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Showing posts from 2022

भीष्म साहनी की कहानी त्रास

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भीष्म साहनी की कहानी  त्रास ऐक्सिडेंट पलक मारते हो गया. और ऐक्सिडेंट की जमीन भी पलक मारते तैयार हुई. पर मैं गलत कह रहा हूँ. उसकी जमीन मेरे मन में वर्षों से तैयार हो रही थी. हाँ , जो कुछ हुआ वह जरूर पलक मारते हो गया. दिल्‍ली में प्रत्‍येक मोटर चलानेवाला आदमी साइकिल चलानेवालों से नफरत करता है. दिल्‍ली के हर आदमी के मस्तिष्‍क में घृणा पलती रहती है और एक-न-एक दिन किसी-न-किसी रूप में फट पड़ती है. दिल्ली की सड़कों पर सारे वक्‍त घृणा का व्‍यापार चलता रहता है. बसों में धक्‍के खाकर चढ़नेवाले , भाग-भगकर सड़कें लाँघनेवाले , भोंपू बजाती मोटरों में सफर करनेवाले सभी किसी-न-किसी पर चिल्‍लाते , गालियाँ बकते , मुड़-मुड़कर एक-दूसरे को दाँत दिखाते जाते हैं. घृणा एक धुंध की तरह सड़कों पर तैरती रहती है. पिछले जमाने की घृणा कितनी सरल हुआ करती थी , लगभग प्‍यार जैसी सरल. क्‍योंकि वह घृणा किसी व्‍यक्ति विशेष के प्रति हुआ करती थी. पर अनजान लोगों के प्रति यह अमूर्त घृणा , मस्तिष्‍क से जो निकल-निकलकर सारा वक्‍त वातावरण में अपना जहर घोलती रहती है. वह साइकिल पर था और मैं मोटर चला रहा था. न जाने वह आदमी ...

त्‍योहारों के बारे में कुछ विचार

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त्‍योहारों के बारे में कुछ विचार कात्‍यायनी त्‍योहारों का जन्‍म कृषि-आधारित पुरातन समाजों में फसलों की बुवाई और कटाई के मौसमों पर आधारित था। ये सामूहिक जन-उल्‍लास के संस्‍थाबद्ध रूप थे। जादुई विश्‍वदृष्टिकोण और प्राकृतिक शक्तियों के अभ्‍यर्थना के आदिम काल में इन त्‍योहारों के साथ टोटकों की कुछ सामूहिक क्रियाऍं जुड़ी हुई थीं। फिर संस्‍थाबद्ध धर्मों ने शासकवर्गों के हितों के अनुरूप इन त्‍योहारों का पुन:संस्‍कार और पुनर्गठन किया और इनके साथ तरह-तरह की धार्मिक मिथकीय कथाऍं और अनुष्‍ठान जोड़ दिये गये। इसके बावजूद प्राक् पूँजीवादी समाजों में आम उत्‍पादक जन समुदाय इन त्‍योहारी उत्‍सवों को काफी हद तक अपने ढंग से मनाता रहा। त्‍योहार आम उत्‍पीडि़तों के लिए काफी हद तक सामूहिकता का जश्‍न बने रहे। जिन्‍दगी भर उत्‍पीड़न का बोझ ढोने वाले लोग कम से कम एक दिन कुछ खुश हो लेते थे, कुछ गा-बजा और नाच लेते थे। लेकिन पूँजी की चुड़ैल ने आम लोगों के जीवन का यह रस भी चूस लिया। जीवन में हर चीज माल में तब्‍दील हो गयी और सबकुछ बाजार के मातहत हो गया। होली-दिवाली-दशहरा---- सभी त्‍योहार समाज में अमीरों के लिए 'स्...

चार उद्धरण / रोडनी, इंगरसोल, ट्वेन, माल्कम

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चार उद्धरण / रोडनी, इंगरसोल, मार्क ट्वेन,  माल्कम  एक्स नैतिकता के किस मानदण्ड से एक दास द्वारा अपनी जंजीरों को तोड़ने के लिए की गयी हिंसा को एक दास-मालिक की हिंसा के बराबर समझा जा सकता है। वाल्टर रोडनी ( 23 मार्च 1942 - 13 जून 1980) By what standard of morality can the violence used by a slave to break his chains be considered the same as the violence of a slave master? Walter Rodney (23 March 1942 – 13 June 1980) --------------------- मज़दूर का अधिकार: जो कोई भी कठिन श्रम से कोई चीज़ पैदा करता है उसे यह बताने के लिए किसी ख़ुदाई पैग़ाम की ज़रूरत नहीं कि पैदा की गयी चीज़ पर उसी का अधिकार है। राबर्ट जी. इंगरसोल (11 अगस्‍त 1833 – 21 जुलाई 1899) Right of Labour: Whoever produces anything by weary labour does not need revelation from heaven to teach him that he has a right to the thing produced. Robert G. Ingersoll (11 Aug 1833 – 21 Jul 1899) --------------------- लोगों के सिर कलम कर दिये जाने को तो हम भयंकर मानते हैं , पर हमें जीवन-पर्यन्त बरक़रार रहने वाली मृत्यु की उस भयंक...

