नज़्म - हाथों का तराना / अली सरदार जाफ़री
नज़्म - हाथों का तराना अली सरदार जाफ़री (29 नवम्बर 1913 - 1 अगस्त 2000) इन हाथों की ताज़ीम करो इन हाथों की तकरीम करो दुनिया के चलाने वाले हैं इन हाथों को तस्लीम करो तारीख़ के और मशीनों के पहियों की रवानी इन से है तहज़ीब की और तमद्दुन की भरपूर जवानी इन से है दुनिया का फ़साना इन से है , इंसाँ की कहानी इन से है इन हाथों की ताज़ीम करो सदियों से गुज़र कर आए हैं , ये नेक और बद को जानते हैं ये दोस्त हैं सारे आलम के , पर दुश्मन को पहचानते हैं ख़ुद शक्ति का अवतार हैं , ये कब ग़ैर की शक्ति मानते हैं इन हाथों को ताज़ीम करो एक ज़ख़्म हमारे हाथों के , ये फूल जो हैं गुल-दानों में सूखे हुए प्यासे चुल्लू थे , जो जाम हैं अब मय-ख़ानों में टूटी हुई सौ अंगड़ाइयों की मेहराबें हैं ऐवानों में इन हाथों की ताज़ीम करो राहों की सुनहरी रौशनियाँ , बिजली के जो फैले दामन में फ़ानूस हसीं ऐवानों के , जो रंग-ओ-नूर के ख़िर्मन में य...