हरिओम राजोरिया की बेरोजगारी पर कविता श्र्ंखला - बेकार लड़का


 हरिओम राजोरिया की बेरोजगारी पर कविता श्र्ंखला - बेकार लड़का

1.
बेकार लड़का 

माँ से नहीं डरता

पिता से नहीं डरता

और न ही मौत से

बेकारी के दिनों में 

उसका सारा डर मर गया।


2.
सिगरेट के दाम से लेकर

दोस्तों के चेहरों तक

बहुत कुछ बदल गया

दीवार से उतरे हुए

पुराने कैलण्डर की तारीखें चली गईं

अखबार की रद्दी के साथ

थूकने के अलावा

क्या बचा है

बेकार लड़के के पास

जबकि दिन

बहुत छोटे हो गए हैं

और ठंडी हवा

गालों में चुभती है।

3.
बाज़ार की चिल्ल-पों

धूल भरी गलियों के सूनेपन

और अपनी पीठ पर टिकी

कस्बे की आँखों से बचता

देर रात पहुंचता है वह घर

नींद में बड़बड़ाते पिता

न जाने कब सुन लेते हैं

किवाड़ों पर दी गई थाप

पिता की दिनचर्या में 

शामिल हो गई है दरवाजे की हलचल

सिर झुकाकर उसका

सामने से गुजर जाना

कुछ शब्दों के हेरफेर से

जमाने का बिगड़ना

और अरे मेरे भगवान कह 

फिर सो जाना

उखड़े हुए नाखून की तरह होती है

बेकार लड़के की रात।

4.
कहाँ से होती है

सपनों की शुरूआत?

सपने धीरे-धीरे आते हैं

और मोटी-मोटी किताबों तक पहुँच

आकार लेने लगते हैं

कभी ऐसा होता है

जब बेकार लड़का

अपने बटुए में छिपा लेता है

पड़ोस की लड़की का चित्र

और रात छत पर खड़े होकर 

घूरता है जगमगाती इमारतें

बेकार लड़के की दुनिया

नीलामी में खरीदे गए 

कपड़े की तरह होती है

जो सिकुड़ता है

पहली ही धुलाई के बाद ।

5.
थान का कपड़ा नहीं होते दिन

कि जरा कैंची लगाई जाए 

और च-र-र sss से कट जाएँ

दिनों की लड़ाई 

सीधी-सादी नहीं होती

समय काटने के लिए

काटना पड़ता है दिन

जहां दुश्मन निराकार होता है

और पहला मोर्चा

घर में ही लगता है

सुबह की चाय से लेकर

सब्जी की प्लेट फोड़ने तक

चलता है टकराहटों का दौर

फिर भी दिन नहीं कटता

कट जाता है बेकार लड़का।

6.
उनतीस साल की उमर में

अपने होने का अर्थ

खोज रहा है बेकार लड़का

बेकार लड़के को

अँधेरी गुफा से 

कम नहीं हैं उनतीस साल

उमर की इस ढलान से उतरते हुए

एक क्षण ऐसा भी आता है

जब बेकार लड़का
'लड़का' कहे जाने पर

उदास हो जाता है

बड़ा कठिन होता है

उमर की सीढ़ियों पर चढ़ना 

जबकि हर सीढ़ी के साथ

यही लगता है बस 

अब लाँघ ही लेंगे समन्दर।

7.
हिसाब दो भाई

कौन गटक गया

तुम्हारे उनतीस साल ?

चिड़ियों ने चुन लिए

या कोई चील मार गई झपट्टा

तिल-तिल का न सही

पर कुछ मोटा-मोटा तो

हिसाब होगा तुम्हारे पास

जुआ तो नहीं खेल गए

गिरवी रखे हैं क्या

किसी साहूकार के पास

या कोई चुलबुली लड़की

खोंस ले गई है जूड़े में ?

क्या चूक हुई

जरा ध्यान करो

यों ही नहीं खो सकता

कोई अपने उनतीस साल।

8.
सूँघकर फेंक दो फूल

फूलों को मसल दो

चाहे बिखेरकर कली-कली

बहा दो नदी की धारा में

कुछ नहीं बोलते फूल

उनतीस साल की उमर में

एक दिन अचानक

डाली से टूटा हुआ फूल हो जाता है

बेकार लड़का।



Comments

  1. जब बेकार लड़का
    'लड़का' कहे जाने पर

    उदास हो जाता है

    बड़ा कठिन होता है

    उमर की सीढ़ियों पर चढ़ना

    जबकि हर सीढ़ी के साथ

    यही लगता है बस

    अब लाँघ ही लेंगे समन्दर।
    एक बेकार लड़के की मार्मिक कहानी। बहुत ही शानदार।।

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  2. एक बेहतरीन कविता

    ReplyDelete

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