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प्रेमचन्‍द की कालजयी कहानी - पूस की रात Premchand's Timeless Story - A Winter's Night

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प्रेमचन्‍द की कालजयी कहानी - पूस की रात For English version please scroll down हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है , लाओ , जो रुपये रखे हैं , उसे दे दूं , किसी तरह गला तो छूटे. मुन्नी झाड़ू लगा रही थी. पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं , दे दोगे तो कम्मल कहां से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो , फसल पर दे देंगे. अभी नहीं. हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा. पूस सिर पर आ गया , कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता. मगर सहना मानेगा नहीं , घुड़कियां जमावेगा , गालियां देगा. बला से जाड़ों में मरेंगे , बला तो सिर से टल जाएगी. यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे , गला तो छूटे. कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूंगा. मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आंखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय! जरा सुनूं तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है , जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती. मैं कहती हूं , तुम क्यों नहीं ख...

कहानी - मुम्बई / एन.एस. माधवन Story - Mumbai / NS Madhavan

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कहानी -  मुम्बई एन.एस. माधवन ( अंग्रेज़ी से अनुवाद : सत्यम ) Please scroll down for  English version बचपन की यादें दुनिया को समझने में अज़ीज़ की मददगार थीं। बेशक़ , ऐसा सबके साथ होता होगा। दादा आदम को छोड़कर। धरती पर पहले इन्सान होने के नाते , उनका तो कोई बचपन भी नहीं था। (नाभि भी नहीं थी। हा , हा , हा , अज़ीज़ मन ही मन हँसा।) अज़ीज़ को बचपन की याद दिलाने वाली कोई भी चीज़ आसानी से पसन्द आ जाती थी। इसीलिए उसे मुम्बई पसन्द थी। अगर आप मट्टनचेरी को समतल कर दें , तो आपको मुम्बई मिल जाएगी। वार्डन रोड पर जिस फ्लैट में वह रहता था , उसके मालिक बुज़ुर्ग दम्पति भी उसे पसन्द थे। अगर शकूर साहब अपनी शानदार , सफ़ेद होती मूँछों और शरारती आँखों से एयर इंडिया महाराजा की याद दिलाते थे , तो अम्मीजान के गालों में पड़ने वाले बड़े-बड़े गड्ढों से उसे अपनी पसंदीदा अभिनेत्री , केपीएसी ललिता की याद आती थी। हमेशा की तरह उस दिन भी , सुबह-सुबह धुली हुई टैक्सियों को देखकर अज़ीज़ खुशी से भर गया। दूसरे शहरों की तरह मुम्बई की टैक्सियाँ भारी-भरकम एम्बेसडर नहीं थीं। वे फ़िएट थीं , बिल्कुल टैबी बिल्लियों ...