विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - निंदक Anton Chekhov's Story - The Slanderer


विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - निंदक 

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हिन्‍दी अनुवाद - सुशांत सुप्रिय ( https://www.anhadkriti.com/ सेे साभार)  
सुलेख के शिक्षक सर्गेई कैपितोनिच अख़िनेयेव की बेटी नताल्या की शादी इतिहास और भूगोल के शिक्षक इवान पेत्रोविच लोशादिनिख़ के साथ हो रही थी। शादी की दावत बेहद कामयाब थी। सारे मेहमान बैठक में नाच-गा रहे थे। इस अवसर के लिए क्लब से किराए पर बैरों की व्यवस्था की गई थी। वे काले कोट और मैली सफ़ेद टाई पहने पागलों की तरह इधर-उधर आ-जा रहे थे। हवा में मिली-जुली आवाज़ों का शोर था। बाहर खड़े लोग खिड़कियों में से भीतर झाँक रहे थे। दरअसल वे समाज के निम्न-वर्ग के लोग थे जिन्हें विवाह-समारोह में शामिल होने की इजाज़त नहीं थी।

मध्य-रात्रि के समय मेज़बान अख़िनेयेव यह देखने के लिए रसोई में पहुँचा कि क्या रात के खाने का इंतज़ाम हो गया था। रसोई ऊपर से नीचे तक धुएँ से भरी थी। हंसों और बत्तखों के भुनते हुए मांस की गंध धुएँ में लिपटी हुई थी। दो मेजों पर खाने-पीने का सामान कलात्मक बेतरतीबी से बिखरा हुआ था। लाल चेहरे वाली मोटी रसोइया मारफ़ा उन मेजों के पास व्यस्त-सी दिख रही थी।
"सुनो, मुझे पकी हुई स्टर्जन मछली दिखाओ," अपने हाथों को आपस में रगड़ते और जीभ से अपने होठों को चाटते हुए अख़िनेयेव ने कहा।" क्या बढ़िया ख़ुशबू है! मैं तो रसोई में रखा सारा खाना खा सकता हूँ! अब ज़रा मुझे स्टर्जन मछली दिखाओ।"
मारफ़ा चल कर एक तख़्त के पास गई और उसने ध्यान से एक मैला अख़बार उठाया। उसके नीचे कड़ाही में एक पकी हुई बड़ी-सी मोटी मछली रखी हुई थी, जिसके ऊपर खजूर और गाजर के टुकड़े पड़े हुए थे। अख़िनेयेव ने स्टर्जन मछली पर निगाह डाली और चैन की साँस ली। उसका चेहरा खिल गया और उसकी आँखों में संतोष का भाव आ गया। वह झुका और उसने अपने मुँह से पहिये के चरमराने जैसी आवाज़ निकाली। वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा। फिर खुश हो कर उसने अपनी उँगलियाँ चटकाईं और दोबारा अपने होठों से चटखारा लेने की आवाज़ निकाली।
"ओह! हार्दिक चुम्बन की आवाज़। मारफ़ा, तुम वहाँ किसे चूम रही हो?" बग़ल वाले कमरे में से किसी की आवाज़ आई, और जल्दी ही दरवाज़े पर विद्यालय के शिक्षक वैन्किन का घने बालों वाला सिर नज़र आया।" तुम यहाँ किसे चूम रही थी? अहा! बहुत अच्छे! सर्गेई कैपितोनिच! क्या शानदार बुज़ुर्ग हैं आप! तो आप इस महिला के साथ हैं!"
"मैं किसी को नहीं चूम रहा था," अख़िनेयेव ने घबराहट में कहा, "मूर्ख आदमी, तुम्हें यह बात किसने बताई? मैं तो केवल अपने होठों से चटखारा लेने की आवाज़ निकाल रहा था क्योंकि मैंने बढ़िया पकी हुई मछली देखी थी।"
"ये बहाने मुझे नहीं, किसी और को बताना, "वैन्किन चहक कर बोला। उसके चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान फैल गई थी। फिर वह दरवाज़े से हटकर दूसरे कमरे में चला गया । अख़िनेयेव झेंप गया।
"शैतान ही जानता है कि इस घटना का नतीजा क्या होगा!" उसने सोचा। "अब वह दूसरों से मेरी निंदा करता फिरेगा। बदमाश कहीं का! उफ़्फ़! वह जंगली पूरे शहर के सामने मेरी इज़्ज़त उतार देगा!"
