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जर्मन कहानी - लेपोरैला / स्टीफन ज्विग German Story - Leporella / Stefan Zweig

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जर्मन कहानी -  लेपोरैला स्टीफन ज्विग  ( अंग्रेजी से अनुवादः अनुराधा महेंद्र) क्रेसेंज अन्‍ना फिंकेनहूबर की उम्र उनतालीस बरस थी। उसका जन्‍म नाजायज़ संतान के रूप में एक पहाड़ी गांव में हुआ था। यह जगह इंसब्रुक से ज़्‍यादा दूर नहीं थी। उसके नौकरानी के परिचय-पत्र में ख़ास विशेषता के ख़ाने में एक लक़ीर खींच दी गई थी जिसका मतलब था कोई ‘ख़ास विशेषता नहीं ' पर इस क़िस्‍म के कागज़ात भरने वाले अफसरों को यदि उसके लक्षणें को दर्ज़ करना ही पड़ता तो इस ख़ाने में वे यक़ीनन लिखते , “ थके-मांदे , हठीले , मरियल पहाड़ी टट्‌टू की माफ़िक।” वाकई नीचे का थुलथुल होंठ , लंबी अंडाकार भूरी मुखाकृति , बिना बरौनियों की बुझी-बुझी आंखें , और सबसे बढ़कर तेल से माथे पर चिपकाए रूखे बालों की वजह से उसे देख खच्‍चर की ही छवि जे़हन में उभरती थी। खच्‍चर की भांति उसकी चाल भी अड़ियल और अनमनी थी। कुदरत का एक ऐसा दुखी प्राणी जिसे बारह मास सर्दी हो या गर्मी लकड़ी की भारी-भरकम गट्‌ठर लादे उसी ऊबड़-खाबड़ , पथरीले या दलदली रास्‍ते से ऊपर-नीचे आना-जाना पड़ता है। दिनभर की कड़ी मेहनत से छुट्‌टी पाकर क्रेसेंज भी अपनी कठोर उ...