व्यंग्य कथा - उखड़े खंभे / हरिशंकर परसाई
व्यंग्य कथा - उखड़े खंभे / हरिशंकर परसाई एक दिन राजा ने खीझकर घोषणा कर दी कि मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भे से लटका दिया जाऐगा। सुबह होते ही लोग बिजली के खम्भों के पास जमा हो गये। उन्होंने खम्भों की पूजा की , आरती उतारी और उन्हें तिलक किया। शाम तक वे इंतजार करते रहे कि अब मुनाफाखोर टांगे जाऐंगे- और अब। पर कोई नहीं टाँगा गया। लोग जुलूस बनाकर राजा के पास गये और कहा ," महाराज , आपने तो कहा था कि मुनाफाखोर बिजली के खम्भे से लटकाये जाऐंगे , पर खम्भे तो वैसे ही खड़े हैं और मुनाफाखोर स्वस्थ और सानन्द हैं।" राजा ने कहा ," कहा है तो उन्हें खम्भों पर टाँगा ही जाऐगा। थोड़ा समय लगेगा। टाँगने के लिये फन्दे चाहिये। मैंने फन्दे बनाने का आर्डर दे दिया है। उनके मिलते ही , सब मुनाफाखोरों को बिजली के खम्भों से टाँग दूँगा। भीड़ में से एक आदमी बोल उठा ," पर फन्दे बनाने का ठेका भी तो एक मुनाफाखोर ने ही लिया है।" राजा ने कहा ," तो क्या हुआ ? उसे उसके ही फन्दे से टाँगा जाऐगा।" तभी दूसरा बोल उठा ," पर वह तो कह रहा था कि फाँसी पर लटकाने का ठेका भी ...