अख़िनेयेव सहमता हुआ बैठक में दाख़िल हुआ। वह चोर-निगाहों से यह देख रहा था कि वैन्किन क्या कर रहा है। वैन्किन पियानो के पास खड़ा था। उसका सिर झुका हुआ था और वह पुलिस इंस्पेक्टर की साली के कान में कुछ फुसफुसा रहा था। उसकी बात सुन कर वह महिला हँस रही थी।
"ज़रूर वह मेरी ही निंदा कर रहा है, "अख़िनेयेव ने सोचा। "शैतान उसका बेड़ा ग़र्क करे! उस स्त्री ने वैन्किन की बातों को सच मान लिया है, तभी तो वह हँस रही है। हे ईश्वर! नहीं, मैं इस बात को ऐसे ही नहीं छोड़ सकता। मुझे लोगों को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी ताकि कोई भी वैन्किन की बातों पर यक़ीन न करे। मैं ख़ुद इस बारे में सबको बताऊँगा ताकि अंत में वैन्किन की बातें मनगढ़ंत गप्प साबित हों।"
घबराहट में अपने सिर को खुजलाते हुए अख़िनेयेव चल कर पदेकोई के पास पहुँचा।
"अभी थोड़ी देर पहले मैं रात के खाने की तैयारी देखने के लिए रसोई में गया था" उसने अपने फ़्रांसीसी मेहमान से कहा। "मुझे पता है, आप को मछली पसंद है। इसलिए मैंने एक ख़ास बड़ी स्टर्जन मछली का इंतज़ाम किया है। लगभग दो गज़ लम्बी मछली! हा, हा हा! अरे वह बात आपको बताना तो मैं भूल ही गया। रसोई में उस स्टर्जन मछली से जुड़ा एक क़िस्सा मैं आपको बताता हूँ। थोड़ी देर पहले मैं रात के खाने का इंतज़ाम देखने के लिए रसोई में गया। अच्छी तरह से पकी स्टर्जन मछली को देखकर मैंने होठों से चटखारा लिया। वह बड़ी मसालेदार मछली लग रही थी। तभी वह मूर्ख वैन्किन रसोई के दरवाज़े पर आया और कहने लगा-- ..हा,हा,हा! और कहने लगा -- 'आहा! तो तुम यहाँ मारफ़ा को चूम रहे हो! आप ही सोचिये-- रसोइये का चुम्बन! क्या मनगढ़ंत बात थी! महामूढ़ व्यक्ति! वह औरत वैसे ही दिखने में बदसूरत है। वह किसी बंदरिया-सी लगती है! जबकि वह मूर्ख आदमी बेसिर-पैर की बात कर रहा था कि हम एक-दूसरे को चूम रहे थे! कितना अजीब आदमी है!"
"कौन अजीब आदमी है?" उनकी ओर आते हुए तारांतुलोव ने पूछा।
"अरे, मैं वैन्किन की बात कर रहा हूँ। अभी थोड़ी देर पहले मैं रसोई में गया-- "मारफ़ा और स्टर्जन मछली की कहानी दोहराई गई।
"उसकी बात सुनकर मुझे हँसी आ रही है। कितना अजीब आदमी है! मेरे ख़याल से मारफ़ा को चूमने की बजाए किसी कुत्ते को चूमना सुखद होगा, "अख़िनेयेव ने कहा और मुड़ने पर उसने म्ज़दा को देखा।
"हम वैन्किन के बारे में बात कर रहे थे" उसने म्ज़दा से कहा, "कितना अजीब आदमी है! वह रसोई में घुसा और उसने मुझे मारफ़ा के बगल में खड़ा पाया। बस, फिर क्या था! वह उसी समय हम दोनों के बारे में वाहियात कहानियाँ गढ़ने लगा। 'क्या', वह बोला, 'तुम दोनों एक-दूसरे को चूम रहे थे?' 'उसने पी रखी थी इसलिए वह अपने होशो-हवास में नहीं था। जागते हुए सपने देख रहा था। मैंने कहा -- 'मारफ़ा को चूमने की बजाए मैं किसी बत्तख़ को चूमना पसंद करूँगा। और फिर मैं शादी-शुदा हूँ।' मैंने कहा -- 'तुम महामूढ़ हो!' बताइए, मुझ पर ऐसा घटिया आरोप लगा कर उसने मेरी स्थिति कितनी हास्यास्पद बना दी।"
"किसने तुम्हारी स्थिति हास्यास्पद बना दी?" धर्म-शास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक ने अख़िनेयेव से पूछा।
