाड़ा सहलाता हुआ वापस आया जहाँ किसान ने एक लात रसीद की थी। कुछ देर बाद फिर दुर्घटना हुई। कार से टकराकर एक सूअर मर गया। हिटलर ने ड्राइवर से कहा कि इस बार तुम जाओ। ड्राइवर ने आज्ञापालन किया। काफी देर बाद जब वह लौटा तो पिए हुए था और उसके हाथ में ढेरों उपहार की टोकरियाँ थीं। हिटलर ने पूछा,"तुमने किसान से क्या कहा ?" ड्राइवर ने कहा,"कुछ ख़ास नहीं। मैंने कहा कि मैं हिटलर का ड्राइवर हूँ और मेरी कार से टकराकर सूअर मर गया।"
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उनदिनों इटली के बारे में जर्मनी में एक मज़ाक प्रचलित था। वह यह कि इटली में इनदिनों 'रिट्रीट' नामक एक डांस बहुत लोकप्रिय है और उसके स्टेप्स इसप्रकार हैं : एक कदम आगे बढ़ो, फिर दो कदम पीछे हटो, गोल घूमो और अपने पार्टनर के पीछे छिप जाओ।
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जब जर्मन सेना के हाई कमान को सूचना मिली कि इटली भी युद्ध में शामिल हो चुका है तो एक कमांडर बोला,"अब हमें 10 अतिरिक्त सेना के डिवीजनों की ज़रूरत पड़ेगी।" जब यह बताया गया कि इटली जर्मनी की ओर से युद्ध में शामिल हुआ है, तो जनरल बोला,"तब तो 20 अतिरिक्त डिवीजनों की ज़रूरत पड़ेगी।"
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गोएरिंग नहाते समय भी अपने सारे मैडल पहने रहता था।
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गोएरिंग के सीने पर जो मैडल टंगे रहते थे उनमें से सबसे आख़िरी कतार के आख़िरी मैडल पर पीठ की ओर इंगित करता हुआ एक तीर बना होता था।
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मैं यह दावे के साथ कह सकती हूँ कि पिछले दशकों के दौरान मोदी-शाह, आडवानी, राजनाथ सिंह, योगी आदि-आदि तमाम हिन्दुत्ववादी फासिस्टों के ख़िलाफ़ जितने चुटकुले और किस्से जनता के बीच लोकप्रिय रहे हैं, वह इतिहास का एक रिकॉर्ड है। हिटलर और मुसोलिनी के बाद बुश और ट्रम्प पर सबसे अधिक चुटकुले बने। सोवियत संघ के और पूर्वी यूरोप के भ्रष्ट-निरंकुश संशोधनवादी पार्टी नौकरशाही के विरुद्ध भी वहाँ की जनता में काफी चुटकुले बनते और चलते थे। पर भारत के हिन्दुत्ववादी फासिस्टों के विरुद्ध रोजाना बनने और वायरल होने वाले चुटकुलों ने तो सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए।
एक दिलचस्प बात यह भी है कि मोदी और भाजपा के अधिकांश नेता रोजाना जो बोलते और करते हैं, वह सबकुछ अपने आपमें चुटकुले से कम नहीं होते। दुनिया में कभी भी जालिमों और हत्यारों ने जनता को इतना हँसाया नहीं होगा। मोदीकालीन किस्सों-चुटकुलों का संग्रह करते हुए यह फ़र्क बहुत ध्यान से करना होगा कि कौन चुटकुला है और कौन सी सच्ची घटना।
इतिहास के सजग युवा अध्येताओं और शोधार्थियों से मैं यह आग्रह करना चाहूँगी कि वे मोदी युग के सभी चुटकुलों-किस्सों-मज़ाकों-कार्टूनों-कैरीकेचरों का संकलन अभी से तैयार करते रहें। इस अन्धकार युग का इतिहास जब भी लिखा जाएगा तो कई खण्डों का वह संकलन उस इतिहास का एक ज़रूरी हिस्सा होगा और उसे फासिज्म-विरोधी लोकप्रिय साहित्य में भी शुमार किया जाएगा।
जालिम हुक्मरानों की खिल्ली उड़ाकर जनता अपनी निर्भीकता और नफ़रत का इज़हार करती है, अपनी जिजीविषा और युयुत्सा और जिंदादिली को अभिव्यक्ति देती है। वह जालिमों को उनकी हैसियत-औकात बताती है। खिल्ली उड़ाना भी एक राजनीतिक हथियार है। इसका खूब इस्तेमाल होना चाहिए। इन जाहिल, गधे, गोबरदिमाग ज़ालिम अपराधी फासिस्टों के ख़िलाफ़ खूब चुटकुले बनने चाहिए और प्रचलित किये जाने चाहिए। अत्याचारी सत्ता के आसपास बुना गया रहस्यावरण ध्वस्त करने में चुटकुलों की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चुटकुले हमें याद दिलाते रहते हैं कि 'राजा नंगा है।'


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