कहानी - दाज्यू / शेखर जोशी
कहानी - दाज्यू शेखर जोशी चैक से निकलकर बाईं ओर जो बड़े साइनबोर्ड वाला छोटा कैफे है वहीं जगदीश बाबू ने उसे पहली बार देखा था। गोरा-चिट्टा रंग , नीला श़फ्फ़ाफ़ आँखें , सुनहरे बाल और चाल में एक अनोखी मस्ती-पर शिथिलता नहीं। कमल के पत्ते पर फिसलती हुई पानी की बूँद की-सी फुर्ती। आँखों की चंचलता देखकर उसकी उम्र का अनुमान केवल नौ-दस वर्ष ही लगाया जा सकता था और शायद यही उम्र उसकी रही होगी। अधजली सिगरेट का एक लंबा कश खींचते हुए जब जगदीश बाबू ने कैफे में प्रवेश किया तो वह एक मेज पर से प्लेटें उठा रहा था और जब वे पास ही कोने की टेबल पर बैठे तो वह सामने था। मानो , घंटों से उनकी , उस स्थान पर आनेवाले व्यक्ति की , प्रतीक्षा कर रहा हो। वह कुछ बोला नहीं। हाँ , नम्रता प्रदर्शन के लिए थोड़ा झुका और मुस्कराया-भर था , पर उसके इसी मौन में जैसे सारा ‘ मीनू ’ समाहित था। ‘ सिंगल चाय ’ का आर्डर पाने पर वह एक बार पुनः मुस्कराकर चल दिया और पलक मारते ही चाय हाज़िर थी। मुनष्य की भावनाएँ बड़ी विचित्र होती हैं। निर्जन, एकांत स्थान में निस्संग होने पर भी कभी-कभी आदमी एकाकी अनुभव नहीं करता। लगता ह...