"वैन्किन ने। मैं रसोई में खड़ा हो कर स्टर्जन मछली के बारे में पता कर रहा था --" वग़ैरह । आधे घंटे के भीतर ही सभी मेहमानों को वैन्किन और स्टर्जन मछली वाली कहानी के बारे में पता चल गया।
"अब उसे बताने दो," अख़िनेयेव ने अपने हाथ आपस में रगड़ते हुए सोचा।" अब उसे मेरी निंदा करने दो। वह जैसे ही लोगों को यह कहानी बताना शुरू करेगा, वे उसे बीच में ही रोक देंगे : 'बकवास मत करो, मूर्ख आदमी। ! हमें इसके बारे में सब पता है।"
और इस बात से अख़िनेयेव इतना संतुष्ट महसूस करने लगा कि खुश हो कर उसने ज़रूरत से ज़्यादा ब्रांडी पी ली। अपनी बेटी को उसके कमरे में पहुँचा कर वह अपने कमरे में गया और वहाँ वह एक मासूम बच्चे की गहरी नींद में डूब गया। अगले दिन उठने पर उसे स्टर्जन की कहानी का कोई अंश याद नहीं रहा।
किंतु, काश! इंसान प्रस्ताव रखता हैं, पर ईश्वर उसे जैसे उचित समझता है, वैसे निपटाता है। काली ज़बान अपना शैतानी का काम कर जाती है। इसलिए अख़िनेयेव की चालाकी भी उसके किसी काम नहीं आई। एक हफ़्ते बाद, बुधवार के दिन, तीसरे पाठ के बाद जब अख़िनेयेव शिक्षकों के कमरे में खड़ा हो कर एक छात्र विस्येकिन की दुष्टतापूर्ण प्रवृत्तियों के बारे में चर्चा कर रहा था, तब निदेशक ने उसे इशारे से अलग बुलाया।
"देखो, सर्गेई कैपितोनिच", निदेशक ने कहा, "मुझे क्षमा करो क्योंकि यह मामला मुझ से जुड़ा नहीं है, किंतु कुछ भी हो, मुझे इसके बारे में तुमसे दो टूक बात करनी होगी। यह मेरा फ़र्ज़ है-- देखो, अफ़वाहों का बाज़ार गरम है कि उस महिला से-- वह जो तुम्हारी रसोइया है-- उससे तुम्हारे अंतरंग सम्बन्ध हैं!"
"देखो, यह मुझसे जुड़ा मामला नहीं है, लेकिन--चाहे तुम्हारे उससे अंतरंग सम्बन्ध हों, चाहे तुम उसे चूमो- तुम उसके साथ जो तुम्हारी इच्छा हो, करो, लेकिन इतना खुल कर मत करो! देखो, यह मेरा विनम्र निवेदन है। यह मत भूलो कि तुम एक शिक्षक हो।"
यह सुन कर अख़िनेयेव जैसे स्तम्भित रह गया। उसे ऐसा लग रहा था जैसे सैकड़ों मधु-मक्खियों के झुंड ने उसे काट लिया हो, जैसे उबलते हुए गरम पानी ने गिर कर उसकी त्वचा को झुलसा दिया हो। ऐसी भयानक हालत में वह घर पहुँचा।
रास्ते में उसे लगा जैसे उसके मुँह पर कोलतार की कालिख़ पुती हुई हो। घर पर नई मुसीबतें उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।
"तुम कुछ खाते क्यों नहीं?" रात के खाने के समय उसकी पत्नी ने उससे पूछा। "तुम किसके बारे में सोच रहे हो? क्या तुम्हें अपनी महबूबा याद आ रही है? क्या तुम रसोइया मारफ़ा को याद कर रहे हो? मुझे सब पता चल गया है, दग़ाबाज़! दयालु लोगों ने मेरी आँखें खोल दी हैं, बर्बर आदमी!" और उसने अख़िनेयेव के गाल पर खींच कर थप्पड़ दे मारा।
वह लड़खड़ाता हुआ खाने की मेज पर से उठा और बिना अपनी टोपी या कोट लिए हुए सीधा वैन्किन के घर की ओर चल पड़ा। वैन्किन घर पर ही था।
"बदमाश कहीं के!" उसने वैन्किन से कहा।" तुमने पूरी दुनिया के सामने मुझे बदनाम क्यों किया? तुमने सब से मेरी निंदा क्यों की?"
