लुगदी साहित्य : कुछ बातें

लुगदी साहित्य : कुछ बातें कात्यायनी फिल्मकार कोस्ता गावरास ने एक बार किसी साक्षात्कार के दौरान कहा था कि हर फिल्म राजनीतिक फिल्म होती है , जिस फिल्म में अजीबोग़रीब हथियार लिए लोग पृथ्वी़ को परग्रहीय प्राणियों के हमले से बचाते होते हैं , वे फिल्में भी राजनीतिक ही होती हैं। बात सही है। अक्सर हम जो घोर अराजनीतिक किस्म की रूमानी या मारधाड़ वाली मसाला फिल्म देखते हैं , वह किसी न किसी रूप में हमारे समय का , या उसके किसी पक्ष का ही रूपक रचती होती है। जाहिर है कि देशकाल के इस रूपक के पीछे सर्जक की एक विशेष वर्ग-दृष्टि होती है और उसे ध्यान में रखकर ही उस रूपक को समझा जा सकता है। चालू मसाला फिल्मोंं की तरह ही , समाज में बड़े पैमाने पर जो चलताऊ , लोकप्रिय साहित्य या लुगदी साहित्य पढ़ा जाता है , वह भी किसी न किसी रूप में सामाजिक यथार्थ को ही परावर्तित करता है। सचेतन तौर पर लेखक कत्तई ऐसा नहीं करता , लेकिन रोमानी , फैमिली ड्रामा टाइप या जासूसी लुगदी साहित्य भी किसी न किसी सामाजिक यथार्थ का ही रूपक होता है , या अपने आप सामाजिक यथार्थ ही वहाँ एक फन्तासी रूप में ढल जाता है। कई बार होता यह है कि...