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Showing posts from October, 2024

कज़ाखी लोक-कथा - अद्भुत बाग़ Kazakh Folk-tale - The Magic Garden

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कज़ाखी लोक-कथा - अद्भुत बाग़ हिन्‍दी अनुवाद - सुधीर कुमार माथुर (भलाई कर, बुराई से डर - कज़ाख लोक-कथाएं पुस्‍तक से) बहुत पहले दो ग़रीब दोस्त थे - असन और हसेन। असन ज़मीन के छोटे-से टुकड़े पर खेती करता था , हसेन अपना भेड़ों का छोटा-सा रेवड़ चराता था। वे इसी तरह रूखा-सूखा खाने लायक़ कमाकर गुजर-बसर करते थे। दोनों मित्र काफ़ी पहले विधुर हो चुके थे , लेकिन असन की एक रूपवती व स्नेहमयी बेटी थी - उसकी एकमात्र दिलासा , और हसेन का एक बलवान व आज्ञाकारी बेटा था - उसकी एकमात्र आशा। एक बार वसन्त में जब असन अपने खेत में बोवाई करने की तैयारी कर रहा था , हसेन पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा स्तेपी में महामारी फैल गयी और बेचारे की सारी भेड़ें मर गयीं। हसेन फूट-फूटकर रोता , अपने बेटे के कंधे पर हाथ रखे अपने मित्र के पास आया और बोला : “ असन , मैं तुमसे विदा लेने आया हूँ। मेरी सारी भेड़ें मर गयीं , उनके बिना मेरा भी भूखों मरना निश्चित है। ” यह सुनते ही असन ने बूढ़े गड़रिये को सीने से लगा लिया और बोला : “ मेरे दोस्त , मेरा आधा दिल तुम्हारा है , तुम मेरा आधा खेत भी ले लो , इनकार मत करना। चिन्ता मत क...

क‍व‍िता - किशन की बातें (रोशनाबाद कविता-श्रृंखला)

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क‍व‍िता -  किशन की बातें  ( रोशनाबाद कविता-श्रृंखला) कविता कृष्णपल्लवी किशन  तीन साल पहले देवरिया से आया था हरिद्वार।  कुछ दिन होटलों में बेयरे का काम किया फिर फ़ैक्ट्री मज़दूर का जीवन चुन लिया।  बारहवीं पास था और आईटीआई भी किया था और अख़बार ही नहीं, कहानी-उपन्यास भी पढ़ता था।  किराये की कोठरी में तीन और मज़दूर रहते थे उसके साथ जो उसे  दिलचस्प जीव मानते थे और दोस्त भी।  किशन कभी सीधे ढंग से नहीं करता था कोई बात।  उसके अपने मुहावरे होते थे,  रूपक और बिम्ब होते थे।  जब फैक्ट्री से ब्रेक दे देते थे मालिक तो लेबर चौक जाता था।  लेबर चौक को 'सोनपुर का पशु मेला' कहता था।  वहाँ जाने से पहले कहता था, "देखें आज कोई कसाई बकरे को किस भाव ले जाता है!" बस्ती में घूमते सूदखोरों के आदमियों को देखकर आवाज़ लगाता था "हुँड़ार घूम रहे हैं बे! इधर-उधर हो जाना!" लेबर कांट्रैक्टरों को 'ग़ुलामों का सौदागर' कहता था और लेबर ऑफिस को 'बाईजी का कोठा!' फ़ैक्ट्री में जाते मज़दूरों की टोलियों को पुकार कर कहता था, "भेड़ा भाई लोग ऊन उतरवाने जा रहे हैं!" एक ...

कहानी - जंगल गूँज रहा है / व्लादीमिर कोरोलेन्को Story - The Murmuring Forest / Vladimir Korolenko

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कहानी - जंगल गूँज रहा है व्लादीमिर कोरोलेन्को ( अनुवाद - मदनलाल ‘मधु’) ( पोलेस्ये की एक दन्त-कथा) आपबीती यह किसी की जो कहानी बन गयी! For English version please scroll down  लेखक परिचय -   व्लादीमिर कोरोलेन्को (1853-1921)   19वीं शताब्दी के अन्त और 20वीं शताब्दी के आरम्भ के एक प्रमुख यथार्थवादी लेखक व्लादीमिर कोरोलेन्को अपने समय के एक सर्वाधिक मनमोहक व्यक्ति थे। कोरोलेन्को को अपना पहला गुरु बताते हुए सर्वहारा लेखक मक्सिम गोर्की ने लिखा है- “मेरे लिए कोरोलेन्को उन सैकड़ों लोगों में सबसे श्रेष्ठ बने रहे हैं जिनसे मेरी भेंट हुई है और मैं उन्हें रूसी लेखक का आदर्श रूप मानता हूँ।” कोरोलेन्को कहानियाँ और लघु-उपन्यास, आधी शती के रूसी जीवन के इतिवृत के रूप में अनेक खण्डोंवाला 'मेरे समकालीन का इतिहास', जारशाही द्वारा साइबेरिया में निर्वासित होने पर वहाँ बिताये गये जीवन के शब्दचित्र, लेव तोल्स्तोय और अन्तोन चेखव आदि के बारे में संस्मरण (लगभग 700 लेख, पत्र, शब्दचित्र और टिप्पणियाँ) साहित्यिक थाती के रूप में छोड़ गये हैं। 'जंगल गूँज रहा है' (1886) कहानी उत्पीड़ितों के प्रति सह...