"कैसे? कौन-सी निंदा? यह तुम मुझ पर कौन-से गढ़े हुए इल्ज़ाम लगा रहे हो?"
"तो फिर सबको यह झूठी बात किसने बताई कि मैं मारफ़ा को चूम रहा था? अब तुम कहोगे कि वह तुम नहीं थे! वह तुम नहीं थे, मेरी इज़्ज़त के हत्यारे?"
वैन्किन ने हैरानी से अपनी पलकें झपकाईं। उसकी देह के रोएँ सिहर उठे। उसने अपनी पलकें उठा कर किसी तरह कहा--"यदि मैंने तुम्हारे बारे में एक शब्द भी किसी से कहा हो तो ईश्वर मुझे दंड दे। मेरी आँखों की दृष्टि चली जाए और मैं अकाल-मृत्यु का ग्रास बन जाऊँ। न मेरे पास मकान रहे, न मेरा घर बचे!"
वैन्किन की सच्चाई असंदिग्ध थी। यह स्पष्ट था कि उसने किसी से भी अख़िनेयेव की निंदा नहीं की थी।
"किंतु फिर वह कौन था? कौन?" अख़िनेयेव ने ख़ुद से पूछा। उसके ज़हन में सभी परिचितों के नाम आ-जा रहे थे। अपनी छाती पर हाथ मारते हुए वह फिर बोला, "आख़िर कौन था वह निंदक?"

Anton Chekhov's Story - The Slanderer

Sergey Kapitonlch Akhineyev, the teacher of calligraphy, gave his daughter Natalya in marriage to the teacher of history and geography, Ivan Petrovich Loshadinikh. The wedding feast went on swimmingly. They sang, played, and danced in the parlor. Waiters, hired for the occasion from the club, bustled about hither and thither like madmen, in black frock coats and soiled white neckties. A loud noise of voices smote the air. From the outside people looked in at the windows;—their social standing gave them no right to enter.
Just at midnight the host, Akhineyev, made his way to the kitchen to see whether everything was ready for the supper. The kitchen was filled with smoke from the floor to the ceiling; the smoke reeked with the odors of geese, ducks, and many other things. Victuals and beverages were scattered about on two tables in artistic disorder. Marfa, the cook, a stout, red-faced woman, was busying herself near the loaded tables.
“Show me the sturgeon, dear,” said Akhineyev, rubbing his hands and licking his lips. “What a fine odor! I could just devour the whole kitchen! Well, let me see the sturgeon!”
Marfa walked up to one of the benches and carefully lifted a greasy newspaper. Beneath that paper, in a huge dish, lay a big fat sturgeon, amid capers, olives, and carrots. Akhineyev glanced at the sturgeon and heaved a sigh of relief. His face became radiant, his eyes rolled. He bent down, and, smacking his lips, gave vent to a sound like a creaking wheel. He stood a while, then snapped his fingers for pleasure, and smacked his lips once more.
“Bah! The sound of a hearty kiss. Whom have you been kissing there, Marfusha?” some one’s voice was heard from the adjoining room, and soon the closely cropped head of Vankin, the assistant school instructor, appeared in the doorway. “Whom have you been kissing here? A-a-ah! Very good! Sergey Kapitonich! A fine old man indeed! With the female sex tête-à-tête!”
“I wasn’t kissing at all,” said Akhineyev, confused; “who told you, you fool? I only—smacked my lips on account of—in consideration of my pleasure—at the sight of the fish.”
“Tell that to some one else, not to me!” exclaimed Vankin, whose face expanded into a broad smile as he disappeared behind the door. Akhineyev blushed.
“The devil knows what may be the outcome of this!” he thought. “He’ll go about tale-bearing now, the rascal. He’ll disgrace me before the whole town, the brute!”
Akhineyev entered the parlor timidly and cast furtive glances to see what Vankin was doing. Vankin stood near the piano and, deftly bending down, whispered something to the inspector’s sister-in-law, who was laughing.
“That’s about me!” thought Akhineyev. “About me, the devil take him! She believes him, she’s laughing. My God! No, that mustn’t be left like that. No. I’ll have to fix it so that no one shall believe him. I’ll speak to all of them, and he’ll remain a foolish gossip in the end.”
