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Showing posts from May, 2024

संघी एक साथ हिटलर और इज़रायल दोनों के प्रशंसक कैसे हो सकते हैं!

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संघी एक साथ हिटलर और इज़रायल दोनों के प्रशंसक कैसे हो सकते हैं! सत्‍यम कुछ लोग आश्‍चर्य कर रहे हैं कि संघी गुबरैले एक साथ हिटलर और इज़रायल दोनों के प्रशंसक कैसे हो सकते हैं! मगर इसमें हैरानी की क्‍या बात है? ये तो हमेशा ही हर आततायी, अत्‍याचारी के भक्‍त रहे हैं। ब्रिटिश हुक़ूमत के दिनों में ये अंग्रेज़ों का पिछवाड़ा चाटते थे, क्रान्तिकारियों के साथ ग़द्दारी और मुखबिरी करते थे और फ़िरंगी राज के ख़िलाफ़ जनता की लड़ाई को कमज़ोर करने के लिए हिन्‍दू-मुस्लिम के झगड़े पैदा करने में लगे रहते थे।  जब हिटलर उभार पर था और उसके बाद भी कई सालों तक ये अपनी शाखाओं में उसका गुणगान किया करते थे और उसकी जीवनी कार्यकर्ताओं को पढ़वाया करते थे। जब पूरी दुनिया में फ़ासिस्‍टों की थू-थू हो गयी और इन्‍हें लगा कि अब उसके नाम पर यहाँ राजनीति नहीं चलेगी, तो इन कायर पाखण्‍ड‍ियों ने हिटलर की जीवनियाँ छिपा दीं। मगर इनके दिलों में हिटलर, मुसोलिनी, तोजो, फ्रांको सब अब भी राज करते हैं और बन्‍द कमरों में ये उनकी प्रशस्तियाँ गाया करते हैं।  आज ये इज़रायल द्वारा फ़िलिस्‍तीनी जनता के बर्बर जनसंहार पर ख़ुश हो रहे ह...

कविता में ईमानदारी के ख़तरे / कात्यायनी

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 कविता में ईमानदारी के ख़तरे कात्यायनी  शुभेच्छुओं ने सलाह दी कि  हवा की दिशा में उड़ो।  कविता में इस उड़ान की इंदराजी होगी और कोई जोखिम भी नहीं रहेगा,  उल्टे प्रशंसा और प्रसिद्धि मिलेगी।  ताउम्र मैंने इकट्ठा किये कुछ कंचे, कुछ सीपियाँ, कुछ फूलों की पंखुड़ियाँ,  तितलियों के पंख, मार्च महीने की उड़ती हुई पत्तियाँ, कविता के बहुत सारे सुन्दर बिम्ब,  कुछ पुराने प्रेमपत्र, बीते दिनों की कुछ यादें,  और ऐसी ही बहुत सारी चीज़ें और उन्हें उस पुराने बक्से में रख दिया जो एक यायावर मेरे पास छोड़ गया था जो फिर कभी नहीं लौटा।  किसी सफ़र के दौरान या तो उसकी हत्या की जा चुकी थी या शायद उसे किसी कालकोठरी में बंद कर दिया गया था।  उस बक्से में सँजो रखी थी मैंने याद रखने लायक़  चीज़ें,  अँधेरे में जीने वालों के कुछ अनदेखे दुख, दुनिया की बहुत सारी उपेक्षित चीज़ें,  ज़रूरी औजार, अप्रिय स्मृतियाँ और इंसाफ़ की पुकारों और अच्छे-बुरे सपनों  की आवाज़ें और तस्वीरें,  कुछ मानचित्र और डायरियाँ और इतिहास की कुछ प्रतिबंधित किताबें।  अ...

महान लेखक लेव तोल्‍स्‍तोय के उपन्‍यास कज्‍़ज़ाक की पीडीएफ फाइल

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  महान लेखक लेव तोल्‍स्‍तोय के उपन्‍यास कज्‍़ज़ाक की पीडीएफ फाइल पीडीएफ फाइल डाउनलोड लिंक    लिंक 1          लिंक 2   डाउनलोड करने में कोई समस्‍या आये तो 9892808704 पर व्‍हाटसएप्‍प संदेश भेजें ईमानदारी से जीने के लिए आदमी को कुछ करने को लालायित होना ,  छटपटाना चाहिए ,  भटकना और गलतियां करनी चाहिए ,  शुरू करना और छोड़ना चाहिए ,  फिर से शुरू करना और फिर से छोड़ना चाहिए और निरंतर संघर्ष करना चाहिए। इत्मीनान और चैन तो मानसिक अधमता है ,  लेव तोलस्तोय ( 1828  -  1910 ) के ये शब्द उनके सृजन में हमारे लिए बहुत कुछ स्पष्ट करते हैं। ‘ कज़्ज़ाक ’   उपन्यास पर तोलस्तोय ने  1852  से  1862  तक काम किया। काकेशिया में बिताये वर्षों का उनका अनुभव इसमें प्रतिबिंबित हुआ है। इस उपन्यास में लेखक ने मानव जीवन के मूल्य के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं ,   जन-जीवन का सौंदर्य और निश्छलता तथा कुलीन समाज का झूठ और पाखंड   दिखाया है। “ तोल्‍स्‍तोय  एक पूरा जगत हैं। ... उन्होंने सचमुच एक विर...