कहानी - उज्ज्वल भविष्य / स्वयं प्रकाश
कहानी - उज्ज्वल भविष्य स्वयं प्रकाश गाड़ी ने प्लेटफॉर्म छोड़ा तो ऊबते हुए स्पेक्ट्रा इंजीनियरिंग ग्रुप के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक और मालिक मित्तल साहब ने टाटा करने वालों को प्रत्युत्तर दिया और जूते उतारकर टाँगें पसार लीं। चलो! अब अपन हैं और यह यात्रा। बाजू की खाली वर्थ पर नजर डालो। कूपे की तीनों बर्थ खाली थीं और खाली ही रहने वाली थीं। इससे तो कोई होता! पर क्या पता कौन होता? कोई बोर करने वाला होता तो? नहीं, ऐसे ही ठीक है। अभी कूपे का दरवाजा बंद करने की सोच ही रहे थे कि एक लड़का दौड़ता हुआ आता दिखाई दिया। वह प्लेटफॉर्म के ऐन सिरे पर रफ्तार पकड़ चुकी गाड़ी में उछलकर चढ़ गया - इसी डिब्बे में - और सीधा मित्तल साहब के कूपे में घुस गया और पीछे से दरवाजा बंद करने लगा। 'क्या बात है? क्या बात है? क्या चाहिए?' मित्तल उखड़ गए। लड़के ने हाथ जोड़े, हँफनी सँभाली, बोला, 'घबराइए नहीं, चोर-डाकू नहीं हूँ, प्लीज! दो मिनिट का मौका दीजिए।' मित्तल बैठे रह गए। टकटकी लगाकर लड़के को देखते रहे। उसने कूपे का दरवाजा पीछे हाथ कर बंद जरूर किया है, लेकिन बोल्ट नहीं किया है। किसी भी समय चिल्लाकर कंडक्टर...