Akhineyev scratched his head, and, still confused, walked up to Padekoi.
“I was in the kitchen a little while ago, arranging things there for the supper,” he said to the Frenchman. “You like fish, I know, and I have a sturgeon just so big. About two yards. Ha, ha, ha! Yes, by the way, I have almost forgotten. There was a real anecdote about that sturgeon in the kitchen. I entered the kitchen a little while ago and wanted to examine the food. I glanced at the sturgeon and for pleasure, I smacked my lips—it was so piquant! And just at that moment the fool Vankin entered and says—ha, ha, ha—and says: ‘A-a! A-a-ah! You have been kissing here?’—with Marfa; just think of it—with the cook! What a piece of invention, that blockhead. The woman is ugly, she looks like a monkey, and he says we were kissing. What a queer fellow!”
“Who’s a queer fellow?” asked Tarantulov, as he approached them.
“I refer to Vankin. I went out into the kitchen—”
The story of Marfa and the sturgeon was repeated.
“That makes me laugh. What a queer fellow he is. In my opinion it is more pleasant to kiss the dog than to kiss Marfa,” added Akhineyev, and, turning around, he noticed Mzda.
“We have been speaking about Vankin,” he said to him. “What a queer fellow. He entered the kitchen and noticed me standing beside Marfa, and immediately he began to invent different stories. ‘What?’ he says, ‘you have been kissing each other!’ He was drunk, so he must have been dreaming. And I,’ I said, ‘I would rather kiss a duck than kiss Marfa. And I have a wife,’ said I, ‘you fool.’ He made me appear ridiculous.”
“Who made you appear ridiculous?” inquired the teacher of religion, addressing Akhineyev.
“Vankin. I was standing in the kitchen, you know, and looking at the sturgeon—” And so forth. In about half an hour all the guests knew the story about Vankin and the sturgeon.
“Now let him tell,” thought Akhineyev, rubbing his hands. “Let him do it. He’ll start to tell them, and they’ll cut him short: ‘Don’t talk nonsense, you fool! We know all about it.’”
And Akhineyev felt so much appeased that, for joy, he drank four glasses of brandy over and above his fill. Having escorted his daughter to her room, he went to his own and soon slept the sleep of an innocent child, and on the following day he no longer remembered the story of the sturgeon. But, alas! Man proposes and God disposes. The evil tongue does its wicked work, and even Akhineyev’s cunning did not do him any good. One week later, on a Wednesday, after the third lesson, when Akhineyev stood in the teachers’ room and discussed the vicious inclinations of the pupil Visyekin, the director approached him, and, beckoning to him, called him aside.
“See here, Sergey Kapitonich,” said the director. “Pardon me. It isn’t my affair, yet I must make it clear to you, nevertheless. It is my duty—You see, rumors are on foot that you are on intimate terms with that woman—with your cook—It isn’t my affair, but—You may be on intimate terms with her, you may kiss her—You may do whatever you like, but, please, don’t do it so openly! I beg of you. Don’t forget that you are a pedagogue.”
Akhineyev stood as though frozen and petrified. Like one stung by a swarm of bees and scalded with boiling water, he went home. On his way it seemed to him as though the whole town stared at him as at one besmeared with tar—At home new troubles awaited him.
“Why don’t you eat anything?” asked his wife at their dinner. “What are you thinking about? Are you thinking about Cupid, eh? You are longing for Marfushka. I know everything already, you Mahomet. Kind people have opened my eyes, you barbarian!”
And she slapped him on the cheek.
He rose from the table, and staggering, without cap or coat, directed his footsteps toward Vankin. The latter was at home.
“You rascal!” he said to Vankin. “Why have you covered me with mud before the whole world? Why have you slandered me?”
“How; what slander? What are you inventing?”
“And who told everybody that I was kissing Marfa? Not you, perhaps? Not you, you murderer?”
Vankin began to blink his eyes, and all the fibres of his face began to quiver. He lifted his eyes toward the image and ejaculated:
“May God punish me, may I lose my eyesight and die, if I said even a single word about you to any one! May I have neither house nor home!”
Vankin’s sincerity admitted of no doubt. It was evident that it was not he who had gossiped.
“But who was it? Who?” Akhineyev asked himself, going over in his mind all his acquaintances, and striking his chest. “Who was it?”

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