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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म - शोपेन का नग़मा बजता है

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  फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म ‍ - शोपेन का नग़मा बजता है छलनी है अँधेरे का सीना, बरखा के भाले बरसे हैं दीवारों के आँसू हैं रवां, घर ख़ामोशी में डूबे हैं पानी में नहाये हैं बूटे, गलियों में हू का फेरा है शोपेन का नग़मा बजता है इक ग़मगीं लड़की के चेहरे पर चाँद की ज़र्दी छाई है जो बर्फ़ गिरी थी इस पे लहू के छींटों की रुशनाई है ख़ूं का हर दाग़ दमकता है शोपेन का नग़मा बजता है कुछ आज़ादी के मतवाले, जां कफ़ पे लिये मैदां में गये हर सू दुश्मन का नरग़ा था, कुछ बच निकले, कुछ खेत रहे आलम में उनका शोहरा है शोपेन का नग़मा बजता है इक कूंज को सखियाँ छोड़ गईं आकाश की नीली राहों में वो याद में तनहा रोती थी, लिपटाये अपनी बाँहों में इक शाहीं उस पर झपटा है शोपेन का नग़मा बजता है ग़म ने साँचे में ढाला है इक बाप के पत्थर चेहरे को मुर्दा बेटे के माथे को इक मां ने रोकर चूमा है शोपेन का नग़मा बजता है फिर फूलों की रुत लौट आई और चाहने वालों की गर्दन में झूले डाले बाँहों ने फिर झरने नाचे छन छन छन अब बादल है न बरखा है शोपेन का नग़मा बजता है फ्रेडरिक शोपिन (1 मार्च 1810-17 अक् ‍ टूबर 1849) एक विश् ‍ व प्रसिद्ध पियानोवादक व गीतकार थे।

मोहन राकेश की कहानी अपरिचित

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मोहन राकेश की कहानी  अपरिचित कोहरे की वजह से खिड़कियों के शीशे धुंधले पड़ गए थे. गाड़ी चालीस की रफ़्तार से सुनसान अंधेरे को चीरती चली जा रही थी. खिड़की से सिर सटाकर भी बाहर कुछ दिखाई नहीं देता था. फिर भी मैं देखने की कोशिश कर रहा था. कभी किसी पेड़ की हल्की-गहरी रेखा ही गुज़रती नज़र आ जाती तो कुछ देख लेने का सन्तोष होता. मन को उलझाए रखने के लिए इतना ही काफ़ी था. आंखों में ज़रा नींद नहीं थी. गाड़ी को जाने कितनी देर बाद कहीं जाकर रुकना था. जब और कुछ दिखाई न देता , तो अपना प्रतिबिम्ब तो कम से कम देखा ही जा सकता था. अपने प्रतिबिम्ब के अलावा और भी कई प्रतिबिम्ब थे. ऊपर की बर्थ पर सोए व्यक्ति का प्रतिबिम्ब अजब बेबसी के साथ हिल रहा था. सामने की बर्थ पर बैठी स्त्री का प्रतिबिम्ब बहुत उदास था. उसकी भारी पलकें पल-भर के लिए ऊपर उठतीं , फिर झुक जातीं. आकृतियों के अलावा कई बार नई-नई आवाज़ें ध्यान बंटा देतीं , जिनसे पता चलता कि गाड़ी पुल पर से जा रही है या मकानों की क़तार के पास से गुज़र रही है. बीच में सहसा इंजन की चीख़ सुनाई दे जाती , जिससे अंधेरा और एकान्त और गहरे महसूस होने लगते. मैंने घड़ी...