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Showing posts from May, 2018

मुंशी प्रेमचन्‍द की कालजयी कहानी - पूस की रात Munshi Premchand's Story - A Winter's Night

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मुंशी प्रेमचन्‍द की कालजयी कहानी - पूस की रात For English version please scroll down हल्कू ने आकर स्त्री से कहा- सहना आया है , लाओ , जो रुपये रखे हैं , उसे दे दूं , किसी तरह गला तो छूटे. मुन्नी झाड़ू लगा रही थी. पीछे फिरकर बोली- तीन ही तो रुपये हैं , दे दोगे तो कम्मल कहां से आवेगा ? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो , फसल पर दे देंगे. अभी नहीं. हल्कू एक क्षण अनिश्चित दशा में खड़ा रहा. पूस सिर पर आ गया , कम्मल के बिना हार में रात को वह किसी तरह नहीं जा सकता. मगर सहना मानेगा नहीं , घुड़कियां जमावेगा , गालियां देगा. बला से जाड़ों में मरेंगे , बला तो सिर से टल जाएगी. यह सोचता हुआ वह अपना भारी- भरकम डील लिए हुए (जो उसके नाम को झूठ सिद्ध करता था) स्त्री के समीप आ गया और खुशामद करके बोला- ला दे दे , गला तो छूटे. कम्मल के लिए कोई दूसरा उपाय सोचूंगा. मुन्नी उसके पास से दूर हट गयी और आंखें तरेरती हुई बोली- कर चुके दूसरा उपाय! जरा सुनूं तो कौन-सा उपाय करोगे ? कोई खैरात दे देगा कम्मल ? न जाने कितनी बाकी है , जों किसी तरह चुकने ही नहीं आती. मैं कहती हूं , तुम क्यों...

भीष्‍म साहनी की कहानी - अमृतसर आ गया है

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भीष्‍म साहनी की कहानी - अमृतसर आ गया है गाड़ी के डिब्बे में बहुत मुसाफिर नहीं थे। मेरे सामनेवाली सीट पर बैठे सरदार जी देर से मुझे लाम के किस्से सुनाते रहे थे। वह लाम के दिनों में बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुके थे और बात-बात पर खी-खी करके हँसते और गोरे फौजियों की खिल्ली उड़ाते रहे थे। डिब्बे में तीन पठान व्यापारी भी थे, उनमें से एक हरे रंग की पोशाक पहने ऊपरवाली बर्थ पर लेटा हुआ था। वह आदमी बड़ा हँसमुख था और बड़ी देर से मेरे साथवाली सीट पर बैठे एक दुबले-से बाबू के साथ उसका मजाक चल रहा था। वह दुबला बाबू पेशावर का रहनेवाला जान पड़ता था क्योंकि किसी-किसी वक्त वे आपस में पश्तो में बातें करने लगते थे। मेरे सामने दाईं ओर कोने में, एक बुढ़िया मुँह-सिर ढाँपे बैठा थी और देर से माला जप रही थी। यही कुछ लोग रहे होंगे। संभव है दो-एक और मुसाफिर भी रहे हों, पर वे स्पष्टत: मुझे याद नहीं। गाड़ी धीमी रफ्तार से चली जा रही थी, और गाड़ी में बैठे मुसाफिर बतिया रहे थे और बाहर गेहूँ के खेतों में हल्की-हल्की लहरियाँ उठ रही थीं, और मैं मन-ही-मन बड़ा खुश था क्योंकि मैं दिल्ली में होनेवाला स्वतंत्रता-दिवस समारोह देखन...

विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - संताप Anton Chekhov's Story - Sorrow

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विश्‍व प्रसिद्ध कहानीकार अंतोन चेखव की कहानी - संताप   For English version please scroll down मिस्तरी ग्रिगोरी पेत्रेव , जिसे बहुत दिनों से पूरे गाल्चिनो ज़िले के लोग कुशल दस्तकार , मगर काहिल आदमी के रूप में जानते थे , अपनी बूढ़ी बीमार बीवी को जेम्स्त्वो अस्पताल ले जा रहा था। उसे गाड़ी हाँककर कोई तीस मील का सफ़र तय करना था और सड़क बेहद ख़राब थी , काहिल ग्रिगोरी की तो बात ही क्या , सरकारी डाकिये तक के बूते के बाहर की बात थी वह। ठिठुरन भरी तेज़ हवा चेहरे पर लग रही थी। बर्फ़ के गोले बड़े-बड़े बादलों की तरह हवा में उड़ रहे थे और पता लगाना मुश्किल हो रहा था कि बर्फ़ आसमान से आ रही है या ज़मीन से। बर्फ़ की वजह से खेत , तार के खम्भे , जंगल कुछ भी नहीं दिखायी देते थे और जब बहुत ज़्यादा तेज़ हवा का झोंका आ जाता , ग्रिगोरी को जुआ भी न सूझता। कमज़ोर , बूढ़ी घोड़ी कछुए की रफ्तार से घिसट रही थी। गहरी बर्फ़ से एक-एक टाप निकालने और गरदन झटकने में ही उसे अपनी सारी ताक़त लगा देनी पड़ती थी...मिस्तरी को जल्दी थी। बेचैनी से वह अपनी जगह पर बीच-बीच में उठता-बैठता और घोड़ी की पीठ पर बार-बार चाबुक मारता। ...