कात्‍यायनी की दो कविताएं - सामान्यता की शर्त, सफल नागरिक

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कात्‍यायनी की दो कविताएं   सामान्यता की शर्त . जिस गन्दे रास्ते से हम रोज़ गुज़रते हैं वह फिर गन्दा ‍ लगना बन्द हो जाता है। . रोज़ाना हम कुछ अजी ‍ बोग़रीब चीज़ें देखते हैं और फिर हमारी आँखों के लिए वे अजीबोग़रीब नहीं रह जाती। . हम इतने समझौते देखते हैं आसपास कि समझौतों से हमारी नफ़रत ख़त्म हो जाती है। . इसीतरह, ठीक इसीतरह हम मक्का़री, कायरता, क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म के भी आदी होते चले जाते हैं। . सबसे कठिन है एक सामान्य आदमी होना। सामान्यता के लिए ज़रूरी है कि सारी असामान्य चीज़ें हमें असामान्य लगें क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म हमें हरदम क्रूरता, बर्बरता, उन्माद और फासिज़्म ही लगे यह बहुत ज़रूरी है और इसके लिए हमें लगातार बहुत कुछ करना होता है जो इनदिनों ग़ैरज़रूरी मान लिया गया है। . सफल नागरिक . दुनिया में जब घटती होती हैं रोज़-रोज़ तमाम चीज़ें – मसलन मँहगाई, भूख, भ्रष्टाचार, ग़रीबी, तरह-तरह के अन्या ‍ य और अत्या ‍ चार और लूट और युद्ध और नरसंहार, तो हम दोनों हाथ फैलाकर कहते हैं, ‘हम भला और क्या कर सकते हैं कुछ सवाल उठाने और कुछ शिकायतें दर्ज़ करते रहने के ...

कविता - इन्क़लाब के बारे में कुछ बातें / कात्यायनी

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कविता -  इन्क़लाब के बारे में कुछ बातें कात्यायनी नहीं मिलती है रोटी कभी लम्बे समय तक या छिन जाती है मिलकर भी बार-बार तो भी आदमी नहीं छोड़ता है रोटी के बारे में सोचना और उसे पाने की कोशिश करना। कभी-कभी लम्बे समय तक आदमी नहीं पाता है प्यार और कभी-कभी तो ज़िन्दगी भर। खो देता है कई बार वह इसे पाकर भी फिर भी वह सोचता है तब तक प्यार के बारे में जब तक धड़कता रहता है उसका दिल। ऐसा ही , ठीक ऐसा ही होता है इन्क़लाब के बारे में भी। पुरानी नहीं पड़ती हैं बातें कभी भी इन्क़लाब के बारे में। नवम्बर , 1992

विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - भिखारी Anton Chekhov's Story - The Beggar

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विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - भिखारी For English version please scroll down  अनुवाद :   अनिल जनविजय ‘ओ साहिब जी, एक भूखे बेचारे पर दया कीजिए। तीन दिन का भूखा हूं। रात बिताने के लिए जेब में एक पैसा भी नहीं। पूरे आठ साल तक गांव के एक स्कूल में मास्टर रहा। बड़े लोगों की बदमाशी से नौकरी चली गई। जुल्म का शिकार बना हूं। अभी साल पूरा हुआ है बेरोजगार भटकते फिरते हुए।’ बैरिस्टर स्क्वार्त्सोफ़ ने भिखारी के मैले-कुचैले कोट, नशे से गंदली आंखें, गालों पर लगे हुए लाल धब्बे देखे। उन्हें लगा कि इस आदमी को कहीं पहले देखा है। ‘अभी मुझे कलूगा जिले में नौकरी मिलने ही वाली है’, भिखारी आगे बोलता गया, ‘पर उधर जाने के लिए पैसे नहीं हैं। कृपा करके मदद कीजिए साहिब। भीख मांगना शर्म का काम है, पर क्या करूं, मजबूर हूं।’ स्क्वार्त्सोफ़ ने उसके रबर के जूतों पर नजर डाली जिन में से एक नाप में छोटा और एक बड़ा था तो उन्हें एकदम याद आया, ‘सुनिए, तीन दिन पहले मैं ने आपको सदोवाया सड़क पर देखा था’, बैरिस्टर बोले, ‘आप ही थे न ? पर उस वक़्त आपन...