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कहानी - कितने खूबसूरत फूल! / जोसेफ जोबेल

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कहानी - कितने खूबसूरत फूल! जोसेफ जोबेल   ( अनुवाद व लेखक परिचय - आनन्‍द स्‍वरूप वर्मा ) सेनेगल के कथाकार जोसेफ जोबेल Joseph Zobel ( 1915-2006) उच्च सरकारी पद पर काम करते हुए साम्राज्यवाद विरोधी कहानियाँ लिखने में लगे रहे। उनकी कहानियों में आम जनजीवन का चित्रण है और देश के सुविधासम्पन्न धनिक वर्ग की मानसिकता के मुकाबले आम आदमी की मानसिकता को सामने रखा गया है , जो औपनिवेशिक व्यवस्था में दिनोंदिन बदहाली की जिन्दगी जीने के लिए विवश होता जा रहा है। -------------------------------- शायद ही पहले कभी बसन्त इतनी देर से आया हो। मई की पहली तारीख भी आ गयी , पर घाटी में लिली का एक भी फूल नहीं दिखलाई दिया। बारिश अभी भी जारी थी और आसमान का रंग मैला भूरा हो रहा था। सभी लोगों का यही कहना था कि फूल बेचने वालों की किस्मत खुल गयी है-जिसने भी जंगलों में इक्के-दुक्के फूलों वाली चन्द टहनियों का जुगाड़ कर लिया , वह इस समय हजारों फ्रैंक बना रहा होगा। दरअसल चारों तरफ फूल के नाम पर महज पत्तियाँ ही बिक रही थीं। पत्तियों से ढँकी कोई छोटी-सी टहनी जिसके सिरे पर हरापन लिये हुए एक गाँठ हो। इससे कुछ-कुछ अन...

कहानी - पत्थर के आंसू / बाल्ता आरतीक़ोव Story - Tears of Stone / Bolta Ortykov

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कहानी - पत्थर के आंसू बाल्ता आरतीक़ोव For English version please scroll down  प्रस्तुत कहानी 'नीले पर्वतों की गोद में' कहानी संग्रह से ली गई है। इस कहानी संग्रह में ताजिक लेखकों की कहानियां हैं।  This story is taken from story collection 'At the foot of the Blue mountains'. This collection contains stories by Tajik writers.  रास्ते के किनारे एक चट्टान खड़ी थी। दूर से वह काले रंग की लगती थी , पर दरअसल उसका रंग कत्थई था। चट्टान पर जगह-जगह सलवटें , गढ़े और उभार थे , पर कहीं भी टूटन या तड़कन नहीं थी। उसकी ऊंचाई एक चौमंजिला मकान के बराबर थी। लोग उसे ‘ बड़ी शिला ’ के नाम से पुकारा करते थे। ‘ बड़ी शिला ’ गांव से बहुत दूर थी। थके हुए राहगीर इसकी छांह में विश्राम किया करते थे। गर्मियों में वह लोगों को छाया प्रदान करती और जाड़ों में उन्हें वर्षा , बर्फ़ व सर्द हवा से बचाती थी। एक बार एक कौआ उस चट्टान पर आ बैठा। वह अपनी चोंच में एक अखरोट जैसी चीज़ दबाये हुए था। चारों ओर एक नज़र डालकर कौए ने अपने भोज्यपदार्थ को पंजों में कसकर दबाया और उसमें चोंच मारने लगा। दाने का कड़ा छि...